#ध्यान से पढ़ना और खुद भीआत्मचिंतन करना..!! जाग गए तो ठीक है सोए रहे तो भगवान भी साथ नही देगा,
मैदान चाहे खेल का हो या चुनाव का, हार-जीत तो अवश्यम्भावी होती ही है। कोई भी टीम या राजनीतिक दल हारने की मंशा से मैदान में नहीं उतरते हैं बल्कि हर कोई केवल जीत के लिये ही उतरता है
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और उसके लिए प्रयास और परिश्रम भी करता है।
कर्णाटक में भाजपा की हार को लेकर हर कोई अपने-अपने हिसाब से विश्लेषण कर रहा है,किसी को OPS मुद्दा लग रहा है, किसी को बोम्मई सरकार का कामकाज पसंद नहीं था,किसी को लगता है कि कर्णाटक सरकार और वहाँ के नेता भ्रष्टाचार में लिप्त थे,
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किसी को लगता है कि लिंगायत समाज को साधने में भाजपा नाकाम रही, तो किसी को लगता है कि अकेले मोदीजी के भरोसे कब तक भाजपा के नेता-मंत्री चुनाव लड़ेंगे या अपने निकम्मेपन को छिपाएंगे, किसी को लगता है कि कर्णाटक भी राजस्थान की तरह हर पाँच वर्ष में सत्ता परिवर्तन कर देता है।
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इसमें कोई संदेह नहीं है कि मोदीजी पर पूरी पार्टी,समर्थकों का बोझ है। प्रधानमंत्री के रूप में मोदीजी का अपने व्यस्त रूटीन में से हर चुनाव के लिये समय निकालना,अथक परिश्रम करना भी कम चुनौती भरा नहीं होता होगा। वो भी आयु के इस पढ़ाव में।
लेकिन जिस तरह से भाजपा केवल मोदी पर
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आश्रित हो गई है ये भाजपा के लिये भी ठीक नहीं है। जिस तरह योगीजी ने उत्तरप्रदेश में अपने कामों के कारण ख्याति पाई है, जनता का विश्वास जीता है, जनता का प्रेम और आशीर्वाद कमाया है वैसे ही ना केवल हर भाजपा मुख्यमंत्री को बल्कि केंद्र सरकार में बैठे मंत्रियों को भी करना होगा।
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उन्हें भी एसी में से बाहर निकलकर जनता के बीच में जाना होगा,नही गए तो परिणाम भुगतने को तैयार रहना होगा।
अधिकांश भाजपा समर्थक दिल्ली की जनता को केजरीवाल को दो दो बार चुनने पर गालियाँ देते हैं लेकिन ये भूल जाते हैं कि केजरीवाल को 70 में से 67 और 63 देने वाली दिल्ली की जनता
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लोकसभा में सातों की सातों सीटें भाजपा को जिताती है।
इसका अर्थ है कि अधिकांश राज्यों की जनता केवल विकास, अपनी सुख-सुविधा, राज्य सरकारों को काम के आंकलन के हिसाब से ही बनाती या हटाती है तो वहीं केंद्र में मोदी जैसी मजबूत सरकार ही चाहती है।
भाजपा शीर्ष नेतृत्व निश्चित रूप से
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इस हार का विश्लेषण करेगा ही, लेकिन भाजपा को भी अपनी रणनीति में कुछ बदलाव करना चाहिए। केवल गरीब, किसान ही नहीं अपितु मध्यमवर्ग को भी कुछ विशेष लाभ देना होगा जो कि जमीन पर और सोशल मीडिया पर भाजपा का सबसे बड़ा झण्डाबरदार है।
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प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां तु हिते हितम्। नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां तु प्रियं हितम्।।
अर्थात् प्रजा के सुख में राजा का सुख निहित है, प्रजा के हित में ही उसे अपना हित दिखना चाहिए। जो स्वयं को प्रिय लगे उसमें राजा का हित नहीं है, उसका हित तो प्रजा को जो प्रिय लगे
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उसमें ही है।
यही आदर्श रामराज्य का मूलमंत्र है, जिसे आचार्य कौटिल्य के राज्य सञ्चालन और अर्थव्यवस्था सम्बन्धी नीतियों का आज भी सर्वश्रेष्ठ दर्शन माना जाता है।
