sanjay chaturvedi Profile picture
Mar 29 13 tweets 3 min read Twitter logo Read on Twitter
(1) बटुकेश्वर दत्त ने 1929 में अपने साथी भगत सिंह के साथ मिलकर अंग्रेजी सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेम्बली में बम फेंक, इंकलाब ज़िंदाबाद के नारों के साथ आजन्म काला-पानी स्वीकार किया था।

(2) आजादी के बाद भी वे सरकारी उपेक्षा के चलते गुमनामी और उपेक्षित जीवन जीते रहे।
(3) जीवन निर्वाह के लिए कभी एक सिगरेट कंपनी का एजेंट बनकर पटना की गुटखा-तंबाकू की दुकानों के इर्द-गिर्द भटकना पड़ा तो कभी बिस्कुट और डबलरोटी बनाने का काम किया।

(4) जिस व्यक्ति के ऐतिहासिक किस्से भारत के बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर होने चाहिए थे उसे एक
मामूली टूरिस्ट गाइड बनकर गुजर-बसर करनी पड़ती है।

(5) देश की आजादी और जेल से रिहाई के बाद दत्त पटना में रहने लगे. पटना में अपनी बस शुरू करने के विचार से जब वे बस का परमिट लेने पटना के कमिश्नर से मिलते हैं तो कमिश्नर द्वारा उनसे उनके #बटुकेश्वर_दत्त होने का प्रमाण मांगा गया ।
(6) उन्होंने बिस्कुट और डबलरोटी बनाने का काम भी किया।
पटना की सड़कों पर खाक छानने को विवश बटुकेश्वर दत्त की पत्नी मिडिल स्कूल में नौकरी करती थीं जिससे उनका गुज़ारा हो पाया।

(7) अंतिम समय उनके 1964 में अचानक बीमार होने के बाद उन्हें गंभीर हालत में पटना के सरकारी अस्पताल में
भर्ती कराया गया, पर उनका ढंग से उपचार नहीं हो रहा था।
इस पर उनके मित्र चमनलाल आजाद ने एक लेख में लिखा, क्या दत्त जैसे क्रांतिकारी को भारत में जन्म लेना चाहिए, परमात्मा ने इतने महान शूरवीर को हमारे देश में जन्म देकर भारी भूल की है. चमनलाल आजाद के मार्मिक लेकिन कडवे सच को बयां
करने वाले लेख को पढ़ पंजाब सरकार ने अपने खर्चे पर दत्त का इलाज़ करवाने का प्रस्ताव दिया। तब जाकर बिहार सरकार ने ध्यान देकर मेडिकल कॉलेज में उनका इलाज़ करवाना शुरू किया. पर दत्त की हालात गंभीर हो चली थी।

(8) 22 नवंबर 1964 को उन्हें दिल्ली लाया गया. दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने
पत्रकारों से कहा था, “मुझे स्वप्न में भी ख्याल न था कि मैं उस दिल्ली में जहां मैने बम डाला था, एक अपाहिज की तरह स्ट्रेचर पर लाया जाउंगा.” दत्त को दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती किये जाने पर पता चला की उन्हें कैंसर है और उनके जीवन के कुछ दिन ही शेष बचे हैं।
यह सुन भगत सिंह की मां विद्यावती देवी, अपने पुत्र समान बटुकेश्वर दत्त से मिलने दिल्ली आईं।

(9) वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री रामकिशन जब दत्त से मिलने पहुंचे और उन्होंने पूछ लिया, हम आपको कुछ देना चाहते हैं, जो भी आपकी इच्छा हो मांग लीजिए।
छलछलाई आंखों और फीकी मुस्कान के साथ उन्होंने कहा, हमें कुछ नहीं चाहिए। बस मेरी यही अंतिम इच्छा है कि मेरा दाह संस्कार मेरे मित्र भगत सिंह की समाधि के बगल में किया जाए।

(10) 20 जुलाई 1965 की रात एक बजकर 50 मिनट पर दत्त इस दुनिया से विदा हो गये.
उनका अंतिम संस्कार उनकी इच्छा के अनुसार, भारत-पाक सीमा के समीप हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की समाधि के निकट किया गया।

(11) उक्त प्रसंग प्रत्येक भारतीय को ज्ञात होना चाहिए और चिंतन करना चाहिए कि ऐसे कई युवा अपना यौवन, सुख सुविधाएँ , परिवार के कष्ट निवारण की आशाओं
पर तुषारापात कर देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते हुए बलिदान हुए, उनमें से ऐसे कुछ ही लोग भाग्य से स्वतंत्रता का दिन देख पाए । लेकिन उन्हें कष्ट भोगने पड़े, उसका दोषी कौन?

