2004 में #पेट्रोल की कीमत 33.71 रुपए प्रति लीटर,
2014 में पेट्रोल की कीमत 72.51 रुपए प्रति लीटर,
यानी #कांग्रेस_सरकार के 10 साल के #कार्यकाल में पेट्रोल की कीमत में 38.08 रुपए की #बढ़ोतरी हुई और सबसे बड़ी बात ये की कांग्रेस जाते जाते 2014👇
में इराक का #43000_करोड़ रुपए का कर्ज मोदी सरकार पर छोड़ कर गयी।
आओ अब मोदी सरकार के #कार्यकाल में बढ़ी तेल की कीमतों पर नजर डाल लें।
2014 में जब #मोदी_सरकार आई तो पेट्रोल की कीमत 72.51 रुपए/लीटर
2023 में यानी अब पेट्रोल की कीमत-96.63 रुपए/लीटर
और 2014 से अब तक मोदी सरकार
#43000_करोड़ रुपए के कर्ज का #95_फीसदी भुगतान कर चुकी है। जी ध्यान से पढियेगा 43000 करोड़ का 95 फीसदी भुगतान हो चुका है ।
यानी #9_साल में इतने बड़े कर्ज चुकाने के बाद भी मात्र 24.12 रुपए की बढ़ोतरी, वजह जानते हो दिमाग के ढक्कन खोलकर गौर करो घोटाले कितने हुए इस बीच 🤔 काँग्रेस
होती तो कर्ज चुकाने तो दूर उतना ही कर्जा और हो चुका होता और तेल कहि 150 से 175रुपये/लीटर
जो 43000 हजार करोड़ के साथ 38.08 रुपए की बढ़ोतरी सहन कर गए अब उनको सारा कर्ज चुकाने के बाद भी 24.12 रुपए की हल्की सी बढ़ोतरी चुभ रही है।
कृपया #वैश्विक कच्चे तेल की #प्रति_बैरल घटी कीमत को #इंगित न करें।
क्योंकि इसी घटी कीमत की बदौलत ही मोदी सरकार ने जनता पर कोई अतिरिक्त बोझ डाले बिना पिछली सरकार का इराक पर हुए कर्ज को उतारा है।
और👇
और ऊपर जो पेट्रोल से सेक्स का सम्बंध ढूंढ रहे हो ना कमीनो सुधर जाओ क्या क्या करना पड़ता है एक अच्छी पोस्ट पढ़ाने के लिए वरना मालूम है जो आंखे गडा गडा कर अब पोस्ट पढ़ी तब ना पढ़ते 😂 😀
youtube.com/@dharmgyan789
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फिल्मों के रिव्यु लिखे जाते हैं। लेकिन कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जिनके प्रसारण के बाद पूरा एक विमर्श लिखा जाता है। समाज के जिस हिस्से को थीम किया गया होता है, थीम पर समाज की सच्चाई लिखी जाती है। यही कुछ कल से होने वाला है। जो भी लिखा जाएगा फिल्म का रिव्यू नहीं होगा, बल्कि वह
सामाजिक दुर्दशा का एक पूरा सच होगा।
कांतारा फिल्म में था ही क्या? लेकिन रीसेंट फिल्मों में सबसे ज्यादा रिव्यू अगर किसी फिल्म की सोशल मीडिया पर लिखी गई, तो वह फिल्म थी कांतारा। इतने रिव्यू लिखे गए कि फिल्म के जो तथाकथित प्रोफेशनल दर्शक हैं, जो फिल्म कैसा भी हो वे बस स्क्रीनिंग
कास्टिंग जैसी चीजों से फिल्में तय करते हैं, ईर्ष्या से जल उठे। उनसे रहा न गया तो बोल उठे कि, क्या ही है फिल्म में कि इतना बड़ा भौकाल खड़ा किया गया। मीठा जहर लिखने वालों ने यह भी डाल दिया कि भर फिल्म में मांसाहार का असभ्य भक्षण दिखाया गया है। पर कांतारा के जिस बात ने दर्शकों को छू
एक आश्चर्यजनक रीति चल पड़ी है, बुजुर्ग बीमार हुए, एम्बुलेंस बुलाओ, जेब के अनुसार 3 स्टार या 5 स्टार अस्पताल ले जाओ, ICU में भर्ती करो और फिर जैसा जैसा डाक्टर कहता जाए, मानते जाओ।
और अस्पताल के हर डाक्टर, कर्मचारी के सामने आप कहते है कि "पैसे की👇
चिंता मत करिए, बस इनको ठीक कर दीजिए"
और डाक्टर एवम अस्पताल कर्मचारी लगे हाथ आपके मेडिकल ज्ञान को भी परख लेते है और फिर आपके भावनात्मक रुख को देखते हुए खेल आरम्भ होता है..
कई तरह की जांचे होने लगती हैं, फिर रोज रोज नई नई दवाइयां दी जाती है, रोग के नए नए नाम बताये जाते हैं और आप
सोचते है कि बहुत अच्छा इलाज हो रहा है।
80 साल के बुजुर्ग के हाथों में सुइयां घुसी रहती है, बेचारे करवट तक नही ले पाते। ICU में मरीज के पास कोई रुक नही सकता या बार बार मिल नही सकते। भिन्न नई नई दवाइयों के परीक्षण की प्रयोगशाला बन जाता है 80 वर्षीय शरीर।
यमुना के तट पर टहलते कन्हैया से बलराम ने पूछा, "तो सोच लिया है कि तुम इस विषैले जल में उतरोगे? एक बार पुनः सोच लो कन्हैया! कालिया नाग अत्यंत विषैला है..."