लेकिन आधुनिक भारत ने जिसे आत्मार्पित किया है। उसके नियंता स्थानीय नेता (विधायिका),अधिकारी (कार्यपालिका) एवं
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समीक्षक (न्यायालय) ने मात्र निहित स्वार्थ में जो कि चाटुकारों, दलालों एवं भ्रष्टाचारियों से घिरे ही घिरे रहते हैं उन्होंने अपने-अपने कर्तव्य एवं सिद्धांतों से विमुख आत्म प्रशंसा,आत्म समृद्धि एवं भ्रष्टाचार का मार्ग ही चुन लिया है।
जब-जब कथनी और करनी में अंतर होगा परिणाम
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पराजय ही होगा। जब-जब भी निजी स्वार्थ और निजी महत्वाकांक्षाएं राष्ट्रीय हितों से ऊपर हुईं हैं, राज्य एवं राजनीति का अधोपतन ही हुआ है। ऐसे निहित स्वार्थों को लेकर उभरे राजनेताओं और सूत्रधारी विश्वमित्रों ने स्वयं को तो कलंकित किया ही है साथ में राष्ट्र हित, संगठन एवं समाज की
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भी बलि चढ़ाए हैं।
छात्र जीवन से विवेकानंद, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद की बात कर राजनीति में सफल हुए स्थानीय राजनेता भी अब भ्रष्टाचार में लिप्त होकर चाटुकारों के कृपापात्र हो गए हैं। उन्हें भी हर प्रकार से येन-केन-प्रकारेण किसी भी तरह सुख-साधन-धन-मान-प्रतिष्ठा-ऐश्वर्य चाहिए।
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ससुरे बण्डे भी हैं तो भी लूटकर खानदान को राजा बनाने में लगे हैं और अय्याशी में डूबे हैं।
राष्ट्रीय पुनर्निर्माण में लगे और अपने सुखभोग को त्यागकर जो कार्यकर्ता निजी जीवन बर्बाद कर मातृभूमि के स्वर्णिम आबादी के स्वप्न को साकार करने व भारत को पुनः विश्वगुरु पद पर प्रतिष्ठापित
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करने हेतु सर्वस्व अर्पित कर दिए, उनकी आज स्थानीय स्तर पर क्या स्थिति है? विचारणीय है..... कितनों को राजनीतिक जीवन में आगे बढ़ने के सुअवसर मिल पा रहे हैं? विचारणीय है..... किन्तु माल मलाई और मुद्रा पहुंचाने वाले चाटुकार यत्र-तत्र-सर्वत्र विराजमान हो रहे हैं।
नैतिक सिद्धांत
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और विचारधारा की सभी निष्ठाएं ध्वस्त होने की कगार पर हैं। कल तक जो अन्य दलों के कलंक थे,आज माथे के तिलक बन रहे हैं, क्योंकि उन्होंने यथोचित् सेवा शर्तों को पूरा कर दिया है। जो निष्ठावान कार्यकर्ताओं से संभव ही नहीं था। समाज के दारू, बालू, ठेका, पट्टा, माफिया, अपराधी जब टिकट
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पाएंगे तो वे क्या जनसेवा और राष्ट्र निर्माण करेंगे? विचारणीय है.....
नैतिक अधोपतन के इस दौर में कर्णाटक तो एक छोटा उदाहरण है। राजनीति में जय-पराजय भी चलती रहती है। किन्तु पार्टी विद् डिफरेंस और ना खाऊंगा और ना खाने दूंगा स्लोगन बहुत अच्छे हैं। लोग उसे साकार होते देखना भी
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चाहते हैं।अपेक्षाएं भी हैं। लेकिन जब भ्रष्ट कांग्रेस और आप में कोई अंतर नहीं तो लोग क्यों नहीं आपसे दूर छिटकेंगे? और नए लोग क्यों आपसे जुड़ेंगे? ध्यातव्य रहे हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के कंधों पर राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार की बंदूकें चलाने से जनता कदापि खुश नहीं होगी... जनता भी
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यह ध्यान रखे कि भाजपा में नीचे के कुछ लोग घटिया हो सकते हैं... और हैं भी, लेकिन तुम जिनको चुन रहे हो... वो भाजपा के घटिया भी उनसे लाख गुना बढ़िया हैं फिलहाल... इसलिए अपने पक्ष के व्यक्ति को मत कोसो...
