चमचों की सुलगने वाली है अब🤣

अमेरिकन वीकली मैगज़ीन #The_Economist के ताज़ा अंक में प्रकाशित मोदी राज पर लेख.....
@narendramodi is the world’s most popular leader
गणेश कनोजिया खुद को भारतीय जनता पार्टी समर्थक नहीं मानते 58 साल का ये ऑटोरिक्शा ड्राइवर
economist.com/asia/2023/06/1…
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परंपरागत कांग्रेस का वोटर रहा है, अपने अन्य सजातीय दलित बंधुओ की ही तरह, दिल्ली के प्रादेशिक चुनावों में भी उसने भाजपा को वोट नहीं दिया...वजह... उसे उग्रपंथी हिंदुत्व की विचारधारा पसंद नहीं.
लेकिन लोकसभा चुनाव जिनमें आगामी चुनाव भी शामिल है कनोजिया जी पक्के भाजपाई वोटर हैं
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"सिर्फ मोदी जी के लिए" कनोजिया स्पष्ट करते कहते हैं...
यह वैश्विक राजनीति में सबसे उल्लेखनीय प्रगति में से एक को दर्शाता है पिछले नौ वर्षों में भाजपा दो आम चुनावों और दर्जनों राज्यों में हुए चुनावों में भारत की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है
फिर भी यह एक लोकप्रिय
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बहुमत होने से बहुत कम है यह भारत के 28 राज्यों में से केवल आधे को नियंत्रित करती है
लोकसभा चुनावों में, नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के कारण, ऐसा लगता है कि अगले पांच वर्षों के लिए और शायद इससे भी अधिक वर्षों के लिए सत्ता पर पकड़ पक्की है, 77% लोगों की आज भी चाहत के साथ,
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प्रधान मंत्री अपनी पार्टी की तुलना में दोगुने से अधिक लोकप्रिय हैं वह अब तक दुनिया के सबसे लोकप्रिय निर्वाचित नेता हैं
राजनीतिक जानकारों और मोदी के चाहने वालों के एक वर्ग के साथ बातचीत में इसके तीन कारण निकल कर आते हैं
1. मोदी जी का सौभाग्य,
2. उनकी राजनीतिक प्रतिभा
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3. उनकी अनुदारवादी छवि...
मोदी जी भाग्यशाली हैं उन्हें इतिहास का सबसे कमजोर विपक्ष मिला है , जो पूरी तरह उजाड़ ही नहीं है, बल्कि खुद में एक अव्यवस्था है
जो उसकी ताकत के लिए ही काम करती है विपक्ष की बेतुकी कहानियों के ठीक विपरीत भारत की अर्थव्यवस्था ने कांग्रेस के
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नेतृत्व वाली पूर्ववर्तियों की तुलना में बेहद शानदार प्रदर्शन किया है
फिर भी विपक्ष बेहद कमजोर चौथी पीढ़ी के वंशवादी नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में चमत्कारिक सफलता की उम्मीद बांधे है
विपक्ष मोदी से एक और महत्वपूर्ण जगह मात खाता है, वे भदेश भारत का नेतृत्व करते हैं..
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उनकी जीत इस भारत की जीत होती है
खुद में आत्ममुग्ध अंग्रेजियत से ग्रस्त अपने पूर्व के शासकों के विपरीत...
मोदी स्थानीय या भदेश भारत की विजय का प्रतिनिधित्व करते हैं, राहुल आधे इतालवी हैं साथ ही अपने पिता, दादी, परदादा की ही तरह विदेश में शिक्षित और उन्ही के तरीकों से प्रभावित..
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मोदी गरीबी में जन्मे, उनका ज्ञान परिवेश से स्वयं प्राप्त है, ठीक करोड़ो अन्य भारतीय गरीबों की तरह, ये उनका गुण है..
एक कैंब्रिज से पढ़े कोंग्रेसी दिग्गज़ ने उन्हें चायवाला होने का ताना दिया था... उन्हें ख़ारिज किया था.... इससे ज्यादा भयानक आजतक किसी राजनैतिक टिप्पड़ी का
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उल्टा असर न हुआ
मोदी जी की प्रतिभा बेजोड़ है राजनैतिक नरेटिव पकड़ने स्थापित करने की, वह जनभावनाओं को पढ़ने में निपुण हैं और एक अथक प्रचारक के रूप में वे ये चीज़ेँ जनता के सामने रखते हैं संवाद स्थापित कर... इंदिरा गांधी के बाद से कोई भी अन्य भारतीय नेता ये नहीं कर पाया इसके
