शिकचं, शिकावचं, शिके राज घडावचं|(
*शिक जेरी साज पोळी, ज्यादा शिक जेन घियेर कचोळी, शिक्षनेती कुळीर उद्धार वे जावं छ
जो पढे़गा वही पढ़ा पाएगा और वही शासक बन पाएगा| जो पढे़गा उसकी उन्नति होगी, लेकिन जो उंची शिक्षा प्राप्त करेगा उसे किसी चीज की कमी नही होगी| शिक्षा से आनेवाली
पीढ़ियों का उद्धार होगा|
राष्ट्रसंत सेवालाल महाराज जी के 284वें जन्मजयंती के अवसर पर विनम्र अभिवादन एवं देश के सभी मूलनिवासी बहुजनो को बहोत बहोत बधाई| #सेवालाल #महाराज #जन्मजयंती
बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क का विरासत बचाओ देश बचाओ अभियान के तहत देशव्यापी आंदोलन| #awakenedbahujan
बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क का विरासत बचाओ, देश बचाओ अभियान के तहत देशव्यापी आंदोलन हुआ, देश के सभी जिलो के जिलाधिकारी कार्यालय मे लुंबिनी बुद्ध जन्म
स्थल, अजंता बौद्ध गुफाये और जुन्नर बौद्ध गुफाये विरासत को बचाने के लिए महामहिम राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन दिया गया है|
इस आंदोलन से लुंबिनी बुद्ध जन्म स्थल व अन्य विश्व धरोहरो की उचित दखल नही ली गई तो आनेवाले समय मे देश और विदेश मे उग्र आंदोलन करने की चेतवानी बुद्धिस्ट इंटरनेशनल
किसी भी देश समाज मे मानवता उसकी वैचारिक स्वतंत्रता पर निर्भर करता है|
जो समाज जितना ज्यादा वैचारिक रूप से स्वतंत्र होगा, वह उतना ही ज्यादा मानववादी होगा|
लेकिन भारतीय समाज शिक्षित और उम्रदराज होने के बाद भी मानसिक गुलाम है, काल्पनिक ईश्वरीय अस्तित्व मे बंधा है, सामंती बाबाओ के
चमत्कार मे फंसा है|
अब जिस समाज का बाबा ही सामंतवादी हो, तो उसका चेला मानववादी कैसे बन जायेगा?
यही सामंतवाद उसके चेले द्वारा गांव कस्बो मे जायेगा, और पूरे तालाब को गंदा कर देगा|
इसी पर एक कवि की कविता है👇
"#पढ_लिखके_तू_का_कैल_अनपढे_पांव_पूजवले_बा|
#भारतीय_पुरातत्व_सर्वेक्षण (ASI) विभाग वर्तमान समय मे उत्खनन से मिले अवशेषो को आज की ब्राह्मणी व्यवस्था से जोडकर #ब्राह्मण_पुरातन_स्थापित करने वाला विभाग बनकर रह गया है|
चित्र संख्या >>1 को देखिये कि किस प्रकार से अष्टकोणीय स्तम्भनुमा आकृति को #शिव_लिंग बताकर जनता को दिञभ्रमित
किया जा रहा है| जबकि इस प्रकार का स्तम्भ निर्माण गुप्तकाल मे किया जाता था| #महाराजा_सिरि_कुमार_गुप्त भगवान बुद्ध के अनुयाई थे, और #धम्म के प्रचार करने हेतु स्वयं चीवर धारण करते हुए भिक्खु बन गए थे|
चित्र संख्या >>2, जो #महाराजा_सिरि_कुमार_गुप्त की है, जिस मूर्ति के बेस पर उनका
नाम अंकित है|
भगवान बुद्ध ने दुख मुक्ति का जो #अष्टांगिक_मार्ग बताए थे, उसी अष्टांगिक मार्ग को प्रतीकात्मक रूप से महाराजा सिरि कुमार गुप्त ने अष्टकोणीय स्तम्भ के रूप मे अपने कार्यकाल मे स्थापित किए थे| ऐसे कई स्तम्भो पर उन्होने अपना नाम भी गुप्तकालीन बाह्मी लिपि द्वारा उतीर्ण
संग्रहालय के अंदर जाने पर गुप्तकालीन #अष्टकोणीय स्तम्भ रखा है, जो नरेसर और अमरोल से मिला है, परंतु दर्शको मे भ्रमण के
दौरान भ्रम पैदा करने हेतु शिवलिंग लिखा हुआ है| अब #प्रश्न बनता है कि ASIभारतीय पुरातत्व विभाग को कैसे पता चला कि यह शिव जी का लिंग ही है? क्या उस आकृति पर लिखित कोई अभिलेख मिला या भ्रमवंश के लोग पूर्व से ही उस लिंग से परिचित थे? #चित्र संख्या👉2
थोडा और आगे बढेंगे, तो गुप्तकाल
के #बोधिसत्व की आकृति स्तम्भ पर बनी रखी है, जो नरेसर से मिला है| यहां भी दर्शको मे भ्रम पैदा करने हेतु, उसपर #महापशुपति_शिवलिंग लिखा है| जबकि उस आकृति मे बने व्यक्ति जिस प्रकार से बैठा है, बैठने का वह तरीका भगवान बुद्ध का #ध्यान_आसन है| #देखे चित्र संख्या👉3