@omraut@manojmuntashir तुमसे अच्छी तो कोठे वाली है वो कभी भगवान का अपमान नही करती है और वो शरीर बेचकर पैसा कमाती है जमीर बेचकर नही,तुम दोनो ने तो सबकुछ पैसे के लिए बेच दिया,😡 #रावण लुहार था,जब इन्द्रजीत लिफ्ट से हनुमानजी को लेकर आता है, तब रावण अपनी वर्कशॉप में लोहा
👇
कूट रहा था। इस प्रकार इंजीनियर रावण लुहार लंका की अर्थव्यवस्था के लिए निरन्तर चिंतित था और इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान दे रहा था। रावण ने अपने बेटे इन्द्रजीत को भी मैकेनिकल इंजीनियर बनाया,और उसने टार्जन द वंडर कार का अविष्कार किया।
मेरी दृष्टि में "जय श्री राम" के नारे तक
👇
से परहेज करते... बॉलीवुड का एक ऐसा कुत्सित प्रयास है...जो हिंदू 500 वर्षों तक लड़कर ..आज अपने आराध्य का भव्य मंदिर बना रहें हैं.उसी हिंदू के आज और आगामी पीढ़ियों के मन मानस से..रामायण और रामवतार जैसी प्रभु लीलाओं को महज..एक बंबइया फिल्मी प्रस्तृत्ती ..अधिकांश बच्चे भी
👇
खेलना पसंद न करें..ऐसी एक हल्के स्तर की वीडियो गेम जैसा बना देने के लिए..टूलकिटियो ने 500 करोड़ खर्च कर दिए हैं.....?
यूंही तो नहीं किया होगा इन्होंने......!
पठान की ही भांति इस फिल्म को भी भव्य रिकार्ड ब्रेक सफल फिल्म दिखाने को अब यह टुलकिटिये...कोई कसर नहीं छोड़ेंगे..
👇
और यहां हम हिंदू....फिल्म समर्थक और विरोधी ,तटस्थ धड़ों में बंटे.अपनी संयुक्त शक्ति क्षीण करते रहेंगे...बजाय ऐसी नीच हरकत के लिए भांडवुड इंडस्ट्री के सदैव सर्वदा के समुचित बहिष्कार
अपनी किसी धार्मिक कथा पर फ़िल्म या सीरियल बनाने के लिए सबसे आवश्यक वस्तु क्या है? पैसा?
👇
स्टार अभिनेता? तकनीक? बढ़िया डायलॉग? यह सब भी आवश्यक तत्व हैं, पर पहले नहीं है। सबसे पहले आवश्यकता होती है धर्म और अपनी पौराणिक कथा के प्रति अगाध श्रद्धा की! पूर्ण समर्पण की! पूर्ण विश्वास की।
यदि श्रद्धा हो तो पुरानी तकनीक के सहारे भी महाभारत बना कर बी आर चोपड़ा अमर हो
👇
गए, पर उससे हजार गुना बजट और तकनीक लेकर भी एकता कपूर एक भद्दा सीरियल ही बना सकी। तो क्या अंतर था दोनों में? अंतर केवल श्रद्धा का था, समर्पण और सम्मान का था।
पौराणिक कथाएं एक्सपेरिमेंट की चीज नहीं होतीं। वहां आप कुछ अलग हट कर दिखाने की मूर्खता नहीं कर सकते...आपको याद रखना
👇
होगा कि धार्मिक कथाएं आस्था का विषय होती हैं,मनोरंजन का नहीं। यदि मनोरंजन के लिए निर्माण करना है तो हजारों विषय पड़े हैं,उनपर काम किया जा सकता है। यदि धर्म के लिए ही कार्य करना है तो असँख्य तात्कालिक सामाजिक मुद्दे हैं जिनपर सिनेमा बना कर लोगों को जागरूक किया जा सकता है,
👇
जैसे कश्मीर फाइल और केरल स्टोरी में किया गया। पर ऐसा धार्मिक कथाओं के साथ नहीं किया जाना चाहिये।
तनिक सोचिये तो। हमारे समाज में युग युगांतर से राम कथा क्यों कही सुनी जाती है? क्या केवल इसलिए कि अयोध्या के एक राजकुमार ने सुदूर लंका के बलशाली शासक को मार दिया था? नहीं!