आचार्य चाणक्य ने बहुत अच्छे संगठन सिद्धांत गढ़े लेकिन क्यों नहीं ज्यादा दिन
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चल पाए? क्योंकि व्यक्ति के विचार और संस्कार निजी व्यवहार में परिणित नहीं हो पाए।
दूसरी तरफ ...देश विरोधी व अधर्मी ताकते एकजुट होकर ताक में लगी बैठी हैं।
अधिकांश लोगों ने चर्चा के दौरान हिंदुओं को ही कर्णाटक की हार का दोषी बताया है। हिंदुओं को भी मुसुरमानों जैसी राजनीतिक सूझबूझ
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को अपनाना होगा। मुसुरमान हर उस पार्टी को वोट देते हैं जो भाजपा को पराजित कर सकती है। वो बंगाल में TMC को वोट करते हैं, दिल्ली में आम आदमी पार्टी को देते हैं तो राजस्थान, कर्णाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को वोट देते हैं। तो क्या हिन्दुओं का दायित्व नहीं बनता कि वो
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भी अपने क्षणिक निजी स्वार्थों और निजी हितों से ऊपर उठकर देश,धर्म और संस्कृति की रक्षा/सुरक्षा के लिए अपने शुभचिंतक दल को संगठित होकर चुनें, एकमुश्त वोट करें।
सत्यता तो यही है कि आज जो मुफ्त-मुफ्त की लालीपाॅप योजनाएं सेक्युलर टाइप हिन्दुओं को जिस स्पीड से बांटते हुए दिखाई जा
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रही हैं,दरअसल ये सब कुछ, कुछ समय तक के लिए ही हैं,तुम्हें बरगलाने के लिए ताकि तब तक तुम मदहोश रहो।
यद्यपि यह विकट परिस्थिति भारत में एकता,अखण्डता एवं सम्प्रभुता के लिए एवं भारत के प्रत्येक राज्यों में शांति व्यवस्था व विकास के लिए आज सबसे बड़ी चुनौती है।
आज भाजपा की हार से
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निश्चित रूप से सभी विपक्षी पार्टियों, उनके समर्थकों, मोदी-भाजपा विरोधी पत्रकारों, बुद्धिजीवियों में खुशी की लहर होगी और उन्हें लग रहा होगा कि 2024 में भी इसी तरह मोदी-भाजपा को धूल चटा देंगे।
लेकिन एक हार से आगे भी हारेंगे ये तय नहीं होता और एक जीत से ये भी तय नहीं होता कि आगे
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भी जीतते ही रहेंगे,आगे हार नहीं होगी।
उगते हुए सूर्य को हर कोई प्रणाम करता है लेकिन डूबते सूरज की ओर कोई देखता तक नहीं। किसी पराजय के कारण अपने कर्मठ, योग्य, ईमानदार शीर्ष नेतृत्व में अविश्वास जताना, मतदाताओं को कोसना, गालियाँ देना भी ठीक नहीं है।
चूँकि कांग्रेस जीत गई है
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तो EVM भी सही हो गई है अन्यथा आज हर टीवी डिबेट में बैलेट पेपर से चुनाव कराये जाने की माँग उठती, EVM पर सवाल उठाये जाते।
हार को कोई गले नहीं लगाना चाहता है और जीत से हर कोई रिश्तेदारी निकाल लाता है।
शीर्ष नेतृत्व मंथन करे कि कहाँ चूक हुई और आगे हर राज्य की परिस्थिति के हिसाब
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से उचित निर्णय लें, सही उम्मीदवारों का चयन करें, नए और अनुभवी नेताओं का सामञ्जस्य बनाए, टीम वर्क की महत्ता को समझे और हर कोई अपना सर्वोत्तम योगदान दे, केवल मोदी-शाह के भरोसे ना बैठे, तभी आगे जीत संभव है। खेल और राजनीति में बाजी कभी भी पलट सकती है...इसे अवश्य ध्यान रखे।
