जब अँग्रेज ने आधुनिक शिक्षा भारत पर लागू की, उसने विज्ञान पर एकाधिकार जमाया और भारतीय विज्ञानियों का मजाक उड़ाया।
हमारी विज्ञान परंपरा को नष्ट करने का प्रयास किया।
अँग्रेज के काम में ब्राह्मण बाधक था, अभी भी है।
क्योंकि वेद से परिचित व्यक्ति कह सकता है कि अँग्रेज पाकिटमार नकलची है।
वह सुनना नहीं चाहता कि भारतीय ज्ञान-विज्ञान की परंपरा और दर्शन केवल आध्यात्मिक नहीं है, यह भौतिक पदार्थों के विज्ञान में भी यथावत है।
रसायनशास्त्र से एक उदाहरण लें-
गंधक, sulfur, S-16.
गंधक की आणविक संरचना अष्टकोणीय होती है।
यह तथ्य आप आधुनिक विज्ञान से जान सकते हैं।
आयुर्वेद के रसायन शास्त्र में गंधक शक्ति है और पारद शिव।
निर्विकार, निर्लिप्त शिव की भाँति पारद भी रंग- रूप और आकार में नहीं बँधता। योगी की तरह यह ऊर्ध्वरेता पदार्थ है।
यह सामान्य तापमान पर अदृश्य हो जाता है, सामान्यत: अन्य पदार्थों से प्रतिक्रिया भी नहीं करता।
पारद विषयों से पार ले जानेवाला पारदायी और आकाश तत्त्व प्रधान पदार्थ है।
चूंकि आकाश से ही अपकर्षित होकर अन्य चार तत्त्व आविर्भूत होते हैं, यह माना गया कि आकाश धर्मी पारद त्रिदोष नाशक है।
इसमें छहों रस होते हैं। यह कायाकल्प करने में समर्थ है
गंधक ही पारद को बाँधता है, ठोस बनाता है। शक्ति ही शिव को बाँधती है, यह षोडशी है, सबको समाहित कर लेनेवाली शक्ति।
यह पंचतत्त्व विज्ञान से सिद्ध होता है और शैवागम से भी।
भारतीय विज्ञान बताता है कि गंधक भूमि तत्त्व प्रधान रजोमय पदार्थ है।
भूमि गंधवती है पंचभूता है जिसके आधार पर इस पदार्थ का नाम गंधक पड़ा।
गंधक पीला होता है। भूमि तत्त्व पीत वर्ण है।
पीले रंग को क्षेत्रीय भाषा में गंधकी कहते भी हैं।
भूमि का एक नाम वसुंधरा है, क्योंकि यह 8- वसुओं को धारण करती है। भूमि अष्टधा प्रकृति है 5+3=8. गंधक के समान
भूमि भी अष्टकोणीय है। 8×4=32.भूमि में अनुष्टुप छंद (32) की समसंख्यक संरचना है।
भारतीय ज्ञान-विज्ञान की परंपरा सजीव है। इस पर नये शोधों की आवश्यकता है।
चूँकि यह समग्र और समेकी विज्ञान है, अन्य ज्ञान सरणियों का भी आधार है जैसे, काव्य शास्त्र के रससिद्धान्त , व्याकरण दर्शन और कालिदास कृत महाकाव्य कुमार संभवम् इत्यादि।
अँग्रेज की आधुनिक शिक्षा में प्रचलित ज्ञान-विज्ञान को भारतीय ज्ञान-विज्ञान आज भी चुनौती देता है।
जय श्री राधे गोविंद देव जी
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प्रातः काल तीर्थमें स्नान करना चाहीये क्युकि यह मलयुक्त देह तीर्थ में ही शुद्ध होता है ओर तीर्थमें स्नान संभव नहि तो स्नानके समय पवित्र नदियो का नामोच्चारण अवश्यकरे ।।
प्रातः स्नान करनेवाले के पास दुष्ट (भुतप्रेतादि) नहि आते ।
गुणा दश स्नानपरस्य साधो !
रुपं च तेजश्च बलं च शौचम् ।
आयुष्यमारोग्यमलोलुपत्वं
दुःस्वप्ननाशश्च तपश्च मेधाः ।।
Lord Shiva and his close association with the mighty weapon – Pashupatastra.
Throughout history lord Shiva is reckoned for his temper. This is one of the reasons that he is considered to be the destroyer in the holy Hindu Trinity.
The usually calm and composed Lord Shiva is also known for his rage. Once in that frame of mind he doesn’t bother about the world and the result is complete devastation. The Pashupatastra, a powerful weapon is also quite similar. And how is it similar?
Is the system of local guardian deities has the sanction of scripture?
#LongThread
Grama devata is a Sanskrit term for the guardian deity of a village, town, or even city.
While it is the common truth that God is everywhere and present at all times, there is a different kind of strength and peace in knowing there is a god specific for you and is present right here and now.