ऑफिस में इतना काम है,
त्यौहार आकर दस्तक देता है,
तब जाकर पता चलता है,
कल ये त्यौहार है ।
जब छोटे थे एक हफ्ते पहले से
तैयारियां शुरू हो जाती थी ।
माँ , कागज़ पे बाकायदा लिखकर
देती थी चीज़ें जैसे कि, सूजी, मैदा,मेवा, ड्राई फ्रूट, शक्कर इत्यादि
और बचे हुए दो रुपयों से वो
खट्टी-मीठी नारंगी गोलियां
पहले पढ़ाई के लिए घर से दूर रहा,
त्योहारों को मिस किया ये सोचकर
कि बस नौकरी लग जाएगी
उसके बाद कोई त्यौहार नहीं छूटेगा ।
किसे पता था नौकरी लगते ही,
हमारी लाइफ की लग जायेगी
यह शहर बहुत बड़ा है,
हर वक़्त भागता रहता है ।
माना हमारा शहर छोटा है ।
लेकिन वहां के लोगों का दिल बहुत बड़ा है ।
इसबार सब गब्बर बने बैठे हैं ,
पूछ रहे हैं "होली कब है, कब है होली"
बचपन में ऐसा होता तो हम खुश हो जाते
कि अब होली तीन दिन चलेगी
और हमारे दोस्तों की टोली तीन दिन तक अलग अलग रंगों में पुते हुए घूमेंगे ।
आज होली का दिन है ,
घरवालों की बहुत याद आ रही है ।
कल ही माँ से कहे थे,
"माँ इस शहर के दुकानों में
गुजिया तो मिल जाती है
पर तुम्हारे हाथ की गुजिया
जैसा स्वाद नहीं मिलता"
और अब सुबह हो गयी
आज के दिन भी ऑफिस चालु है ।
अब वही उठो… रूटीन भागा दौड़ी करो ।
अचानक दरवाजे पे डोरबेल होती है ,
सुबह के नौ बजे हैं । मैंने दरवाजा खोला तो सामने सुदीप खड़ा था और कहा,
"तुम्हारे पापा आये थे स्टेशन पर,
बोले थे तुम्हें आज ही गुजिया दे दूँ।
और हाँ, घर पर बात करो तो चाचीजी से
कहना…
उनके जैसा गुजिया
मैंने एक अरसा हुआ नहीं खाया ।
हाँ जब मेरी माँ थी तब वो बना दिया
करती थी और भेज भी देती थी ।
वो क्या है चाचीजी ने हमारे लिए भी गुजिया दी थी थी अंकल को,
हम तो रास्ते में ही चट कर गए ।
उनके हाथ की गुजिया खाकर आज माँ की याद आ गयी । चलता हूँ, स्टेशन से सीधा आया था । होली की शुभकामनाएं ।”
वो महज़ साधारण स्टील का डिब्बा नहीं था। वो डिब्बा था खुशियों का , एक माँ के प्यार का
घर पर फ़ोन मिलाया,
"प्रणाम बाबूजी अरे ये सब करने की क्या जरुरत थी, अभी अभी सुदीप आया था,
गुजिया देकर गया"
बाबूजी:- “अरे बेटा खा लो माँ की हाथ की गुजिया । पता है कल शाम तक तय था
कि इस बारी घर में गुजिया नहीं बनेगा ।
तुम्हारी अम्मा तो हमको बोल दी थी ,
इसबार बाज़ार से ले आना ।
फिर तुम्हारा फ़ोन आ गया कल शाम…
और तुमने कहा,
माँ यहाँ गुजिया तो मिल जाती है
बस माँ के हाथ का स्वाद नहीं मिलता वो दुलार नहीं मिलता ।
तो बस बैठ गयी तुम्हारे लिए गुजिया बनाने के लिए । और हमें फरमान सुना दिया
कि तुम्हें दे आएं, यह तो हमें सुदीप ने बताया था उसकी रात बारह बजे की ट्रैन है ।”
माँ और बाबूजी को होली की शुभकामनाएं
देकर जैसे ही गुजिया चक्खी
आँख से आंसू गिर पड़ा ।
मीठी गुजिया थोड़ी नमकीन हो गयी ।
तुरंत फैसला किया ।
बॉस को फ़ोन किया और कहा
“ऑफिस नहीं आ रहा ।”
अपने दोस्त राजीव से उसकी गाडी की
चाभी ली और निकल गया
उस नए बने हुए हाईवे से अपने उस
छोटे से शहर की तरफ…
सात घंटे लगे और मैं
अपनी घर की चौखट पर खड़ा था ।
हाथ में वही खुशियों का डिब्बा।
और खुशियां परिवार के
परिवार के बिना अधूरी है ।
फिर क्या…
मुझे देखते ही,
मेरी माँ की पलके भीग गयी
और मीठी गुजिया नमकीन हो गयी ।
सोलो ट्रिप और घर वालों की परमिशन😅
( Thread ) After long time tried writing from girl’s perspective — Inspired by conversation between @GoldenMathur & @Nirdayiii in space :))
हम सब कहीं न कहीं
यह जवानी है दीवानी की नैना है
जो एक चिठ्ठी लिखकर
चले जाना चाहते हैं
किसी ट्रैकिंग ट्रिप पर
क्यूंकि हम बनी की तरह
घर पर नहीं कह सकते
मैं उड़ना चाहती हूँ
दौड़ना चाहती हूँ
गिरना भी चाहती हूँ
बस रुकना नहीं चाहती
लेकिन क्या फायदा
इसपर भी घरवाले कहेंगे
जो कुछ करना हो
शादी के बाद पति के साथ करना 😂
First of all let me be clear.
I am not a Physiotherapist. But I have seen and worked closely with
Physio’s. This thread is dedicated to all the #physiotherapist working dedicatedly towards their profession.
Many times I wonder, Physiotherapist are not even considered Doctors. Specially In India I have seen this.
Aapki pehli cycle ka anubhav yaad hai aapko ?? ( Thread on #WorldBicycleDay )
Vaise main yahan bacho walo 3-4 pahiya cycle nahi…par jo aapne thode bade hokar yaani 8-10 saal ki umar ke baad.. chalayi ho? us experience ki baat kar raha hoon…
Main agar meri baat karu to
main mere dost ke sath cycle rent pe lene jaya karta tha aadhe - ek ghante ke liye…aur fir society mein.. area mein... chakkar maar maar ke vaapas...
Fir apni cycle aa gayi...
Apni yaani jaisa thoda bada hua
Bhai ki cycle mujhe mil gayi...
kyunki height bhi ho gayi thi paanv barabar pahuchne lage the... bas fir kya
Kabhi kabhi main aur mera dost “Suresh” to chhutiyon me nikal padte the... 5-5 / 6-6 kms door... cycling karne... barsat ho dhoop ho sardi ho koi fikar nahi...
( Thread )
Aaj shaam ko abhi kuch der pehle main society mein walk karne nikla tha… aur hamari society kafi badi hai to uska ek round lagbhag 1km jitna hai…
Mausam suhaana tha…thandi hawayein chal rahi thi aur mere phone ki playlist mein bajne wala song tha “Wo dekhne main kaisi seedhi saadi lagti”
Bas isi ke sath ek achhe mood se main walk kiya jaa raha tha apni hee dhun mein tha…
Aage jaa kar ek mod par maine dekha ke saamne se ek ladki aa rahi hai…