तीन सौ सालों की राजशाही में अंग्रेजो ने देखा था कि जिस देश के पुरुष अपनी नारियों की रक्षा के लिए अपने शीश कटवाने से भी नहीं हिचकते और जिस देश की नारी अपने पुरुष की आन बान और शान के लिए खुद को अग्नि की लपटों में
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भी स्वाहा करने से नहीं डरती, उन सनातन धर्मी पुरुष और स्त्रियों के इस प्यार, बलिदान और त्याग के चलते भारत देश को कोई तोड़ नहीं पायेगा। भारतीय परिवार और समाज इसी प्रकार अक्षुणण रहेंगे और सनातन फलता फूलता रहेगा। अपने आराध्य शिव शंकर को अर्धनारीश्वर मानने वाले इसी समाज के
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शिव और पार्वती स्वरुप स्त्री और पुरुष के बीच नफरत की बड़ी खाई को पैदा किये बिना भारत को और सनातन धर्म को तोडना संभव नहीं था।
अंग्रेज समझ गये थे कि सनातन को नष्ट करना है तो भारतीय नारी और पुरुषों के बीच अहम् और नफरत की दरार खीचनी ही होगी और इन दोनों के ऊँचें चरित्र का हनन
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करना ही होगा।
अंग्रेजो को पश्चाताप हो रहा था अपनी ही तीन सौ वर्ष पुरानी नीति पर।
उनको पश्चाताप था कि तीन सौ साल पहले ही भारत को अपना गुलाम बनाने के बाद उन्होंने भारतीय हिन्दुओं को क्यूँ उनके "धर्मशास्त्र" कहे जाने वाले मनुस्मृति, नारदस्मृति, विष्णु स्मृति, याज्ञवलक्य स्मृति,
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प्रसारा स्मृति, अपस्थाम्बा के धर्मसूत्र, गौतम के धर्मसूत्र, गुरु वशिष्ठ के धर्मसूत्र, कल्पसूत्रों, वेदों और वेदांगों के आधार पर अपने परिवार, समाज और वैवाहिक संबंधो की स्थापना करने देने का अधिकार यथावत रहने दिया! क्यूँ उसको उसी समय छिन्न-छिन्न नहीं कर दिया!
आपको को यहाँ बताना
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उचित होगा कि भारत में अपना वर्चस्व स्थापित करने के बाद अंग्रेजो के सामने यह एक बड़ा प्रश्न आया था कि भारतीय सनातनियों के समाज का सञ्चालन कैसे हो ? भारत के मुस्लिम समाज का सञ्चालन कैसे हो ? इनकी परिवार व्यवस्था कैसे तय की जाये और न्याय व्यवस्था कैसी हो? सही मायनो में तो
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इन व्यवस्थाओं में अंग्रेज इंटरेस्टेड थे ही नहीं, उनको तो बस व्यापार करना था और अधिक से अधिक पैसा कमाना था। फिर भी समाज को चलाना भी तो था ही, कोर्ट कचहरी बनाकर अपने जज बैठाने तो थे - तो उस वक्त उन्होंने सोचा था कि जो जैसा है वैसे ही रहने दिया जाए और इस कार्य में ज्यादा
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माथा पच्ची और टाइम वेस्ट न किया जाये। इसलिए उन्होंने पुरातन सनातनी समाज एवं परिवार व्यवस्थाओं को ज्यों का त्यों अपना लिया था। भारतीय सनातनी समाज के आधार "धर्मशास्त्र" में दी गयी व्यवस्थाओं को कानून मानकर अंग्रेजों ने उनको "हिन्दू लॉ" का नाम दिया और और मुसलमानों के लिए
