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देश तानाशाही की तरफ़ बढ़ रहा है। मोदी जी तानाशाह बन गए हैं, इत्यादि। देश में ये बहस काफ़ी दिनों से चल रही है। 

कल तक मुझे इस बात से कोई लेना देना नहीं था कि मोदी जी तानाशाह हैं या नहीं। अगर वो तानाशाह हैं भी तो उससे मेरी लाईफ़ पर क्या फ़र्क़ पड़ता है?

मैं तो शांति से अपना काम करता हूं। मेरे काम से दिल्ली सरकार के स्कूलों के लाखों बच्चों को फ़ायदा होता है। इस काम से किसी को कोई नुक़सान नहीं होता। लिहाज़ा कुछ छिटपुट मसलों को छोड़ दें तो किसी के पास मुझसे नाराज़गी का कोई कारण भी नहीं है।

मैं शाम को अपने घर जाता हूं, TV देखता हूं, दोस्तों से देश-दुनिया के बारे में बातें करता हूं, कुछ पढ़ता हूं और फिर सो जाता हूं। अगले दिन यही दिनचर्या फिर से शुरू हो जाती है।

मेरी लाइफ़ बड़ी शांति से कट रही थी। मोदीजी अपना काम कर रहे थे और मैं अपना। न मैं उनके काम में कोई दखल देता था, न उन्हें मेरे काम से कोई मतलब था। यानी हम दोनों “peacefully co-exist” कर रहे थे।

पर यहीं कहानी में ट्विस्ट आ गया।

दिल्ली सरकार के सतर्कता विभाग के विशेष सचिव ने ज़बर्दस्त सतर्कता दिखाते हुए 8 महीने की गहन रिसर्च के बाद ये ढूँढ निकाला कि, 8 साल पहले शिक्षा विभाग द्वारा मुझे बिना वेतन, बिना किसी सुविधा के शिक्षा निदेशक के प्रमुख सलाहकार के रूप में appoint करना ग़लत था। ऐसा सिर्फ़ इसलिए क्योंकि उस appointment की मंज़ूरी जनाब उपराज्यपाल महोदय से नहीं ली गई थी।

हैरान होकर मैंने शिक्षा विभाग के उन लोगों से, जो इस विषय की जानकारी रखते हैं, पूछा कि भाई आपसे इतनी बड़ी चूक कैसे हो गई? तो उन लोगों ने मुस्कुराते हुए कहा कि, किस बात का approval लेते?

हम न तो कोई नया पद create कर रहे थे, और न ही किसी created पद पर आपकी नियुक्ति कर रहे थे। सबसे बड़ी बात तो यह है कि, आपके ऊपर सरकारी ख़ज़ाने से एक रुपया भी खर्च नहीं हो रहा था। तो ऐसे में उपराज्यपाल महोदय से किस बात की इजाज़त लेते?

आपका engagement तो शिक्षा निदेशक और शिक्षा मंत्री के साथ ही था, लिहाज़ा इन दोनों की रज़ामंदी से आपके लिए आदेश जारी कर दिया गया था।

और तो और 2018 में सभी advisors की details तत्कालीन उपराज्यपाल महोदय को भेजी गई थी। उन्होंने आपको छोड़ कर बाक़ी सब हो हटाने का आदेश भी दिया था। आपको तब भी शायद इसलिए नहीं हटाया क्योंकि आपकी profile देखकर उन्हें लगा होगा कि बच्चों की शिक्षा पर काम करने के अलावा आपको और कुछ आता जाता नहीं है लिहाज़ा आप शांति से अपना काम करते रहें।

इस घटना के 6 साल बाद, सतर्कता विभाग के इन विशेष सचिव को अचानक लगा कि वो उन अधिकारियों और उस वक्त के उपराज्यपाल से कहीं ज़्यादा काबिल और समझदार हैं जिन्होंने 2018 में मेरी नियुक्ति निरस्त नहीं की थी। लिहाज़ा उनके सामने एक अवसर है की वो उस “ऐतिहासिक गलती” को सही करें और मुझे तुरंत हटायें।

अब आप सोचेंगे की इसमें मोदी जी या उनकी तानाशाही कहां से आई?

