मित्र लोग तनाव में हैं। पूछ रहे हैं कि भाजपा कर्नाटक में क्यों हारी? हिंदुओं ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया !! क्या कोर वोटर ने मोदी जी का साथ छोड़ दिया?
अत: राष्ट्रवादी मित्रों के लिए कुछ आंकड़े :
वोट शेयर :
Party : 2018 Vs 2023
++
BJP : 36.35% Vs 35.7%
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CON : 38.14% Vs 43.2%
J D S : 18.3% Vs 13.3%
अर्थात, भाजपा का मत% लगभग पिछले चुनाव के बराबर ही है। कोर वोट बैंक पूरी तरह से INTACT है।
JDS के 5% कोर वोटर (संभावित रूप से ततुए और चिराई) कांगरेच को भोट दे दिए. और यहीं गेम चेंजर था..
कर्नाटक की पराजय के साथ दक्षिण भारत के पांच राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश पुद्दुचेरी में बीजेपी के प्रवेश का मार्ग बंद हो गया है !
इन राज्यों की 130 संसदीय सीटों में से भाजपा के पास कुल 29 सीट हैं !
इनमें से 25 सीट कर्नाटक और 4 सीट तेलंगाना में हैं !
जाहिर है इस हार से 👇
बीजेपी का मजबूत दक्षिणी दुर्ग ध्वस्त हो गया !
यह पराजय बीजेपी के दक्षिण अभियान के लिए बहुत भारी पड़ने वाली है !
पराजय निराशा देती है और विजय उमंग !
लगातार जीत मिलती रहे तो जीतने की आदत पड़ जाती है !
ऐसे में एक हार लीडर को कष्ट देती है पार्टी वर्कर हताश होते हैं !
जो जीता , उसकी
खुशियों का ओर छोर नहीं होता , लंबे संघर्ष के बाद जीत मिले , ताकतवर को हराकर मिले तो जीतने वाले का दिल बल्लियों उछलता है , खुशी लंबी चलती है !
हारने वाला समझ नहीं पाता कि यह कैसे हो गया , पर वक्त बीतते बीतते उसे सब समझ आने लगता है !
आजकल अधिकांश की कुंडली में देखा जा रहा है कि चन्द्रमा पीड़ित है। चन्द्रमा मन के कारक है। चन्द्रमा पीड़ित तो मन पीड़ित मन अशांत बेचैनी चिड़चिड़ापन अनजाने भृम से चिंतित इत्यादि समस्याएं उतपन्न होती है।
चन्द्रमा माता का कारक है। पहले घरों में माता की नित्य सेवा धर्म कर्म की तरह 👇
कर्तव्य मानकर की जाती थी। किसीको को बोलना नही पड़ता था कि माता की सेवा करो। बदलते परिवेश में माता को भूलना पीड़ित चन्द्रमा का कारण बनता जा रहा है।
यदि आपकी कुंडली मे भी चन्द्रमा पीड़ित हो या उसके लक्षण दिखाई दे तो माता की सेवा कीजिए। जाने अनजाने माता दुःखी है या माता की इक्छा
पूरी नही कर पा रहे है तो उनपर ध्यान दीजिए। मन की शांति हेतु माता की सेवा कीजिए, शिवजी को प्रातःकाल नित्य जल चढ़ाए, चांदनी रात में चन्द्रमा को निहारे लाभ होगा।
हमारे पूर्वज यूं ही नही कहते थे कि माता की सेवा करें क्योंकि माता की सेवा में भी आपका ही लाभ निहितार्थ है।
नैरेटिव कैसे काम करते हैं?
