कुछ दिन पूर्व फ़िल्म आदिपुरुष के राम के लुक को लेकर कट्टरपंथी जमात और उनके बौद्धिक फूफाओं ने बड़ी छाती पीटी थी... मूँछ वाले राम...... लम्बे चौड़े वॉरिअर हंक राम... न जी हमको न चलने हमको तो सुकोमल रूप ही चाहिए..... क्या आदिपुरुष के निर्माता या निर्देशक ने कहीं ये दावा किया
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था..... उन्होंने तो ग्रंथो में वर्णित राम को पर्दे पर उतारा???? नहीं...... बस वो उनकी कल्पना के राम हैं हर मंदिर की हर मूर्ती में एक अलग चेहरा होगा..... कोई बुराई नहीं..... महत्वपूर्ण श्रद्धा है.... कुछ को अरुण गोविल में राम दिखते हैं..... यहाँ भी दिक्कत नहीं दिक्कत चालू होगी
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कल को कोई अरुण गोविल के चेहरे को मूर्ती में उतार उसे राम कह मंदिर में स्थापित करे..... वहाँ राम पर अरुण गोविल तारी हो लेंगे.... ये स्वीकार नहीं कर सकते..... बिलकुल भी नहीं मोबाइल एप्प से कोई अपना चेहरा चिपका राम की छवि गढ़ता है...... फिर उसे अभिव्यक्ति की आज़ादी कहे
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जाकी रही भावना जैसी का तर्क भी चलेगा... लेकिन बंधु तुम जो ये खेल चालू कर रहे हो इसका अंत जानते हो.... कल को कोई जालीदार टोपी वाले राम बनाएगा.... क़िस मुंह से विरोध करोगे??? विष्णु रूप में साईं देखा है न..... या कृष्ण रूप में हलेलूईया का पप्पा.....ये गंध कहाँ तक जाएगी अंदाजा है
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इसका आपको...... क्यों भाई अपने ही आराध्य का मज़ाक बनाते हो..... क्यों मौका देते हो.. लोंड़िया सी शक्ल एप्प से बना तुम बोल रहे हो ये ग्रंथो में वर्णित राम की छवि है...... AI ने बनाई.... AI की अम्मी का BSDA.... कौनसा ग्रन्थ...... किसने बनाई..... कहाँ बनी कुछ पता है के बस
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मुंह उठा हो गए चालू चेपना.... श्रद्धा का भी अंधा होना सनातन में स्वीकार्य नहीं... अक्ल के अन्धो को सनातनी मान कैसे लूँ.....! SMU (सोशल मीडिया यूनिवर्सिटी) से पढ़ लिख कर इंटेलिजेंट बने वैशाख नंदन लोगों,जिसके एक प्रतिशत गुण का भी बखान सारे शास्त्र और विद्वतजन एक साथ मिल कर
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भी नहीं कर सकते,जिनकी आभा से यह सृष्टि आज तक अभिमंडित है, जिनका अस्तित्व इस देश के कण कण में समाया है,जिनके दर्शन मात्र से भवसागर से मुक्ति मिल जाती है। जिनका स्वरूप स्वयं भारतीय संस्कृति और संस्कारों का मूल बीज है। जिनके ललाट के तेज से भारतवर्ष का गौरवशाली इतिहास जगमग है।
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जिसने इस मिट्टी की पवित्रता बनाये रखने के लिए हर युग में रूप परिवर्तित कर अवतार लिया है,ऐसे मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का चित्रण कोई दो कौड़ी का AI नहीं कर सकता। हाँ,उनके अपरिमित चरित्र का चित्रण हो सकता है लेकिन उसके लिए भी महर्षि वाल्मीकि और बाबा तुलसी जैसी कालजयी
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क्षमता ,भावों से भरा दिल और मन में भक्ति होनी चाहिए । हमने तो अपने राम तो अपने मन और मस्तिष्क पे स्थाई रूप से उकेरकर रक्खा है। वे स्थाई भाव के रूप में भारत के भाल पर सदैव अंकित रहेंगे। वामपंथियों के जाल में फँसकर घोर पाप के भागी मत बनिए। यह चित्र दूषित मंशा से बनाया गया है।
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आर्टिफिशियल इंजीनियरिंग के अंतर्गत जिस प्रकार के फेशियल फीचर्स का आप डाटा भरिए,बिल्कुल वैसा देवरूप या साधुरूप या हिप्पी जैसा आप चाहें चित्र बनाकर दे देगा। किसी पापी ने अपने चेहरे के फीचर्स फिल करके यह चित्र बनाया है। जैसे लापता की रिपोर्ट में लिखते हैं,रंग गोरा,माथा चौड़ा,
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नाक नुकीली आदि। कल को इसी चेहरे का कोई व्यक्ति स्वयं को श्रीरामचंद्रजी का अवतार घोषित कर देगा तो वह भी मान लेंगे आप? खिलवाड़ करने का इतना ही शौक,इतनी ही हिम्मत है तो जरा किसी और समुदाय के आराध्य की छवि के साथ यह विद्रूप मजाक करने का प्रयास करो। औकात समझ में आ जाएगी अपनी।
