कांग्रेस की छटपटाहट का कारण
प्रधानमंत्री श्री @narendramodi
ने इलाहाबाद संग्रहालय में रखा हुआ “सेंगोल” निकाल कर लोकसभा में स्थापित करने का निर्णय किया है - यह “सेंगोल” सनातन संस्कृति का चिन्ह है
जो 800 वर्ष तक राज करने वाले “चोला राजवंश” की निशानी है और जो राज चलाने के लिए
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मार्गदर्शन करता था राजवंश के राजाओं का-नेहरू ने इसे स्वीकार तो कर लिया परंतु क्योंकि यह सनातन की निशानी था,
इसे लोकसभा में स्थापित न करके संग्रहालय में रखवा दिया और किसी को इसके बारे में जानकारी ही नहीं हुई।
जो अभी संसद भवन है, पूछा जाए कि किसने बनवाया, तो जवाब में नाम किसी
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अंग्रेज #एडविन_लुटियंस का आएगा। और उद्घाटन किसने किया, तो तत्कालीन #वायसराय#लॉर्ड_इरविन ने, 1927 में। इतनी सी बात बकायदा एक वॉलप्लेट लगाकर संसद भवन के किसी आरंभिक स्पॉट पर ही लिखा होगा। और 70 वर्षों से कांग्रेसी राजनीति के तहत चुने हुए सांसद जब उस रास्ते से गुजरते होंगे,तो
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बोर्ड जरूर उनकी नजर पर पड़ता होगा। कोई समस्या नहीं।
लेकिन इसी स्थान पर अब भारत के एक प्रधानमंत्री, जो कि संसदीय लोकतंत्र का प्रमुख होता है, का नाम लिखा जाएगा। एक ऐसा प्रधानमंत्री जो विश्व का सबसे लोकप्रिय नेता भी है और सनातनी विचारधारा का एक राजनीतिक सम्राट भी, आखिर यह नाम
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उद्घाटन के वॉलप्लेट पर कैसे सहन किया जा सकेगा? एक-दो दिन की बात नहीं है।संसद भवन की आयु 100 वर्ष से कम की होती नहीं है।वर्तमान संसद भवन का भी 100 वर्ष पूरा होने वाला है। और जो नया संसद भवन बन रहा उसकी आयु भी तो 100 वर्ष से अधिक ही होगी।
भारत के लोकतंत्र के प्रथम मंदिर पर अब एक
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ऐसे व्यक्ति का नाम अमिट रूप से चढ़ने वाला है, जिसे लोगों ने चाय बेचने वाला भी कहा है, और हिंदुत्व के नाम पर सांप्रदायिकता फैलाने वाला भी। पिछले दरवाजे से धर्मनिरपेक्ष बने भारत के संसद पर सौ सौ बरस तक एक ऐसे व्यक्ति का नाम सहन कर पाना, कांटो पर चलने समान होगा। पूरी कोशिश है कि
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यह नाम किसी भी प्रकार संसद भवन के किसी वॉलप्लेट पर अंकित ना हो पाए।
दूसरी सबसे बड़ी बात कि भारत में आज तक प्रमुख रूप से शासन करने वाले तमाम कांग्रेसी नेताओं ने जीवन भर श्रेय की राजनीति की। नाम ऊंचा दिखने की राजनीति, बजाए काम करने के। नेम प्लेट की राजनीति। संसद भवन से लेकर
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विद्यालय तक, सड़क से लेकर एयरपोर्ट तक। हर चीजें जो कि इस देश के पैसे से की गई, लेकिन नाम एक खास दल के नेता का। ऐसा लगता है देश के लिए किए गए तमाम कार्यों के एवज में, संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर को दिया गया नाम, किए की कीमत वसूल रहा है। नाम अगर उस खास दल के नेता का न हो पाया तो नाम
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अंग्रेजों का, अगर अंग्रेजों का भी नाम ना हो पाया तो नाम मुगलों का, सब स्वीकार्य है। लेकिन नाम किसी ऐसे व्यक्ति का नहीं होना चाहिए जो मजबूत राष्ट्र, संस्कृति और हिंदुत्व की बात करता हो। और तिसपर भी यह नाम संसद भवन में?
