#आदिपुरुष#BoycottAdipurush
हनुमान जी संवाद: कपडा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का, आग भी तेरे बाप की, तो जलेगी भी तेरे बाप की!
ऐसे घटिया संवाद लिखे गए हैं। कम से कम हनुमानजी की गरिमा को तो ध्यान में रखा होता।
और उस पर मनोज मुन्तशिर जैसे लोग स्वयं को भारतीय संस्कृति का ध्वजवाहक
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घोषित करते घूम रहे हैं।
खीझ से बचना चाहते हैं तो इस रामायण से दूर ही रहें और यूट्यूब पर रामानंद सागर की पुरानी रामायण देख लें। यकीन मानिये आपकी नजरो में रामानंद सागर का सम्मान कई गुना और बढ़ जायेगा।
भक्ति के नाम पर, आस्था के नाम पर इन बॉलीवुड वालों ने अति कर दी है
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आदिपुरुष के हर शो में एक सीट हनुमान जी के लिए रखी गयी है
पहली बात तो मैं इस फ़िल्म के कतई समर्थन में नहीं हूं जिसके तमाम कारण हैं
उसपे मैं पहले भी विरोध जता चुका हूँ
पर आपत्ति अभी इस तरह भांड वुड द्वारा नौटंकी करे जाने पर है
कौन नहीं जानता कि सिनेमा हॉल की सीट से ज्यादा
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गन्दी जगह शायद ही कोई और जगह हो सार्वजनिक स्थलों के मामले में
ऐसा कौन सा घृणित कार्य है जो नहीं होता वहां
क्या इस सीट पर हनुमान जी को लगाने से पहले इसकी जगह नई सीट लगाकर तब हनुमान जी को रखा गया ?
क्या पूजा इत्यादि कर वह सीट छोड़ी गई और उसपे हनुमान जी विराजित किये गए विधि
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विधान द्वारा ?
हनुमान जी भगवान शिव के अवतार है कोई दोस्त इत्यादि नहीं जो इन भांडवुड ने जैसे चाहे जहाँ चाहे इस्तेमाल कर लिया
क्या ये सीट हमेशा के लिए हनुमान जी को समर्पित हो गई है जिसकी नित्य पूजा पाठ सफाई इत्यादि होगी ?
यदि नहीं तो इसका क्या औचित्य है ?
क्या हनुमान जी कोई
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खिलौना हैं जो बिना विधिविधान पूजा पाठ के अपनी सहूलियत के हिसाब से कहीं भी बैठा दिया जाए और कहीं से भी हटा दिया जाए ?
वाह रे धूर्तों
मुझे तो ये समझ नही आ रहा है कि जो हॉल पब्लिक प्लेस है जहाँ हर धर्म मजहब के लोग आ रहे है वो शुद्धता का ख्याल रखे हुए हैं कि नहीं,स्नान किये हुए
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हैं या नही, उनका खान पान क्या है इसकी सुनिश्चितता कैसे होगी ?
और हनुमान जी ब्रह्मचारी हैं ऐसे में उनके अगल बगल वाली सीट कहीं किसी स्त्री को तो नहीं दे दी जाएगी ?
क्या गारंटी है कि हाल में आकर इस सीट के अगल बगल बैठने वाला कोई व्यक्ति हिन्दू नाम धरे कोई विधर्मी या वामी नही होगा
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जो किसी प्रकार की घटिया हरकत न कर दे
ऐसे तमाम सवाल मुझ जैसे हनुमान भक्त के मन मे घूम रहे हैं
फ़िल्म के नाम पर ये तमाशे बंद होने चाहिए, हिन्दू भक्तों की आस्था के साथ यह केवल और केवल भद्दा मजाक और फ़िल्म हिट करवाने का स्टंट मात्र है
इसपे तत्काल रोक लगनी चाहिए ।
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#कहानी 1976 में शुरू हुई..
फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर अपनी फिल्म 'चरस' की शूटिंग के लिए स्विट्जरलैंड गए। एक शाम वे पब में बैठे और रेड वाइन ऑर्डर की। वेटर ने वाइन के साथ एक बड़ा सा लकड़ी का बॉक्स टेबल पर रख दिया। रामानंद ने कौतुहल से इस बॉक्स की ओर देखा।
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वेटर ने शटर हटाया और उसमें रखा टीवी ऑन किया। रामानंद सागर चकित हो गए क्योंकि जीवन मे पहली बार उन्होंने रंगीन टीवी देखा था। इसके पांच मिनट बाद वे निर्णय ले चुके थे कि अब सिनेमा छोड़ देंगे और अब उनका उद्देश्य प्रभु राम, कृष्ण और माँ दुर्गा की कहानियों को टेलेविजन के
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माध्यम से लोगों को दिखाना होगा।
भारत मे टीवी 1959 में शुरू हुआ। तब इसे टेलीविजन इंडिया कहा जाता था। बहुत ही कम लोगों तक इसकी पहुंच थी। 1975 में इसे नया नाम मिला दूरदर्शन। तब तक ये दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता तक सीमित था, जब तक कि 1982 में एशियाड खेलों का प्रसारण
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कांग्रेस के लोग 22वें विधि आयोग द्वारा कॉमन सिविल कोड (CCC) के लिए जनता से सुझाव मांगते ही ऐसे पगलाए हैं जैसे किसी ततैये ने काट लिया हो - कांग्रेस का जरूरत से ज्यादा “समझदार” बड़बोला जयराम रमेश @Jairam_Ramesh फड़फड़ाते हुए कह रहा है कि अभी देश में CCC की जरूरत नहीं है,
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उसने सरकार पर आरोप लगाया है कि विधि आयोग द्वारा CCC पर सुझाव मांग कर ध्रुवीकरण के एजेंडे को आगे बढ़ाया जा रहा है यही बात ममता की पार्टी TMC ने भी कही है,
आज ही किसी अख़बार के सम्पादकीय में पढ़ा है मैंने कि कांग्रेस आज भूल रही है कि 1928 में भारत के संविधान का जो पहला
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प्रारूप #मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता वाली समिति ने तैयार किया था, उसमे CCC की पैरवी की गई थी,
कांग्रेस को बताना चाहिए कि संविधान निर्माताओं ने किस “ध्रुवीकरण” के सिद्धांत या एजेंडे पर चल कर संविधान के अनुच्छेद 44 में लिखा था कि “देश सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू
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अमिश नाम के एक लेखक ने भगवान राम को जन्म से अशुभ बताया,
हनुमान जी और जटायु को विकृति के साथ जन्मा बताया और उसकी किताबे हिट हो गयी, उसकी किताबो की करोडो प्रतियाँ बिकी,पढ़ने वाले लाह लहोट हो गए की क्या गजब लिखा भगवान
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राम के बारे मे शिव के बारे मे।
ऐसे ही अब ओम राउत और मनोज मुंतशिर आ गया आदि पुरुष को भगवान राम की कहानी बताकर।
कुछ लोग इस फिल्म को लेकर भी लाह लहोट हो रहे हैं, कुछ लोग तो भावातिरेक मे
भगवान राम की कसम देकर फिल्म देखने को कह रहे थे।
मुझे भी फिल्म को लेकर बहुत उम्मीदे थी मगर पहले
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वाला ट्रेलर देख के ही समझ आ गया था फिल्म कैसी होनी है
फिल्म के संवादों और वेशभूषा को लेकर उसे जानकर लग रहा है कितने बड़े धोखे मे आये राम भक्त लोग
खैर फिल्म हिट होनी ही है क्योंकि इसको देखने वाले बहुत सारे चुतिये लोग जाएंगे और इसका पाप कहीं ना कहीं हमारे सर ही लगना है।पाप इसलिए
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@manojmuntashir#BoycottBollywood#BoycottAdipurush
हमारे प्रभु श्री राम और माता सीता का चरित्र ऐसा बिल्कुल नही था जैसा आदिपुरुष मूवी में बताया जा रहा है,भगवान राम और सीता माँ वन में तपस्वी की भांति सन्यास लेके गए थे न कि इस तरह जैसा इस फिल्म में दिखाए गए रोमांटिक दृश्य करने,
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सूर्पणखा भले ही राक्षसी थी पर सागर आर्ट में रामानन्द जी उस चरित्र की वेशभूषा का भी बड़ा बारीकी से ध्यान रखा था,आदिपुरुष में श्री हनुमानजी महाराज का किरदार निभा रहा कलाकार हनुमान कम और जल्लाद ज्यादा नजर आ रहा है, अतः मैं इस का बहिष्कार ही करूँगा,
"आदिपुरूष" किसी भी छोटी चोटया बीमारी का समय पर इलाज न किया जाये, तो वह चोट या बीमारी आगे चलकर बड़ी बन जाती है.
