WhiteCollarMazdoor Profile picture
May 14 19 tweets 4 min read Twitter logo Read on Twitter
थ्रेड: #बेगानी_शादी
नौकरीपेशा आदमी के लिए जिंदगी की हर चीज मुसीबत की तरह ही लगती है। फलाने की शादी है। ज्यादा करीब हुआ तो छुट्टी लेनी पड़ेगी, नहीं तो ऑफिस से जल्दी निकलकर शादी में जाना पड़ेगा। अगर फैमिली रिलेशन है तो वाइफ को भी साथ ले जाना पड़ेगा।
नहीं तो कोशिश तो अकेले ही अटेंडेंस लगाने की रहती है। आठ बजे ऑफिस से छूटो, फिर शादी में जाओ। लिफाफा भी तो देना है। घर पहुँचते पहुँचते 11 बज जाते हैं। त्यौहारों का तो और भी बुरा हाल है। एक दिन की छुट्टी में क्या त्यौहार मनाये आदमी।
दिवाली पे अक्सर एक दिन की छुट्टी आती है। कई जगह दो दिन की और कई जगह तो कोई छुट्टी ही नहीं। एक दिन की छुट्टी में क्या दिवाली मनाये आदमी?
शॉपिंग करनी है, घर की सफाई, पुराने सामान की निकासी, फिर घर सजाना भी है, शाम को पूजा भी करनी है, पटाखे भी चलाने हैं, पड़ौसी, दोस्त और रिश्तेदारों से मिलना है, मिठाई देनी है। और ज्यादातर जगह दिवाली एक दिन की नहीं होती।
ये पांच दिन का त्यौहार माना जाता है जो धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक चलता है। एक दिन की छुट्टी में क्या क्या करे आदमी। छुट्टी के दिन ऑफिस वाले दिन से भी ज्यादा बिजी रहते हैं। खर्चा हुआ सो अलग। ऐसे में त्यौहार मुसीबत नहीं लगेगा तो और क्या लगेगा।
कोई भी त्यौहार उठा लीजिये। पहले पूरा होलाष्ठक होता था। आठ दिन पहले से होली की तैयारियां शुरू हो जाती है। आजकल गिनी चुनी एक छुट्टी आती है और उसमें भी कन्फूजन कि छुट्टी होली की है या धुलंडी की। रक्षाबंधन की तो अलग ही कहानी है।
एक दिन की छुट्टी में किस किस के घर जाए और किस किस से राखी बंधवाये। जोइनिंग और जर्नी पीरियड मिलकर एक दिन। सारांश यह है कि त्यौहारों में से रस ख़त्म हो चुका है। त्यौहार के कारण मिली हुई बहुप्रतीक्षित छुट्टी के दिन आदमी त्यौहार मनाने के जगह सोना पसंद करता है।
वैसे भी सेकुलरिज्म के चक्कर में छुट्टियां धीरे धीरे कम ही होती जा रही हैं। अब गणेश चतुर्थी, दुर्गाष्टमी जैसे त्यौहारों की छुट्टियां तो आती ही नहीं जबकि ये त्यौहार आम हिन्दुस्तानी के घर में मनाये भी जाते हैं।
अब तो बस सुबह किसी तरह जल्दी जल्दी में पूजा की और ऑफिस के लिए निकल पड़े। बहुत सी ऐसी छुट्टियां आती हैं जिनसे आम आदमी का लेना देना ही नहीं। जैसे गांधी जयंती, अम्बेडकर जयंती, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस।
