रजस्वला का विज्ञान या रजस्वला स्त्री को क्यों विधि निषेध है #भाग-3
ये पोस्ट लोगो को मजे लेने के लिए नहीं की है।क्योंकि सबके घर में नारी प्रधान रहता है तो सोच समझकर अपनी राय रखे,
नारी तू नारायणी,
अब मुझे कोई महिला विरोधी ना समझे मैं वही बता रहा हूं जो शास्त्रों में लिखा है,
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पहले के जमाने में जब लड़की रजस्वला होती थी तो उसकी पूजा की जाती थी और जब तक लडकी को रजस्वला नही होता था तो मां बाप को चिंता रहती थी,और रजस्वला लड़की की पूजा अभी भी केरल में होती है,
केरल राज्य में एक बहुत ही सुंदर और प्रशंसनीय परंपरा है जिसके अनुसार जब भी कोई कन्या अपने मासिक
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काल के शुरुआत में पहुंचती है तो उसे पारंपरिक रूप से स्त्री होने की सम्मानित उपाधि से पूजा जाता है उसका सम्मान किया जाता है इससे खूबसूरत और क्या हो सकता है कि जिस टॉपिक पर आज भी हमारे देश में लोग बात करने में हिचकिचाते हैं,शर्माते हैं उस टॉपिक पर लोग इतने व्यापक तौर पर अपनी
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राय रख सकते है।
ऐसा नहीं है कि हम इस टॉपिक पर बात नहीं करना चाहते हैं या फिर हमें बात करना चाहिए या नहीं करना चाहिए यह हमें पता नहीं है असल में हमारे यहां बढ़ती उम्र में बच्चे अपने मां बाप से मानसिक रूप से दूर हो जाते हैं धीरे धीरे बच्चे अपने अंदर होने वाले हार्मोनल बदलाव को
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अपने दोस्तों के साथ शेयर करते हैं एक उनकी ही उम्र का बच्चा उन्हें क्या राय देगा कि मासिक धर्म क्या होता है, एक उनके उम्र का बच्चा उन्हें क्या राय देगा कि उनके शरीर पर जो बदलाव हो रहे हैं उसकी वजह क्या है।
एक बेटी लाख अपनी मां के करीब हो लेकिन इन दिनों वो भी अपने अंदर होने वाले
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बदलाओं को लेकर चिड़चिड़ी हो जाती है,और वो भी अपने मां से दूर तो नहीं लेकिन खींची -खींची सी अनमनी सी हो जाती है।
असल में हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहां पर पीरियड के दौरान पैड लेने वाली लड़कियों को गलत नजर से देखा जाता है और कंडोम लेने वाले लड़कों को कूल डूड माना जाता है।
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अभी हमें बहुत कुछ सीखना बाकी है अभी खुद में बहुत कुछ सुधार करना बाकी है। माह के कुछ दिन स्त्री कुछ नहीं कर सकती....उन कुछ दिनों के चलते, पूरे माह अपवित्र होती है स्त्री। स्त्री तो शक्ति केवल नौ वर्ष की उम्र तक है। सभी स्त्रियाँ शक्ति नहीं कहला सकती।
ये तमाम उद्धरण बिखरे हैं,
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जिसे सिर्फ आसपास पुरुष ही नहीं, स्त्री भी तमाम बार इन्हें दोहराती हैं।
मैं सोचता हूँ, महीने के उन्हीं कुछ दिनों के चलते स्त्री शक्ति है, सृजन की शक्ति! वह पूज्य भी उन्हीं कुछ दिनों के कारण है, वह माँ ही उन्हीं कुछ दिनों के कारण है। वह अपवित्र क्यों हो जाती है उन दिनों के कारण?
