#अरुणाचल अब शोकांतिका नही रहा !
अलबत्ता तिब्बत तो त्रासदी है !!
बड़ी याद आती है जवाहरलाल नेहरू की। भले ही आज न तो उनकी पुण्यतिथि है, न जयंती। फिर कवि प्रदीप की पंक्ति कौंध जाती है : “जरा आंख में भर लो पानी।” नेहरू ने भारत मां के नेत्रों को अश्रुपूरित कर दिया था, 20 अक्तूबर
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1962 को। अब नजारा बदला है। सूर्य की किरण जहां सर्वप्रथम पड़ती है वही अरुणाचल अब भारत में ज्यादा मजबूती से है। कभी भाई रहा चीन इसे अब समझ गया। उसे तो गृहमंत्री ने दम दिखाकर समझा दिया। कम्युनिस्ट चीन ने गत सप्ताह अरुणाचल के सीमावर्ती नगर किबिथु का नाम बदला था।लोहित नदी के इस
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तटवर्ती शहर में कल (10 अप्रैल 2023) गृह मंत्री अमित शाह पहुंचे। लहराते तिरंगे को सलाम किया। “जीवंत ग्राम विकास योजना” शुरू की। भारत ने इस अंतिम गांव का नाम रखा “जनरल विपिन रावत सैनिक गढ़।दिवंगत सेनापति का सम्मान किया। उन्हें देश का प्रथम चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सर्वोच्च पद) बनाया
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गया था।बता दिया चीन को कि अब “भाई भाई” वाला दौर गया जब उनींदे भारत पर लुकेछिपे उसने हमला किया था।पांच सौ सैनिकों को मार डाला था,पैंतालीस हजार वर्ग किलोमीटर जमीन हथिया ली थी। कल से सात सैनिक बटालियन,47 नई सीमावर्ती चौकियों और 12 शिविर स्थापित कर दिए गए हैं। लागत करीब अठारह अरब
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रुपयों की है।लाल चीन की सेना घुसपैठ करने में हिचकेगी। दुस्साहस किया तो जंग होगा। नेहरू का आंसू भरने वाला देश बदल चुका है। बूढ़े भारत में नई जवानी आ गई है। किबिथु पूर्वोत्तर का सीमांत भारतीय गांव है,अंजाव जनपद में, जहां से लोहित नदी भारत में प्रवेश करती है।यही 20 नवम्बर 1962 से
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चीन की साम्राज्यवादी साजिश का पहला शिकार बना था। यह भारत, चीन और म्यामार के तिराहे पर स्थित तिब्बत सीमा से लगे वालोंग से पचास किलोमीटर की दूरी पर है। तब भारतीय पत्रकार वालोंग शिविर से ही चीन युद्ध की रिपोर्टिंग कर रहे थे। गृहमंत्री शाह वालोंग युद्ध स्मारक भी गए थे।
चीन को कल
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याद दिलाने कि 1962 का हमला भूले नहीं हैं।भारत नए संकल्प लिए है,जुझारू है। हमारे इस भूभाग को “दक्षिणी तिब्बत” समझने का मुगालता न पालें। अरुणाचल का नाम चीन ने बदलकर दिया है “जंगनाज।” आज किबिथु (अरुणाचल) भारत की सर्वभौम सत्ता का प्रतीक है।गूगल पर दबाव डालकर नया नाम देने से
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भूस्वामित्व नहीं मिल जाता।तब (8 अगस्त 2009) मनमोहन सिंह के राज में गूगल ने अरुणाचल को चीन-अधिकृत प्रदेश दर्शाया था।तब त्रुटि को सोनिया-कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव नारायणस्वामी को पश्चिम अरुणाचल के पूर्व कांग्रेसी सांसद तकम संजय ने बताया था।पर सरदार मनमोहन सिंह की बात को गूगल ने
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नहीं माना।चीन का व्यापारिक दबाव रहा। राजधानी ईटानगर को ही चीन में दर्शाया गया था।
गृह मंत्री ने एक खास बात जो की कि संविधान की धारा 371-H को निरस्त कदापि नहीं किया जाएगा (स्टेट्समैन दैनिक : 21 फरवरी 2020)। इस पर मोदी सरकार दृढ़ है। इस धारा के तहत अरुणाचल को पृथक राज्य का दर्जा