इन दिनों में कुछ राजनीतिक सामूहिक कार्यक्रमों के अलावा ऐसा कुछ नहीं होता जो आम आदमी के लिए रुचिकर हो। कई बार दिमाग में अत है कि अगर गांधी जयंती वाली छुट्टी दुर्गाष्टमी को मिल जाती तो कितना सही रहता।
अपने गाँव जाकर देवी पूजन कर पाते। यहाँ लोग मुझे गालियां देंगे कि कैसा राष्ट्र विरोधी आदमी है जिसे स्वतंत्रता दिवस की छुट्टी नहीं चाहिए। मैं केवल इतना कहना चाह रहा हूँ कि किस तरह हमारी नौकरी हमारी जीवनशैली पर हावी है।
अब हम त्यौहार भी वैसे ही मनाएंगे जैसे मनाने के लिए नौकरी इजाजत देती है। कुछ दिन से ज्योतिबा फुले जयंती कि भी छुट्टी शुरू हो चुकी है। धीरे धीरे शायद नेहरू जयंती, पटेल जयंती, भगत सिंह बलिदान दिवस इत्यादि की भी छुट्टियां शुरू हो जाएंगी।
और बदले में महाशिवरात्रि, मकर संक्रांति, रामनवमी इत्यादि छुट्टियां शहीद हो जाएंगी। वैसे इन पुरानी छुट्टियों का अब कोई ख़ास औचित्य बचा भी नहीं है। वो तो केवल परंपरा के हिसाब से होली दीवली मनाई जा रही है वरना नौकरी पेशा के लिए क्या होली और क्या दिवाली।
होली तो उसकी है जिसने कड़कड़ाती ठण्ड में खेत में गेंहूं चना उगाया और अब होली के दिन उसे होलिका दहन में भून कर खायेगा। वो खुश है क्योंकि उसकी फसल तैयार हो चुकी है। बैंक वाले की क्या होली? उसे तो मार्च की टेंशन है।
ऐसे में होली के दिन बैंक भी जाना पड़ जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। और जैसे ही त्यौहार के पीछे का असली कारण बेमानी हुआ वैसे ही त्यौहार एक बोझ बन गया। अब एक नौकरी पेशा आदमी की जिंदगी में त्यौहार भी एक मजबूरी है। नहीं मनाने का ऑप्शन नहीं है।
जैसे कस्टमर के सामने फ़र्ज़ी मुस्कान दिखानी पड़ती है वैसे ही त्यौहार के दिन फ़र्ज़ी ख़ुशी मनानी पड़ती है। अजीब हो गई है जिंदगी। अब हमारे हिसाब से नहीं चलती। नौकरी के हिसाब से चलती है। शादी की तारीख भी कोशिश करके संडे सैटरडे की रखवाई जाती है ताकि लोग आ सकें।
आने वाले भी झल्लाते हुए आते हैं कि एक तो वीकेंड आता उसमें भी शादी में घूमते फिरो। बच्चे का बड्डे है बुधवार को। बच्चे को भी बहला फुसला के मना लेते हैं कि संडे को मनाएंगे। क्योंकि हमें भी पता है कि बच्चा फिर भी मान जाएगा, नौकरी नहीं मानेगी।
इसीलिए आजकल ये नए नए त्यौहार आ जाये हैं। मदर्स डे, फ्रेंडशिप डे। ये ज्यादातर छुट्टी वाले दिन ही पड़ते हैं, मई का दूसरा रविवार, अगस्त का पहला रविवार। धीरे धीरे इन आधुनिक त्यौहारों का महत्त्व बढ़ जाएगा और जो पारम्परिक त्यौहार हैं वो गौण हो जाएंगे। होना भी चाहिए।
नए त्यौहार नई जीवन शैली के अनुरूप हैं। हफ्ते के किसी भी दिन नहींआ धमकते। सोच समझ के आते हैं।