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मुस्लिम तानाशाह औरंगजेब के समय में लिखे गये "फतवा-ए-आलमगीरी" को मुसलमानों के समाज का कानून मानकर "मुस्लिम पर्सनल लॉ" का नाम दिया गया और इन कानूनों को भारत में लागू कर दिया गया। उल्लेखनीय है कि पुरातन सनातनी समाज व्यवस्था को तो नेहरु के #हिन्दू_मैरिज_एक्ट ने समाप्त कर दिया
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किन्तु मुसलमानों के लिए वही "फतवा-ए-आलमगीरी" का शैतानी "#मुस्लिम_पर्सनल_लॉ" देश में आज तक लागू है।
इस जहर बुझे हुए "फतवा-ए-आलमगीरी" और इसकी व्यवस्थाओ और धारणाओं पर चर्चा किसी अन्य लेख में विस्तार से करूँगा, किन्तु यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है कि यही वह "फतवा-ए-आलमगीरी" था
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जिसके अनुसार सच्चे मुसलामान के लिए गुलाम और काफ़िर औरतों (जो युद्ध में हार गये सनातनी हिन्दुओं की औरते ही होती थी) के साथ बलात्कार करना एक धार्मिक कृत्य कहा गया था (जिसका जिक्र आज भी कुछ मुस्लिम मुल्ले मौलवी पीर पैगम्बर अपने फतवों में यदा कदा करते रहते हैं)|
तो कहने का
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तात्पर्य है कि अंग्रेजों के लगभग तीन सौ साल की राजशाही के दौरान पुरातन भारतीय सनातनी समाज व्यवस्था 'हिन्दू लॉ' अर्थात "धर्मशास्त्रों" की अवधारणाओं और व्यवस्थाओं के अनुसार ही चलती रही थी किन्तु 1941 तक आते आते अंग्रेज समझ गये थे कि अगर हिन्दुस्तान को सही मायनो में पंगु
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बनाना है तो अंतिम प्रहार इसी पुरातन सनातनी पारिवारिक व्यवस्था पर करना होगा। हानि इसी "धर्मशास्त्र" की करनी होगी, तभी सनातन धर्म की वास्तविक हानि हो सकेगी और भारत का मजबूत समाज सदा के लिए पंगु बन सकेगा...|
अंग्रेज समझ गये थे कि इन सनातनी हिन्दुओं के ऊँचे चरित्र का मूल कारण
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इसके धर्मशास्त्र में वर्णित "आचार","विचार"और "प्रायश्चित"जैसे महान तत्वों का इन हिन्दुओं के जीवन में समावेश था।
अंग्रेजो का अगला कदम इसी आचार, विचार और प्रायश्चित की भावना पर प्रहार करके इसको नष्ट करना था। #हिन्दुओं_की_वैवाहिक_व्यवस्थाओं_को_छिन्न_भिन्न करना था। सनातन के स्त्री
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और पुरुष के अर्धनारीश्वर रूप को सदा के लिए अलग करके नष्ट कर देना था।
फिर क्या था अंग्रेजो की योजना का चौथा और अंतिम चरण "सनातनी धर्मशास्त्र सम्मत पारिवारिक व्यवस्था का पूर्ण विनाश" प्रारंभ हो गया।
भारतीय इतिहास के इन लिखे-अधलिखे पन्नों पर सनातन धर्म का खून लगा हुआ है जो
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हर हिन्दू स्त्री पुरुष को अब महसूस करना ही होगा...!!
अंग्रेजों का यह चरण शुरू होता है 1941 में....