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मिला है।इसी परिवेश में जून 2003 की घटना का भी उल्लेख हो। तब अटल बिहारी वाजपेयी चीन की यात्रा पर थे।अटल जी के परम आदर्श नेहरू रहे। अतः लोग समझ बैठे थे कि फिर “भाई-भाई” वाला माहौल सर्जेगा। तभी (4 दिसंबर 2007) चीन के प्रवक्ता ने दुबारा ऐलान किया कि अरुणाचल चीन का है।अटल जी को पता
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चला। मगर प्रधानमंत्री ने चीन की यात्रा पूरी की। भाजपा तो आज भी वही है। उसका सिरमौर बदला है जो चट्टानी है प्रण करने में।
नेहरू की चीन के प्रति नरमी को समझ कर आज के शासकों को उसकी भर्त्सना करनी होगी। नेहरू ने मार्च 1947 में नवोदित एशियाई देशों का सम्मेलन दिल्ली में आहूत किया था
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भारतीय स्वतंत्रता के चार माह पूर्व। उसमें स्वतंत्र तिब्बत का प्रतिनिधि मंडल आया था। (पृष्ठ 208 : Tibet on March : लेखक वामपंथी विचारक डॉ चरण शांदिल्या, समर्पित चीन-मित्र पं. सुंदरलाल को, प्रकाशित नवंबर 1947, सुप्रिया आर्ट प्रेस, गाजियाबाद)। इसी पुस्तक के पृष्ठ 209 पर एस.एस.
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खेड़ा, ने लिखा है : “1954 में जब नेहरू बीजिंग गए थे तो माओ के सामने ऐसे पेश हुए मानों कोई अधीन देश का राजनेता आया हो।”
अरुणाचल के बारे में नेहरू युग में ही डॉ राममनोहर लोहिया ने चीन के उपनिवेशवादी खतरे से आगाह कर दिया था।लोहिया उसे उर्वशीयम कहा कहते थे।उत्तर-पूर्वी अंचल सीमांत
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का लघु रूप। मगर भारतीय कम्युनिस्ट नहीं माने। चीन के हमले के बाद तो माकपा खुले तौर पर माओवादी चीन के पक्ष में उठ खड़ी हुई थी। लेखक-चिंतक गिरी देशांगीकर इन माकपाइयों को “माओ की विधवा”बताते थे।अब और याद दिलाएं उन्हें कि अरुणाचल तो कृष्ण के समय से कब भारत का रहा। उनकी रानी रुक्मणी
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इसी प्रदेश की रहीं। बात पांच हजार वर्ष पुरानी है।द्वापरयुगीन। रुक्मणी के पिता राजा भीष्मक यहीं के इदु-मिशी जनजाति के थे। मगर चीन क्यों कृष्ण को माने ? उसके लिए केवल नेहरू ही दोस्त रहे।यूं तो चीन के अपदस्थ राष्ट्रवादी राष्ट्रपति मार्शल च्यांगकाई शेक, खासकर उनकी लावण्यमयी बीबी
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मदाम सूंग मिलिंग के नेहरू परम मित्र थे। पर माओ द्वारा उन्हें हरा देने पर नेहरू ने उनको भुला दिया।
क्या संयोग है कि प्रथम गृह मंत्री गुजराती था जिसने तिब्बत पर चीन के हमले से प्रधानमंत्री को आगाह किया था।सरदार वल्लभभाई भंझवेरदास पटेल। आज फिर एक गुजराती ही उस पद पर है।मगर आज
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का प्रधानमंत्री इस्पाती इच्छा शक्तिवाला है। पूर्वी भारत अब और छोटा कदापि नहीं होगा।कटेगा कतई नहीं भौगोलिक आकार में। पूरा भरोसा है। यकीन भी।
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कुछ दिन पूर्व फ़िल्म आदिपुरुष के राम के लुक को लेकर कट्टरपंथी जमात और उनके बौद्धिक फूफाओं ने बड़ी छाती पीटी थी... मूँछ वाले राम...... लम्बे चौड़े वॉरिअर हंक राम... न जी हमको न चलने हमको तो सुकोमल रूप ही चाहिए..... क्या आदिपुरुष के निर्माता या निर्देशक ने कहीं ये दावा किया
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था..... उन्होंने तो ग्रंथो में वर्णित राम को पर्दे पर उतारा???? नहीं...... बस वो उनकी कल्पना के राम हैं हर मंदिर की हर मूर्ती में एक अलग चेहरा होगा..... कोई बुराई नहीं..... महत्वपूर्ण श्रद्धा है.... कुछ को अरुण गोविल में राम दिखते हैं..... यहाँ भी दिक्कत नहीं दिक्कत चालू होगी
