राजस्थान के झुंझुनू में गुरु गोरखनाथ संप्रदाय के मठ टाई गाँव में 105 साल पुराना घी से भरा हुआ लोटा मिला है। यह लोटा 105 वर्ष पहले मठ के गुंबद में निर्माण के दौरान स्थापित किया गया था। गुंबद की मरम्मत के दौरान यह अब प्राप्त हुआ है।
हैरानी की बात यह है घी आज पूरी तरह सुरक्षित है और आज भी सुगंधित है लेबोरेटरी जाँच में निकल कर आया है कि घी अब भी पूरी तरह खाने योग्य है।
घी को लेकर अब आयुर्वेद पर विवेचन करते हैं. आयुर्वेद में मुख्य तौर पर तीन ग्रंथ उपलब्ध हैं; चरक संहिता,सुश्रुत संहिता वाग्भट रचित अष्टांग हृदय।
चरक फिजीशियन थे,सुश्रुत सर्जन थे।वाग्भट इनके अनुगामी थे।तीनों ने ही अपने अपने ग्रंथों में घी पर विस्तार से लिखा है।गाय के घी से लेकर जितने भी दुधारू स्तनधारी पशु है हथिनी तक सभी के घी के गुण,भेद,रस,विपाक,तासीर,रोग विशेष में कौन सा घी प्रयोग करना चाहिए,इस पर विस्तृत प्रकाश डाला है
सभी ने एकमत से सर्वोत्तम गाय का घी ही बताया है। चरक से अधिक घी का प्रयोग सुश्रुत ने किया है अपनी शल्य क्रियाओं में।
सुश्रुत ने 15 वर्ष पुराने घी को पुराण घृत, 11 से 100 वर्ष तक के घी को कौम्भसर्पी, सौ वर्ष से अधिक पुराने घी को महाघृत नाम दिया है... क्योंकि घी से भरा हुआ यह लोटा
105 वर्ष पुराना सिद्ध हो रहा है, तो यह इसी श्रेणी में आता है... इस घी से उन्माद, अपस्मार, मिर्गी, मानसिक रोगों का राजा शिजोफ्रेनिया सहित तमाम मानसिक व्याधियाँ, विष चिकित्सा आयुर्वेद में की जाती है, जिस का विस्तृत वर्णन उपलब्ध है।
सुश्रुत तो इस घी को जीवाणुरोधी, संक्रमणरोधी लोशन
के तौर पर इस्तेमाल करते थे...
मौर्यकालीन चिकित्सक जीवक, जिनका जन्म हरिद्वार (कनखल) में हुआ था, इसी घी के सहारे दुनिया की सर्वप्रथम न्यूरो सर्जरी की थी। जिसमें पाटलिपुत्र के एक धनी सेठ, जो दशकों से सिरदर्द से ग्रस्त था,उसके कपाल को छेद कर मस्तिष्क में अंडा दे चुके कीटों को निकाला
था और इस का इस्तेमाल अपनी सर्जरी में किया था...
सुश्रुत दुनिया के पहले सर्जन थे, लेकिन जीवक दुनिया के पहले न्यूरोसर्जन थे... जीवक बौद्ध नहीं, वैदिक धर्मी ही थे। एक राजकुमार ने उन्हें पाला था, क्योंकि उनकी माँ ने उन्हें पैदा होते ही उसे मृत समझकर, झाड़ियों में फेंक दिया था।
इस कारण उनका नाम कौमारभृत्य भी कहलाता है... अर्थात् राजकुमार के द्वारा पाला गया...
