#मनाचे_श्लोक
“Shri Manache Shlok” — Shlok/Verse 103 — a Dialogue With Your Mind
समर्थ रामदास ह्या श्लोकात सांगत आहेत की, हरीचे कीर्तन करताना त्याच्याबद्दल प्रेम आणि आदर असावा, निरूपण करताना स्वतःचे अस्तित्व विसरून जावे.
परक्याचे धन आणि परस्त्री यांची कामना मनातून जाणीवपूर्वक टाळावी.
Il जय जय रघुवीर समर्थ ll
Meaning
While singing the divine glories, devote yourself to Rama. During the discourse, forget the physical self.
Oh, my mind, greed towards other’s wealth and lust towards other’s spouses should be completely given up from the root of your heart,
and you should spend the life fully devoted to God.
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शरीर को पुनः नया बनने में सहायता करती है; इसलिए इसे ‘पुनर्नवा’ कहते हैं ।
१. गुणधर्म एवं संभावित उपयोग
‘इस औषधि का गुणधर्म शीतल है एवं यह कफ एवं पित्त दूर करती है । विकारों में इसका संभावित उपयोग आगे दिया है; प्रकृति, प्रदेश, ऋतु एवं अन्य विकारों के अनुसार उपचारों में परिवर्तन हो सकता है । इसलिए वैद्यों के मार्गदर्शन में ही औषधि लें ।
२. सूचना
आयुवर्ग ३ से ७ के लिए चौथाई एवं ८ से १४ के लिए औषधि आधी मात्रा में लें ।
३. औषधि का सुयोग्य परिणाम होने हेतु यह न करें !
मैदा और बेसन के पदार्थ; खट्टे, नमकीन, अति तैलीय और तीखे पदार्थ, आईस्क्रीम, दही, पनीर, चीज, बासी, असमय और अति भोजन, धूप में घूमना तथा रात्रि जागरण
तुलसी का उपयोग व औषधीय गुण |
लैटिन नाम : Ocimum tenuiflorum
तुलसी सिर्फ एक पौधा नहीं बल्कि जड़ी - बूटी के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
आयुर्वेद के जानकारों ने इसे 'जड़ी-बूटियों की रानी' की संज्ञा दी है।
१ अ १. औषधि के लिए उपयोगी अंग : पंचांग (टिप्प्णी)
टिप्प्णी – पंच अर्थात पांच और अंग अर्थात अवयव । इसप्रकार वनस्पति की जड, तना, पत्ते, फूल और फल, इन पांच अवयवों को एकत्रितरूप से पंचांग कहते हैं ।
छोटी औषधीय वनस्पतियों के विषय में पंचांग का अर्थ है, जडसहित संपूर्ण वनस्पति ।
१ अ २ . रोपण के लिए उपयोगी अंग : बीज अथवा तने के टुकडे
१ अ ३. विविध विकारों में उपयोग
१. सर्दी : तुलसी के पत्ते छाया में सुखाकर उसका कपडछान चूर्ण बनाएं । इसका चुटकीभर चूर्ण सूंघनी की भांति सूंघें । सर्दी तुरंत घटने में सहायता होती है ।
ज्येष्ठमध चूर्ण का गुणधर्म शीतल तथा नेत्र, त्वचा, केश एवं गले के लिए हितकारी है ।
१. गुणधर्म एवं संभावित उपयोग
‘यह औषधि शीतल तथा नेत्र, त्वचा, केश एवं गले के लिए हितकारी है । विकारों में इसका संभावित उपयोग आगे दिया है; प्रकृति, प्रदेश, ऋतु एवं अन्य विकारों के अनुसार उपचारों में परिवर्तन हो सकता है ।
इसलिए वैद्यों के मार्गदर्शन में ही औषधि लें
२. सूचना
अ. आयुवर्ग ३ से ७ के लिए चौथाई एवं ८ से १४ के लिए औषधि आधी मात्रा में लें ।
आ. मुलेठी अधिक मात्रा में खाने पर उलटी होती है । इसलिए वह उचित मात्रा में ही लें ।’