आज १९ मई को शनि जयन्ती है। शास्त्रानुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि देव का जन्म माना गया है। मकर, कुम्भ व मीन राशि इस समय शनि की साढ़ेसाती,एवं कर्क और वृश्चिक राशि पर ढैया चल रही है, साथ ही जो लोग शनि की महादशा/अंतर्दशा आदि के साथ-साथ गोचर में भी शनि ग्रह के कुप्रभाव से
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पीड़ित हैं,वो आज के दिन ये उपाय कर सकते हैं।
◆ शिवलिङ्ग का १०८ नीले पुष्पों से अर्चन कर सकते हैं।
◆ १०८ बिल्वपत्रों से शिवलिङ्ग का अर्चन कर सकते हैं।
◆ "नमः शिवाय" का जप करते हुए लोहे (स्टील) के बर्तन से काले तिल मिश्रित जल से शिवलिङ्ग का अभिषेक कर सकते हैं।
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◆ शिवलिङ्ग के सन्निकट रात्रि में तिल के तेल से उड़द की दाल व मौली की बाती से बने कम से कम २७ दीपक पिप्पलादकृत शनि स्तोत्र अथवा दशरथकृत शनि स्तोत्र बोलते हुए दीप प्रज्वलित कर रख सकते हैं।
◆ दशरथ कृत शनि स्तोत्र के पाठ १०८ अथवा यथा सम्भव संख्या में कर सकते है। यदि १०८ संख्या
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में करेंगे तो अति उत्तम है।
◆ "शं शनैश्चराय नमः" मंत्र का जप कर सकते हैं।
◆ शनि के इस मंत्र का जप भी कर सकते हैं - "नीलांजनम् समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्ड संभूतम् तम नमामि शनैश्चरम्॥"
◆ "गाधि, कौशिक, पिप्पलाद ऋषियों का यथाशक्ति जप भी कर सकते हैं।
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◆ किसी शनि मंदिर में जाकर शनि देव के पृष्ठ भाग में बैठकर या पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर इन श्लोकों से शनिदेव का स्मरण करते हुए प्रार्थना कर सकते हैं
कोणस्थ: पिङ्गलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रान्तको यम:। सौरि: शनिश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:। नमस्ते कोणसंस्थाय पिङ्गलाय नमोस्तुते।
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नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चांतकाय च। नमस्ते मंदसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो। नमस्ते यमसंज्ञाय शनैश्चर नमोस्तुते। प्रसादं कुरु देवेश: दीनस्य प्रणतस्य च।।
◆ रात को पीपल के पेड़ के नीचे तिल के तैल का दीपक प्रज्वलित कर सकते हैं।
◆ पवित्रता के साथ सायंकाल किसी हनुमान मंदिर में जाकर
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"सुन्दरकाण्ड" का पाठ कर सकते हैं।
◆ कहीं काक (कौआ) और काला श्वान (कुत्ते) दिखें तो उनको उड़द की दाल से बने भजिये खिला सकते हैं।
◆ रात्रि में उड़द की दाल के बड़े सरसों के तेल में पकाकर पीपल वृक्ष के नीचे छोड़ कर आ जाएं।
◆ शनि चालीसा आदि जो भी पाठ करना चाहें वो कर सकते हैं।
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◆ दीन-दुःखी,असहाय,अपाहिजों व कुष्ठ रोगियों को खिचड़ी प्रसाद बांटे।
नोट - शनि न्यायप्रिय देवता हैं। आपके कर्मानुसार ही आपको शुभ-अशुभ फल देंगे। इसलिए सद्कर्म और सद् आचरण का विशेष ध्यान रखें। किसी भी गरीब-असहाय को ना सताएं।अपने नौकर-कर्मचारियों का विशेष ध्यान रखें।
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#आज वट सावित्री व्रत भी है।सभी सुहागिन माताएं-बहिने अपनी कुलपरम्परा के अनुसार व्रत को करें।सबको सुख-सौभाग्य और पति को दीर्घायुष्य देने वाले इस पवित्र व्रत की अनेकों शुभकामनाएं मङ्गलकामनाएं।महादेव और जगत जननी अम्बिका सभी को अटल सौभाग्य और सुख समृद्धि प्रदान करें।सब का मङ्गल हो।
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#वट_सावित्री_व्रत,,
यह व्रत सौभाग्य की कामना एवं संतान की प्राप्ति हेतु फलदायी माना जाता है. वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ. भारतीय संस्कृति में यह व्रत #आदर्श_नारीत्व का प्रतीक माना गया है...