#नरेंद्र_मोदी ने इस देश में तमाम काम किए हैं, जो पिछले 70
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वर्षों में किए गए और नहीं भी किए गए। लेकिन किसी भी स्थान पर किसी भी इंफ्रास्ट्रक्चर का नाम मोदी ने अपने नाम नहीं किया। सब देश के नाम समर्पित किया। लेकिन संसद भवन का प्रधानमंत्री मोदी के हाथों उद्घाटन, इस देश के लोकतंत्र में भविष्य में चुनकर आने वाले तमाम नेताओं को प्रधानमंत्री
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मोदी की याद दिलाता रहेगा। अगर आने वाले प्रतिनिधि राष्ट्र और संस्कृति विरोधी होंगे तो, उन्हें यह नाम चुभेगा, यदि समर्थक होंगे तो उन्हें यह नाम गर्व की अनुभूति कराएगा।
प्रतिनिधित्व करता हुआ एक प्रतीक के तौर पर स्थापित किया जाएगा। यह तो और भी दुखद है, कि इस सैंगोल राजदंड पर भगवान भोलेनाथ के अनन्य सेवक नंदी की मूरत है। जो न्यायपूर्ण शासन प्रणाली को प्रतिबिंबित करता है।
और ये जितने दलों ने मिलकर संसद भवन उद्घाटन का बहिष्कार किया है, दरअसल
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उद्घाटन के दिन सुबह से ही वैदिक मंत्रों का उच्चारण होगा और सनातनी विधि विधान से पूजा पाठ करके, शंख बजाकर संसद भवन में प्रवेश होगा। ऐसे पावन पवित्र अवसर पर फरेब और अलोकतंत्र की राजनीति करने वाले तमाम राजनेताओं की उपस्थिति की आशा आखिर कैसे की जा सकती है?
जय श्री राम 🙏🚩
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#स्थान: श्री हनुमान गढ़ी मंदिर अयोध्या जी मंदिर। #समय: साल 1998 का एक अघोषित दिन।
मंदिर परिसर में लगे ठंडे पानी की मशीन के पास बैठा एक छोटा सा वानर मुंह में दो बिजली के तारों को लिए चबाए जा रहा था, मानों कोई फल हो।
पूरा मंदिर खाली करा लिया गया था, एक एक श्रद्धालु और एक एक
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दर्शनार्थी।
केवल पुलिस बल और बम निरोधक दस्ता वहां उस समय हनुमान गढ़ी मंदिर के भीतर था,और वे सभी के सभी उस छोटे से वानर को बिजली का तार चबाते हुए देख रहे थे
पर मंदिर पूरा खाली क्यों था और पुलिस के साथ में बम निरोधक दस्ता वहां क्या कर रहा था?
इसे थोड़े से में बता रहा हूं क्योंकि
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1998 में घटी ये सत्य घटना आज तक किसी अखबार या न्यूज चैनल में ये घटना दिखाई नही गई है अयोध्या के अति संवेदनशील होने के कारण।
साल 1998 में करीब बीस किलो आरडीएक्स अयोध्या में आने की खबर उत्तरप्रदेश की एसटीएफ यानी विशेष पुलिस दस्ते को लगी थी, जिसमे से अधिकांशतः आरडीएक्स को समय
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गुजरात के कॉमेडी किंग अभिनेता और यूट्यूबर नितिन जानी @nitinjani24 उर्फ खजूर भाई एक ऐसा इंसान जिसे नाम से नहीं काम से पहचाना जाता है गुजरात के बाहर शायद कम ही लोग जानते होगे। पर गुजरात में गरीबों का मसीहा कहे तो भी कम ही होगा। गुजरात के सूरत शहर में जनमें खजूर भाई इंसानियत
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की वह मिसाल पेश करते आये है जिसके सामने अच्छे से अच्छा पैसे वाला इंसान भी शरमा जाये।आज के समय में जब लोग पैसे से अपना घर भरने में लगे हुए हैं वहाँ एक ऐसा भी इंसान हैं जो गरीबों के दुख दर्द बाँटने में लगा हुआ है आप और आपकी टीम द्वारा गरीबों के लिए किये कार्य को देखकर आँखें नम
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हो जाती हैं भूखें गरीब लोगों को खाना खिलाने से लेकर घर बनवाने तक घर के सारे सामान से लेकर पढ़ाई तक की मदद करना शायद भगवान ने इसके लिए करोडों लोगों में से आप को चुना है धन्य है वह माता पिता जिसने आप को जन्म दिया। मैं काशी का पंडित आप को बारम्बार प्रणाम करता हूँ आशा करता हूँ कि
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इंसान हत्यारा हो चुका है!
आखिर इतनी हत्याएं क्यों ?
हमारे यहां एक बात कही जाती है ...