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साथ ही श्रीमती गांधी की तरह, वह भी अपनी सरकार द्वारा हासिल की गई हर चीज का श्रेय लेने का दावा करते हैं- और बहुत कुछ जो हासिल नहीं भी किया है
होर्डिंग्स पर सर्वव्यापी उनकी मुस्कुराती हुई तस्वीर , तश्वीर है कल्याणकारी योजनाओं की, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की और राजनयिक सफलताओं
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का चेहरा है वे
वैश्विक उथल-पुथल भरे बदलाव के समय में बहुत से भारतीय एक ऊँची शख्सियत एक हीरो के लिए उम्मीद रखते हैं, जिसे वे उस विकास के लिए धन्यवाद दे सकते हैं जिससे वे आशा करते हैं, और उसपर आस्कमिक विपदाओं का प्रबंधन करने के लिए भरोसा करते हैं जिनसे वे डरते हैं...
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कोलकाता के 34 साल के आईटी प्रोफेशनल राजदीप घोष कहते हैं "केवल मोदी ही जानते हैं कि चीजों को कैसे लागू करना है" राजदीप परंपरागत कोंग्रेसी परिवार से हैं
दिल्ली के 55 वर्षीय ड्राइवर नरेंद्र यादव कहते हैं,''मोदी जी गरीबों को इतने सारे घर बनवा कर दे रहे हैं.महामारी के दौरान मोदी-जी
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ने कई लोगों की जान बचाई"
मोदी जी की लोकप्रियता को तुलनात्मक नज़रिये से परखते हुए चुनाव विश्लेषक संजय कुमार ने कहा मोदी जी की लोकप्रियता का 20% उनके विरोधियों के निठल्लेपन के चलते है, और 65% उनके राजनीतिक कौशल की वजह से उन्होंने प्रधान मंत्री की सख्तमिज़ाजी या अनुदारवादी छवि के
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लिए केवल 15% का आंकड़ा तय किया - ये आश्चर्यजनक लग सकता है, यह देखते हुए कि यह कितना विशिष्ट है।
मोदी अपनी पार्टी के चरमपंथी वर्ग से भी करीबी रखते हैं उनके प्रिय हैं वजह 2002 में हुईं मुस्लिम विरोधी हिंसा.. वे तब राज्य के मुख्यमंत्री थे, वह इस दंगे से किसी भी तरह का जुड़ाव होने
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से इनकार करते हैं, लेकिन वास्तव में कभी उन्होने इसकी निंदा भी नहीं की है
न ही वह उन हिंदू कट्टरपंथियों को दंडित करते हैं जो मुसलमानों के खिलाफ हिंसा को खुलेआम उकसाते हुए उनके अभियानों का संचालन करते हैं पर यह जानना अच्छा है कि अधिकांश मोदी प्रशंसक मुख्य रूप से उनकी पार्टी
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द्वारा मुस्लिमों को कोसने से आकर्षित नहीं होते हैं.... लेकिन गंभीर प्रश्न यह भी है कि "क्या वह इसे रोकते हैं"?
मोदी जी अन्य मामलों में भी उदरवादी नज़र नहीं आते मीडिया में उनके आलोचकों को खामोश कर दिया गया है,भारत की संसद, सिविल सेवा और न्यायपालिका उनकी इच्छा के आगे झुक गई है..
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जैसा कि मार्च में नज़र आया , जब राहुल गांधी को भाजपा विधायक द्वारा लगाए गए आरोपों का दोषी ठहराया गया था और संसद से अयोग्य घोषित किया गया था....
फिर यह तथ्य कि मोदी जी की लोकप्रियता मात्र ऐसी गतिविधियों पर निर्भर नहीं है, केवल एक हद तक ही सुकून देने वाला भर है।
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इससे पता चलता है कि उनका उदरवादी न होना वैचारिक बाध्यता से ज्यादा रणनीतिक है।

@narendramodi
is the world’s most popular leader
GANESHA KANOJIA does not consider himself a Bharatiya Janata Party supporter. The 58-year-old auto-rickshaw driver has mostly voted for the Congress party, as members of his low-caste Dalit group tend to. In local elections in
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Delhi, where he lives, he still disdains the BJP, because he dislikes its Hindu supremacist ideology. But in general elections, including one due next year, Mr Kanojia is a safe BJP vote. “Because of Modi-ji,” he explains.