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सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को दर्शाता यह व्रत 'वट' और 'सावित्री' दोनों का विशिष्ट महत्व व्यक्त करता है. पीपल कि भांति वट वृक्ष को भी हिंदु धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है. धर्म ग्रंथों में वट वृक्ष के भीतर ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास माना गया है तथा इसके
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नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से समस्त इच्छाएं पूर्ण होती हैं,
इस दिन सत्यवान सावित्री की यमराज सहित पूजा की जाती है. यह व्रत करने से स्त्री का सुहाग अचल रहता है. सावित्री ने इसी व्रत को कर अपने मृतक पति सत्यवान को धर्मराज से जीत लिया था.. #वट_सावित्री_व्रत_कथा..
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सावित्री भारतीय संस्कृति में महान ऐतिहासिक चरित्र हुई हैं. सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थितियों में हुआ था. कहते हैं कि भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी. उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए अनेक वर्षों तक तप किया जिससे प्रसन्न हो देवी सावित्री ने प्रकट होकर उन्हें
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पुत्री का वरदान दिया जिसके फलस्वरूप राजा को पुत्री प्राप्त हुई और उस कन्या का नाम सावित्री ही रखा गया
सावित्री सभी गुणों से संपन्न कन्या थी जिसके लिए योग्य वर न मिलने के कारण सावित्री के पिता दुःखी रहने लगे एक बार उन्होंने पुत्री को स्वयं वर तलाशने भेजा इस खोज में सावित्री एक
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वन में जा पहुंची जहां उसकी भेंट साल्व देश के राजा द्युमत्सेन से होती है. द्युमत्सेन उसी तपोवन में रहते थे क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था.सावित्री ने उनके पुत्र सत्यवान को देखकर उन्हें पति के रूप में वरण किया.
इधर यह बात जब ऋषिराज नारद को ज्ञात हुई तो वे अश्वपति से जाकर
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कहने लगे- आपकी कन्या ने वर खोजने में भारी भूल कि है. सत्यवान गुणवान तथा धर्मात्मा है परन्तु वह अल्पायु है और एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी. नारद जी के वचन सुन राजा अश्वपति का चेहरा विवर्ण हो गया. "वृथा न होहिं देव ऋषि बानी" ऎसा विचार करके उन्होने अपनी पुत्री को समझाया
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की ऎसे अल्पायु व्यक्ति के साथ विवाह करना उचित नहीं है. इसलिये अन्य कोई वर चुन लो.
इस पर सावित्री अपने पिता से कहती है कि पिताजी-आर्य कन्याएं अपने पति का एक बार ही वरण करती है,तथा कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है.अब चाहे जो हो,मैं सत्यवान को ही वर रुप में स्वीकार कर चुकी हूँ.
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इस बात को सुन दोनों का विधि विधान के साथ पाणिग्रहण संस्कार किया गया और सावित्री अपने ससुराल पहुंचते ही सास-ससुर की सेवा में रत हो गई. समय बदला, नारद का वचन सावित्री को दिन -प्रतिदिन अधीर करने लगा. उसने जब जाना कि पति की मृत्यु का दिन नजदीक आ गया है तब तीन दिन पूर्व से ही उपवास
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शुरु कर दिया.नारद द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया. नित्य की भांति उस दिन भी सत्यवान अपने समय पर लकडी काटने के लिये चला गया तो सावित्री भी सास-ससुर की आज्ञा से अपने पति के साथ जंगल में चलने के लिए तैयार हो गई़.
