@manojmuntashir#BoycottBollywood#BoycottAdipurush
हमारे प्रभु श्री राम और माता सीता का चरित्र ऐसा बिल्कुल नही था जैसा आदिपुरुष मूवी में बताया जा रहा है,भगवान राम और सीता माँ वन में तपस्वी की भांति सन्यास लेके गए थे न कि इस तरह जैसा इस फिल्म में दिखाए गए रोमांटिक दृश्य करने,
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सूर्पणखा भले ही राक्षसी थी पर सागर आर्ट में रामानन्द जी उस चरित्र की वेशभूषा का भी बड़ा बारीकी से ध्यान रखा था,आदिपुरुष में श्री हनुमानजी महाराज का किरदार निभा रहा कलाकार हनुमान कम और जल्लाद ज्यादा नजर आ रहा है, अतः मैं इस का बहिष्कार ही करूँगा,
"आदिपुरूष" किसी भी छोटी चोटया बीमारी का समय पर इलाज न किया जाये, तो वह चोट या बीमारी आगे चलकर बड़ी बन जाती है.
किसी भी गलत बात का समय पर विरोध कर देना सही होता है. आदिपुरुष मूवी के साथ भी यही है.
बाकी, विरोध करने या न करने से किसी भी मूवी को देखने से
किसी को रोका तो नहीं जा सकता है और न ही किसी को जबरदस्ती दिखाया जा सकता है.
जो लोग देखना चाहते हैं तो देख ही लेते हैं..
आदिपुरुष मूवी का विरोध करने वाले लोगों को गलत तो नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि वे इस मूवी का विरोध क्यों कर रहे हैं,
श्रीराम और सीता जी केवल इतिहास से नहीं जुड़े हैं. मेरे जैसे करोड़ों लोग उन्हें अपना सबकुछ मानते हैं. तो उनके चित्रांकन के दौरान अधिक सावधानी और समझ तो होनी ही चाहिए।
यदि आप मर्यादा की समझ ही नहीं रखते तो
मर्यादा पुरुषोत्तम पर फ़िल्म क्यों बना रहे हैं??
लेकिन इस मूवी का समर्थन करने वाले तो विरोध करने वालों के लिए ऐसी गन्दी भाषा का प्रयोग करने में लगे हैं, जैसे उनके हाथ-पैर बांधकर बिठा दिया गया हो कि "देखते हैं अब कैसे देखते हो यह मूवी... " और कुछ लोगों तो इसे जातिवाद
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से भी जोड़ दिया..
और जबकि आप देख लीजिये कि जो लोग इस मूवी का समर्थन करते समय विरोध करने वालों को जबरदस्त गालियां दे रहे हैं, वे लोग ही आज तक श्रीराम और अपने हिन्दू धर्म और ग्रंथों पर सबसे ज्यादा सवाल खड़े करते आये हैं.
जब AI ने श्रीराम की तस्वीर बनाकर उसे उनका वास्तविक
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चेहरा बताकर प्रचार करना शुरू किया, तब यही लोग अचानक प्रकट होकर 'राम-राम' करने लगे थे.
मतलब ये लोग श्रीराम का नहीं, हिन्दुओं का नहीं, उनके खिलाफ चलने वाले हर एजेंडे का समर्थन करना चाहते हैं...
आप भी देखिये-
'आदिपुरुष' के संशोधित ट्रेलर में सीताजी की भूमिका निभाने वाली
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नायिका के बदरंग,शरीर दर्शाते हुए वस्त्र देखिए।
सीताजी वनवास में इस प्रकार जुल्फें फैलाए, ब्रा टाइप ऑफ शोल्डर ब्लाउज पहनकर चौबीसों घंटे श्रीरामजी के साथ रोमैंस करती रहतीं थीं ? जगतमाता जानकी का इतना कुत्सित चित्रांकन?