आजादी से भी लगभग छः वर्ष पूर्व सन 1941 में अंग्रेजों ने भारत के ही एक और #मैकाले_शिक्षा_जनित अपने एक सिविल सर्वेंट "Sir" #बी_एन_राव को पकड़ा और उससे कहा कि वह भारत के इन
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हिन्दुओं के लिए ऐसा कानून लिखे कि इनकी अर्धनारीश्वर की इस गौरवमयी प्रतिमा का गुरुर टूट जाये और यह प्रतिमा छिन्न छिन्न हो जाये। पुरुष और स्त्री एक दूसरे को पूरक नहीं, प्रतिद्वंदी समझने लगें।। इनकी स्त्रियाँ पतितपथ गामिनी, व्यभिचारिणी हो जाएँ और इनके पुरुष अपनी स्त्रियों की
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आन बान और शान के लिए सिर तो क्या, सिर का एक बाल तक ना कटवाएं और सनातनी वैवाहिक व्यवस्था जो सात सात जन्मों तक वैवाहिक बन्धन की पवित्रता की बात करती है, एक जन्म भी इस बंधन को न निभा पाए। समाज में तलाक होने लगे, परिवार टूट जाए, परिवारों के बच्चे बिखर जाएँ, और स्त्री और पुरुष
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एक दूसरे को अपना दुश्मन समझने लगें।
बी एन राव अंग्रेजों के दिए हुए इस पवित्र कार्य में लग गये।
उन्होंने पाया कि इस महान किताब का पहला पाठ तो उनके जैसे ही मैकाले शिक्षा पुत्र देशमुख नाम के एक अन्य अंग्रेज भक्त 1937 में लिख ही चुके हैं। जिसको उन्होंने नाम दिया था
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Hindu Women's Rights to Property Act (Deshmukh Act 1937). इस एक्ट के द्वारा हिन्दू औरतों को पॉवर देने की बात कहकर भारतीय सनातनी परिवारों में पहली दरार तो खींची ही जा चुकी थी...!!
फिर क्या था, इसी पाठ को आगे बढ़ाते हुए मैकाले शिक्षा पुत्र बी एन राव ने इस किताब में अगला
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अध्याय जोड़ दिया कि हिन्दू पति पत्नी चाहें तो एक दूसरे से अलग अलग भी रह सकते हैं। इस अध्याय में प्रावधान दिया गया कि हिन्दू औरत और पुरुष जब चाहे कुछ कुछ कारण बताकर एक दूसरे से अलग अलग रहे और स्त्री अपने लिए #पुरुष_से_मेंटेनेंस_की_मांग करे, जो उसको पुरुष से दिलवाया जायेगा।
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इन सबको पता था कि पति से कारण-अकारण अलग रह कर पति से ही मेंटेनेंस लेकर अलग रह रही नारी और नारी से अलग हुआ विरही पुरुष अपने आप टूट जायेंगे, उनके #बच्चे_बिखर_जायेंगे और भारत के आचार विचार तो क्या चरित्र तक का अपने आप हनन होता चला जायेगा...!! यही तो चाहते थे कुटिल अंग्रेज।
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बी एन राव की यह किताब 1941 से 1947 तक लिखी जाती रही। और इस किताब का नाम दिया "हिन्दू कोड बिल"
वर्ष 1947 में इस कुटिल किताब में एक और कुटिल अध्याय जोड़ा गया "तलाक" के अधिकार का। और यही से सनातन धर्म के सात सात जन्मो के वैवाहिक बंधन के विचार को नष्ट करने का सबसे कुटिल अध्याय
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शुरू हो गया।
और फिर वर्ष 1947 में ही इस कुटिल किताब में एक अंतिम अध्याय जोडा गया जिसके प्रावधानों के अनुसार सनातन धर्म के मजबूत स्तम्भ "सयुंक्त परिवार" अर्थात जॉइंट फॅमिली एवं प्रॉपर्टी सिस्टम को ख़त्म करने का प्रावधान हिन्दुओं को दे दिए जाने की बात कही गयी।
इस अध्याय में कहा
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गया कि पिता की संपत्ति में पुत्र के साथ साथ पुत्री का भी अधिकार होगा। भारत की नारियों को इस प्रकार के प्रावधान बहुत लुभावने से लगने वाले थे, किन्तु इसी में तो अंग्रेजों की कुटिल नीति छिपी हुई थी..जो देश आज तक न समझ पाया.....!!
