प्यारे देशवासियों
जागृत की व्यावहारिक परिभाषा ये है जो एक ऐसा व्यक्ति है जो नितांत प्रकृति के पुण्य संकेत को प्राथमिकता देता है / अपने स्वयं के अस्तित्व की तुलना में नैतिकता को ज्यादा बेहतर मानता है।
जागृत एक ऐसा व्यक्ति है
#अमोघ29032023
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जो आपको अपने अस्तित्व पर नैतिक दायित्वों को
ज्यादा प्राथमिकता देने की सलाह देता है।
अस्पष्ट ?
🤣🤣
मैं आपको एक उदाहरण देता हूं - मान लीजिए कि आप एक विशाल मगरमच्छ के साथ एक कमरे में बंद हैं जो सो रहा है। आप या मगरमच्छ कमरे से बाहर नहीं जा सकते। आपके पास एक भाला
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है जिसे आप सोते समय मगरमच्छ के सिर में घुसा सकते हैं और वह मर जाएगा।
जबकि, अगर मगरमच्छ जाग जाता है,
और अब आप
अगर आप मगरमच्छ भाला चलाने की कोशिश करते हैं, तो मगरमच्छ न केवल बच जाएगा बल्कि आप दौडायेगा भी!
जब तक मगरमच्छ सो रहा है तब तक आपके पास अपने जीवन/मृत्यु की
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स्थिति का नियंत्रण है। जिस क्षण यह जागेगा, यह तय करेगा कि आप जीते हैं या मरते हैं। यह आपके लिए गेम थ्योरी है।
एक स्पष्ट सोच वाला व्यक्ति मगरमच्छ को तुरंत मार देगा। कारण यह है कि जब वह उठेगा तो वह मगरमच्छ की दया पर नहीं रहना चाहेगा। दूसरे,
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ऐतिहासिक रूप से मगरमच्छों ने हमेशा इंसानों को मारा है और यह मानने का कोई कारण नहीं है कि यह मगरमच्छ उठने पर कोई अलग व्यवहार करेगा। इसलिए वह मगरमच्छ को मार डालेगा क्योंकि अन्यथा उसका अस्तित्व दांव पर लग जाएगा।
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दूसरी ओर एक जागृत व्यक्ति नैतिक दुविधा में पड़ जाता है, उसके मन में विचार आता है कि क्या मगरमच्छ को मारना अमानवीय है, क्या हुआ अगर मगरमच्छ अहिंसक हो गया - क्या एक शांतिपूर्ण जानवर को मारना अनुचित नहीं होगा, हमें इस पर विचार करना चाहिए!
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एक जीवित प्राणी का जीवन का मामलाहै,
सभी मगरमच्छ समान नहीं हो सकते हैं और यह तो एक बहुत अच्छा मगरमच्छ हो सकता है और ऐसा जागृत व्यक्ती उस मगरमच्छ को बख्श देगा।
आखिरकार मगरमच्छ जाग जाएगा और हम सभी जानते हैं कि आगे क्या हुआ होगा!
इस मामले में, जागृत हो कर नैतिक
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दुविधा में पड़कर, और जीवित रहने की बजाय नैतिक उच्च आधार को प्राथमिकता देकर आपने अपने भाग्य को सील कर दिया। अर्थात चौपट कर दिया, अपनी प्रकृति के अनुरूप मगरमच्छ अंततः उसे खा जाएगा। जागृत यह जानता है, लेकिन फिर भी खुद को नैतिक रूप से सही लेकिन घातक भविष्य चुन कर खुद को
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खतरनाक सीमाओं के भीतर बंद कर लेता है।
(मैं आगे कुछ कष्टप्रद कहने जा रहा हूं लेकिन कठिन तथ्यों के आधार पर, यदि आप आहत नहीं होना चाहते हैं, तो आगे पढ़ना बंद कर सकते है....)