This illustrates one of the most remarkable
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developments in global politics. Over the past nine years the BJP has emerged, in two general elections and dozens of state ones, as India’s biggest party. Yet it is far short of having a popular majority. It controls only half of India’s 28 states. In general elections, it
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seems nonetheless to have a lock on power, for the next five years and probably more,thanks to the popularity of Narendra Modi. With an approval rating of 77%, the prime minister is more than twice as popular as his party. He is by far the world’s most popular elected leader.

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Conversations with political scientists and a cross-section of Modi fans suggest three main reasons for this phenomenon. Mr Modi is benefiting from a combination of good luck,political brilliance and ruthlessness.

He is lucky in his opposition, which is not merely a shambles,
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but a sort of shambles that plays to his strength. Contrary to the story he tells, India’s economy has not done better under his government than under its Congress-led predecessors. Yet under its weak, uncharismatic fourth-generation dynastic leader, Rahul Gandhi, Congress
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has failed to lay claim to this success, let alone promise a repeat performance.

It has also been tarred by Mr Modi’s most effective populist claim, that he represents the triumph of vernacular, battling India over its complacent Anglophone former rulers. Mr Gandhi is half
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Italian and, like his father, grandmother and great-grandfather, all Indian prime ministers, Oxbridge-educated. Mr Modi was born poor, is largely self-taught and, partly because that describes millions of Indians, hugely admired for it. Another Cambridge-educated Congress
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luminary once dismissed him as a chaiwala (tea-seller)—which he was. No political barb has backfired more disastrously.

Mr Modi’s genius is his ability to capture the political narrative in such ways. He is adept at reading mass sentiment and, as a relentless campaigner,
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courts it as no other Indian leader has since Indira Gandhi, or even more. Also like Mrs Gandhi, he claims credit for everything his government has achieved—and much that it has not. His smiling image, ubiquitous on billboards, is the face of welfare schemes, infrastructure
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projects and diplomatic shindigs. In a time of tumultuous change, many Indians crave a kingly figure whom they can thank for the progress they hope for, and trust to manage the uncertainties they fear. “Only Modi knows how to implement things,” says Rajdip Ghosh, a 34-year-
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old IT professional in Kolkata (who was named after Mr Gandhi’s father, Rajiv). “Modi-ji is providing so many houses for the poor,” says Narendra Yadav, a 55-year-old driver in Delhi. “During the pandemic Modi-ji saved so many lives.”

Asked to give a relative weighting to
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these factors, Sanjay Kumar, a psephologist, attributed 20% of Mr Modi’s popularity to the ineffectiveness of his opponents and 65% to his political skills. He attributed only 15% to the prime minister’s ruthlessness—which could seem surprising, given how conspicuous it is.

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Mr Modi is closely associated with his party’s Hindu chauvinism, owing to a vicious pogrom against Muslims in Gujarat in 2002, while he was the state’s chief minister. He denies having any link to the atrocity, but has never really condemned it. Nor does he chastise the Hindu
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zealots who man his campaigns while openly inciting violence against Muslims. It is good to know most Modi fans are not mainly drawn by his party’s Muslim-bashing.

It is sobering to ask why, then, does he not stop it?

Mr Modi has also ranged into other sorts of illiberalism.
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His critics in the media have been cowed into silence. India’s parliament, civil service and judiciary have been bent to his will—as demonstrated in March, when Mr Gandhi was convicted of bogus charges levelled by a BJP lawmaker and disqualified from parliament. Again, the
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fact that Mr Modi’s popularity is not dependent on such activities is comforting only to a degree. It suggests his illiberalism is less strategic than compulsive.