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वह कैसी स्त्री शक्ति का आह्वान है जिसमें स्त्री का ही आह्वान नहीं है...?😏😏
॥ ॐ परा प्रकृति नमो नमः ॥
#स्त्रियों_हेतु_उपयोगी_शास्त्रसद_शिक्षा_एवं_निर्णय
!! रजोधर्म से युक्त स्त्री प्रथम दिन #चांडाली,द्वितीय दिन #ब्रह्मघातिनि ओर तृतीय दिन रजकी #धोबिनसंज्ञा होती है।
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चौथे दिन वह शुद्ध होती है
पति के कार्यों के लिये तो #रजस्वला_स्त्री चौथे दिन शुद्ध होती है,पर देवकार्य के लिये पितृ कार्य के लिये वह पांचवे दिन शुद्ध होती है।
स्त्रियों के लिये विवाह संस्कार ही वैदिक संस्कार उपनयन
पतिसेवा ही गुरुकुल निवास वेदाध्ययनओर गृह कार्य ही
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अग्निहोत्र कर्म कहा गया है।
जो स्त्री अपने पति के अनुकूल चलती है ओर सदा उसे सन्तुष्ट रखती है वह अपने पति के पुण्य का धर्म का आधा भाग प्राप्त करती है इसलिए उसे अर्धांगनी भी कहा जाता है।
पिता या पिता की अनुमति से भाई जिसके साथ विवाह कर दे स्त्री जीवन भर उस पति की सेवा करे।
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और उसके मरने पर भी उसका उल्लंघन न करे
स्त्री को कभी अपने पति का नाम नही लेना चाहिए
भ्रमण करने वाला राजा,ब्राह्मण योगी सर्वत्र आदर पाते है पर भ्रमण करने वाली स्त्री नष्ट हो जाती है
स्त्री को चाहिए कि वह घर के दरवाजे पर देर तक खड़ी न रहे।
दूसरे के घर न जाये।कोई गोपनीय बात
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जानकर हरेक के सामने उसे प्रगट न करे।
साध्वी स्त्री को चाहिए कि झाड़ने बुहारने लीपने तथा चोक पुरने आदि से घर को ओर मनोहर वस्त्राभूषण से अपने शरीर को अलंकृत सजाकररखे।
सामग्री को साफ सुथरी रखे
पति की सेवा करना ,उसके अनुकूल रहना पति के सम्बन्धियो को प्रसन्न रखना,ओर सर्वदा पति
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के नियमो की रक्षा करना ये पतिब्रता स्त्रियों के धर्म है।
जो लक्ष्मी जी के समान पतिपरायणा होकर अपने पति की उसे साक्षात भगवान स्वरूप समझकर सेवा करती है,उसके पतिदेव वैकुंठ लोक में भगवत्सारूप्य को प्राप्त होते है और वह लक्ष्मी जी के समान उनके साथ आनन्दित होती है।
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जिसका पुत्र जीवित है,वह नारी पति के न रहने पर भी विधवा असहाय नही कहलाती ।
विधवा वही कहलाती है ,जिसका न पति हो न पुत्र हो
स्त्री पर पति अथवा पुत्र द्वारा लिए गये ऋण को चुकाने का दायित्व नही है।
उस पर उसी ऋण को चुकाने का दायित्व है,जो उसने पति के साथ लिया हो और उसे उस समय
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चुकाना स्वीकार किया है।
ओखली, मूसल ,झाड़ू,सिल, चक्की,ओर द्वार की चौखट दहलीजइनके ऊपर स्त्रियों को कभी नही वैठना चाहिए।
पति की आयु बढ़ने की अभिलाषा रखने वाली स्त्रियों को हल्दी,रोली,सिंदूर,काजल आदि मांगलिक आभूषण आदि ,केशो को सवारना, चोटी गूँथना, तथा हाथ कान के आभूषण इन सबको
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अपने शरीर से दूर न करे।
जो स्त्री अपने पति की आज्ञा क्लियर विना ही ब्रत उपवास आदि करती है ,वह पति की आयु का हरण करती है,जीते जी दुख पाती है और मृत्यु उपरांत भी उसे कष्ट होता है।
पति से विना पूछे जो धर्मकार्य किया जाता है ,वह पति की आयु क्षीण करता है।
स्त्री को चाहिए वह धोबिन,
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कुलटा,अधम ओर कलह प्रिय स्त्रियों को कभी सखी न बनावे।
मदिरा पान ,दुष्टो का संग,पति से अलग रहना,स्वछंद घूमना,अधिक सोना,और दूसरे के घर मे निवास करना ये बाते स्त्रियों को बिगाड़ने वाली होती है।