1990 के आसपास एड्स नामक बीमारी का बहुत हल्ला मचा था।
उद्देश्य बीमारी रोकना नहीं था, वर्जित विषय को जन जन के बीच सरलीकरण कर बहस में लाना था। छठी कक्षा के बच्चे, जिनकी समझ क्या होगी, 13-14 cm का गुबारा खोलना, पहनना सीख रहे थे। बसों के भीतर, अस्पताल, 👇
बड़ी बड़ी दीवारों पर सचित्र समझाया गया था कि क्या है, कैसे होता है, इत्यादि।
थोड़ी प्रोग्रेस हुई, लड़कियों को नॉर्मल बनाने के लिए सेनेटरी नैपकिन पर सेमिनार होने लगे।
क्या सच में हैल्थ इश्यू था या धीमी आंच पर कैशोर्य के हार्मोन्स उबालने का खेल।
पौर्ण इंडस्ट्री से आवेशित "बुढ़ाते
जनों" को नयापन देने के लिए तरल लैंगिकता अर्थात LGBT पर ज्ञान और फेमिनिज्म का व्यापार।
मतलब संयम सदाचार की तो बात ही नहीं है। सर्वत्र चमड़ी, नँगापन, भोग और इन्द्रिय लिप्सा। वर्जना तोड़ो, परिवार छोड़ो, सबकुछ दांव पर लगाकर बस ये करते रहो। इसी में डूबे रहो। इधर ही सोचो। पब्लिक छोटे
कर्नाटक भाजपा के 5 साल के शासनकाल में चार चार मुख्य मंत्रियों ने शपथ ली। लेकिन जब चुनावी लड़ाई की बात आई तो पूरी की पूरी जिम्मेवारी नरेंद्र मोदी ने अपने माथे उठा ली। कर्नाटक भाजपा की चुनावी लड़ाई में नरेंद्र मोदी भाजपा परिवार के एक ऐसे अभिभावक की भूमिका👇
में आते हैं, जो हारी हुई लड़ाई को न केवल अपनी पूरी हिस्सेदारी से लड़ता है, बल्कि अपने सभी आश्रितों के हिस्से से भी अंतिम सांस तक लड़ता है, ठीक भीष्म पितामह की तरह। नरेंद्र मोदी वाली भाजपा कभी भी उस तरह की सरकार चलाने में विश्वास नहीं रखती, जैसा कि कर्नाटक में पिछले 5 बरस हुआ। '14
के बाद वाली भाजपा स्थाई, स्थिर और मजबूत सरकार के लिए जानी जाती है। 2018 के असेंबली चुनाव में केवल बहुमत से 9 सीट कम होने व क्षत्रिय फैक्टर आदि के कारण, कर्नाटक भाजपा ने सीएम के चार-चार दावेदारों को ढोया।
2023 की चुनावी तैयारी भाजपा ने उस हिसाब से की थी, जिसके लिए वह जानी जाती है
काशी को
वाराणसी का नाम क्यों ?
जन्मान्तरकृतान् सर्वान् दोषान् वारयति तेन वरणा भवति इति |
सर्वानिन्द्रिय कृतान् पापान् नाशयति इति नासी भवति ||
इति वरणां नाश्यां च मध्ये प्रतिष्ठिता इति वाराणसी||
काशी को
वाराणसी क्यों कहते हैं ?
जीव के जन्म-जन्मान्तरों के सभी दोषों को दूर करती है👇
इसीलिए
वाराणसी = वरणा + असी
दोनों के बीच में स्थित होने के कारण इसे "वाराणसी" कहते हैं।
परन्तु इस घोर कलिकाल में
साधक के पास इतना विवेक वैराग्य योग ध्यान आदि नहीं है।
इसीलिए भगवान् शंकर
जीवों का कल्याण करने के लिए काशी वास करते हुए मरने वाले पुरुषों के "दाहिने कान" तथा स्त्रियों
के "बायें कान" में राम भक्तों को "राम तारक मन्त्र" गणेश भक्तों को "गणेश तारक" शक्ति के उपासकों को "दुर्गा तारक मन्त्र" तथा यतियों को "प्रणव का उपदेश" करके मुक्ति देते हैं।
भगवान् शंकर के
काशी में आने से पहले
काशी देवी साक्षात् तारक मन्त्र का उपदेश देकर जीवों को मुक्त करती थी।
कतर के आगे घुटने टेकने की पहली किस्त आ गई है जो राजनीति का र भी नही जानते जोrss bjpकी विचारधारा का भी नही जानते वे मास्टरस्ट्रोकवादी निरंतर कूटनीति और अपने वोटर्स को अपमानित कर पार्टी का नुकसान कर रहे है जिसका परिणाम कर्नाटक चुनाव में मिल गया
कतर प्रकरण का सबसे अधिक असर कर्नाटक👇
में देखने को मिला था क्योंकि कर्नाटक में भाजपा हिंदुत्व के नाम पर सत्ता में आई थी। लेकिन स त स जुदा गैंग के सामने जिस तरह से शीर्ष नेतृत्व ने घुटने टेंके। कार्यकर्ताओं के जख्मों को भरने की बजाए विश्वास जीतने पर जोर दिया गया उसका रिफ्लेक्शन होना तय थाभाजपा के लिए सबसे अच्छा मुद्दा
हि जाब था लेकिन शीर्ष नेतृत्व के दवाब में सारे देश को ही जाब के बहुत बड़े संकट से बचाने वाले नेता को टिकट ही नही दिया गया
कर्नाटक का रिजल्ट नौसिखिया मास्टरस्ट्रोकवादियों,नव राजनीति विश्लेषकों के मुंह पर झन्नाटेदार तमाचा है जो सोचते है कि केवल एक व्यक्ति के चमत्कार से वोट मिलते है