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कल को कोई अरुण गोविल के चेहरे को मूर्ती में उतार उसे राम कह मंदिर में स्थापित करे..... वहाँ राम पर अरुण गोविल तारी हो लेंगे.... ये स्वीकार नहीं कर सकते..... बिलकुल भी नहीं मोबाइल एप्प से कोई अपना चेहरा चिपका राम की छवि गढ़ता है...... फिर उसे अभिव्यक्ति की आज़ादी कहे
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*कुत्ता- शास्त्र विवेचना* 1. जिसके घर में कुत्ता होता है उसके यहाँ देवता भोजन ग्रहण नहीं करते । 2. यदि कुत्ता घर में हो और किसी का देहांत हो जाए तो देवताओं तक पहुँचने वाली वस्तुएं देवता स्वीकार नहीं करते, अत: यह मुक्ति में बाधा हो सकता है। 3. कुत्ते के छू जाने पर द्विजों के
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यज्ञोपवीत खंडित हो जाते हैं, अत: धर्मानुसार कुत्ता पालने वालों के यहाँ ब्राह्मणों को नहीं जाना चाहिए । 4. कुत्ते के सूंघने मात्र से प्रायश्चित्त का विधान है, कुत्ता यदि हमें सूंघ ले तो हम अपवित्र हो जाते हैं । 5. कुत्ता किसी भी वर्ण के यहाँ पालने का विधान नहीं है ।
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6. और तो और अन्य वर्ण यदि कुत्ता पालते हैं तो वे भी उसी गति को प्राप्त हो जाते हैं। 7. कुत्ते की दृष्टि जिस भोजन पर पड़ जाती है वह भोजन खाने योग्य नहीं रह जाता।
और यही कारण है कि जहाँ कुत्ता पला हो वहाँ जाना नहीं चाहिए।
उपरोक्त सभी बातें शास्त्रीय हैं अन्यथा ना लें, ये कपोल
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#हिटलरी कमांडर कांपते थे उस यहूदी सार्जेंट के टाइपराइटर से !!
यह शोक-सूचना है, एक शौर्य दास्तां भी, उस अमेरिकी यहूदी वकील की जिसने दस लाख बेगुनाह नागरिकों की नृशंस हत्या के दोषी हिटलरी फौजियों को फांसी पर लटकवाया। न्याय दिलवाया। वकील #बेंजामिन_फ्रेंज की 103 वर्ष की आयु में गत
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शुक्रवार (7 अप्रैल 2023) फ्लोरिडा में मृत्यु हो गई। उनकी जिरह के परिणाम में जो दंडित हुये उनमें थे नाजी नेता और वायुसेना अध्यक्ष मार्शल हर्मन गोरिंग। इन्हें हिटलर ने अपना वारिस नामित किया था। उनके बमवर्षकों ने लंदन को राख कर दिया था। चर्चिल की शेखी खत्म कर दी थी। उसी दौर का
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वाकया है। लंदन से पांच हजार किलोमीटर दूर लखनऊ जिला जेल में अंग्रेज अधीक्षक निरीक्षण पर आया था। मुजफ्फरनगर के गांधीवादी सत्याग्रही केदारनाथ अपने वार्ड में मानस-पाठ कर रहे थे। उस गोरे ने कौतुहलवश पाठ के बारे में पूछा, तो कैदी ने जवाब दिया : “लंका काण्ड बांच रहा हूं। मगर प्रतीत
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आज उस बूढ़ी बीमार और असहाय माँ की आँखों से अश्रुधारा बह निकली जब उसे पता चला की उसका पुत्र जो 17 बरस से उसे अकेला छोड़ चला गया हे वो फिर उसके पास रहने आ रहा हे।
यह कोई फ़िल्मी कहानी या किसी नाटक का अंश नहीं बल्कि सत्य कहानी उस बूढ़ी और बीमार माँ की है जिसने खानदान ने 50 साल
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इस देश पर राज किया और खुद वो बूढ़ी मां ने 10 वर्ष अप्रत्यक्ष राज किया।
इस प्रभावशाली महिला के एक इशारे पर देश के निजाम बदल जाते थे किन्तु विगत 9 वर्षो से यह महिला काफी टूट चुकी थी। सत्ता तो हाथ से जा ही चुकी थी शरीर भी साथ नहीं दे रहा था, ऊपर से बच्चे भी साथ ना रहकर अलग अलग
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सरकारी बंगलो में रह रहे थे ..