📣 "एक वृक्ष दस पुत्र समाना"
📣 "वृक्ष काटने से वंश का नाश होता है।"
यह तस्वीर जब मैंने देखा, तो ऐसा लगा जैसे सामूहिक संहार किया गया। हत्याएं की गई और उन्हें यूं ही काट कर सड़कों पर फेंक
👇 twitter.com/i/web/status/1…
दिया गया। यदि हम ऊपर की पंक्तियों को भी मानें तो इस हिसाब से तो सहस्त्र पुत्रों की हत्याएं हुई हैं।आखिर एसी में बैठकर योजनाएं बनाने वाले बाबू लोग,कभी इस बात की भी चिंता करेंगे क्या कि यदि यही वृक्ष नहीं रहे।यूं ही हत्याएं होती रहे तो 1 दिन एसी का हवा मिलना भी मुश्किल हो जाएगा।
👇 twitter.com/i/web/status/1…
परंतु पता नहीं क्यों यह बात समझ नहीं आती बाबू को।
जिस प्रकार से हम प्रकृति की विनाशलीला आरंभ कर चुके हैं। प्रकृति की हत्याएं कर रहे हैं। निश्चित रूप से ये हत्याएं हम पर भारी पड़ने वाली है आज नहीं तो कल। और इसकी शुरुआत हो चुकी है। प्रकृति अपने संहारकों को छोड़ेगी नहीं। बाकी समय
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।।जय भद्राज।।
विश्व प्रसिद्व पहाड़ों की रानी मंसूरी सें लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी की चोटी में भद्राज देवता का पौराणिक मंदिर है।। पुराणों के अनुसार भद्राज भगवान कृष्ण के बडे भाई बलराम को कहा जाता है जिनकी पूजा अर्चना इस मंदिर में सैकडों सालों से होती आ रही है।
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लोकमान्यताओं के अनुसार सतयुग में भगवान बलराम यहां साधू के भेष में आये थे। उस समय यहां लोगों के पशुओं को गंम्भीर बीमारी के कारण काफी नुकसान हो गया था तब यहां के लोग साधु बाबा के पास गये जिसके बाद सारे पशु ठीक हो गये। कुछ समय बाद जब साधु बाबा यहां से केदार खण्ड में जाने लगें तो
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यहां के लोगों ने उनसे यहां से न जाने की विनती की, फिर बाबा मान गये और इसी स्थान पर रहने का निर्णय लिया। तब साधु बाबा ने उसी समय कह दिया था कि कलयुग में मेरी पूजा भद्राज के नाम से मूर्ति के रूप से होगी।
लोककथाओं के अनुसार कलयुग के शुरवात में नंन्दू मेहर नाम का एक व्यक्ति तडू
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एक व्यक्ति अपनी चमचमाती BMW कार से कहीं जा रहा था…
उसकी बगल वाली सीट पर उसकी भारी भरकम पत्नी भी बैठीं थी …
अचानक जाते जाते रास्ते में उसने देखा कि एक बहुत ही खूबसूरत महिला एक साइकिल सवार के पीछे वाली सीट पर बैठी है …
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उसे लगा शायद वह उस साइकिल सवार की पत्नी होगी ..
BMW वाले व्यक्ति को बहुत ईर्ष्या हुई और उसने शिकायत भरे लहजे में ख़ुद से कहा.....साला ,मैंने क्या तक़दीर पाई है....काश मुझें भी ऐसी ही पत्नी मिली होती...
संयोग से उसकी हृदय की पीड़ा को वहाँ से गुजरते हुए एक दयालु जिन्न ने सुन
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ली औऱ उसे उस आदमी पर तरस आ गई ।
जिन्न ने तुरंत उस आदमी की इच्छा पूरी कर दी औऱ वह आदमी पल भर में साइकिल पर आ गया...!
उसके बाद आदमी फूटफूटकर रोने लगा तो उसे दुखी देख हैरान जिन्न उसके सामने प्रकट हुआ औऱ बोला....अब क्या चाहिए रे तेरे को ??
@Cyber_Huntss हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं और आप भी पढ़े ही होगे कक्षा एक से शुरू होती हुई हिंदी किताबो में भी जो कहानियां वो शुरू ही होती हैं "किसी गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था" मतलब कहानी की पहली लाइन ही ब्राह्मण की गरीबी से शुरू होती हैं और तो और आगे लिख देते हैं की
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"वो गरीब ब्राह्मण भिक्षाटन करके अपना जीवन यापन करता था" अब यहां तक तो ठीक है उसी क्रम में आगे सुनने को मिलेगा की "ये ब्राह्मण बहुत ज्ञानी और बड़े दयालु प्रवृत्ति के थे" ... अब ये गरीब ब्राह्मण जो दयालु प्रवृत्ति का था और भिक्षाटन करके जीवन यापन करता था बावजूद इसके इतना सक्षम
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था की सैकड़ों जातियों का शोषण कर डाला, वाह रजा पंडी जी..! बड़ी भौकाल था आपका खैर....
ये हो गईं सामान्य बातें जो की अक्षरशः सत्य भी हैं गुरु वशिष्ठ गुरु विश्वामित्र से लेकर चाणक्य तक के पास कोई अपनी धन संपदा नही थी ना ही कोई साम्राज्य था, परंतु उन्होंने अपने जीवन काल में जो भी
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