सत्यवान वन में पहुंचकर लकडी काटने के लिये वृ्क्ष पर
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चढ गया. वृ्क्ष पर चढते ही सत्यवान के सिर में असहनीय पीडा होने लगी. वह व्याकुल हो गया और वृक्ष से नीचे उतर गया. सावित्री अपना भविष्य समझ गई तथा अपनी गोद का सिरहाना बनाकर अपने पति को लिटा लिया. उसी समय दक्षिण दिशा से अत्यन्त प्रभावशाली महिषारुढ यमराज को आते देखा. धर्मराज सत्यवान
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के जीवन को जब लेकर चल दिए तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल पडी. पहले तो यमराज ने उसे देवी-विधान समझाया परन्तु उसकी निष्ठा और पतिपरायणता देख कर उसे वर मांगने के लिये कहा.
सावित्री बोली - मेरे सास-ससुर वनवासी तथा अंधे है उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें. यमराज ने कहा ऎसा ही
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होगा और अब तुम लौट जाओ. यमराज की बात सुनकर उसने कहा - भगवान मुझे अपने पतिदेव के पीछे पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है. पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है. यह सुनकर उन्होने फिर से उसे एक और वर मांगने के लिये कहा. सावित्री बोली-हमारे ससुर का राज्य छिन गया है, उसे वे पुन: प्राप्त
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कर सकें, साथ ही धर्मपरायण बने रहें. यमराज ने यह वर देकर कहा की अच्छा अब तुम लौट जाओ परंतु वह न मानी.
यमराज ने कहा कि पति के प्राणों के अलावा जो भी मांगना है मांग लो और लौट जाओ इस बार सावित्री ने अपने को सत्यवान के सौ पुत्रों की माँ बनने का वरदान मांगा यमराज ने तथास्तु कहा और
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आगे चल दिये सावित्री फ़िर भी उनके पीछे पीछे चलती रही उसके इस कृत से यमराज नाराज हो जाते हैं. यमराज को क्रोधित होते देख सावित्री उन्हें नमन करते हुए उन्हें कहती है कि आपने मुझे सौ पुत्रों की माँ बनने का आशीर्वाद तो दे दिया लेकिन बिना पति के मैं मां किस प्रकार से बन सकती हूँ
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इसलिये आप अपने तीसरे वरदान को पूरा करने के लिये अपना कहा पूरा करें.
सावित्री की पतिव्रत धर्म की बात जानकर यमराज ने सत्यवान के प्राण को अपने पाश से मुक्त कर दिया सावित्री सत्यवान के प्राणों लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची और सत्यवान जीवित होकर उठ बैठे दोनों हर्षित होकर अपनी
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राजधानी की ओर चल पडे. वहां पहुंच कर उन्होने देखा की उनके माता-पिता को दिव्य ज्योति प्राप्त हो गई है. इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहें. वट सावित्री व्रत करने और इस कथा को सुनने से उपवासक के वैवाहिक जीवन या जीवन साथी की आयु पर किसी प्रकार का कोई संकट
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आया भी हो तो टल जाता है!!
सब का कल्याण हो। शुभमस्तुः। मङ्गलमस्तुः। आरोग्यसम्पदस्तुः। अरिष्टनिरसनमस्तुः।
ॐ साम्बसदाशिवाय नमः।જય શ્રી हरि🙏🙏
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एक व्यक्ति अपनी चमचमाती BMW कार से कहीं जा रहा था…
उसकी बगल वाली सीट पर उसकी भारी भरकम पत्नी भी बैठीं थी …
अचानक जाते जाते रास्ते में उसने देखा कि एक बहुत ही खूबसूरत महिला एक साइकिल सवार के पीछे वाली सीट पर बैठी है …
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उसे लगा शायद वह उस साइकिल सवार की पत्नी होगी ..
