Modi, in many respects, is similar to Vajpayee - humble background, political journey, patriotic, no family, no greed for money…
So, why is Modi not following Vajpayee’s footsteps?
He cannot afford to repeat the same mistakes that were done by BJP in 2004 #Modi4PM2024
5 years of country’s economic and infrastructure development under Vajpayee was only beginning to yield results but ‘India Shining’ wasn’t marketed properly back then. So, BJP will leave no stone unturned to market their achievements this time.
An interaction with hostile media will neither be productive nor advantageous. So, BJP is now more careful in accepting interview invitations..
Modi is far more aggressive when it comes to election campaigning. He will not even shy away from testing the limits of political correctness.
The leader of an incumbent party cannot afford to seem low on confidence or apologetic for even a moment, and so Modi will not let that happen.
You’ll be surprised to know the kind of similarities in the opposition’s approach between now and then (2019 and 2004).
Operation Shakti vs Mission Shakti: When Vajpayee’s government conducted the Pokhran nuclear tests, then the opposition accused him of using the tests for political ends rather than to enhance the country's national security..
Remember the reactions on Modi’s ASAT test - Mission Shakti?
Unemployment: In 2004 too, the opposition had raised issues on (and I quote) the ‘faulty economic policies of the Vajpayee government leading to massive unemployment..
He responded by telling that 7 million jobs were created but also admitted that the problem is still there. Do you think that this reply helped?
In 2004 too, the opposition had used a defense related scandal - ‘Coffin Scam’ to attack the BJP Government. Years later, no wrongdoings were found and SC exonerated the Defense Minster and PM.
However, it costed them dearly in those elections. Doesn’t the Rafale Controversy trigger deja vu?
Atal Bihari Vajpayee is now hailed as a true statesman and one of the finest PMs of the country. He was honest, he respected his opponents and stood for clean politics
Yet, we voted him out when he was contesting the last election of his career….“It's very important to win in politics ... because losers aren't capable of changing the destiny of a country.”
And Modi-shah knows that very well. They will make sure they win, no matter what…Modiji knows very well that such interrogation style interviews to be so wasteful.
Instead of getting the inter-view it becomes like a fight to trap the other person and pin them down while getting oneself from their attack. No time for getting to the core of the issues of the topic…
He doesn't engage these manipulative TV anchors with their petty mind games. Just delivers results and let's the people know directly about important without interference and diversions from intermediaries…Modi is more smarter than he looks he knows what he is doing!!
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राहुल गांधी भारत जोडो यात्रेत हजारो किलोमीटर चालले, देशभर फिरले, PR-वर करोडो रुपये खर्च केले आणि त्यानंतर पीएम मोदी संसदेत दाखल झाले आणि अवघ्या काही मिनिटांत त्यांचे सर्व प्रयत्न उध्वस्त झाले...असच होत नेहमी …
पीएम मोदींनी लोकसभेत सम्बोधित करते वेळी आज एक महत्वपूर्ण टिप्पणी केली ती म्हणजे..."मोदींवरचा विश्वास वृत्तपत्र आणि टीव्हीतून जन्माला आलेला नाही, आयुष्य देशाच्या हिता साठी घालवले आहे आणि देशवासीयांच्या विश्वासासाठी, या सर्व गोष्टी विरोधकांच्या समजण्या पलीकडच्या आहेत.
हे अगदी 100% बरोबर आहे कारण... मोदी या व्यक्तिला मागचे 22 वर्ष झाले मिडियातल्या मोठ्या वर्गाने मोदींना फ़क्त बदनाम केलय राजनीतिक जीवनातून उठवण्याचा पर्यन्त केलाय. प्रिंट आणि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हा पूर्ण कांग्रेसी व लेफ्ट इकोसिस्टमचे मजबूत गुलाम आहेत.
