प्यारे साथियों
द केरल स्टोरी...
फ़िल्म अच्छी हो सकती है,
फ़िल्म बुरी भी हो सकती है,
फ़िल्म बकवास भी हो सकती है,
पर कुछ फिल्मों को केवल इसलिए देख लिया जाना चाहिये कि 'अपने हित के लिए बार बार देश विरोधी एजेंडे को #अमोघ08052023
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आगे बढ़ाने वाली फिल्म इंडस्ट्री' में कुछ दुर्लभ लोग हमारे-आपके पक्ष में बोलने का साहस कर रहे हैं।
उन्हें निर्बल नहीं होने देना है, उन्हें साहस देते रहना है।
कुछ विषयों पर आप चाह कर भी मौन नहीं हो सकते, आपको पक्ष चुनना
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ही होता है। आपका मौन आपको दूसरे पक्ष का योद्धा बना देता है। जब आप धर्म के साथ नहीं होते तो स्पष्ट रूप से अधर्म के ही साथ होते हैं।
सिंधु बेटियों के साथ 'प्रेम के जाल में फंसा कर छल किये जाने' का क्रूरतम अत्याचार पूरे देश में पसरा हुआ है।
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आप अपने आसपास ही आँख उठा कर देख लीजिये, कुछ घटनाएं अवश्य दिख जाएंगी।
इसमें कुछ भी नया नहीं है।
पश्चिम से आने वाले बर्बर आतंकी भारत में विजयी होने के बाद यहाँ की स्त्रियों बालिकाओं के साथ कैसा राक्षसी व्यवहार करते थे, यह इतिहास की
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किताबें रो-रो कर बताती रही हैं। यहाँ से स्त्रियों-बच्चियों को जबरन गुलाम बना कर अरब ले जाने की घटनाएं भी असँख्य बार हुई हैं। यह प्रेम के नाम पर फुसला फंसा कर वेश्यावृत्ति में धकेल देने वाला संगठित आक्रमण भी उसी बर्बर मानसिकता की उपज है। आप
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इसे नकार नहीं सकते, आपको यह मानना ही होगा।
संसार की इस प्राचीनतम सभ्यता ने हर युग में आतंक का चरम देखा है, पीड़ा का पहाड़ भोगा है। उसके साथ की सभ्यताएं जाने कब की समाप्त हो गईं, पर सनातन पुष्पित-पल्लवित है। जानते हैं क्यों? क्योंकि बाकी सभ्यताएं केवल
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सेना के स्तर पर लड़ती थीं, हम सेना और समाज दोनों स्तरों पर लड़ते रहे। हमारी सेना कभी कभी पराजित भी हुई, पर समाज कभी पराजित नहीं हुआ। लोग बर्बरों का तिरस्कार करते रहे, उन्हें स्वयं से दूर रखते रहे। चार दिन भूखे प्यासे रह जाते, पर किसी अधर्मी का
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छुआ पानी नहीं पीते... समाज और व्यक्ति के स्तर की यह दृढ़ता ही सनातन के अजर अमर होने का मूल कारण है।अपने धर्म, अपनी सभ्यता, अपनी परम्परा के प्रति यह दृढ़ता पिछले कुछ दशकों में कम अवश्य हुई है। पर पिछला दशक वापस वही दृढ़ता प्राप्त
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करने का दशक रहा है। हम पुनर्नवा हैं। बार बार सूखते हैं, पर हर बार हरे हो जाते हैं।
सिर्फ चार वर्ष पूर्व ही जब परत लिख रहा था तो कहा गया कि यह फर्जी नैरेटिव है। ऐसा नहीं होता... हालांकि सब जानते थे कि ऐसा होता है और पूरे देश में होता है। पर इस विषय पर हर
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ओर एक नकारात्मक चुप्पी थी।
आज मात्र चार वर्ष बाद इस विषय पर हिन्दी में तीन उपन्यास लिखे गए हैं, और दो बड़ी फिल्में आ चुकी हैं। स्पष्ट है कि लोग मुखर हो रहे हैं, इस अत्याचार का प्रतिरोध कर रहे हैं। यह सुखद है, सकारात्मक है।
भरोसा रखिये,दिन सुधरेंगे। ऐसे ऐसे
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राक्षसी प्रहारों को इस देश ने हजार बार ठोकरों से उड़ाया है। पर यह होगा आपकी सतर्कता से, आपकी जागरूकता से, आपकी दृढ़ता से... इन विषयों पर जब भी कोई बोले तो उसे बल दीजिये। फ़िल्म देख सकें तो देखिये, न देख सकें तो अपनी चर्चाओं में इस विषय को लाइये...