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अंत में इतना ही कहूंगा कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में फिलहाल मोदीजी से उत्तम विकल्प कोई भी नहीं दिख रहा है। देश की दशा और दिशा बदलने में उनका अविस्मरणीय योगदान है। भारत को वैश्विक परिदृश्य में और आर्थिक परिदृश्य में उच्च शिखर तक पहुंचाने में उनका योगदान सर्वोत्कृष्ट सफल
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प्रधानमंत्रियों में दर्ज हो चुका है।देश की विभिन्न कानूनी विसंगतियों को मोदीजी के शासन में दूर किया गया है और आगे भी जारी रहेगा।आज हम राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व के नाते जो कुछ भी एकजुट हो पाए हैं इसका श्रेय भी केवल और केवल मोदीजी और उनकी दूरगामी देशहित वाली नीतियों को ही जाता है
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इसलिए वोट तो मोदीजी को ही देना है।
आज पाकिस्तान पहचान रहा है कि मोदीजी क्या चीज हैं... अमेरिका, रूस जापान पहचान रहा है मोदीजी क्या हैं... आज दाने-दाने को मोहताज और गृहयुद्ध में उलझा हुआ पापीस्तान पहचान रहा है मोदीजी क्या हैं... गांदी खानदान पहचान रहा है... सारी कांग्रेस पहचान
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रही है... ममता बानो पहचान रही है... कचरेवाल पहचान रहा है... सारे हरे सुअर और लाल टोपी भी पहचान रहे हैं कि मोदीजी क्या हैं... बस एक हिन्दू ही हैं जो नहीं पहचान पा रहे हैं कि यह मोदी क्या है? और क्या कर रहा है? और आगे क्या करने का इरादा है?
आज राष्ट्रभक्त लोग जो अपने सर्वोच्च
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संरक्षण में है, इससे बेहतर स्थिति इससे पहले तो नहीं ही थी। एक समय था जब मनमर्जी "भारत माता की जय" और "जय श्री राम" भी नहीं बोल सकते थे। "मैं हिन्दू हूँ" ऐसा कहने में भी संकोच होता था।
जबकि आज विरोधी भी कोट पर जनेऊ पहन रहे हैं। भगवान श्रीराम के अस्तित्व को ही नकारने वाले
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कालनेमियों ने आज रामनामी ओढ़ रखी है। मीडिया की मोनोपोली भी घट गई है। वामपंथी मंच से भगाए जा रहे हैं। सेक्युलरों को हार्ट अटैक आ रहे हैं। ब्राह्मणों को गाली देने वाले भगवान परशुराम की मूर्ति लगाने की बात कर रहे हैं। हममें से बहुत लोग इसे सफलता का चरम समझते हैं। लेकिन ऐसे
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अभियानों की प्रकृति भी समझिए?...
किसी भी राजनीतिक दल में सभी कार्यकर्ताओं को पूर्णतः संतुष्ट करना और उनके मनोनुकूल निर्णय करना भी संभव नहीं होता है, इसलिए बृहद् परिवार में उतार-चढ़ाव, लगाई-झगड़े इत्यादि चलते रहते हैं किन्तु इसका मतलब यह नहीं है कि परिवार को ही नष्ट/विनष्ट
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करने पर आमादा हो जाओ।
और हाँ यह बात भी सुन लो की मोदीजी सनातन नहीं हैं... और ना ही सनातन मोदीजी के भरोसे है... धर्म मोदीजी से पहले भी था... बाद में भी रहेगा... इसलिए ऐसे नारे लगाने वाले आत्मघाती लोगों से बचो... इसी में देश, धर्म और आप का भविष्य सुरक्षित है।
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शेष निर्णय आपका... विचार आपका... वोट आपका।
जय श्री राम।
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#सत्यता
बीजेपी के पास 29 में से मात्र 6 राज्यों में स्पष्ट बहुमत है. वहीं बीजेपी के पास...
