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यह खंडित मंदिर पूरे संसार को देखना चाहिए, जिससे उसे पता लगें की कश्मीर किसका था ?
सूर्यमार्तण्ड मंदिर अनंतनाग का एवं उनके निर्माता का इतिहास
●यह मंदिर ललितादित्य मुक्तापीड़ ने बनवाया था । पुरातत्व विभाग का बोर्ड साथ मे जोड़ दिया गया है, आप स्वयं भी देखें । इस मंदिर का नाम #मार्तण्ड_सूर्य_मंदिर है ।। इसे कश्मीर के नागवंशी राजा ललितादित्य ने बनवाया था ।
●ललितादित्य मुक्तापीड़ बड़ा महत्वाकांक्षी एवं बहादुर राजा थे, उनहोंने अपने समय के सबसे शक्तिशाली शासकों में से एक यशोवर्मन को बड़ी बुरी तरह हराया था ।
●इतना ही नही, चीनी तुर्की सेना को भी ललितादित्य ने बड़ी शक्ति के साथ तिब्बत के पीछे धकेला था ।।
●ललितादित्य ने तिब्बत , बंगाल आदि जीतकर बड़े साम्राज्य का निर्माण किया, यह वही राजा था, जिसने अरबो को धूल चटाकर भारतीय राजाओ के मन मे भी यह विश्वास भर दिया कि अरब अपराजित नही है ।।
●ललितादित्य का शासनकाल 724 ईस्वी से 761 ईस्वी तक रहा, ललितादित्य मुक्तापीड़ के रहते किसी अरबी या तुर्की आक्रांता का साहस नही हुआ की कश्मीर की ओर आंख उठाकर भी देखें ।।
महान राजा #ललितादित्य_मुक्तापीड़ द्वारा बनाये गए इस मंदिर को सिकंदर बुतशिकन ने खंडित कर डाला था ।।
वह सिकंदर बुतशिकन इतना पागल आदमी था, मूर्ति देखते ही पागलों वाली हरकते करते, इस सनक के कारण इसका नाम ही बुतशिकन पड़ गया ।। वरना इसका असली नाम #सिकंदरशाह_मीर हुआ करता था ।। जिसने 1389-1413 ईस्वी के कार्यकाल में असंख्य मंदिर तोड़े , उनमें से एक यह सूर्य मार्तण्ड मंदिर भी था ।।।
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यह फोटो हार्वर्ड और कोलंबिया विश्वविद्यालय से स्नातक समाजशास्त्र की प्रख्यात विद्वान और दिल्ली स्कूल औफ एकोनोमिक्स में प्रोफेसर नंदिनी सुंदर का है।
नंदिनी सुंदर के माता-पिता दोनों आई ए एस अफसर हैं और पति सिद्धार्थ वरदराजन द वायर का संपादक है।
मगर यहां जिक्र उनकी काबिलियत का नहीं बल्कि उनके माओवादियों के प्रति प्रेम को लेकर है। 2000 में राज्य के गठन के बाद छत्तीसगढ़ में जब नक्सली हिंसा से आम जनता की जिंदगी बर्बाद हो रही थी तब सरकार ने ग्रामीणों को ट्रेनिंग और हथियार देकर लोकल पुलिस फोर्स का एक दस्ता तैयार किया जो
नक्सलियों से लोहा ले सके।
इसे सलवा जुडूम का नाम दिया गया।
नक्सलियों का तांडव धीरे-धीरे कमने लगा और ग्रामीण खुद अपनी रक्षा करने लगे।
माओवादियों को लगा कि इस तरह तो वे नष्ट हो जाएंगे तो उन्होंने अपने दिल्ली में बैठे समर्थकों से मदद मांगी।
हनुमान जी और अंगद जी दोनों ही समुद्र लाँघने में सक्षम थे, फिर पहले हनुमान जी लंका क्यों गए?
*"अंगद कहइ जाउँ मैं पारा।*
*जियँ संसय कछु फिरती बारा॥"*
अंगद जी बुद्धि और बल में बाली के समान ही थे! समुद्र के उस पार जाना भी उनके लिए बिल्कुल सरल था।
किन्तु वह कहते हैं कि लौटने में मुझे संसय है।
कौन सा संसय था लौटने में ?