मुझे मेरा राजीव लौटा दीजिए, मैं लौट जाऊंगी, नहीं लौटा सकते तो मुझे भी इसी मिट्टी में मिल जाने दो :- सोनिया गांधी।
ऐसा कहनेवाली श्रीमती सोनिया गांधी के कार्य-कलापों पर नज़र डालें तो समझ में आ जाता है कि वो वास्तव में किस मिशन पर जुटी रही हैं।
राजीव गांधी की हत्या तक सोनिया की पकड़ सिस्टम पर उतनी मज़बूत नहीं थी। उसके बाद पीवी नरसिंहराव आ गए जो सोनिया गांधी को नज़र अंदाज़ करके अपना काम करते रहे।
1999 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री रहे और इस दौरान भी सोनिया एक तरह से लाचार रहीं।
लेकिन 2004 में दिल्ली की सत्ता हाथ आते ही सोनिया ने वो मिशन शुरू कर दिया जिसके इंतज़ार में वो तब से थीं, जब से भारत आईं।
कांग्रेस द्वारा देश से बहुत कुछ छुपाया गया है।
ख़ुद को गाँधीजी का भक्त बताने वाले कितने लोगों को पता है कि- गांधीजी की अस्थियों को रामपुर के नबाब "नवाब रजा अली खां" को सौंप दिया गया था ? नवाब रजा अली खां ने उनकी अस्थियों को रामपुर ले जाकर, दफनाकर वहां एक स्मारक बना दिया था।
गांधीजी की चिता को अग्नि किसने दी थी ? गांधीजी के चार पुत्र थे उनमें से कोई उनकी अस्थियों को लेकर गंगाजी में विसर्जित करने क्यों नहीं गया ?
उनकी अस्थियां उनके पुत्रों के बजाय रामपुर के नबाब रजा अली खान को क्यों दी गई ? उनकी अस्थियों को गंगा में बहाने के बजाय चुपचाप मुस्लिम तरीके से दफनाया गया हो ?
मोहनदास करमचन्द गांधी आंदोलन के लिए देश भर में घूमते तो थे ही लिखते भी बहुत थे। एक बार गांधी ने कहीं लिख दिया कि हिन्दी में कोई रवीन्द्र नाथ टैगोर नहीं है।
गांधी का यह कथन पढ़कर निराला से रहा नहीं गया। वह गांधी से मिलने पहुंच गए। गांधी स्वराज भवन में ठहरे थे। निराला जी स्वराज भवन पैदल जा रहे थे।
रास्ते में एक तांगे पर बकरी जाती दिखी। निराला जी ने साथ चल रही महादेवी से कहा- “हिन्दी का कवि पैदल जा रहा है और बकरी तांगे पर। जरूर यह गांधी की बकरी होगी।” था भी ऐसा ही।
संसद में राहुल गांधी पूछ रहे हैं, मोदी और अडानी का क्या रिश्ता है?
खैर हमेशा की तरह तहकीकात पूरी हुई, और आखिरकार फिर, हिट विकेट हो गई, एक राहुल की घरेलू कांग्रेस!
एक बार फिर ढोल अपनी पोल खुद खोल गया,* अबकी बार सड़क पर नहीं, सीधे संसद में, कांग्रेस परिवार, राजीव गांधी, नरसिंह राव, मनमोहन समेत, बघेल, गहलोत, पवार, थरूर, सोरेन, चद्रशेखर राव, ठाकरे सभी अडानी के व्यापार को बढ़ाने के लिए देते रहे साथ!
अब जांच, राहुल बाबा ने शुरू करवा ही दी है, तो पोल खुलती रहेगी, 2024 तक सबकी आखिर स्वच्छ भारत, अखण्ड भारत, बनाने वाले, भारत के पहले प्रधानसेवक, मोदी के खिलाफ षड्यंत्र में, कौन कौन शामिल हैं, उन सबकी बैंड बजेगी लिख लो?
शिवसेनेबद्दलच्या अशा काही गोष्टी आहेत का ज्या अजूनपर्यंत इतरांना माहिती नाही?
साधारण १९६५ सालचा शिवसेनेचा जन्म.
तेव्हां मराठी माणूस मुंबई मध्ये ६८ टक्के होता आणि ठाकरे घराणे शिवाजी पार्क ला छोट्याशा वन रुम किचनमध्ये रहात होते....
मार्मिक साप्ताहिकाचे प्रभादेवीचे कार्यालय सुद्धा भाड्याच्या जागेत होते.. आता मराठी माणूस मुंबई मध्ये १५ टक्क्यावर आलाय आणि ठाकरेंची मालमत्ता शेकडो कदाचित हजार कोटींची आहे.
प्रथम मराठी मराठी केलं. मग हिंदूत्व हिंदूत्व केलं आणि आता सगळ्या मराठी माणसांच्या तोंडाला पाने पुसुन सोनिया बाईंचे आणि पवार साहेबांचे मांडलिकत्व स्विकारले.