0सीट सिक्किम में
0सीट मिजोरम में
0सीट तमिलनाडु में
4/175 आंध्र में
1/140 केरल में
3/117 पंजाब में
74/294 बंगाल में
5/119 तेलंगाना में
8/70 दिल्ली में
10/147 ओडिशा में
12/60 नागालैंड में
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2/6 मेघालय में
53/243 बिहार में
25/87 जम्मू-कश्मीर में
20/40 गोवा में
इस प्रकार पूरे देश में भाजपा के पास केवल 1516 सीटें हैं जबकि कुल विधानसभा सीटें 4139 हैं!!
उसमें भी 950 सीटें 6 राज्यों जैसे गुजरात,महाराष्ट्र,कर्नाटक,यूपी, एमपी, राजस्थान की ही हैं।
अर्थ बहुत स्पष्ट है...आज
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भी देश में 66 फीसदी सीटों पर बीजेपी हारी हुई है.
इसलिए (बीजेपी) केंद्र सरकार एक समान नागरिक संहिता और अन्य आवश्यक आवश्यक सामान्य कानूनों को लागू करने की स्थिति में नहीं है। अतः भूल जाओ ये कहना कि भाजपा भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करे। अब तो ये चिंता करो कि 2024 में भाजपा और
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केरल में हिन्दू दलित युवक की मुस्लिमो द्वारा मॉब लॉन्चिंग
सेकुलर सुअरो, कांग्रेसी कुत्तो, मीडिया में एकदम सन्नाटा
बिहार के पूर्वी चंपारण जिले के माधवपुर का रहने वाला दलित जनजातीय समुदाय से ताल्लुक रखने वाले 36 वर्षीय युवक राजेश मांझी जो केरल में मजदूरी करता था कि 9 लोगो ने
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चोरी का आरोप लगाकर लाठी प्लास्टिक पाईप से पिट पिट कर मार डाला है
और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार DCM तेजस्वी यादव और मेन स्ट्रीम मीडिया सेक्युलर लिबरल बुद्धिजीवी दलित चिंतक गैंग में सन्नाटा पसरा हुआ है उसका कारण क्या है पढ़िए
मजदूर राजेश मांझी की लिंचिंग मामले में पुलिस
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ने 9 लोगों को गिरफ्तार किया है। स्थानीय रिपोर्ट्स के अनुसार, इन आरोपितों की पहचान अफजल, फाजिल, शराफुद्दीन, महबूब, अब्दुसमद, नासिर, हबीब, अयूब और जैनुल के तौर पर हुई है।
सन्नाटे का कारण समझ गए होंगे ,यही सेक्युलरिजम है प्यारे
ये कौम कितनी भी पढ़ लिख जाए अंत में हल्ला हु हथबर बोलकर फट जाती है🤣
सन 2014 की बात है, पाकिस्तान में एक लड़के का नाम बड़ी तेजी से उभरा हसन अब्बास नाम के इस लड़के में गजब का टैलेंट था।
इसने लेजर किरणों पर कई तरह के शोध किये थे। वो लेजर किरणों के प्रभाव से साधारण धातुओं
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को कीमती धातुओं में परिवर्तित करने पर कार्य कर रहा था।
इसके लिए उसने धातुओं के विखण्डन प्रक्रिया को भी बखूबी समझा था। यदि वो अपने शोध में कामयाब रहता तो पाकिस्तान को उससे बड़ा फायदा हो सकता था। पर किन्हीं कारणों से उसकी सफलता उससे कुछ ही दूर थी।
पाकिस्तान में रहकर उसे किसी
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विशेषज्ञ का उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा था इसके लिए उसे किसी ऐसे गुरु की तलाश थी जो उसका उचित मार्ग दर्शन कर सके।
उसके शोध के लिए अमेरिका सर्वोत्तम जगह थी पर उसे अमेरिका पर विश्वास न था। तब उसने कनाडा की राह पकड़ी। उसे कनाडा भेजने का सारा खर्च पाकिस्तान सरकार ने स्वयं
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आइसक्रीम,,,