"हिन्दू कोड बिल" का आखिरी पन्ना 1947 में लिख
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कर तैयार हो गया।
कितना खास होगा वह पन्ना...!! शायद इसी पन्ने के इंतज़ार में अंग्रेज अब तक भारत से चिपके बैठे थे और जैसे ही 1947 में इस बिल का आखिरी पन्ना लिखा गया, अंग्रेजो ने देश को छोड़ने की घोषणा कर दी। और जाते जाते "हिन्दू कोड बिल" की यह कुटिल किताब अपने
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प्रिय, #मैकाले_शिक्षा_पुत्र#जवाहर_लाल_नेहरु को देना नहीं भूले... शायद इस आदेश के साथ, कि प्रधानमंत्री तुम बन जाओगे, वह हम पर छोड़ दो, किन्तु प्रधानमंत्री बनते ही सबसे पहला कार्य जो तुमको करना होगा वह होगा इस "हिन्दू कोड बिल" को पूरे भारत के हिन्दुओं पर लागू करना।
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अंग्रेजों और नेहरु के बीच इसको लेकर और क्या क्या कुटिल समझौते हुए होंगे, यह तो वो चार दीवारे ही जानती होंगी, जिनमें बैठकर वें खूनी समझौते हुए, किन्तु इतिहास को तो सिर्फ वही पता होता है जो उसने स्वयं देखा, स्वयं पर झेला और स्वयं किसी के खून से लिखा। यह लेख इतिहास के उन्ही
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पन्नों पर सनातन धर्म के खून से लिखी -अधलिखी कहानी ही तो है....!!
हिन्दू कोड बिल नेहरु को दिया जा चुका था। कितने आश्चर्य की बात है कि औरंगजेबी "फतवा-ए-आलमगीरी" अर्थात "मुस्लिम पर्सनल लॉ" को लेकर अंग्रेजो ने भी कोई नया बिल नही लिखा था।
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शायद यह भी अंग्रेजों की कोई कुटिल नीति ही थी...जो अब आजादी के सत्तर साल बाद रंग दिखा रही है....।
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अमेरिकन वीकली मैगज़ीन #The_Economist के ताज़ा अंक में प्रकाशित मोदी राज पर लेख..... @narendramodi is the world’s most popular leader
गणेश कनोजिया खुद को भारतीय जनता पार्टी समर्थक नहीं मानते 58 साल का ये ऑटोरिक्शा ड्राइवर economist.com/asia/2023/06/1…
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परंपरागत कांग्रेस का वोटर रहा है, अपने अन्य सजातीय दलित बंधुओ की ही तरह, दिल्ली के प्रादेशिक चुनावों में भी उसने भाजपा को वोट नहीं दिया...वजह... उसे उग्रपंथी हिंदुत्व की विचारधारा पसंद नहीं.
लेकिन लोकसभा चुनाव जिनमें आगामी चुनाव भी शामिल है कनोजिया जी पक्के भाजपाई वोटर हैं
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"सिर्फ मोदी जी के लिए" कनोजिया स्पष्ट करते कहते हैं...