👇
राम इसलिए याद नहीं किये जाते कि वे रावण हन्ता थे, राम इसलिए याद रखे जाते हैं कि वे "मर्यादा पुरुषोत्तम" थे। उनपर जब भी बात हो तो सबसे अधिक मर्यादा का ध्यान रखा जाना चाहिये।
एक सामान्य बच्चा बनवास जाते राम से सीखता है कि अपने माता-पिता के अतार्किक इच्छाओं का भी सम्मान किया
👇
जाना चाहिये। वन में भरत से लिपट कर रोते रामजी से सीखता है कि अपने अनुजों और सगे सम्बन्धियों के प्रति कितना समर्पण होना चाहिये। सीता हरण के बाद पत्नी के लिए बिलखते राम से सीखता है कि अपनी जीवन संगिनी के प्रति कितनी निष्ठा, समर्पण और प्रेम होना चाहिये। जननी जन्मभूमिश्च
👇
स्वर्गादपि गरीयसी कहते राम से सीखता है कि अपनी मातृभूमि के प्रति कैसा समर्पण होना चाहिये। रामजी का पूरा जीवन युग युगांतर तक आमजनमानस के लिए मर्यादित व्यवहार की परिभाषा गढ़ने में गया है। उनपर जब भी फ़िल्म बने तो इन बिंदुओं पर अधिक बात होनी चाहिये।
धर्मिक कथाएं किसी फिल्मी
👇
कहानीकार की गढ़ी हुई कहानी नहीं हैं कि विलेन का मतलब गब्बर और हीरो का मतलब पियक्कड़ बीरू हो। वहाँ कंस इसलिए आये ताकि समाज को बताया जाय कि उचित संस्कार नहीं मिलने पर उग्रसेन जैसे धर्मात्मा का पुत्र भी पापी कंस हो सकता है, और हिरण्यकश्यप इसलिए आये ताकि समाज याद रखे कि एक घोर
👇
पापी के बेटे को भी संस्कार मिले तो वह प्रह्लाद हो सकता है। रावण बस इसलिए महत्वपूर्ण है कि हमें याद रहे कि संस्कार न मिले तो पुलस्त्य कुल के बच्चे भी राक्षस हो सकते हैं। और यह भी याद रहे कि अधर्म कितना भी शक्तिशाली हो, उसका अंत हो ही जाना है।
आदिपुरुष फ़िल्म के निर्माताओं ने
👇
केवल इस बात का ध्यान रखा कि सिनेमा हॉल में ताली कैसे बजवाई जा सकती है।वह इसी पर ठहर गए और सारा गुड़ गोबर हो गया।यह हुआ क्योंकि केंद्र में श्रद्धा नहीं थी, ब्यवसाय था। श्रद्धा होती तो न नवाब साहब होते, न कीर्ति सेनन होतीं।
एक बात और! राष्ट्रवाद के बहार में अपना हित साधने निकले
👇
ब्यापारियों को पहचानना आवश्यक हो गया है अब! ध्यान रखा जाय..बाकी यदि विशुद्ध मनोरंजन की बात हो तो गदर 2 आ रही है...😊
• • •
Missing some Tweet in this thread? You can try to
force a refresh
तीन सौ सालों की राजशाही में अंग्रेजो ने देखा था कि जिस देश के पुरुष अपनी नारियों की रक्षा के लिए अपने शीश कटवाने से भी नहीं हिचकते और जिस देश की नारी अपने पुरुष की आन बान और शान के लिए खुद को अग्नि की लपटों में
👇
भी स्वाहा करने से नहीं डरती, उन सनातन धर्मी पुरुष और स्त्रियों के इस प्यार, बलिदान और त्याग के चलते भारत देश को कोई तोड़ नहीं पायेगा। भारतीय परिवार और समाज इसी प्रकार अक्षुणण रहेंगे और सनातन फलता फूलता रहेगा। अपने आराध्य शिव शंकर को अर्धनारीश्वर मानने वाले इसी समाज के
👇
शिव और पार्वती स्वरुप स्त्री और पुरुष के बीच नफरत की बड़ी खाई को पैदा किये बिना भारत को और सनातन धर्म को तोडना संभव नहीं था।
अंग्रेज समझ गये थे कि सनातन को नष्ट करना है तो भारतीय नारी और पुरुषों के बीच अहम् और नफरत की दरार खीचनी ही होगी और इन दोनों के ऊँचें चरित्र का हनन
👇
अमेरिकन वीकली मैगज़ीन #The_Economist के ताज़ा अंक में प्रकाशित मोदी राज पर लेख..... @narendramodi is the world’s most popular leader
गणेश कनोजिया खुद को भारतीय जनता पार्टी समर्थक नहीं मानते 58 साल का ये ऑटोरिक्शा ड्राइवर economist.com/asia/2023/06/1…
👇
परंपरागत कांग्रेस का वोटर रहा है, अपने अन्य सजातीय दलित बंधुओ की ही तरह, दिल्ली के प्रादेशिक चुनावों में भी उसने भाजपा को वोट नहीं दिया...वजह... उसे उग्रपंथी हिंदुत्व की विचारधारा पसंद नहीं.