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जिन्होंने तुम्हें गढ़ा है,उन्हें गढ़ने चले हो ? गढ़ लोगे ? अरे,धर्म के पक्ष में कुछ नहीं कर सकते तो यह दुष्प्रचार करके तो पाप को बल मत दो मूर्खों।
जय श्री सीताराम🙏🙏 #काम कोटि छबि स्याम सरीरा। नील कंज बारिद गंभीरा॥
नअरुन चरन पंकज नख जोती। कमल दलन्हि बैठे जनु मोती॥
अर्थात उनके नीलकमल और गंभीर (जल से भरे हुए) मेघ के समान श्याम शरीर में करोड़ों कामदेवों की शोभा है। लाल-लाल चरण कमलों के नखों की ज्योति ऐसी मालूम होती है जैसे लाल कमल के पत्तों पर मोती स्थिर हो गए हों।
कहा जा रहा है कि वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस सहित तमाम ग्रंथों में दिये
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विवरणों के अनुसार भगवान श्री रामचंद्र जी की AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जनरेटेड फोटो,जब वो 21 वर्ष के थे। लेकिन इस तस्वीर में बहोत कुछ कमी रह गया है.... इसलिए लोग तस्वीर का समर्थन और विरोध कर रहे। मुझे नहीं लगता कि ये सब कोई उल्लेखनीय बात है। यह कल्पनाओं और भावनाओं की
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बात है और श्रीराम भगवान अपने कार्य की वजह से हैं, स्वरूप की वजह से नहीं। कोई अंतर नहीं पड़ेगा,अगर उनकी छवि ऐसी हो या इससे बिल्कुल अलग। वैसे, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आर्टिफिशियल ही रहेगी। ऑरिजनल इंटेलिजेंस यानि अपनी कल्पना ही सबसे सही है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने अगर दिए गए
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वर्णन का जरा भी ध्यान रखा होता तो साँवले श्रीराम की गौरवर्ण छवि न बनाता। क्योंकि प्राची दिशा से चन्द्रमा की भांति उदित होने वाले परात्पर श्रीराम के ध्यान में ऋषि ने कहते हैं :-
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपदमासनस्थं,
पीतं वासो वसानं नवकमल दल स्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम ।
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वामांकारूढ़ सीता मुखकमलमिलल्लोचनम्नी,
रदाभम् नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलम् रामचंद्रम॥
जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं, बद्ध पद्मासनकी मुद्रामें विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दलके समान स्पर्धा करते हैं, जो बायें ओर स्थित सीताजी के मुख कमल से
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मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम, विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी भगवान् श्रीरामका ध्यान करता हूँ।
भगवान् का स्वरूप तो श्रीरामरक्षास्तोत्र में बड़ी सुंदरता से प्रकट हुआ है। वहाँ भगवान् को नीलोत्पल श्याम – नील कमल के समान श्याम, जटामुकुटमण्डित, तरुण, रूपसम्पन्न,
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सुकुमार, महाबली,कमल के समान विशाल नेत्रों वाले पुण्डरीक, दूर्वादल के समान श्याम वर्ण वाले, फिर पुनः श्याम,यहाँ भगवान को 4 बार श्यामवर्ण का कहा है 1. मेघ के समान श्याम 2. नील कमल के समान श्याम 3. दूर्वादल के समान श्याम 4. श्याम
एक जगह मैंने पढा है भगवान् को मरकत पन्ना के समान
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भी श्याम कहा है। इसलिए यह छवि लक्ष्मण के वर्णन से मिलती जुलती मानी जा सकती है, क्योंकि दोनों, बल्कि चारों ही भाई का सौंदर्य और शोभा मनमोहक थी,पर वर्ण तो श्याम ही बताया गया हर जगह श्रीराम का। पहली शर्त ही श्यामवर्ण छवि का सही चित्रण होना चाहिए उनकी तस्वीर बनाते समय,जिसमें एआई
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पूरी तरह असफल रहा है। तस्वीर 1 में जो मनमोहक छवि है वही मेरे भगवान राम जी की छवि है
लेकिन फिर तस्वीर देखते हैं तो होठ बोल पड़ते हैं कि कल्पना की झलक इतनी सुंदर है तो तनिक सोचिए कितनी अदभुत छवि होगी मेरे राम जी की....