बालि के पुत्र अंगद जी और रावण का पुत्र अक्षय कुमार दोनों एक ही गुरु के यहाँ शिक्षा प्राप्त कर रहे थे |
अंगद बहुत ही बलशाली थे और थोड़े से शैतान भी थे।
वो प्रायः अक्षय कुमार को थप्पड़ मार देते थे जिससे की वह मूर्छित हो जाता था।
अक्षय कुमार बार बार रोता हुआ गुरुजी के पास जाता और अंगद जी की शिकायत करता,,,एक दिन गुरुजी ने क्रोधित होकर अंगद को श्राप दे दिया कि अब यदि अक्षय कुमार पर तुमने हाथ उठाया
जिस तरह आज सबको अमरीका जाने का क्रेज है,
उसी तरह कभी दरिद्रता के दलदल से जूझ रहे यूरोप के
ईसाइयों में भी भारत आने का क्रेज था।
अमेरिका जाने का क्रेज क्यों है,
क्योंकि वहां धन और दौलत कमाने की असीम संभावनाएं हैं।
प्रमाणिक स्रोत बताते हैं कि भारत की ओर प्रस्थान करने वाले यूरोपीय ईसाइयों में 25% यात्री भारत की धरती पर कदम रखने के पूर्व ही मर खप जाते थे। फिर भी भारत का वैभव उनको अपने प्राणों की बाजी लगाने के लिए चमत्कृत और प्रोत्साहित करता रहता था।
1757 की जंग जीतने वाले ब्रिटिश रॉबर्ट क्लाइव (यही नाम था न) का बाप उसे दर्जी बनाना चाहता था। परंतु वह इतना नालायक, निकम्मा और झगड़ालू था कि वह कोई काम सीख ही नहीं सकता था। तो उसके बाप ने ईस्ट इंडिया कंपनी में उसे क्लर्क की नौकरी पर लगवा दिया।
*यह है अमेरिकी वैचारिक हथियारघर की सबसे बड़ी तोप। नाम है एरिक गारसेटी।* उम्र 52 वर्ष
लास एंजेलिस का मेयर रहा है। लोमड़ी की तरह चालाक और चीते की तरह फुर्तीला।जो बाइडेन की नाक का बाल। *कट्टर कम्युनिस्ट है।* आपने महाभारत युद्ध में सुना होगा कि *अश्वत्थामा* ने पांडवों पर ब्रह्मास्त्र
चलाया था जिससे भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ की रक्षा किया था। *यह भी अपने आप को यही समझता है।* ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि यह व्यक्ति *भारत में अमेरिका का राजदूत बनकर आ रहा है।* वहीं से ललकारता हुआ आ रहा है कि *2024 में मोदी को उखाड़ फेंकूंगा।* मोदी को जीतने नहीं दूंगा।
इसके लिए *जार्ज सोरोस ने 100 करोड़ डॉलर रख छोड़ा है* कि किसी तरह मोदी को हटा दिया जाए।आपको शायद याद न हो कि पिछले दो सालों से भारत में कोई अमेरिकी राजदूत नहीं है। इसका कारण यह है कि जो बाइडेन को कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिल रहा था जो भारत की अर्थव्यवस्था को बढ़ने से रोक सके और
कल यूट्यूब पर एक पाकिस्तानी लड़के तथा साथ में अफगानिस्तान के इतिहासकार कि कंधार यात्रा देख रही थी,
गजनी शहर गये, जँहा मुहम्मद गजनी का कभी महल था।
वह महल ऐसा था कि एक पक्के ईंट कि भी दीवार न थी।
मिट्टी के मकान जो लगभग ढह चुके थे। उस समय भारत में कोई दरिद्र भी ऐसे घरों में नहीं रह
सकता था।
कुछ पक्के ईंटो कि जेल थी।
ऐसा लगता है कि बाद में लगाया गया था।
अफगानिस्तान के इतिहासकार ने बताया कि, उस समय ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान में ऐसे कच्चे मिट्टी के महल थे। जिसमें कुछ जगह पक्की ईंट लगाई गई थी।
भारत आते ही ये सब इतने बड़े आर्टीकेट बन गये।
धन , कारीगर, कलाकृति , नक्शा सब भारत का, बनाये थे मुगल, ताजिक , गजनी।
हमारे यहाँ के वामी इतिहासकार कभी इसकी जहमत नहीं उठाये, मूल स्थानों को देखे क्या है।
खान मार्केट में सुट्टा लगाते, कमरे में बैठकर इतिहास लिख दिये।
अपने पिता को यदुवंशियों के विनाश की सूचना देकर कृष्ण वन में अपने भाई बलराम के पास वापस लौट आये थे।यदुकुल की स्त्रियों की रक्षा का भार उन्होंने अपने सारथी बाहुक के माध्यम से अर्जुन पर छोड़ दिया था।अब इस धरा पर वे बस अपने भाई के साथ कुछ क्षण व्यतीत करना चाहते थे।
बलराम एक वृक्ष के नीचे निश्चेष्ट बैठे हुए थे। प्राणवान अथवा प्राणहीन, यह देखने भर से पता नहीं चल रहा था। कृष्ण उनकी समाधि को भंग नहीं करना चाहते थे, अतः वहीं निकट ही बैठ गए। कुछ ही क्षण बीते होंगे कि उन्हें बलराम के सिर के पीछे से एक विशाल नाग निकलता हुआ दिखा,
जो देखते ही देखते तनिक दूर पर स्थित समुद्र में समा गया। समुद्र तट पर वासुकी, कर्कोटक, शँख, अतिषण्ड इत्यादि नाग एवं स्वयं वरुण देव उसके स्वागत और अगवानी हेतु खड़े थे।
बलराम का शरीर लुढ़क गया। बड़े भाई को मृत जान श्रीकृष्ण तनिक दूर जाकर लेट गए।