(12) उन लोगों को आज हम अज्ञात कह देते हैं लेकिन तब के अखबारों की सुर्खियां गवाह है कि
वे अज्ञात तो नहीं ही थे। तब के रेडियो में प्रमुख खबरों में होते थे उनके नाम।
शहरों में उनके पोस्टर लगते थे, मोटी इनामी धनराशि का लालच देकर उनके लिए मुखबिरी करवाई जाती थी।

(13) तो फिर बाद में स्वाधीन भारत में वे अनाम कैसे बना दिए गए?
भगतसिंह के साथ बम फेंकने वाले बटुकेश्वर दत्त को कालापानी की सजा हुई, जो कि मृत्युदण्ड से भी अधिक दुखदायी थी, अतः फाँसी से कमतर सजा नहीं थी।

फिर भी आज न कोई नामलेवा है, न साधारणतः कोई जानता है, न कहीं फोटो सहज उपलब्ध हैं...

• • •

Missing some Tweet in this thread? You can try to force a refresh
 

Keep Current with sanjay chaturvedi

sanjay chaturvedi Profile picture

Stay in touch and get notified when new unrolls are available from this author!

Read all threads

This Thread may be Removed Anytime!

PDF

Twitter may remove this content at anytime! Save it as PDF for later use!

Try unrolling a thread yourself!

how to unroll video
  1. Follow @ThreadReaderApp to mention us!

  2. From a Twitter thread mention us with a keyword "unroll"
@threadreaderapp unroll

Practice here first or read more on our help page!

More from @sanjay16sanjay

Mar 30
बहुत अच्छी जानकारी है कृपया ध्यान से पढ़ें :---
हमारे देश की जनता को नहीं पता है कि भगत सिंह के खिलाफ विरुद्ध गवाही देने वाले दो व्यक्ति कौन थे । जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में असेंबली में बम फेंकने का मुकद्दमा चला तो भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के
खिलाफ शोभा सिंह ने गवाही दी और दूसरा गवाह था शादी लाल!
दोनों को वतन से की गई इस गद्दारी का इनाम भी मिला। दोनों को न सिर्फ सर की उपाधि दी गई बल्कि और भी कई दूसरे फायदे मिले। शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिले आज कनौट प्लेस में
सर शोभा सिंह स्कूल में कतार लगती है बच्चो को प्रवेश नहीं मिलता है जबकि शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली।
आज भी श्यामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है।
सर शादीलाल और सर शोभा सिंह, भारतीय जनता की नजरों मे घृणा के पात्र थे अब तक है
लेकिन
Read 12 tweets
Mar 30
*श्री के.के.के. नायर अर्थात कृष्ण करुणा कर नायर*

*आइए, फैजाबाद के उस बहादुर कलेक्टर को आज सादर याद करें*

आज जब पूरा देश श्री रामलला के जन्मभूमि मन्दिर शिलान्यास के जश्न में डूबा हुआ है तब श्री कृष्ण करुणा कर नायर का नाम याद किए बिना आज का दिन सार्थक नहीं हो सकता।
कौन थे के के के नायर? उनका जन्म 11 सितंबर 1907 को केरल में एलेप्पी में हुआ था और 7 सितंबर 1977 को उन्होंने इस पार्थिव देह को त्याग दिया। श्री के के के नायर की शिक्षा दीक्षा मद्रास और लंदन में हुई थी। वर्ष 1930 में वे आई.सी.एस बने और उत्तर प्रदेश में कई जिलों के कलेक्टर रहे।
आज के आईएएस को तब आईसीएस कहा जाता था।

1 जून 1949 को उन्हें फैजाबाद का कलेक्टर बनाया गया। मानो रामलला ने उनको स्वयं फैजाबाद बुलाया हो। उनके कलेक्टर रहते हुए 22- 23 दिसंबर 1949 की रात को इसी स्थान पर रामलला का प्रकट् हुए और 23 दिसंबर की शुभ प्रातःकाल बड़ी संख्या में भक्तों और
Read 13 tweets
Mar 30
अधिकतर व्यक्ति इनकम टैक्स भरते वक्त यही सोचते हैं कि सरकार हमारे साथ ज्यादती कर रही है

लेकिन सियाचिन की यात्रा के बाद और वहां पहरा दे रहे 3 मराठी सैनिकों को सुनने के बाद
मुझे इनकम टैक्स चुकाने का कोई मलाल नहीं है।

उन्होंने जो कुछ भी कहा वह ऐसा था -
पहले----
1. राशन 3 माह पुराना
2. फल 2 महीने पुराना
3. सलाद कभी नहीं मिला
4. किसी ने सेहत की परवाह नहीं की
5. खाने योग्य हर चीज के लिए डिपो दिल्ली में था, फिर ट्रक से लेह, फिर ट्रक से सियाचिन, फिर ट्रक से बॉर्डर और फिर बॉर्डर पोस्ट किचन में एयर ड्रॉप जिसमें 2 से 3 महीने लगते थे।
मोदी सरकार के आने के बाद ---.
.
3 हेलीकॉप्टर रोज लाते हैं
ताजा फल
ताजा राशन
ताजा सलाद
ताजा सूप
अच्छी रसोई
अच्छे रसोइये
अच्छे वाटरप्रूफ कपड़े
Read 5 tweets
Mar 30
महान योद्धा तक्षक का नाम कभी किसी विद्वानों ने आपको बताया ?