जय जय सियाराम..🙏🙏
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#अरुणाचल अब शोकांतिका नही रहा !
अलबत्ता तिब्बत तो त्रासदी है !!
बड़ी याद आती है जवाहरलाल नेहरू की। भले ही आज न तो उनकी पुण्यतिथि है, न जयंती। फिर कवि प्रदीप की पंक्ति कौंध जाती है : “जरा आंख में भर लो पानी।” नेहरू ने भारत मां के नेत्रों को अश्रुपूरित कर दिया था, 20 अक्तूबर
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1962 को। अब नजारा बदला है। सूर्य की किरण जहां सर्वप्रथम पड़ती है वही अरुणाचल अब भारत में ज्यादा मजबूती से है। कभी भाई रहा चीन इसे अब समझ गया। उसे तो गृहमंत्री ने दम दिखाकर समझा दिया। कम्युनिस्ट चीन ने गत सप्ताह अरुणाचल के सीमावर्ती नगर किबिथु का नाम बदला था।लोहित नदी के इस
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तटवर्ती शहर में कल (10 अप्रैल 2023) गृह मंत्री अमित शाह पहुंचे। लहराते तिरंगे को सलाम किया। “जीवंत ग्राम विकास योजना” शुरू की। भारत ने इस अंतिम गांव का नाम रखा “जनरल विपिन रावत सैनिक गढ़।दिवंगत सेनापति का सम्मान किया। उन्हें देश का प्रथम चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सर्वोच्च पद) बनाया
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*कुत्ता- शास्त्र विवेचना* 1. जिसके घर में कुत्ता होता है उसके यहाँ देवता भोजन ग्रहण नहीं करते । 2. यदि कुत्ता घर में हो और किसी का देहांत हो जाए तो देवताओं तक पहुँचने वाली वस्तुएं देवता स्वीकार नहीं करते, अत: यह मुक्ति में बाधा हो सकता है। 3. कुत्ते के छू जाने पर द्विजों के
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यज्ञोपवीत खंडित हो जाते हैं, अत: धर्मानुसार कुत्ता पालने वालों के यहाँ ब्राह्मणों को नहीं जाना चाहिए । 4. कुत्ते के सूंघने मात्र से प्रायश्चित्त का विधान है, कुत्ता यदि हमें सूंघ ले तो हम अपवित्र हो जाते हैं । 5. कुत्ता किसी भी वर्ण के यहाँ पालने का विधान नहीं है ।
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6. और तो और अन्य वर्ण यदि कुत्ता पालते हैं तो वे भी उसी गति को प्राप्त हो जाते हैं। 7. कुत्ते की दृष्टि जिस भोजन पर पड़ जाती है वह भोजन खाने योग्य नहीं रह जाता।
और यही कारण है कि जहाँ कुत्ता पला हो वहाँ जाना नहीं चाहिए।
उपरोक्त सभी बातें शास्त्रीय हैं अन्यथा ना लें, ये कपोल
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#हिटलरी कमांडर कांपते थे उस यहूदी सार्जेंट के टाइपराइटर से !!