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आप विजयी होंगे। समाज अपने हिस्से का युद्ध यूँ ही लड़ता है...
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_एक अन्जाना सत्य!_
अकबर के दरबार में एक कट्टर सुन्नी स्लिम "अब्द अल कादीर बदायूंनी" था, उसने हल्दीघाटी के युद्धका आंखों देखा वर्णन जिसमें वह स्वयं सम्मिलित था अपनी पुस्तक 'मुंतखाब-उल-वारीख' में किया है...मूल पुस्तक अरबी में है जिसका 18वीं सदी में अंग्रेजी में #अमोघ09052023
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अनुवाद किया गया...
दोनों तरफ की सेनाओं में 90% राजपूत ही लड़ रहे थे!!
अकबर की तरफ से सेनापति मानसिंह और राजा लूणकरण थे तो दूसरी तरफ स्वयं महाराणा प्रताप और राजपूत राजा थे !
दोनों तरफ से राजपूतों ने केसरिया साफे पहन रखे थे इससे अकबर का एक सेनापति 'अबुल फजल इब्न
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मुबारक' असमंजस में पड़ गया कि कौन हमारी तरफ से लड़ रहा है और कौन शत्रु की तरफ से है ?
_फिर अबुल फजल इब्न मुबारक ने अब्द अल कादिर से पूछा दोनों तरफ से राजपूत केसरिया साफा पहनें हैं…
मैं कैसे पहचान करूं कि कौन अपनी तरफ से लड़ रहा है और कौन शत्रु की तरफ से है ??
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प्यारे साथियों
जिन लोगों ने केरला स्टोरी नही देखी उन के लिए फिल्म की कहानी खोलना तो नही चाहता था लेकिन फिर भी कुछ प्वाइंट डिस्कस करना चाहता हूं ।
शालिनी उन्नीकृष्णन नर्सिंग कॉलेज में दाखिला लेती है जहां उसकी रूम मेट होती हैं गीतांजलि,नीमा मैथ्यूज और आसिफा!! #अमोघ09052023
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शालिनी एक धार्मिक परिवार से है जिसके परिवार में मां और दादी है ।
गीतू के पिता एक communist है तो नास्तिक होने के कारण किसी भगवान को नहीं मानते , वही प्रभाव गीतू पर भी है ।
नीमा एक क्रिश्चियन लड़की है और उसका जीसस पर पूरा विश्वास है ।
जबकि दोनो हिंदू लड़कियों को अपने
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धर्म के बारे में कुछ भी नही पता ।
हमारे धर्म में क्या क्या अच्छा है और हर चीज के पीछे क्या लॉजिक है , इस बारे में इन्हे किसी ने नहीं बताया ।
और इसी का फायदा उठाती है आसिफा जिसका काम है लड़कियों को बहला फुसला कर अपने जहब में ले के आना !!
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प्यारे देशवासियों
जागृत की व्यावहारिक परिभाषा ये है जो एक ऐसा व्यक्ति है जो नितांत प्रकृति के पुण्य संकेत को प्राथमिकता देता है / अपने स्वयं के अस्तित्व की तुलना में नैतिकता को ज्यादा बेहतर मानता है।
जागृत एक ऐसा व्यक्ति है #अमोघ29032023
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जो आपको अपने अस्तित्व पर नैतिक दायित्वों को
ज्यादा प्राथमिकता देने की सलाह देता है।
अस्पष्ट ?
🤣🤣
मैं आपको एक उदाहरण देता हूं - मान लीजिए कि आप एक विशाल मगरमच्छ के साथ एक कमरे में बंद हैं जो सो रहा है। आप या मगरमच्छ कमरे से बाहर नहीं जा सकते। आपके पास एक भाला
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है जिसे आप सोते समय मगरमच्छ के सिर में घुसा सकते हैं और वह मर जाएगा।
जबकि, अगर मगरमच्छ जाग जाता है,
और अब आप
अगर आप मगरमच्छ भाला चलाने की कोशिश करते हैं, तो मगरमच्छ न केवल बच जाएगा बल्कि आप दौडायेगा भी!
जब तक मगरमच्छ सो रहा है तब तक आपके पास अपने जीवन/मृत्यु की
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