भारत में नवजात शिशुओं की बाल रोगों की चिकित्सा को लेकर आयुर्वेद की शाखा 'कौमारभृत्य' कहलाती है। न्यूरो सर्जन होने के साथ-साथ जीवक ने भी बहुत महत्वपूर्ण कार्य बालरोगों पर किया था।
वर्तमान में काश्यप संहिता जैसा ग्रंथ उपलब्ध है बाल रोगो को लेकर। आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथ अथर्ववेद की छाया को लेकर लिखे गए थे।
नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में आक्रांता मोहम्मद गोरी के गुलाम तुगलक और उसके गुलाम बख्तियार खिलजी द्वारा लगाई गई आग में जल गए।
साथ ही जल गया भारत का ज्ञान विज्ञान।
नाथ संप्रदाय ने आयुर्वेद को पुनर्जीवित किया था। नाथ सर्प विद्या में माहिर होते थे। आज भी सपेरे नाथ संप्रदाय से जुड़े हुए हैं। सपेरों को सम्मान में नाथ जी कहा जाता है।
इस घी को मठ में लोटे में भरकर स्थापित करने का यही उद्देश्य रहा होगा कि विष चिकित्सा में समय पड़ने पर इसका प्रयोग किया जाएगा, जब यह महाघृत बन जाएगा।
और आज यह लोटा उसी दूरगामी चिकित्सीय प्रबंध प्रक्रिया की श्रंखला में अंतिम पड़ाव के तौर पर मठ की मरम्मत के दौरान मिला है।
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सन 1996 में दिल्ली में लोधी कालोनी में रहता था यासीन मलिक। यासीन के बारे में सबने सुना था, कुख्यात आतंकवादी, JKLF का हेड।
खूब हिंसा का तांडव मचाने के पश्चात अब वह दिल्ली आ गया था इस वादे के साथ कि अब वह खुद हिंसा नहीं करेगा लेकिन दिल्ली में रह कर शांति पूर्ण तरीक़े से कश्मीर को भारत से आज़ाद कराएगा।
हम लोग तो राजनैतिक बच्चे थे। पर इतनी अक़्ल हमें भी थी कि इसने पहले खुद मार काट की,
काश्मीरी पंडितों को भगाया, अपना संगठन बड़ा किया। अब यह इस लेवेल पर है कि इसे खुद बंदूक़ चलाने की ज़रूरत नहीं, बस पैसा भेजना है आदेश करना है। पर हमारी दिल्ली की सरकारें इतनी 'भोली' होती थीं कि उन्होंने यह सच मान लिया था। स्वयं ही न्यायाधीश बन कर वर्डिक्ट भी दे दिया था।
रामायण काल में थीं ये विचित्र किस्म की प्रजातियां, वैज्ञानिक रहस्य जानकर चौंक जाएंगे
भगवान राम का काल ऐसा काल था जबकि धरती पर विचित्र किस्म के लोग और प्रजातियां रहती थीं, लेकिन प्राकृतिक आपदा या अन्य कारणों से ये प्रजातियां अब लुप्त हो गई।
जैसे, वानर, गरूड़, रीछ आदि। माना जाता है कि रामायण काल में सभी पशु, पक्षी और मानव की काया विशालकाय होती थी। मनुष्य की ऊंचाई 21 फिट के लगभग थी।
वानर जाति : वानर को बंदरों की श्रेणी में नहीं रखा जाता था। 'वानर' का अर्थ होता था- वन में रहने वाला नर।
ऐसे मानव जिनके मुंह बंदरों जैसे होते थे। वे मानव भी सामान्य मानवों के साथ घुल-मिलकर ही रहते थे। उन प्रजातियों में 'कपि' नामक जाति सबसे प्रमुख थी। जीवविज्ञान शास्त्रियों के अनुसार 'कपि' मानवनुमा एक ऐसी मुख्य जाति है जिसके अंतर्गत छोटे आकार के गिबन, सियामंग आदि आते हैं
#टोडरमल_जी_की_हवेली
चित्र मे दिखाई देने वाली यह दिवान टोडरमल जी की हवेली है जिन्होंने 78,000 मोहरें बिछाकर गुरुगोविंद सिंह जी के साहबजादों और माता गुजरी देवी जी के संस्कार के लिए 4 गज जगह खरीदी थी..
