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KhanGang👁️👁️

1️⃣👉शाहरुख:-शाहरुख खान की माँ एक हैदराबादी इंजीनियर इफ्तिखार अहमद,जो मंगलौर बन्दरगाह में वरिष्ठ इंजिनियर थे, की बेटी (लतीफ़ फातिमा) थी*

☝️जिसे नेहरु के चहेते मन्त्री(आजाद हिन्द फ़ौज के)शाहनवाज खान ने गोद लिया था,शाहनवाज खान के तीन बेटे और दो बेटियाँ थी,

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तीसरी बेटी की उनको ऐसी क्या❓ आवश्यकता पड़ी कि दूसरे से माँगना पड़ गया🤔
(इस पर कई थ्रेड विनय झा गुरुजी के लेख पोस्ट कर चुका हूँ)
☝️इस पर आजतक किसी ने कुछ नहीं लिखा है,नेहरु के मन्त्री को एक रेस्तरां वाले से उस गोद ली गयी बेटी का निकाह क्यों करना पड़ा यह भी रहस्य के घेरे में है..
☝️शाहरुख कहता है कि उसके दादा "जान मुहम्मद" अफगान पठान थे, जो सरासर झूठ है...
👉जान मुहम्मद और उसके सारे वारिसों में से कोई भी न तो खान आस्पद लगाते थे और न स्वयं को पठान कहते थे, वे लोग "हिन्दको" बोली बोलने वाले पश्चिमी कश्मीर के हिन्दकोवाँ मुस्लिम थे जो पेशावर में बस गए थे,
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#यहूदी जब बेबीलोन में निर्वासित जीवन जी रहे थे तो वहां की नदियों के तट पर बैठकर #येरूशलम की ओर मुंह करके रोते थे और विरह गीत गाते थे ।

उन्होंने वहां सौगंध ले ली कि हम तब तक कोई आनंदोत्सव नहीं मनाएंगे जब तक कि हमें हमारा येरुशलम और जियान पर्वत दोबारा नहीं मिल जाता ।

50 सालों के Image
निर्वासित जीवन में न कोई हर्ष, न गीत, न संगीत और सिर्फ़ अपनी मातृभूमि की वेदना...

इसकी तुलना अपने देश की संततियों से कीजिये ।

जो #अफगानिस्तान से निकाले गए, जो #पाकिस्तान से निकाले गए, जो बांग्लादेश से निकाले गए, जो कश्मीर से निकाले गए, क्या उनके अंदर अपनी उस भूमि के लिए कोई
वेदना है ?

इन निर्वासितों की किसी संस्था को अखंड भारत के लिए कोई कार्यक्रम करते देखा या सुना है ?

अपने छोड़े गए शहर, पहाड़, नदी आदि की स्मृति को क्या उन्होंने किसी रूप में संजोया हुआ है ?

क्या कोई विरह गीत ये अपनी उस खो गई भूमि के लिए गाते हैं ?

क्या अपनी #संततियों को समझाते
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#गफलत_मैं_मुसलमान____" पार्ट____:- 1

आज हम ऐसी बात पर आप लोगों की गौर ओ फिक्र करने की कोशिश करेंगे, जो हर मुसलमान बाखूबी जनते है और समझते है, हम अक्सर एक बात बार बार दोहराते हुए नज़र आ जाते है कि मुसलमानों पर बहुत ज़्यादा ज़ुल्म ढाए जा रहे है___1/10
अगर देखा जाए तो दुनिया की हालात भी इसी की तरफ इशारे कर रहे है, जहां देखो मुसलमानों पर कत्ल ओ गारत की एक दौर चलती हुई दिखाई दे रही है, ये दौर वैसे तो एक सदी से भी ज़्यादा पुराना है,लेकिन इसने जो तेज़ी पकड़ी है वो सन 2001 से पकड़ी है, आपको याद होगा
#worldtradecentre का वो किस्सा जिसमें एक शैतानी चाल के तेहत पूरी दुनिया के मुसलमानों को कासूरवार ठहरा कर पूरी दुनिया में बदनाम कर दी गई थी, इसी वजह से #अफगानिस्तान में जंग मुसल्लत कर दी गई, टनो के हिसाब से बारूद बरसाई गई, लाखों की तादाद में इंसानो, बच्चों और
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अमेरिका ने #काबुल_विस्फोटों की जिम्मेदार #ISIS के मुख्य साजिशकर्ता को ड्रोन अटैक में मार डालने का दावा किया है। बताया जा रहा है कि अमेरिका को उसकी पिन पॉइंट लोकेशन #तालिबान ने दी थी।

मतलब अमेरिका पिछले बीस साल से जिससे लड़ रहा था, अचानक ही उसके साथ काम करने लगा।
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गजब हो गया पेंटागन और तालिबान साथ साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं। तालिबान ने पिछले बीस वर्ष में भले ही हजारों अमेरिकी सैनिक मारे हों, लेकिन काबुल हमले में मारे गये 13 अमेरिकी सैनिकों का बदला लेने के लिए तालिबान ने अमेरिका का एक सच्चे मित्र की तरह सहयोग किया है।
बिल्कुल " तेरा यार हूँ मैं..." की तर्ज पर।

तालिबान तो पहले से ही अमेरिका के साथ बातचीत में था। वह उन्हें बाहर जाने का सेफ पैसेज दे रहा था। फिर उसने #ISIS के उस आतंकी को मारने में भी अमेरिका का फूल उफ्फ सॉरी सॉरी फुल सपोर्ट किया। तालिबान के ऐसे हृदय परिवर्तन पर तो मेरी
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