आज हम आवाज ना उठाएं तो कल को तो
तुम्हें सीताजी को बिकिनी पहने सरोवर में नहाते भी दिखा देना है और तर्क दिया जाएगा कि क्या सीताजी ने इतने वर्षों तक वन में नहाया नहीं होगा तो दिखाने में क्या हर्ज है।
बेवकूफ समझ रखा है क्या
इतना ही नहीं, रामायण के अनुसार वनवास के दौरान भगवान
श्रीराम ने वनक्षेत्र में रहनेवाले ऋषियों के पूजापाठ व यज्ञादि में विघ्न डालनेवाले अनेक राक्षसों का वध कर पंचवटी को राक्षसों से मुक्त कराया।
परंतु रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर करोड़ों सनातनी रामभक्तों की भावनाओं को आहत करने का प्रयास करने वाली
फिल्म 'आदिपुरुष' के परिवर्तित ट्रेलर के अनुसार तो भगवान श्रीराम व सीताजी वन में इस प्रकार एक-दूसरे से चिपके, रोमांस करते दिखाई दे रहे हैं जैसे वे वनवास पर नहीं, हनीमून मनाने गए हों।
भगवान श्रीराम व माता सीता ने पूरे वनवासकाल में
ब्रह्मचर्य का पालन किया था परंतु इस 'संशोधित' ट्रेलर के अनुसार तो जैसे उन्होंने वहाँ भोग के अतिरिक्त और कुछ किया ही नहीं।
कुछ सेकेंड के ट्रेलर में यह हाल है तो पूरी फिल्म में ना जाने और कितने आपत्तिजनक दृश्य होंगे? मर्यादा पुरुषोत्तम की कथा से जुड़े लोगों में भी मर्यादा
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न ढूंढे तो कहाँ ढूंढे?
आज अगर आप रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर इन्हें इस छिछोरेपन की छूट देंगे तो कल को ये वामपंथी भांड़ हमारे आराध्यों को लिपलॉक किस करते भी दिखाएंगे और तर्क देंगे कि राम और सीता पति पत्नी थे तो क्या उनमें संसर्ग नहीं होता होगा? तो दिखाने में क्या बुराई है?
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आप छूट देकर देखिए इन्हें ये ऐसे-2 कुत्सित वामी प्रयोग करेंगे हमारे पवित्र देवी देवताओं के साथ कि आपसे देखा नहीं जाएगा।
इन बॉलीवुड के भांड़ों की यह काल्पनिक और रचनात्मक स्वतंत्रता कभी किसी दूसरे मत संप्रदाय के आराध्यों के जीवनचरित्र के विषय में मुखर क्यों नहीं होती?
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है हिम्मत कबीले वालों के प्रॉफिट के साथ ऐसा कोई प्रयोग करने की? नहीं होगी ना? होनी भी नहीं चाहिए।
और जो-2 भी लोग 'आदिपुरुष' में हिंदू धर्म के आराध्यों के विकृत चित्रांकन का समर्थन कर रहे हैं उन सभी से मेरा आग्रह है इसी दीदादिलेरी से अन्य संप्रदायों के आदरणीय चरित्रों के साथ
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रचनात्मक स्वतंत्रता का प्रदर्शन करके दिखाएं अन्यथा हिंदुत्व को उसके हाल पर छोड़ दें। अपनी रचनात्मकता दिखाने के लिए चाहे जो जेनरे चुनो,जस्ट डोंट टच अवर श्रीराम जी विद योर मैलिशियस इंटैंशंस।
कोई छोटी सी साधनहीन लोकल संस्था भी यदि रामलीला का मंचन करती है तो चरित्रों के संवाद,
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भाषा, टोन, हावभाव,श्रंगार सहित उनकी वेशभूषा आदि का चयन भी अत्यंत सतर्कतापूर्वक शास्त्रोक्त संदर्भों के प्रकाश में करती है
जिससे करोड़ों स्त्रीपुरुषों के आराध्य देवी देवताओं की पवित्र छवि को हानि ना पहुंचे।
हजार पाँच सौ प्रत्यक्ष दर्शकों के लिए किए जानेवाले ऐसे छोटे से
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आयोजन में भी भक्तों की भावनाओं और चरित्रों की गरिमा का ध्यान रखा जाता है क्योंकि आयोजक स्वयं इन ईश्वरीय चरित्रों के प्रति श्रद्धा रखनेवाले होते हैं।'
टीवी, सिनेमा, सोशल मीडिया यानि ऐसे साधन जिनकी पहुंच संसार के कोने-2 तक है, आज के समाज के ऐसे घातक अस्त्र हैं
जिनके द्वारा किसी
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भी ऐसे कुत्सित विचार,एजेंडा या नरेटिव को मानव मस्तिष्क में इस प्रकार अत्यंत सफलतापूर्वक स्थापित किया जा सकता है जिससे ना सिर्फ वर्तमान पीढ़ी अपनी मूल जड़ों से कटकर अपनी संस्कृति से घृणा करने लगे बल्कि यही छद्म चित्रण कालांतर में एक प्रमाणित तथ्य के रूप में भी प्रयोग किए जा सकें।
अगर आज काल्पनिक स्वतंत्रता, आधुनिकता आदि के नाम पर हम अपने आराध्यों के विरुद्ध किए जा रहे इस अत्यंत गंभीर एवं घृणित षड्यंत्र को अनदेखा कर देंगे तो महिलाओं के स्वच्छंद यौनाचरण के समर्थक तो यह चाहते ही हैं कि धीरे धीरे सलज्ज सुकुमारी जगतमाता जानकी के स्थान पर अभद्र,अर्द्धनग्न,
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मादक स्त्रियों की छवि वैदेही के नाम पर स्थापित कर दी जाए जिससे युवा पीढ़ी विशेषकर भारतीय सनातनी नारियों को उन्मुक्त यौनाचारियों के कुचक्र में घसीटने का इनका स्वप्न इस आधार पर सफल हो जाए कि देखो तुम्हारी सीताजी भी तो ऐसे ही अर्द्धनग्न घूमती थीं।
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राम,कृष्ण,विष्णु......आदि नामों के द्वारा बॉलीवुड का रक्तबीज पुनर्जीवित होने का प्रयास अवश्य करेगा। अब मूर्ख बने तो आगे नरेटिव का जाल समझने लायक बचेंगे भी नहीं।
हिंदुओं अभी भी समय है जाग जाओ
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#कहानी 1976 में शुरू हुई..
फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर अपनी फिल्म 'चरस' की शूटिंग के लिए स्विट्जरलैंड गए। एक शाम वे पब में बैठे और रेड वाइन ऑर्डर की। वेटर ने वाइन के साथ एक बड़ा सा लकड़ी का बॉक्स टेबल पर रख दिया। रामानंद ने कौतुहल से इस बॉक्स की ओर देखा।
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वेटर ने शटर हटाया और उसमें रखा टीवी ऑन किया। रामानंद सागर चकित हो गए क्योंकि जीवन मे पहली बार उन्होंने रंगीन टीवी देखा था। इसके पांच मिनट बाद वे निर्णय ले चुके थे कि अब सिनेमा छोड़ देंगे और अब उनका उद्देश्य प्रभु राम, कृष्ण और माँ दुर्गा की कहानियों को टेलेविजन के
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माध्यम से लोगों को दिखाना होगा।
भारत मे टीवी 1959 में शुरू हुआ। तब इसे टेलीविजन इंडिया कहा जाता था। बहुत ही कम लोगों तक इसकी पहुंच थी। 1975 में इसे नया नाम मिला दूरदर्शन। तब तक ये दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता तक सीमित था, जब तक कि 1982 में एशियाड खेलों का प्रसारण
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कांग्रेस के लोग 22वें विधि आयोग द्वारा कॉमन सिविल कोड (CCC) के लिए जनता से सुझाव मांगते ही ऐसे पगलाए हैं जैसे किसी ततैये ने काट लिया हो - कांग्रेस का जरूरत से ज्यादा “समझदार” बड़बोला जयराम रमेश @Jairam_Ramesh फड़फड़ाते हुए कह रहा है कि अभी देश में CCC की जरूरत नहीं है,
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उसने सरकार पर आरोप लगाया है कि विधि आयोग द्वारा CCC पर सुझाव मांग कर ध्रुवीकरण के एजेंडे को आगे बढ़ाया जा रहा है यही बात ममता की पार्टी TMC ने भी कही है,
आज ही किसी अख़बार के सम्पादकीय में पढ़ा है मैंने कि कांग्रेस आज भूल रही है कि 1928 में भारत के संविधान का जो पहला
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प्रारूप #मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता वाली समिति ने तैयार किया था, उसमे CCC की पैरवी की गई थी,
कांग्रेस को बताना चाहिए कि संविधान निर्माताओं ने किस “ध्रुवीकरण” के सिद्धांत या एजेंडे पर चल कर संविधान के अनुच्छेद 44 में लिखा था कि “देश सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू
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अमिश नाम के एक लेखक ने भगवान राम को जन्म से अशुभ बताया,
हनुमान जी और जटायु को विकृति के साथ जन्मा बताया और उसकी किताबे हिट हो गयी, उसकी किताबो की करोडो प्रतियाँ बिकी,पढ़ने वाले लाह लहोट हो गए की क्या गजब लिखा भगवान
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राम के बारे मे शिव के बारे मे।
ऐसे ही अब ओम राउत और मनोज मुंतशिर आ गया आदि पुरुष को भगवान राम की कहानी बताकर।
कुछ लोग इस फिल्म को लेकर भी लाह लहोट हो रहे हैं, कुछ लोग तो भावातिरेक मे
भगवान राम की कसम देकर फिल्म देखने को कह रहे थे।
मुझे भी फिल्म को लेकर बहुत उम्मीदे थी मगर पहले
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वाला ट्रेलर देख के ही समझ आ गया था फिल्म कैसी होनी है
फिल्म के संवादों और वेशभूषा को लेकर उसे जानकर लग रहा है कितने बड़े धोखे मे आये राम भक्त लोग
खैर फिल्म हिट होनी ही है क्योंकि इसको देखने वाले बहुत सारे चुतिये लोग जाएंगे और इसका पाप कहीं ना कहीं हमारे सर ही लगना है।पाप इसलिए
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#BoycottAdipurush#BoycottBollywood