BMW वाले व्यक्ति को बहुत ईर्ष्या हुई और उसने शिकायत भरे लहजे में ख़ुद से कहा.....साला ,मैंने क्या तक़दीर पाई है....काश मुझें भी ऐसी ही पत्नी मिली होती...
संयोग से उसकी हृदय की पीड़ा को वहाँ से गुजरते हुए एक दयालु जिन्न ने सुन
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ली औऱ उसे उस आदमी पर तरस आ गई ।
जिन्न ने तुरंत उस आदमी की इच्छा पूरी कर दी औऱ वह आदमी पल भर में साइकिल पर आ गया...!
उसके बाद आदमी फूटफूटकर रोने लगा तो उसे दुखी देख हैरान जिन्न उसके सामने प्रकट हुआ औऱ बोला....अब क्या चाहिए रे तेरे को ??
@Cyber_Huntss हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं और आप भी पढ़े ही होगे कक्षा एक से शुरू होती हुई हिंदी किताबो में भी जो कहानियां वो शुरू ही होती हैं "किसी गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था" मतलब कहानी की पहली लाइन ही ब्राह्मण की गरीबी से शुरू होती हैं और तो और आगे लिख देते हैं की
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"वो गरीब ब्राह्मण भिक्षाटन करके अपना जीवन यापन करता था" अब यहां तक तो ठीक है उसी क्रम में आगे सुनने को मिलेगा की "ये ब्राह्मण बहुत ज्ञानी और बड़े दयालु प्रवृत्ति के थे" ... अब ये गरीब ब्राह्मण जो दयालु प्रवृत्ति का था और भिक्षाटन करके जीवन यापन करता था बावजूद इसके इतना सक्षम
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था की सैकड़ों जातियों का शोषण कर डाला, वाह रजा पंडी जी..! बड़ी भौकाल था आपका खैर....
ये हो गईं सामान्य बातें जो की अक्षरशः सत्य भी हैं गुरु वशिष्ठ गुरु विश्वामित्र से लेकर चाणक्य तक के पास कोई अपनी धन संपदा नही थी ना ही कोई साम्राज्य था, परंतु उन्होंने अपने जीवन काल में जो भी
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क्या है सांडे के तेल की हकीकत...
आठवीं पास करके जब इंटर कॉलेज में एडमीशन हुआ।तो एकदम नई दुनिया खुल गई।साइकिल से लगभग चार किलोमीटर दूर स्थित इंटर कॉलेज जाने लगा। रास्ते में तमाम दुनिया के नजारे इंतजार करते बैठे रहते। ऐसी एक स्मृति सड़क के किनारे लगे मजमे की भी है। इसमें एक आदमी
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कई सारी बड़ी छिपकलियों को एक दरी पर बिछाकर और उनमें से कुछ को बर्तन में भूनते हुए दिखता। इसे ही वो सांडे का तेल कहता।
इस सांडे के तेल की तमाम महिमा का बखान करके वह बेचता। उसकी जुबान बंद नहीं होती। वो लगातार बोलता रहता और तेल से भरी हुई शीशी को बेचता भी रहता। बाद में कभी जब उस
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सांडे की असली कहानी के बारे में पता चला तो मन जाने कितनी वितृष्णाओं से भर गया। आप भी जानिए सांडे के बारे में।
आइए आज बात करते हैं एक एसे सुन्दर, शान्त, विषहीन, निरीह, किसान हितैषी और क्षतिशून्य प्राणी की जो बलि चढ़ गया मनुष्यों की कामोत्तेजना बढ़ाने की अंतहीन लालसा की।
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#नाथूराम_गोडसे_अमर_रहें 🙏
आज गोड़से जी का जन्मदिन है... गोड़से का जो व्यक्तित्त्व था , दुनिया उसके बारे में बहुत ही कम जान सकी है ..