पहले पति का देहांत हुआ फिर एक बचपन के मित्र का देहांत हुआ उसके बाद कोविड में एक और मित्र का देहांत हो गया और यह बूढ़ी माँ अकेली 14 एकड़ में फैले 40 कमरों वाले सरकारी बंगले में अकेली घुट घुट कर रह रही थी।
कभी इस सरकारी बंगले में बहुत रौनक हुआ करती
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इस देश को सबसे बड़ा नुकसान दो प्रधानमंत्रियों के काल में हुआ... जिसमें पहला नाम है इंद्र कुमार गुजराल.
इंद्र कुमार गुजराल - पैदाइशी कम्युनिस्ट जो कांग्रेस में गए और फिर जनता दल में...
1996 में जब देवेगौड़ा प्रधानमंत्री थे तब कम्युनिष्टों की पसंद गुजराल को विदेश मंत्री
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बनाया और तब ही से भारत के विदेश मामले ख़राब होना शुरू हो गए. इनके काल में भारत पाकिस्तान से आगे की सोच ही नहीं पाया.
फिर जब ये प्रधानमंत्री बने तो इन्होने पाकिस्तान के साथ उस समझौते को किया जिसमें लिखा था कि भारत अपने सारे केमिकल हथियार ख़त्म कर देगा..जबकि इनके PM बनने के पहले
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तक भारत कहता आया था कि उसके पास केमिकल हथियार हैं ही नहीं.
मतलब गुजराल ने विश्व में ये साबित करवाया कि भारत झूठ बोलता रहा है.
एक और काम जो इन्होने किया वो ये कि भारत के PMO से ख़ुफ़िया विभाग और RAW का पाकिस्तान डेस्क खत्म कर दिया. अगस्त 1997 में अमेरिका में पाकिस्तान
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*बुढ़ापे का सहारा कौन??? बेटा या बेटी??*
*मैं और मेरा दोस्त और उसके घरवाले हम सभी लोग मेन हॉल में बैठे-बैठे चर्चाएं कर रहे थे तभी किसी ने मुझसे एक प्रश्न पूछा कि " आप यह बताओ आदमी के बुढ़ापे का सहारा उसकी बेटी होती है या उसका बेटा?*
*मैंने कहा- "बहन! यह प्रश्न ना करो
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तो ही अच्छा है। क्योंकि इससे कोई तो खुश होगा किसी को दुख होगा।*
*तो अन्य सभी लोग जिद करने लगे नहीं नहीं यह बात तो बतानी ही पड़ेगी वह भी विस्तार से...*
मैने कहा तो फिर सुनो... *बुढापे का सहारा बेटा या बेटी नहीं "बहू" होती हैं।*
जैसा कि लोगों से अक्सर सुनते आये हैं कि
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बेटा या बेटी बुढ़ापे की लाठी होती है इसलिये लोग अपने जीवन मे एक *"बेटा एवं बेटी"* की कामना ज़रूर रखते हैं ताकि बुढ़ापा अच्छे से कटे।
ये बात सच भी है *क्योंकि बेटा ही घर में बहू लाता है।* बहू के आ जाने के बाद एक बेटा अपनी लगभग सारी जिम्मेदारी अपनी पत्नी के कंधे पर
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