मेरे अनुसार सिंधु, आधुनिक जागृति के अस्तित्व में आने से सदियों पहले
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सर्वोत्कृष्ट जागृत थे। हम दुनिया में सबसे पहले जगे थे और हम सदियों से जागे हुए हैं।
अर्जुन भारतीय इतिहास में सबसे पहले जागृत हुआ था। कौरव लगातार पांडवों को मारने की योजना बना रहे थे - कौरवों ने उन्हें डुबोने की कोशिश की, उन्हें नींद में लकड़ी के घर में मारने की !!
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कोशिश की,
भीम के भोजन में जहर मिला दिया और कई अन्य तरीकों से। उन्होंने उनकी पत्नी आदि को अपमानित करने की कोशिश की। दुर्योधन हर जागते हुए अर्जुन और उसके भाइयों को मारने की कोशिश में लगा रहता और फिर भी अर्जुन को भ्रम होता है कि वह कौरवों से
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लड़ना चाहता है !! और ये अच्छी बात नहीं है!
ये है जागृत होने की निशानी
यह श्री कृष्ण ही हैं जिन्होंने भगवद गीता की कालातीत शिक्षाओं के साथ उनकी जाग्रत विचार प्रक्रिया को व्यावहारिक रूप से नष्ट कर दिया !
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यहां भी कयी सिंधु विरोधी है, लेकिन विडंबना यह है कि सिंधु इस गोले पर सबसे पुराने जागे हुए लोग हैं। सिंधु गोरी को पहले पराजित होने पर क्षमा कर देंगे (भले ही हम जानते थे कि स्लाम क्या करेगा), वे अनैतिक रूप से गलत तरीकों का उपयोग करके लड़ेंगे,
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भले ही दुश्मन नैतिक शुद्धता के बारे में परवाह कर रहा हो,
जागृत होने के कारण हम अपने लोगों को वापस धर्म में वापस नहीं लाएंगे, जब भी हमारे पास होगा एक मौका, हम अपने दुश्मनों के प्रति निर्मम नहीं होंगे।
हम एक के बाद एक मूर्खता पर ढेर लगाते रहे जब तक कि हमने
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अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस आदि से अपनी 80% भूमि खो ना दी और भारत में भी अपने राज्यों को खो रहे हैं। और हम अभी भी जाग्रत बने हुए हैं।
मस्त जागृत!
हम अभी भी अपने देशद्रोहियों के प्रति अच्छे बने हुए हैं,
सभी धर्मनिरपेक्ष दलों की अभी भी
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उच्च लोकप्रियता है और वे कड़ी टक्कर देते हैं। सिंधु अभी भी मजारों और चर्चों में जाते हैं और उन्हें रिकॉर्ड कमाई देते हैं,
सीधे,अपने स्वयं के, खुद के अंत का वित्तपोषण करते हैं।
जो लोग अपने बच्चों का नाम सिंधु हत्यारों के नाम पर रखते हैं वे अभी भी
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फैंसी जीवन जीते हैं। यह सब हमारे विनाश को तेज करते हैं लेकिन हम अभी भी अपने दुश्मनों के प्रति अच्छे होने के शौक पालते हैं।
हमारा क्लासिक मगरमच्छ पल था जब हम 1947 में मगरमच्छ के साथ एक पिंजरे में बंद थे और हमारे पास कमरे से मगरमच्छ को बाहर निकालने का मौका
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था। लेकिन हमने धर्मनिरपेक्षता के जाग्रत नैतिक सिद्धांतों का हवाला देते हुए मगरमच्छ को जाने से मना कर दिया और हमने भाला भी फेंक दिया।
खैर, अब मगरमच्छ जाग रहा है और हमें कहीं भागना नहीं है और कहीं छिपना. भी नहीं है !!
क्योंकि हम तो जागृत है!!
लो मजे जागृत होने के!
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(P.S. मुझे यह न बताएं कि यह नेहरू/गांधी की गलती थी कि हम इस स्थिति में हैं
हमने स्वतंत्रता के बाद 40 वर्षों तक लगातार पूर्ण बहुमत के लिए नेहरू और उनकी पार्टी को वोट दिया,यह जानने के बावजूद कि वे क्या कर रहे थे, तो अब वो बहाना ख़तम हुआ!
तुम जागृत हो और भौगोगे ही ये सुनिश्चित है!

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