• • •

Missing some Tweet in this thread? You can try to force a refresh
 

Keep Current with WhiteCollarMazdoor

WhiteCollarMazdoor Profile picture

Stay in touch and get notified when new unrolls are available from this author!

Read all threads

This Thread may be Removed Anytime!

PDF

Twitter may remove this content at anytime! Save it as PDF for later use!

Try unrolling a thread yourself!

how to unroll video
  1. Follow @ThreadReaderApp to mention us!

  2. From a Twitter thread mention us with a keyword "unroll"
@threadreaderapp unroll

Practice here first or read more on our help page!

More from @BankerDihaadi

Feb 5
थ्रेड: #हंस_चला_बगुले_की_चाल
भारत एक मानसून आधारित देश हैं जहाँ साल में एक तिहाई समय मानसून का होता है। मानसून में जबरदस्त बरसात होती है। साल भर के हिस्से की बरसात चार महीनों में ही हो जाती है। बाकी समय लगभग सूखा ही रहता है।
यहाँ के मानसून को समझना विदेशियों के लिए हमेशा से एक टेढ़ी खीर ही रहा। विशेषकर अंग्रेज तो मानसून से इतने परेशान थे कि भारत की कृषि व्यवस्था की रीढ़ तोड़कर ही माने। लेकिन भारतीयों के लिए मानसून जीवनशैली का एक अभिन्न अंग था। हमारी जीवनशैली मानसून के हिसाब से ढली हुई थी।
मानसून के "चौमासे" में न तीर्थ यात्रा होती थी और ना ही शुभ कार्य जैसे विवाह इत्यादि। इन चार महीनों में हो देवताओं से सोने की परंपरा शुरू हुई थी वो आज भी जारी है। राम ने भी लंका पर चढ़ाई चार महीने के लिए रोकी थी और मानसून के दौरान माल्यवान पर्वत पर इंतज़ार किया था।
Read 8 tweets
Feb 5
थ्रेड: #अंधी_पीसे_कुत्ता_खाय
भूखी जनता राजा के पास पहुंची: महाराज!!! विदेशी सब लूट के ले गए। खाने को कुछ नहीं है। कुछ कीजिये।
राजा (मंत्रियों से): सबके भोजन का इंतज़ाम करो। और सबको अन्न उगाने के लिए पर्याप्त भूमि, बीज खाद दो ताकि भविष्य में कोई भूखा न रहे।
कुछ समय बाद राज्य के सभी धनी व्यापारी राजा के पास पहुंचे: महाराज!!! हम तो बर्बाद हो गए।
राजा: क्या हुआ?
व्यापारी: महाराज!!! लोग खुद ही अन्न उगा रहे हैं और खा रहे हैं। साथ ही बुरे समय के लिए अन्न बचा भी रहे हैं। लोग आत्मनिर्भर हो रहे हैं। हमारी किसी को जरूरत ही नहीं।
फिर हमारा क्या होगा?
राजा: तो मैं क्या करूँ? जनता को अन्न उगाने से तो नहीं रोक सकता।
व्यापारी: लेकिन अन्न बचाने से तो रोक सकते हैं। ताकि हमारी भी दुकान चल सके। याद रखिये की आपका सिंहासन रथ वगैरह सब हमने ही स्पांसर किया हुआ है।
Read 15 tweets
Nov 26, 2022
थ्रेड: #मोबाइल_की_खोज

तो हुआ यूं कि पिछले महीने हमारी मोबाइल फ़ोन की एलिजिबिलिटी रिन्यू हुई। और हमारा फ़ोन भी काफी पुराना हो चुका था। छः साल से एक ही फ़ोन को चला रहे थे। हमारे फ़ोन को लोग ऐसे नजरों से देखते थे
जैसे कि हड़प्पा की खुदाई से निकला हुआ कोई नमूना देख लिया हो। लेकिन हम भी उस पुराने फ़ोन को घूंघट के ऑउटडेटेड रिवाज़ की तरह चलाये जा रहे थे। लेकिन समस्या तब हुई जब मोबाइल बैंकिंग के एप्प ने एंड्राइड 8 को ब्रिटिशराज घोषित करके आज़ादी की मांग कर दी।
अब तो हमें नया फ़ोन चाहिए ही था। अब चूंकि हम मोबाइल की दुनिया में चल रही क्रांति से नावाक़िफ़ थे इसलिए हमने यूट्यूब का रुख किया। वहां हमको अलग ही लेवल की भसड़ मिली। उनके बारे में बाद में बात करेंगे।
Read 25 tweets
Nov 8, 2022
थ्रेड: #हरि_अनंत_हरि_कथा_अनंता