*जिहाद का इलाज*

*सन 711ई. की बात है। अरब के पहले मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम के आतंकवादियों ने मुल्तान विजय के बाद एक विशेष सम्प्रदाय हिन्दू के ऊपर गांवों, शहरों में भीषण रक्तपात मचाया था। Image
हजारों स्त्रियों की छातियाँ नोच डाली गयीं । इस कारण अपनी लाज बचाने के लिए हजारों सनातनी किशोरियां अपनी शील की रक्षा के लिए कुंए- तालाब में डूब मरीं ।लगभग सभी युवाओं को या तो मार डाला गया या गुलाम बना लिया गया । भारतीय सैनिकों ने ऎसी बर्बरता पहली बार देखी थी !*
एक बालक तक्षक के पिता, कासिम की सेना के साथ हुए युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। लुटेरी अरब सेना जब तक्षक के गांव में पहुंची तो हाहाकार मच गया । स्त्रियों को घरों से खींच खींच कर उनकी देह लूटी जाने लगी । भय से आक्रांत तक्षक के घर में भी सब चिल्ला उठे।
Read 22 tweets
Mar 29
#जाटों_ने_औरंगजेब_की_मरी_अम्मी_लपेट_दी😂..

ये कहानी भी इतिहास के पन्नों से निकाल कर फेंक दी गयी
पर सुनानी तो पड़ेगी...

बात साल 1761 की गर्मियों की थी
मई की शुरुआत में भरतपुर के जाटों का मूड बना
के भाई आगरा कब्ज़ाना है..
#महाराज_सूरजमल ने हाँक लगाई
"चालो रे जाट आगरे में मुग़लों की खड़ी करें खाट"
और पांच हज़ार जाट आगरा आकर जम गए
आगरे का किला घेर लिया

अब जब मुग़ल सत्ता अपने चरम पर थी
तब भी #गोकुला_जाट के नेतृत्व में ब्रज के किसानों ने औरंगजेब के खिलाफ़ विद्रोह का
बिगुल फूंक दिया था

इस विद्रोह में सबसे बड़ी भागीदारी जाटों की ही थी
गोकुला के सिपाही सिकंदरा तक चढ़ आये
उन्होंने अकबर की क़ब्र खोद उसकी हड्डियां तक निकाल लीं और उन्हें जला कर गंदे नाले में राख बहा दी..
Read 9 tweets
Mar 29
|| मैं हूं श्रेष्ठ भारत ||

क्या आप जानते हैं, वियतनाम और कंबोडिया के बीच सबसे बड़ा विवाद कोनसा है.....अगर आप नहीं जानते तो सुने.....!

दोनों में से कौन भारत के ब्राह्मण कौडिन्य का सच्चा वंशज है जिसने वहाँ जाकर नागवंशी लोगों को हराया और नागकन्या सोमा से शादी
करके एक साम्राज्य की स्थापित कि थी.....?

दोनों ही देश का मानना है कि वह भारतीय मूल के राजा कौडिन्य के वारसदार हैं..! और दोनों अपने आप को अखंड भारत का हिस्सा मानते हैं और भारत के मूल की संस्कृति से जुड़ने में दोनों गर्व ले रहे हैं और एक हम हैं जिनका ……जन्म ही इन महान पवित्र
भूमि भारत में सनातन संस्कृति के गर्भ से हुआ है जिसका न तो हम गर्व लेते हैं उल्टा खुद को पाश्चात्य संस्कृति के साथ जुड़ने का प्रयत्न कर रहे हैं जो नाशवंत है और जिनका ऐहसास पाश्चात्य संस्कृति के लोग खुद कर रहे हैं।
Read 4 tweets

Did Thread Reader help you today?

Support us! We are indie developers!


This site is made by just two indie developers on a laptop doing marketing, support and development! Read more about the story.

Become a Premium Member ($3/month or $30/year) and get exclusive features!

Become Premium

Don't want to be a Premium member but still want to support us?

Make a small donation by buying us coffee ($5) or help with server cost ($10)

Donate via Paypal

Or Donate anonymously using crypto!

Ethereum

0xfe58350B80634f60Fa6Dc149a72b4DFbc17D341E copy

Bitcoin

3ATGMxNzCUFzxpMCHL5sWSt4DVtS8UqXpi copy

Thank you for your support!

Follow Us on Twitter!

:(