किसी भी गलत बात का समय पर विरोध कर देना सही होता है. आदिपुरुष मूवी के साथ भी यही है.
बाकी, विरोध करने या न करने से किसी भी मूवी को देखने से
#BoycottAdipurush#BoycottBollywood
जिन्हें आदिपुरुष फ़िल्म अच्छी लग रही है वे जरूर पढ़ें
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वनवास के दौरान सीताजी की भेंट ऋषि अत्रि की पत्नी महासती माता अनुसुइया से होने का वृतांत आता है।
कहते हैं माता अनुसुइया ने सीताजी को पतिव्रत धर्म का पालन करने की शिक्षा देने के
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साथ-2 उन्हें दिव्य वस्त्र आभूषण प्रदान किए जो कभी मैले नहीं होते थे एवं सदैव स्वच्छ,निर्मल एवं उजले रहते थे।( सामान्य रूप से रामायण के फिल्मांकन के दौरान सभी जगह श्रीराम,लक्ष्मण एवं सीताजी को वनवासी रूप में वल्कल वस्त्र ही धारण किए हुए दर्शाया जाता है।)
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दिब्य बसन भूषन पहिराए। जे नित नूतन अमल सुहाए॥
अर्थात- (माता अनुसुइया ने) उन्हें ऐसे दिव्य वस्त्र और आभूषण पहनाए,जो नित्य-नए निर्मल और सुहावने बने रहते हैं।
हाल ही में जारी किए गए 'आदिपुरुष' के संशोधित ट्रेलर में सीताजी की भूमिका निभाने वाली नायिका के बदरंग,शरीर दर्शाते हुए
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#अंतिम_ऋण_चिता_की_लकड़ी...
क्या आप जानते हैं मृत्यु के बाद भी कुछ ऋण होते हैं जो मनुष्य का पीछा करते रहते हैं।
हिंदू धर्म शास्त्रों में पांच प्रकार के ऋण बताए गए हैं देव ऋण, पितृ ऋण, ऋषि ऋण, भूत ऋण और लोक ऋण।
इनमें से प्रथम चार ऋण तो मनुष्य के इस जन्म के कर्म के आधार
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पर अगले जन्म में पीछा करते हैं। इनमें से पांचवां ऋण यानी लोक ऋण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
प्रथम चारों ऋण तो मनुष्य पर जीवित अवस्था में चढ़ते हैं, जबकि लोक ऋण मृत्यु के पश्चात चढ़ता है।
जब मनुष्य की मृत्यु होती है तो उसके दाह संस्कार में जो लकड़ियां उपयोग की जाती हैं दरअसल
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वही उस पर सबसे अंतिम ऋण होता है।
यह ऋण लेकर जब मनुष्य नए जन्म में पहुंचता है तो उसे प्रकृति से जुड़े अनेक प्रकार के कष्टों का भोग करना पड़ता है। उसे प्रकृति से पर्याप्त पोषण और संरक्षण नहीं मिलने से वह गंभीर रोगों का शिकार होता है।
मनुष्य की मृत्यु के बाद सुनाए जाने वाले
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