नोटबंदी जैसी तुग़लकी स्कीम जिससे सिर्फ एक पार्टी और चंद पूंजीपतियों को हुआ, लेकिन पूरा देश एक एक पैसे के लिए तरस गया, धंधे बर्बाद हो गए, बैंकरों ने अपनी जान खपा दी, दिन रात पत्थरबाजी झेली, रोज गालियां खाई,
साहब के कपड़ों की तरह दिन में कई कई बार बदले नियमों को झेला, नुक्सान की भरपाई जेब से करी। और जैसा कि होना था, भारी मीडिया मैनेजमेंट और ट्रोल्स की फ़ौज के बावजूद नोटबंदी फेल साबित हुई।
जब नोटबंदी फेल हुई थी तो बड़ी बेशर्मी से इन लोगों ने नोटबंदी की विफलता का ठीकरा बैंकों के माथे फोड़ दिया।
"अजी वो तो बैंक वाले ही भ्रष्ट हैं वरना जिल्लेइलाही ने तो ऐसे स्कीम चलाई थी कि देश से अपराध ख़त्म ही हो जाना था।"
Read 12 tweets
Nov 7, 2022
थ्रेड: #ड्यू_डिलिजेंस
बैंक में ड्यू डिलिजेंस बहुत जरूरी चीज है। बिना ड्यू डिलिजेंस के हम लोन देना तो दूर की बात है कस्टमर का करंट खाता तक नहीं खोलते।
लोन देने से पहले पचास सवाल पूछते हैं। पुराना रिकॉर्ड चेक करते हैं। चेक बाउंस हिस्ट्री चेक करते हैं।

#12thBPS
#7thDayPastDue
और लोन देने के बाद भी उसकी जान नहीं छोड़ते। किसी कस्टमर के खाते में अगर एक महीने किश्त ना आये तो उसकी CIBIL खराब हो जाती है। और तीन महीने किश्त न आये तो खाता ही NPA हो जाता है और फिर उसे कोई लोन नहीं देता।
#12thBPS
अगर डॉक्यूमेंट देने में या और कोई कम्प्लाइंस में ढील बरते तो बैंक पीनल इंटरेस्ट चार्ज भी करते हैं। लेकिन बैंकों का ये ड्यू डिलिजेंस केवल कस्टमर के लिए ही है। पिछले 56 सालों से बैंकरों का अपना रीपेमेंट टाइम पर नहीं आ रहा। हर पांच साल में बैंकरों का वेज रिवीजन ड्यू हो जाता है।
Read 9 tweets
Oct 15, 2022
थ्रेड: #परफॉरमेंस
मेरी पिछली कंपनी में एक GM साहब थे। बहुत हाई परफ़ॉर्मर। मतलब जिस माइन के लिए कंपनी ने पांच साल पहले बोल दिया था कि अब इसमें मिट्टी के अलावा कुछ नहीं बचा उसमें से भी पांच साल से प्रोडक्शन देकर टॉप पे रखा हुआ था। 48 की उम्र में GM बन गए थे।
ना खाने का होश, ना पहनने का। फैमिली कहाँ पड़ी है कोई आईडिया नहीं। मतलब, GM साहब को आईडिया होगा लेकिन हमको आईडिया नहीं था क्योंकि हमने तो उन्हें कभी घर जाते देखा नहीं। छुट्टी वगैरह कुछ नहीं। ना खुद लेते थे ना स्टाफ को देते थे। स्टाफ की नाक में दम किया हुआ था।
बिना गालियों के तो बात ही नहीं करते थे। खौफ का दूसरा नाम। कंजूस इतने कि क्लब नाईट में भी खाने में केवल पूरी और परवल की सब्जी बनवाते थे। मतलब पूरी तरफ से कंपनी को समर्पित।
Read 12 tweets

Did Thread Reader help you today?

Support us! We are indie developers!


This site is made by just two indie developers on a laptop doing marketing, support and development! Read more about the story.

Become a Premium Member ($3/month or $30/year) and get exclusive features!

Become Premium

Don't want to be a Premium member but still want to support us?

Make a small donation by buying us coffee ($5) or help with server cost ($10)

Donate via Paypal

Or Donate anonymously using crypto!

Ethereum

0xfe58350B80634f60Fa6Dc149a72b4DFbc17D341E copy

Bitcoin

3ATGMxNzCUFzxpMCHL5sWSt4DVtS8UqXpi copy

Thank you for your support!

Follow Us on Twitter!

:(