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Jun 19
#PappuDiwas #BanAdipurushMovie

हिन्दू मैरिज एक्ट 1955

तीन सौ सालों की राजशाही में अंग्रेजो ने देखा था कि जिस देश के पुरुष अपनी नारियों की रक्षा के लिए अपने शीश कटवाने से भी नहीं हिचकते और जिस देश की नारी अपने पुरुष की आन बान और शान के लिए खुद को अग्नि की लपटों में
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भी स्वाहा करने से नहीं डरती, उन सनातन धर्मी पुरुष और स्त्रियों के इस प्यार, बलिदान और त्याग के चलते भारत देश को कोई तोड़ नहीं पायेगा। भारतीय परिवार और समाज इसी प्रकार अक्षुणण रहेंगे और सनातन फलता फूलता रहेगा। अपने आराध्य शिव शंकर को अर्धनारीश्वर मानने वाले इसी समाज के
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शिव और पार्वती स्वरुप स्त्री और पुरुष के बीच नफरत की बड़ी खाई को पैदा किये बिना भारत को और सनातन धर्म को तोडना संभव नहीं था।
अंग्रेज समझ गये थे कि सनातन को नष्ट करना है तो भारतीय नारी और पुरुषों के बीच अहम् और नफरत की दरार खीचनी ही होगी और इन दोनों के ऊँचें चरित्र का हनन
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Jun 19
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की मौत उनकी अपनी ही बेटी के लव जिहाद की वजह से हुई। कुटिल दामाद ने सब कुछ लूटा और पैसे के साथ भानजी को भी लेकर भाग गया।
शीला दीक्षित के जीवन से कुछ सीखने के लिए सभी हिंदुओं और उनकी बेटियों को यह लेख अवश्य पढ़ना चाहिए।

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indianexpress.com/article/india/…
अपने अंतिम दिनों में, शीला दीक्षित की बेटी के मुस्लिम पति मोहम्मद इमरान द्वारा अपनी बेटी लतिका के साथ किये गये धोखे और विश्वासघात से बहुत आहत और परेशान थीं,जिसने माँ और बेटी दोनों का पैसा और संपत्ति ले लीलतिका को छोड़ दिया और उनकी भानजी के साथ भाग गया।
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northbridgetimes.com/police-nabbed-…
शीला दीक्षित की बेटी लतिका ने 1996 में इमरान से शादी की, शीलाजी 15 साल सन 2013 तक मुख्यमंत्री रहीं पर जैसे ही वो पद से हटीं मुस्लिम दामाद ने परेशान करना शुरू कर दिया तथा बेटी को छोड़कर शादी के 20 साल बाद सन् 2016 में भाग गया, यही नहीं उसकी सारी चल अचल
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Jun 19
🌿🌻सुप्रभात दोस्तों🌻🌿
तनाव के उन क्षणों में मजबूत लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं..
वो लोग जिनके पास सब कुछ है
शान... शौकत... रुतबा... पैसा... इज्जत
इनमें से कुछ भी उन्हें नहीं रोक पाता...

तो फिर क्या कमी रह जाती है ???

कमी रह जाती है उस ऊँचाई पर
एक अदद दोस्त की...
👇 twitter.com/i/web/status/1… Image
कमी होती है उस मुकाम पर
एक अदद राजदार की...

एक ऐसे दोस्त की जिसके साथ "चांदी के कपों" में नहीं,
किसी छोटी सी चाय के दुकान पर बैठ
सकते...

जो उन्हें बेतुकी बातों से, जोकर बन कर, हंसा पाते ..

वह जिससे अपनी दिल की बात कह हल्के हो सके...
वह जिसको देखकर, अपना स्ट्रेस भूल सके...
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वह दोस्त
वह साथी
वह राजदार
वह हमप्याला
उनके पास नहीं होता
जो कह सके तू सब छोड़... चाय पी मैं हूं ना तेरे साथ...
और आखिर में
यही मायने कर जाता है...

सारी दुनिया की धन दौलत
एकतरफ... सारा तनाव एक तरफ...

वह दोस्त वह एक तरफ !!!