जिस स्त्री ने अपने जीवन मे पति के अलावा पर पुरुष गमन किया हो उसे वैश्या वत ही समझना
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चाहिए. पति को भी परस्त्री गमन नहीं करना चाहिए उसपर भी ये नियम लागू पड़ते हैं,वह देव औऱ पितृ के भोजन बनाने और करवाने के अधिकारी नही है
जो स्त्री पुरुष अपने पति/पत्नी के लिये वशीकरण का प्रयोग करते है,उसके सारे धर्म व्यर्थ हो जाते है ओर वह दुराचारिणी नरक में निवास करते है।
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पति ही नारी का रक्षक है
पति ही गति है।
पति ही देवता और गुरु है।जो उसके ऊपर वशीकरण का प्रयोग करती है वह कैसे सुख पा सकती है।यही पुरुष के लिए भी है,
वह अनेकों बार अन्य निंदनीय योनियों में जन्म लेती/लेते है,और अन्त में गलित कोढ़ के रोग से युक्त स्त्री/पुरुष होते है।
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स्त्रियों का अपने भाई,बन्धुओ के यहां अधिक दिन तक रहना उनकी कीर्ति,शील,तथा पातिव्रत्य धर्म का नाश करने वाला होता है।
पति का निवास स्थान धन वैभव से रहित हो तो भी वही निवास करना चाहिए।उसके लिये पति की समीपता को ही स्वर्णमय मेरुपर्वत बताया गया है।
स्त्री के लिये पति के निवास स्थान
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को छोड़कर अपने पिता के घर रहना भी वर्जित है। पिता के स्थान और आश्रित में आशक्त होने वाली स्त्री अवश्य ही मार्ग भ्रमित होती है।
वह सब धर्मों से रहित होकर अन्य योनि में जन्म प्राप्त करती है।
#गर्भाधान
योग्य, गुणवान और आदर्श संतान प्राप्त करने के लिए मनुष्य जीवन का यह पहला
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संस्कार है, इसे गर्भाधान संस्कार कहा गया है, गृहस्थ जीवन में प्रवेश के उपरान्त प्रथम क‌र्त्तव्य के रूप में इस संस्कार को मान्यता दी गई है ।
आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण
गर्भवती होने की सही उम्र २२ से २९ वर्ष होती है और इसमें भी सबसे उपयुक्त उम्र २५ की है।
क्योंकि, इस समय एक
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युवती शारीरिक व मानसिक रूप से गर्भवती होने के लिए तैयार रहती है।
पीरियड्स के सात दिन बाद ओव्‍यूलेशन साइकिल शुरू होती है और यह पीरियड्स के शुरू होने से सात दिन पहले तक रहती है। ओव्‍यूलेशन पीरियड ही वह समय होता है, जिसमें महिला गर्भधारण कर सकती है। इस स्थिति को #फर्टाइल_स्टेज भी
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कहते हैं।
यदि स्त्री सहवास के वक्त ऑर्गज्‍म प्राप्त कर लेती है तो गर्भधारण की संभावना काफी हद तक बढ़ जाती है।
क्योंकि, तब शुक्राणु को सही जगह जाने का समय और माहौल मिलता है तथा शुक्राणु ज्यादा समय तक जीवित रहते हैं।
"वैदिक साहित्य में
गर्भधारण की आयु"
See more....👇👇
आयुर्वेद के अनुसार पुरुष की न्यूनतम आयु २५ वर्ष तथा स्त्री की १६ वर्ष आवश्यक होती है। बच्चे के जन्म के पहले स्त्री और पुरुष को अपनी सेहत और मानसिक अवस्था का अनुमाप करना चाहिए, नियमों, तिथि, नक्षत्र आदि के अनुसार ही गर्भधारण करना चाहिए। ताकि शिशु निरोग और गुणवान हो सके।
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गर्भाधान के संबध में स्मृतिसंग्रह में लिखा है
#निषेकाद्बैजिकंचैनोगार्भिकंचापमृज्यते
#क्षेत्रसंस्कारसिद्धिश्चगर्भाधानफलंस्मृतम्।।
अर्थात ........ ?
विधिपूर्वक संस्कार से युक्त गर्भाधान से अच्छी और सुयोग्य संतान उत्पन्न होती है। इस संस्कार से वीर्यसंबधी पाप का नाश होता है,
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दोष का मार्जन तथा क्षेत्र का संस्कार होता है। यही गर्भाधान-संस्कार का फल है।

#जारी रहेगा #अंतिम_भाग में 🙏🙏
पहला,दूसरा भाग👇

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