यह वैश्विक राजनीति में सबसे उल्लेखनीय प्रगति में से एक को दर्शाता है पिछले नौ वर्षों में भाजपा दो आम चुनावों और दर्जनों राज्यों में हुए चुनावों में भारत की सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है
फिर भी यह एक लोकप्रिय
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दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की मौत उनकी अपनी ही बेटी के लव जिहाद की वजह से हुई। कुटिल दामाद ने सब कुछ लूटा और पैसे के साथ भानजी को भी लेकर भाग गया।
शीला दीक्षित के जीवन से कुछ सीखने के लिए सभी हिंदुओं और उनकी बेटियों को यह लेख अवश्य पढ़ना चाहिए।
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indianexpress.com/article/india/…
अपने अंतिम दिनों में, शीला दीक्षित की बेटी के मुस्लिम पति मोहम्मद इमरान द्वारा अपनी बेटी लतिका के साथ किये गये धोखे और विश्वासघात से बहुत आहत और परेशान थीं,जिसने माँ और बेटी दोनों का पैसा और संपत्ति ले लीलतिका को छोड़ दिया और उनकी भानजी के साथ भाग गया।
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northbridgetimes.com/police-nabbed-…
शीला दीक्षित की बेटी लतिका ने 1996 में इमरान से शादी की, शीलाजी 15 साल सन 2013 तक मुख्यमंत्री रहीं पर जैसे ही वो पद से हटीं मुस्लिम दामाद ने परेशान करना शुरू कर दिया तथा बेटी को छोड़कर शादी के 20 साल बाद सन् 2016 में भाग गया, यही नहीं उसकी सारी चल अचल
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🌿🌻सुप्रभात दोस्तों🌻🌿
तनाव के उन क्षणों में मजबूत लोग भी आत्महत्या कर लेते हैं..
वो लोग जिनके पास सब कुछ है
शान... शौकत... रुतबा... पैसा... इज्जत
इनमें से कुछ भी उन्हें नहीं रोक पाता...
@omraut@manojmuntashir तुमसे अच्छी तो कोठे वाली है वो कभी भगवान का अपमान नही करती है और वो शरीर बेचकर पैसा कमाती है जमीर बेचकर नही,तुम दोनो ने तो सबकुछ पैसे के लिए बेच दिया,😡 #रावण लुहार था,जब इन्द्रजीत लिफ्ट से हनुमानजी को लेकर आता है, तब रावण अपनी वर्कशॉप में लोहा
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कूट रहा था। इस प्रकार इंजीनियर रावण लुहार लंका की अर्थव्यवस्था के लिए निरन्तर चिंतित था और इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान दे रहा था। रावण ने अपने बेटे इन्द्रजीत को भी मैकेनिकल इंजीनियर बनाया,और उसने टार्जन द वंडर कार का अविष्कार किया।
मेरी दृष्टि में "जय श्री राम" के नारे तक
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से परहेज करते... बॉलीवुड का एक ऐसा कुत्सित प्रयास है...जो हिंदू 500 वर्षों तक लड़कर ..आज अपने आराध्य का भव्य मंदिर बना रहें हैं.उसी हिंदू के आज और आगामी पीढ़ियों के मन मानस से..रामायण और रामवतार जैसी प्रभु लीलाओं को महज..एक बंबइया फिल्मी प्रस्तृत्ती ..अधिकांश बच्चे भी
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#कहानी 1976 में शुरू हुई..
फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर अपनी फिल्म 'चरस' की शूटिंग के लिए स्विट्जरलैंड गए। एक शाम वे पब में बैठे और रेड वाइन ऑर्डर की। वेटर ने वाइन के साथ एक बड़ा सा लकड़ी का बॉक्स टेबल पर रख दिया। रामानंद ने कौतुहल से इस बॉक्स की ओर देखा।
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वेटर ने शटर हटाया और उसमें रखा टीवी ऑन किया। रामानंद सागर चकित हो गए क्योंकि जीवन मे पहली बार उन्होंने रंगीन टीवी देखा था। इसके पांच मिनट बाद वे निर्णय ले चुके थे कि अब सिनेमा छोड़ देंगे और अब उनका उद्देश्य प्रभु राम, कृष्ण और माँ दुर्गा की कहानियों को टेलेविजन के
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माध्यम से लोगों को दिखाना होगा।
भारत मे टीवी 1959 में शुरू हुआ। तब इसे टेलीविजन इंडिया कहा जाता था। बहुत ही कम लोगों तक इसकी पहुंच थी। 1975 में इसे नया नाम मिला दूरदर्शन। तब तक ये दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता तक सीमित था, जब तक कि 1982 में एशियाड खेलों का प्रसारण
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