इसे जानने के लिए आगे पढ़ें….
हां, तो मैं कह रहा था की इस मामले में मोदी जी और तानाशाही कहां से आ गईं?

तो साहब, “Organisational Behaviour” की भाषा में एक टर्म होता है जिसे कहते हैं “Anticipatory Compliance”. इसका अर्थ है, अदना कर्मचारियों द्वारा वो काम करना जो उन्हें लगता है कि उनके बॉस को पसंद आएगा। यानी बॉस ने कोई आदेश नहीं दिया, या बॉस ने कभी नहीं कहा कि फ़लां काम करना है। पर कर्मचारी अपने बॉस के हावभाव और इरादे को देखकर ख़ुद ही वो सब करने लगता है, जो उसे लगता है कि उसके बॉस को पसंद आएगा।

आप थोड़ा specifically देखें की मेरे केस में क्या हुआ। हुआ यूं की दिल्ली सरकार के इन विशेष सचिव महोदय को लगा की मोदी जी तो ED और CBI के माध्यम से मनीष सिसोदिया और अरविंद केजरीवाल जैसे बड़े लोगों को तानाशाही के दर्शन करा रहे हैं, तो ऐसे में क्यों न तब तक वो ख़ुद तानाशाही के “Trickle Down” प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए कुछ छोटे लोगों को भी एक ट्रेलर दिखा दें। हो सकता है सरदार (बड़ा तानाशाह) खुश हो जाये।

वैसे भी सरदार जब अपने अफ़सरों के कारनामों से खुश होता है तो उन्हें अनगिनत सेवा विस्तार और मनमानी करने की पूरी आज़ादी देता है।

तो साहब इन महोदय ने शैलेंद्र शर्मा नामक झुनझुने को दबी हुए फ़ाइलों में से निकाला और बजा दिया। इन्हें पूरी उम्मीद होगी कि सरदार न सिर्फ़ खुश होगा बल्कि शाबाशी भी देगा और साथ में इनाम भी।

और वो इनाम इस शक्ल में हो सकता है कि इनके ख़ुद के ख़िलाफ़ जो भ्रष्टाचार के केस CBI ने कई साल पहले रजिस्टर किए थे, वो फ़ाइलों में ही दबे रहें। जो अभी कुछ दिनों पहले उत्तराखंड में कोर्ट के आदेश पर इनके ख़िलाफ़ FIR दर्ज हुई है, उसमें जाँच आगे न बढ़े। वैसे मैं और क्या कहूं, इनके बारे में पूरी जानकारी के लिये आप ख़ुद ही google कर लें।

तो दोस्तों, हम जैसे छोटे लोगों को मोदी की तानाशाही से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। उनकी तानाशाही की चिंता तो केजरीवाल, ममता बनर्जी, स्टालिन जैसे बड़े और दिग्गज लोग करें। पर छोटे तानाशाहों को देखकर नहीं लगता कि आने वाले दिनों में ये मुद्दा सिर्फ़ ऊपर वालों को ही इफ़ेक्ट करेगा।

हम और आप जैसे सामान्य लोग, जो सिर्फ़ शांति से अपना काम करना चाहते हैं, अपना घर चलाना चाहते हैं; वो भी इससे अछूते नहीं रहेंगे।

क्योंकि हमारे रास्ते में मोदीजी की तानाशाही के “Trickle Down” इफ़ेक्ट से पोषित ये बाबू, ये पुलिसवाले, ये छुटभैये नेता आयेंगे जिन्हें ताक़त देश के संविधान और क़ानून से नहीं बल्कि मोदीजी के लाइसेंस से मिल रही होगी।

ऐसे में तानाशाही का विरोध शायद इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि अब वो हमसे दूर नहीं है।

By the way, तानाशाही पर @dhruv_rathee का बहुत ही शानदार वीडियो है, ज़रूर देखियेगा, शाम को टीवी पर!!!!

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