हिताकारणे बोलणे सत्य आहे।
हिताकारणे सर्व शोधुनि पाहें॥
हितकारणे बंड पाखांड वारी।
तुटे वाद संवाद तो हीतकारी॥१११॥
#मनाचे_श्लोक
“Shri Manache Shlok” — Shloka/Verse 111 — a Dialogue With Our Mind
समर्थ रामदास ह्या श्लोकात सांगत आहेत की सर्वांच्या हितासाठी सत्य बोलणे गरजेचे आहे. त्यासाठी सत्य शोधून काढणे महत्वाचे आहे. बंडखोर पाखंडी विचारांचा नाश केला पाहिजे. वाद विवाद करण्याच्या ऐवजी सुखकारक संवाद करणेच हितकारक आहे.
Il जय जय रघुवीर समर्थ ll
Meaning :
For the benefit of all, it is important to speak the truth. For the sake of the benefit of all, it is important to find out the truth behind everything.
For the sake of the benefit of all, we should shun the rebellion thoughts which deny the existence of God.
Know that dialogue is the best solution to stop the arguments.
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तीखा न खाने पर भी कुछ लोगों को पित्त का कष्ट क्यों होता है ?
‘अपने जठर में पाचक स्राव का रिसाव होता रहता है । इस पाचक स्राव के अन्ननलिका में आने पर, पित्त का कष्ट होता है ।
खट्टा, नमकीन, तीखा और तैलीय पदार्थ खाने से पित्त बढता है; परंतु ऐसा कुछ न खाते हुए भी कुछ लोगों को गले में और छाती में जलन होती है, अर्थात पित्त का कष्ट होता है ।
तुरंत न्यून होता है । आगे दिए गए प्राथमिक उपचार करके देखें ।‘गंधर्व हरीतकी वटी’ इस औषधि की २ से ४ गोलियां रात में सोने से पहले गुनगुने पानी के साथ लें ।
बद्धकोष्ठता सहित भूख न लगना, भोजन न जाना, अपचन होना, पेट में वायु (गैस) होना, ऐसे लक्षण हों तो ‘लशुनादी वटी’ औषधि
अर्थ :
भूमिपर जल से मंडल बनाकर उसपर थाली रखें । उस थाली के मध्यभाग में चावल परोसें । भोजन करनेवाले के बार्इं ओर चबाकर ग्रहण करनेयोग्य पदार्थ परोसें । दाहिनी ओर घी युक्त पायस (खीर) परोसें । थाली में सामने तरकारी, शकलाद (सलाद) आदि पदार्थ होने चाहिए ।
भोजन में अनेक पदार्थ हों, तो थाली कैसे परोसनी चाहिए ?
अ. थाली में ऊपर की ओर मध्यभाग में नमक परोसें ।
आ. भोजन करनेवाले के बार्इं ओर (लवण के निकट ऊपर से नीचे की ओर) क्रमशः नींबू, अचार, नारियल अथवा अन्य चटनी, रायता / शकलाद (सलाद),पापड, पकोडे एवं चपाती परोसें । चपाती पर घी परोसें ।
कुछ व्यक्तियों के लिए देश, काल, अग्नि, प्रकृति, दोष, आयु इत्यादि का विचार करने पर कुछ अन्नपदार्थ हानिकारक सिद्ध होते हैं ।ऐसे खाद्य पदार्थ विपरीत आहार में समाविष्ट होते हैं।
विपरीत आहार के प्रकार आगे दिए हैं ।
१. निसर्गतः विषम : भेड का दूध एवं सरसों के पत्ते की सब्जी पचने में कठिन होती है एवं पचने के बाद शरीर में दोष बढाती है ।
२. देशविरुद्ध : नम वातावरणवाले समुद्रतट अथवा दलदल प्रदेश में स्निग्ध अथवा शीत पदार्थ अधिक मात्रा में खाने सेे शरीर में कफदोष बढता है ।
शुष्क वातावरण में सूखे एवं मसालेदार पदार्थ खाना ।
३. कालविरुद्ध : वसंत ऋतु में अथवा रात को दही खाने से कफदोष बढता है । शीतकाल में ठंंडे पदार्थ एवं धूपकाल में गरम पदार्थ खाना ।
४. अग्निविरुद्ध : शरीर में स्थित अग्नि अर्थात पाचनशक्ति क्षीण रहने से पाचन के लिए कठिन अथवा ठंंडे
Junk food is harmful to health. As proven by different research it weakens the intellect, accumulates unnecessary gas and fat in the body and causes lethargy.
Today not just the youth but even school children are falling prey to it
The habit of eating sattvik
and nutritive food is dwindling slowly and that of junk food is growing.
If junk food has to be stopped then much will not be achieved by banning this at the university as students can consume these foods at other venues. Hence, they need to be banned all over the country.
शरीर को पुनः नया बनने में सहायता करती है; इसलिए इसे ‘पुनर्नवा’ कहते हैं ।
१. गुणधर्म एवं संभावित उपयोग
‘इस औषधि का गुणधर्म शीतल है एवं यह कफ एवं पित्त दूर करती है । विकारों में इसका संभावित उपयोग आगे दिया है; प्रकृति, प्रदेश, ऋतु एवं अन्य विकारों के अनुसार उपचारों में परिवर्तन हो सकता है । इसलिए वैद्यों के मार्गदर्शन में ही औषधि लें ।
२. सूचना
आयुवर्ग ३ से ७ के लिए चौथाई एवं ८ से १४ के लिए औषधि आधी मात्रा में लें ।
३. औषधि का सुयोग्य परिणाम होने हेतु यह न करें !
मैदा और बेसन के पदार्थ; खट्टे, नमकीन, अति तैलीय और तीखे पदार्थ, आईस्क्रीम, दही, पनीर, चीज, बासी, असमय और अति भोजन, धूप में घूमना तथा रात्रि जागरण