इधर कुछ सालों से गोड़से में मेरी रुचि बढ़ी है और मैं जितना जान सका हूँ , उसके आधार पर लिखता हूँ कि भारत का गोड़से से परिचय अभी
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हुआ ही नहीं है। मुझे यह कहने में कोई भय या लज्जा नहीं है कि गोड़से एक प्रखर राष्ट्रवादी व्यक्तित्व थे..
आपकी माँ के कोई 2 टुकड़े कर दे और तत्कालीन कानून में इस अपराध के लिए कोई सजा ही न हो तो बहुत संभव है कि आप भी गोड़से ही बन जाएंगे ..
..वे महाराष्ट्र से आते थे . ..
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देश के विभाजन का महाराष्ट्र पर बहुत कम असर पड़ा था .. फिर भी गोड़से ने प्राण बलिदान कर दिए ..जी मैं बलिदान ही कहूंगा .. क्योंकि वे जानते थे कि वे क्या कर रहे हैं, इसका अंजाम क्या होगा ?
और वो कोई सिरफिरा व्यक्ति नहीं थे बल्कि एक अखबार "हिन्दू राष्ट्र" के संपादक थे ..
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डिप्रेशन ग्रस्त एक सज्जन जब पचास साल की उम्र से ज्यादा के हुए तो उनकी पत्नी ने एक काउंसलर का अपॉइंटमेंट लिया जो ज्योतिषी भी थे।
पत्नी बोली:- "ये भयंकर डिप्रेशन में हैं, कुंडली भी देखिए इनकी।"
और बताया कि इन सब के कारण मैं भी ठीक नही हूँ।
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ज्योतिषी ने कुंडली देखी सब सही पाया। अब उन्होंने काउंसलिंग शुरू की, कुछ पर्सनल बातें भी पूछी और सज्जन की पत्नी को बाहर बैठने को कहा।
सज्जन बोलते गए...
बहुत परेशान हूं...
चिंताओं से दब गया हूं...
नौकरी का प्रेशर...
बच्चों के एजूकेशन और जॉब की टेंशन...
घर का लोन, कार का लोन...
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कुछ मन नही करता...
दुनिया मुझे तोप समझती है...
पर मेरे पास कारतूस जितना भी सामान नही.
मैं डिप्रेशन में हूं...
कहते हुए पूरे जीवन की किताब खोल दी।
तब विद्वान काउंसलर ने कुछ सोचा और पूछा, "दसवीं में किस स्कूल में पढ़ते थे?"
सज्जन ने उन्हें स्कूल का नाम बता दिया।
काउंसलर ने कहा:-
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कच्चे और पके आम 🥭 का ख़ास गणित
कच्चे हरे आम के छिलके फेंकना नहीं है। कच्चे आमों को साफ धो लीजिये,सूखे कपड़े से पोछ लीजिये, छिलके उतारकर इसके पल्प का आमचूर, अचार, मुरब्बा बगैरह बना सकते हैं, रही बात इसके छिलकों की, तो इसके छिलकों को फेंकने की गलती ना कीजिएगा। छिलकों को
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धूप में 3-4 दिन उलट पुलटकर सुखा दीजिये और इन्हें ग्राइंड करके पाउडर बना लें। इस पाउडर की आधी चम्मच मात्रा हर दिन एक गिलास पानी के साथ पीना सेहत के हिसाब से बेहतरीन है। कच्चे आम के छिलको में एंटीऑक्सीडेंट कंपाउंड मैंजीफेरीन पाया जाता है, छिलकों का 70-80% हिस्सा फाइबर्स
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होता है और तो और इनमें पॉलीफिनॉल्स, कैरेटेनॉइड्स, विटामिन C, विटामिन E और कई अन्य महत्वपूर्ण प्लांट कंपाउंड्स पाए जाते हैं। हार्ट की समस्याओं के लिए इन नेचरल कंपाउंड्स की जरूरतों को लेकर ढेर भर रिसर्च पेपर्स पढ़े जा सकते हैं। आपके बालों, स्किन और आंखों के लिए भी ये
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