एक दो बातें कहने का मन है,, पहली घटना है मध्यप्रदेश में #भोपाल की,,हिन्दू कन्या हरी सुअरी होने जा रही थी,, जिस वकील के पास गए उसने पहचान लिया कि लड़की फलाने की है,,बहाना बना दिया कि आधार से उम्र पक्की नहीं हो रही है अगर कन्या की #मार्कशीट मिल जाती तो,,
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हरे सुअर ने कहा कि जहां यह पढ़ती है कमरा लेकर रहती है वहां मार्कशीट रक्खी है हम अभी जाकर ले आते हैं,, वकील ने कहा आप सबलोग साथ जाकर क्या करोगे,, यह अकेली जाकर ले आएगी तब तक आपके लिए #शर्बत मंगवा देता हूँ,,पांच छह हरे सुअर शर्बत पी रहे थे और वकील ने जल्दी से बाहर निकलकर
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फोन किया कि तुम्हारे चाचा की लड़की हरी सुअरी होने जा रही है जितना जल्दी से आओ ये कई जन हैं मैं अकेला हूँ,,
तबतक आठ दस गाड़ियां आ गई,,वकील ने थोड़ी देर की यह वह करने में और कन्या बचा ली गई,,इसका दूसरा पक्ष देखते हैं,, जिनकी कन्या बचा रहे थे और जिनकी इज्जत बचा रहे थे वे न
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हिंदुस्तान में सबसे बड़ा उद्योगपति कौन है??? देखिए इस लेख को, अधिकतर लोगों को यह पता ही नहीं है।
कॉरपोरेट मिशनरी इस संस्था पर किसी का भी ध्यान नहीं हैं?
🙄😡
यह मुद्दा बहुत ही ज्वलंत और चिंताजनक मुद्दा है!
क्या आप जानते हैं भारत में सबसे बड़ा कॉर्पोरेट कौन है?
🙄🤔
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टाटा ? नहीं
अम्बानी ? नहीं
अदानी ? नहीं
चौंकिए मत आगे और पढ़िए
300000 (तीन लाख) करोड़ की सम्पति वाला कोई और नहीं यह है!
"The Syro Malabar Church", केरल!
इसका 10000 से ज्यादा संस्थानों पर कण्ट्रोल है!
और इसकी अन्य बहुत सी सहायक ऑर्गेनाइजेशन्स भी है!
मेरी समझ में यह एक ऐसा
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छद्म बिज़नेस ऑर्गेनाइजेशन है!
जो सम्पत्ति के मामले में भारत के
टाटा
अम्बानी
अदानी
आदि का मुकाबला करने में सक्षम है।
ये सारे औद्योगिक घराने इसके आसपास भी नहीं है!
यकीन नहीं हो रहा हैं ना???
तो ठीक हैं अब इन आंकड़ो को देखिए!
इनके अधीन हैं :-
01)👉 90000 प्रीस्ट
02)👉 370000 नन
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मित्र लोग तनाव में हैं। फोन करके पूछ रहे हैं कि भाजपा कर्नाटक में क्यों हारी? हिंदुओं ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया !! क्या कोर वोटर ने मोदी जी का साथ छोड़ दिया?
अत: राष्ट्रवादी मित्रों के लिए कुछ आंकड़े :
वोट शेयर :
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Party : 2018 Vs 2023
++++++++++++++++++++
BJP : 36.35% Vs 35.7%
CON : 38.14% Vs 43.2%
J D S : 18.3% Vs 13.3%
◾अर्थात, भाजपा का मत% लगभग पिछले चुनाव के बराबर ही है। कोर वोट बैंक पूरी तरह से INTACT है।
◾ JDS के 5% कोर वोटर (संभावित रूप से ततुए और चिराई)
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कोकरेच को भोट दे दिए. और यहीं गेम चेंजर था..
राज्य की अनाधिकारिक (अनुमानित) डेमोग्राफी :
हिंदू : 70%
मुचलिम : 15%
क्रिस्टी : 3%
क्रिप्टो : 12%
कांग्रेस की रणनीति में दो सबसे मुख्य हथियार रहे, जिन्होंने उनकी विजय में अहम योगदान दिया, वो थे :
👉 मुफ्तखोरी का वादा करके
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