लेकिन लोकसभा चुनाव जिनमें आगामी चुनाव भी शामिल है कनोजिया जी पक्के भाजपाई वोटर हैं
👇
"सिर्फ मोदी जी के लिए" कनोजिया स्पष्ट करते कहते हैं...
यह वैश्विक राजनीति में सबसे उल्लेखनीय प्रगति में से एक को दर्शाता है पिछले नौ वर्षों में भाजपा दो आम चुनावों और दर्जनों राज्यों में हुए चुनावों में भारत की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है
फिर भी यह एक लोकप्रिय
👇
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की मौत उनकी अपनी ही बेटी के लव जिहाद की वजह से हुई। कुटिल दामाद ने सब कुछ लूटा और पैसे के साथ भानजी को भी लेकर भाग गया।
शीला दीक्षित के जीवन से कुछ सीखने के लिए सभी हिंदुओं और उनकी बेटियों को यह लेख अवश्य पढ़ना चाहिए।
👇
indianexpress.com/article/india/…
अपने अंतिम दिनों में, शीला दीक्षित की बेटी के मुस्लिम पति मोहम्मद इमरान द्वारा अपनी बेटी लतिका के साथ किये गये धोखे और विश्वासघात से बहुत आहत और परेशान थीं,जिसने माँ और बेटी दोनों का पैसा और संपत्ति ले लीलतिका को छोड़ दिया और उनकी भानजी के साथ भाग गया।
👇
northbridgetimes.com/police-nabbed-…
शीला दीक्षित की बेटी लतिका ने 1996 में इमरान से शादी की, शीलाजी 15 साल सन 2013 तक मुख्यमंत्री रहीं पर जैसे ही वो पद से हटीं मुस्लिम दामाद ने परेशान करना शुरू कर दिया तथा बेटी को छोड़कर शादी के 20 साल बाद सन् 2016 में भाग गया, यही नहीं उसकी सारी चल अचल
👇
🌿🌻सुप्रभात दोस्तों🌻🌿
तनाव के उन क्षणों में मजबूत लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं..
वो लोग जिनके पास सब कुछ है
शान... शौकत... रुतबा... पैसा... इज्जत
इनमें से कुछ भी उन्हें नहीं रोक पाता...
#कहानी 1976 में शुरू हुई..
फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर अपनी फिल्म 'चरस' की शूटिंग के लिए स्विट्जरलैंड गए। एक शाम वे पब में बैठे और रेड वाइन ऑर्डर की। वेटर ने वाइन के साथ एक बड़ा सा लकड़ी का बॉक्स टेबल पर रख दिया। रामानंद ने कौतुहल से इस बॉक्स की ओर देखा।
👇
वेटर ने शटर हटाया और उसमें रखा टीवी ऑन किया। रामानंद सागर चकित हो गए क्योंकि जीवन मे पहली बार उन्होंने रंगीन टीवी देखा था। इसके पांच मिनट बाद वे निर्णय ले चुके थे कि अब सिनेमा छोड़ देंगे और अब उनका उद्देश्य प्रभु राम, कृष्ण और माँ दुर्गा की कहानियों को टेलेविजन के
👇
माध्यम से लोगों को दिखाना होगा।
भारत मे टीवी 1959 में शुरू हुआ। तब इसे टेलीविजन इंडिया कहा जाता था। बहुत ही कम लोगों तक इसकी पहुंच थी। 1975 में इसे नया नाम मिला दूरदर्शन। तब तक ये दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता तक सीमित था, जब तक कि 1982 में एशियाड खेलों का प्रसारण
👇