मुगली क्रूर राजा वजीर खान ने मां गूजरी और बच्चों के संस्कार के लिए जमीन देने से मना कर दिया था। तब टोडरमल जी सामने आए उन्होंने राजा से संस्कार के लिए जमीन देने की मन्नतें की। राजा ने जमीन की कीमत मांगी थी सोने की मोहरों से जितनी जमीन नापी जा सके उतनी ले लो।
जब मोहरे बिछानी शुरू की तब धूर्तता ओर कपट में संलीप्त मुगल बादशाह ने ज्यादा रकम ऐंठने के लिए आडी नही खडी मुद्रायें बिछाने को कहा !
उस समय टोडरमल ने अंतिम संस्कार के लिए खडी सोने की मोहरे बिछाकर संस्कार हो सके इतनी जमीन खरीदकर संस्कार करवाया !
आजादी के अमृत महोत्सव के एक अहम पड़ाव के रूप में, माननीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi 28 मई, 2023 को नई संसद में पवित्र 'सेंगोल' की स्थापना कर रहे हैं।
14 अगस्त, 1947 को तमिलनाडु के पुजारियों द्वारा सरकार को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में 'सेंगोल' भेंट किया गया था।
यह भेंट न्याय और निष्पक्षता का सूचक था।
सेंगोल', तमिल शब्द 'सेम्मई' से आता है, जिसका अर्थ है 'न्याय'। न्याय और निष्पक्षता की भावना को लिए यह प्रतीक नई संसद में 28 मई, 2023 को प्रधानमंत्री द्वारा स्थापित किया जाएगा।
‘सेंगोल’ राष्ट्रीय इतिहास से जुड़ा एक पवित्र प्रतीक है, जिसका तमिलनाडु से गहरा नाता है। ‘सेंगोल’ स्थापना कार्यक्रम की घोषणा 24 मई को नई दिल्ली में गृहमंत्री @AmitShah द्वारा एक राष्ट्रीय प्रेस कॉन्फ्रेंस में की गई।
जवाहरलाल नेहरु ने अपनी पत्नी के साथ जो किया वो इतना भयावह था कि जान कर आप नेहरु से नफरत करने लगेंगे..
टीवी चैनल्स पर कांग्रेस पार्टी के नेताओं के द्वारा अक्सर ये आरोप लगाते हुए सुना जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी पत्नी को छोड़ दिया.
लेकिन क्या आप को यह पता है जवाहरलाल नेहरु ने अपनी पत्नी के साथ क्या किया ?
जवाहरलाल नेहरु की पत्नी कमला नेहरु को टीबी रोग हो गया था .. उस जमाने में टीबी की दहशत ठीक ऐसा ही थी जैसे आज एड्स की है ..
क्योंकि तब टीबी का इलाज नहीं था और इन्सान तिल-तिल... तड़प- तड़प कर पूरी तरह गलकर हड्डी का ढाँचा बनकर मरता था … और कोई भी टीबी मरीज के पास भी नहीं जाता था क्योंकि टीबी साँस से फैलती थी … लोग मरीजों को पहाड़ी इलाके में बने टीबी सेनिटोरियम में भर्ती कर देते थे।
"अरे डिंपी तू कल ऑफिस क्यों नही आई थी", रज्जो और स्वीटी ने अपनी सहकर्मी से उत्सुकता वश पूछा।
" वो कल वट सावित्री व्रत था न। इसीलिए एक दिन की लीव ले ली थी।"
स्वीटी - ये क्या होता है डिंपी? मुझे तो पता ही नही है। क्या ये वही व्रत है जिसमें यमराज से किसी लेडी ने अपने पति की जान बचाई थी?
रज्जो - याल्लाह डिंपी, तू भी इन सब ढकोसलों में मानती है। ओ कमोन यार, अब ये मत कहना कि तेरे व्रत रहने से तेरे पति की उम्र लंबी होगी।
आई डोंट बिलीव ऑन दीज नॉनसेंस।
और रज्जो ये बोलकर हँस दी।
डिंपी - शटअप रज्जो। मेरे व्रत रखने से तू क्यों इतना ओवर रिएक्ट कर रही है? क्या मैंने कभी कुछ कहा जब तू महीने महीने भर सवेरे सवेरे दो किलो खाकर पूरा दिन भूखा प्यासा रहने की नौटंकी करके फिर से शाम को चार किलो खाया करती है