यह शोक-सूचना है, एक शौर्य दास्तां भी, उस अमेरिकी यहूदी वकील की जिसने दस लाख बेगुनाह नागरिकों की नृशंस हत्या के दोषी हिटलरी फौजियों को फांसी पर लटकवाया। न्याय दिलवाया। वकील #बेंजामिन_फ्रेंज की 103 वर्ष की आयु में गत
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शुक्रवार (7 अप्रैल 2023) फ्लोरिडा में मृत्यु हो गई। उनकी जिरह के परिणाम में जो दंडित हुये उनमें थे नाजी नेता और वायुसेना अध्यक्ष मार्शल हर्मन गोरिंग। इन्हें हिटलर ने अपना वारिस नामित किया था। उनके बमवर्षकों ने लंदन को राख कर दिया था। चर्चिल की शेखी खत्म कर दी थी। उसी दौर का
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वाकया है। लंदन से पांच हजार किलोमीटर दूर लखनऊ जिला जेल में अंग्रेज अधीक्षक निरीक्षण पर आया था। मुजफ्फरनगर के गांधीवादी सत्याग्रही केदारनाथ अपने वार्ड में मानस-पाठ कर रहे थे। उस गोरे ने कौतुहलवश पाठ के बारे में पूछा, तो कैदी ने जवाब दिया : “लंका काण्ड बांच रहा हूं। मगर प्रतीत
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आज उस बूढ़ी बीमार और असहाय माँ की आँखों से अश्रुधारा बह निकली जब उसे पता चला की उसका पुत्र जो 17 बरस से उसे अकेला छोड़ चला गया हे वो फिर उसके पास रहने आ रहा हे।
यह कोई फ़िल्मी कहानी या किसी नाटक का अंश नहीं बल्कि सत्य कहानी उस बूढ़ी और बीमार माँ की है जिसने खानदान ने 50 साल
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इस देश पर राज किया और खुद वो बूढ़ी मां ने 10 वर्ष अप्रत्यक्ष राज किया।
इस प्रभावशाली महिला के एक इशारे पर देश के निजाम बदल जाते थे किन्तु विगत 9 वर्षो से यह महिला काफी टूट चुकी थी। सत्ता तो हाथ से जा ही चुकी थी शरीर भी साथ नहीं दे रहा था, ऊपर से बच्चे भी साथ ना रहकर अलग अलग
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सरकारी बंगलो में रह रहे थे ..
पहले पति का देहांत हुआ फिर एक बचपन के मित्र का देहांत हुआ उसके बाद कोविड में एक और मित्र का देहांत हो गया और यह बूढ़ी माँ अकेली 14 एकड़ में फैले 40 कमरों वाले सरकारी बंगले में अकेली घुट घुट कर रह रही थी।
कभी इस सरकारी बंगले में बहुत रौनक हुआ करती
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इस देश को सबसे बड़ा नुकसान दो प्रधानमंत्रियों के काल में हुआ... जिसमें पहला नाम है इंद्र कुमार गुजराल.
इंद्र कुमार गुजराल - पैदाइशी कम्युनिस्ट जो कांग्रेस में गए और फिर जनता दल में...
1996 में जब देवेगौड़ा प्रधानमंत्री थे तब कम्युनिष्टों की पसंद गुजराल को विदेश मंत्री
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बनाया और तब ही से भारत के विदेश मामले ख़राब होना शुरू हो गए. इनके काल में भारत पाकिस्तान से आगे की सोच ही नहीं पाया.
फिर जब ये प्रधानमंत्री बने तो इन्होने पाकिस्तान के साथ उस समझौते को किया जिसमें लिखा था कि भारत अपने सारे केमिकल हथियार ख़त्म कर देगा..जबकि इनके PM बनने के पहले
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तक भारत कहता आया था कि उसके पास केमिकल हथियार हैं ही नहीं.
मतलब गुजराल ने विश्व में ये साबित करवाया कि भारत झूठ बोलता रहा है.
एक और काम जो इन्होने किया वो ये कि भारत के PMO से ख़ुफ़िया विभाग और RAW का पाकिस्तान डेस्क खत्म कर दिया. अगस्त 1997 में अमेरिका में पाकिस्तान
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*बुढ़ापे का सहारा कौन??? बेटा या बेटी??*
*मैं और मेरा दोस्त और उसके घरवाले हम सभी लोग मेन हॉल में बैठे-बैठे चर्चाएं कर रहे थे तभी किसी ने मुझसे एक प्रश्न पूछा कि " आप यह बताओ आदमी के बुढ़ापे का सहारा उसकी बेटी होती है या उसका बेटा?*
*मैंने कहा- "बहन! यह प्रश्न ना करो
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तो ही अच्छा है। क्योंकि इससे कोई तो खुश होगा किसी को दुख होगा।*
*तो अन्य सभी लोग जिद करने लगे नहीं नहीं यह बात तो बतानी ही पड़ेगी वह भी विस्तार से...*
मैने कहा तो फिर सुनो... *बुढापे का सहारा बेटा या बेटी नहीं "बहू" होती हैं।*
जैसा कि लोगों से अक्सर सुनते आये हैं कि
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बेटा या बेटी बुढ़ापे की लाठी होती है इसलिये लोग अपने जीवन मे एक *"बेटा एवं बेटी"* की कामना ज़रूर रखते हैं ताकि बुढ़ापा अच्छे से कटे।
ये बात सच भी है *क्योंकि बेटा ही घर में बहू लाता है।* बहू के आ जाने के बाद एक बेटा अपनी लगभग सारी जिम्मेदारी अपनी पत्नी के कंधे पर
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