जिन्हें आदिपुरुष फ़िल्म अच्छी लग रही है वे जरूर पढ़ें
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वनवास के दौरान सीताजी की भेंट ऋषि अत्रि की पत्नी महासती माता अनुसुइया से होने का वृतांत आता है।
कहते हैं माता अनुसुइया ने सीताजी को पतिव्रत धर्म का पालन करने की शिक्षा देने के
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साथ-2 उन्हें दिव्य वस्त्र आभूषण प्रदान किए जो कभी मैले नहीं होते थे एवं सदैव स्वच्छ,निर्मल एवं उजले रहते थे।( सामान्य रूप से रामायण के फिल्मांकन के दौरान सभी जगह श्रीराम,लक्ष्मण एवं सीताजी को वनवासी रूप में वल्कल वस्त्र ही धारण किए हुए दर्शाया जाता है।)
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दिब्य बसन भूषन पहिराए। जे नित नूतन अमल सुहाए॥
अर्थात- (माता अनुसुइया ने) उन्हें ऐसे दिव्य वस्त्र और आभूषण पहनाए,जो नित्य-नए निर्मल और सुहावने बने रहते हैं।
हाल ही में जारी किए गए 'आदिपुरुष' के संशोधित ट्रेलर में सीताजी की भूमिका निभाने वाली नायिका के बदरंग,शरीर दर्शाते हुए
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#आदिपुरुष#BoycottAdipurush
हनुमान जी संवाद: कपडा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का, आग भी तेरे बाप की, तो जलेगी भी तेरे बाप की!
ऐसे घटिया संवाद लिखे गए हैं। कम से कम हनुमानजी की गरिमा को तो ध्यान में रखा होता।
और उस पर मनोज मुन्तशिर जैसे लोग स्वयं को भारतीय संस्कृति का ध्वजवाहक
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घोषित करते घूम रहे हैं।
खीझ से बचना चाहते हैं तो इस रामायण से दूर ही रहें और यूट्यूब पर रामानंद सागर की पुरानी रामायण देख लें। यकीन मानिये आपकी नजरो में रामानंद सागर का सम्मान कई गुना और बढ़ जायेगा।
भक्ति के नाम पर, आस्था के नाम पर इन बॉलीवुड वालों ने अति कर दी है
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आदिपुरुष के हर शो में एक सीट हनुमान जी के लिए रखी गयी है
पहली बात तो मैं इस फ़िल्म के कतई समर्थन में नहीं हूं जिसके तमाम कारण हैं
उसपे मैं पहले भी विरोध जता चुका हूँ
पर आपत्ति अभी इस तरह भांड वुड द्वारा नौटंकी करे जाने पर है
कौन नहीं जानता कि सिनेमा हॉल की सीट से ज्यादा
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#अंतिम_ऋण_चिता_की_लकड़ी...
क्या आप जानते हैं मृत्यु के बाद भी कुछ ऋण होते हैं जो मनुष्य का पीछा करते रहते हैं।
हिंदू धर्म शास्त्रों में पांच प्रकार के ऋण बताए गए हैं देव ऋण, पितृ ऋण, ऋषि ऋण, भूत ऋण और लोक ऋण।
इनमें से प्रथम चार ऋण तो मनुष्य के इस जन्म के कर्म के आधार
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पर अगले जन्म में पीछा करते हैं। इनमें से पांचवां ऋण यानी लोक ऋण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
प्रथम चारों ऋण तो मनुष्य पर जीवित अवस्था में चढ़ते हैं, जबकि लोक ऋण मृत्यु के पश्चात चढ़ता है।
जब मनुष्य की मृत्यु होती है तो उसके दाह संस्कार में जो लकड़ियां उपयोग की जाती हैं दरअसल
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वही उस पर सबसे अंतिम ऋण होता है।
यह ऋण लेकर जब मनुष्य नए जन्म में पहुंचता है तो उसे प्रकृति से जुड़े अनेक प्रकार के कष्टों का भोग करना पड़ता है। उसे प्रकृति से पर्याप्त पोषण और संरक्षण नहीं मिलने से वह गंभीर रोगों का शिकार होता है।
मनुष्य की मृत्यु के बाद सुनाए जाने वाले
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