लेकिन अगर आपके पास
वह दोस्त है
वह साथी है
👇
Read 4 tweets
Jun 18
इनका ये सब काम काहे नहीं होता है भाई😂

दुःख | दर्द | अफ़सोस | वेदना | व्यथा | शोक | संताप | मातम | पीड़ा | विपदा | खेद तकलीफ़ | कसक अवसाद आफ़त | कुढ़न खिन्नता | गम | ग्लानि | ज़हमत | टीस ताप | त्रास | कष्ट | दरद | दुखड़ा बला | बियाधि | मलाल | मुसीबत | यंत्रणा | यातना |
👇 Image
रंज रंजोगम | आर्ति | विषाद | शूल | संकट | अफ़सोस | वेदना | व्यथा | शोक | संताप | मातम | विपदा | खेद | तकलीफ़ | कसक | अवसाद | आफ़त | कुढन | खिन्नता | गम | ग्लानि | ज़हमत | टीस | ताप | त्रास | कष्ट | दरद | दुखड़ा | बला | बियाधि | मलाल | मुसीबत | यंत्रणा |
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आर्ति | विषाद | शूल | संकट | दुःख | दर्द | अफ़सोस | वेदना | व्यथा | शोक | संताप | मातम | पीड़ा विपदा | खेद | तकलीफ़ | कसक | अवसाद | आफ़त कुढ़न | खिन्नता गम | ग्लानि | ज़हमत टीस | ताप | त्रास | कष्ट | दरद | दुखड़ा | बला | बियाधि | मलाल | मुसीबत | यंतरण | यतन | रज | रजगम |
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Read 4 tweets
Jun 18
@omraut @manojmuntashir तुमसे अच्छी तो कोठे वाली है वो कभी भगवान का अपमान नही करती है और वो शरीर बेचकर पैसा कमाती है जमीर बेचकर नही,तुम दोनो ने तो सबकुछ पैसे के लिए बेच दिया,😡
#रावण लुहार था,जब इन्द्रजीत लिफ्ट से हनुमानजी को लेकर आता है, तब रावण अपनी वर्कशॉप में लोहा
👇 ImageImage
कूट रहा था। इस प्रकार इंजीनियर रावण लुहार लंका की अर्थव्यवस्था के लिए निरन्तर चिंतित था और इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान दे रहा था। रावण ने अपने बेटे इन्द्रजीत को भी मैकेनिकल इंजीनियर बनाया,और उसने टार्जन द वंडर कार का अविष्कार किया।

मेरी दृष्टि में "जय श्री राम" के नारे तक
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से परहेज करते... बॉलीवुड का एक ऐसा कुत्सित प्रयास है...जो हिंदू 500 वर्षों तक लड़कर ..आज अपने आराध्य का भव्य मंदिर बना रहें हैं.उसी हिंदू के आज और आगामी पीढ़ियों के मन मानस से..रामायण और रामवतार जैसी प्रभु लीलाओं को महज..एक बंबइया फिल्मी प्रस्तृत्ती ..अधिकांश बच्चे भी
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Read 16 tweets
Jun 17
#कहानी 1976 में शुरू हुई..
फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर अपनी फिल्म 'चरस' की शूटिंग के लिए स्विट्जरलैंड गए। एक शाम वे पब में बैठे और रेड वाइन ऑर्डर की। वेटर ने वाइन के साथ एक बड़ा सा लकड़ी का बॉक्स टेबल पर रख दिया। रामानंद ने कौतुहल से इस बॉक्स की ओर देखा।
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वेटर ने शटर हटाया और उसमें रखा टीवी ऑन किया। रामानंद सागर चकित हो गए क्योंकि जीवन मे पहली बार उन्होंने रंगीन टीवी देखा था। इसके पांच मिनट बाद वे निर्णय ले चुके थे कि अब सिनेमा छोड़ देंगे और अब उनका उद्देश्य प्रभु राम, कृष्ण और माँ दुर्गा की कहानियों को टेलेविजन के
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माध्यम से लोगों को दिखाना होगा।
भारत मे टीवी 1959 में शुरू हुआ। तब इसे टेलीविजन इंडिया कहा जाता था। बहुत ही कम लोगों तक इसकी पहुंच थी। 1975 में इसे नया नाम मिला दूरदर्शन। तब तक ये दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता तक सीमित था, जब तक कि 1982 में एशियाड खेलों का प्रसारण
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