कृष्ण ने गम्भीरता के साथ कहा, "जाना तो पड़ेगा दाऊ! जो आमजन की रक्षा के लिए स्वयं विष के समुद्र में भी उतरने का साही👇
साहस कर सके वही नायक होता हैऔर अपने युग की पीड़ा को दूर करने का प्रयास न करना अपने पौरुष का अपमान है। जाना तो पड़ेगा
बलराम ने बड़े भाई का दायित्व निभाते हुए रोकने का प्रयास किया, "पर कन्हैया! तुम ही क्यों? इस विपत्ति को टालने का कोई अन्य मार्ग भी तो होगा,हम वह क्यों नहीं ढूंढते?
कन्हैया ने दृढ़ हो कर कहा, "कोई भी विपत्ति, 'वो प्राकॄतिक हो या व्यक्ति प्रायोजित' एक न एक दिन समाप्त अवश्य होती है। यदि मनुष्य अपने परिश्रम से उसे समाप्त न करे तो समय समाप्त करता है, पर विपत्ति समाप्त होती अवश्य है। पर भविष्य इतिहास के हर दुर्दिन के साथ यह भी स्मरण रखता है कि तब
देश का एक प्रधानमंत्री अपने संबोधन में किसी फिल्म का नाम प्रचार करे, क्या इस बात की कल्पना की जा सकती थी? वह भी तब जब उस प्रधानमंत्री की गरिमा वैश्विक स्तर की हो! इससे पहले द कश्मीर फाइल्स आई थी, तब भी उन्होंने किसी बहाने से द कश्मीर फाइल्स का भी नाम लिया था। बजरंग दल पर 👇
प्रतिबंध की बात आई तो पीएम मोदी अपनी जनसभा में बजरंग बली की जयकार करके आ गए।जबकि सत्य यह है कि राम मंदिर आंदोलन में बजरंग दल की भूमिका के बाद मोरल पुलिसिंग के अलावे और क्या उपलब्धि है? जब तक प्रतिबंध की बात नहीं हुई थी,कितने ऐसे स्वतंत्र लोग हैं जो बजरंग दल को अपने वक्तव्यों-
विमर्शों में, अपने पोस्टों में सम्मान से स्थान देते हों?
जिस दल का नाम सम्मान से लेने में साधारण विचार का आदमी कतराता है, पीएम मोदी ने उस पर जनसभाएं कर दी। फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं जो पूछते रहते हैं, शबाना आजमी के पैरों में मोच भी आ जाए तो पीएम मोदी संवेदनाएं प्रकट करते हैं।
हनुमान जी
शंकर भगवान का
रुद्र स्वरूप ही हनुमानजी है।
रुद्राणां शंकर च अस्मि ||
जबकि रुद्र एकादश हैं।
जिसमे हनुमानजी का नाम नहीं है।
कपाली
पिंगल
भीम
विरुपाक्ष
विलोहित
शास्ता
अजपाद
अहिर्बुधन्य
शंभू
चण्ड
भव
इनमें हनुमान जी का नाम नहीं है।
सीरुद्राष्टाध्यायी" के
अध्याय 5 में रुद्रो👇
के अनेक नाम हैं जबकि इनमें भी हनुमान जी का नाम नहीं है।
ऋग्वेद में मरुतगणों का वर्णन है।
मरुतगण 49 हैं।
वायु तत्त्व हैं।
इनमें भी मारुतिनंदन हनुमान जी का नाम नहीं है।
हनुमान जी का
वाल्मीकि रामायण में
भगवान् श्रीराम के सहयोगी और भक्त के रुप में वर्णन किया गया है।
इन्होंने
श्रीराम के लंका विजय अभियान में अतुलनीय भूमिका निभाई थी।
लेकिन लंका की अशोक वाटिका में इन्द्रजित् मेघनाथ ने ब्रह्मास्त्र से इन्हें पराजित किया और बांध कर रावण की राजसभा में उपस्थित किया था।
ब्रह्मबान कपि कहुं तेहिं मारा |
परतिहुॅं बार कटकु सिंघारा ||
तेहि देखा कपि मुरुछित भयऊ |
भगवान् के सभी नामों में
"राम" नाम की अधिक महिमा
राम सकल नामन्ह ते अधिका ||
नाम की महिमा कम नहीं है।
पर लाभ तो जप करने से ही होगा।
प्रात लेइ जो नाम हमारा |
तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा ||
यह हनुमानजी की तो नम्रता है
अन्यथा वे तो "मंगल मूरति रूप" ही हैं।
उनका स्मरण करने से
अमंगल👇
कैसे हो सकता है ?
हरेक परिस्थिति में
परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है।
ऐसी कोई परिस्थिति नहीं
जिसमें परमात्मा की प्राप्ति न कर सकें।
कर्तव्य का पालन करने पर
हार हो जाय तो भी जीत है।
अगर भीतर में राग-द्वेष हैं
तो साधु बनने पर
संन्यास लेने पर भी मुक्ति नहीं होगी।
मुक्ति के लिये
राग-द्वेष का त्याग करने की जरूरत है।
साधु बनने कपड़ों का रंग बदलने की जरूरत नहीं।
कर्म करना अथवा न करना
दोनों ही राग-निवृत्ति के लिये होने चाहिये।
श्री अयोध्या नगरी
जय श्री राम