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क को खंभे पर चढ़ना नहीं आता, क को तार जोड़ना भी नहीं आता, क को मेन और अर्थिंग के बीच का अंतर भी पता नहीं है। क को ये भी पता नहीं है कि लाइट आती कहां से है और जाती कहां है? लेकिन क के पास उपरोक्त सभी की डिग्री है, और डिग्री भी सरकारी संस्थान की है।
संस्थान भी ऐसे संस्थान जहां से अमीर बाप की बेकार संतानों को हुनरमंद होने का प्रमाण पत्र दिया जाता है। जिनके भरोसे सरकारी नौकरियां मिलती हैं। वही सरकारी नौकरियां जो बिना घूस के नहीं मिलती वही घूस जो बाप के अमीर हुए बिना नहीं आता...।
क की नियुक्ति हो गई। उसे मोटी रकम (उसके हुनर के हिसाब से) मिलने लगी। अब क ने अपनी जगह काम करने के लिए ख को रख लिया। वह ख जो हुनरमंद तो था लेकिन जिसके पास अपने हुनर को साबित करने के लिए डिग्री नहीं थी। वही डिग्री जो पैसा देकर मिलती है। वही पैसा जो उसके बाप के पास नहीं था।
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वैलेंटाइन डे की बधाई
बधाई उनको
जो प्रेम में पड़कर तोतले हुए
और उनको भी जो तोतले होने की कगार पर हैं।

वे जो सब छोडछाड़ कर सीमाओं पर गए
और हव्य हो गए अपने पर्स के गैलरी में अपनी प्रेमिका की तस्वीर लगाए लगाए
कुछ लाल पीले गुलाबों के साथ बधाई उनको भी।
थोड़ी सी बधाई उन गायों को भी
जो दुहकर छोड़ दी गईं
और जो कूड़े के ढेरों में मुंह मारने को संतप्त हैं।

बधाई उन सांड़ो को भी
गाय जिनकी माता है लेकिन जिन्हें
सिर्फ दूध पीना आता है।

बधाई उन समस्त जीव प्रजातियों को
जो बीते साल विलुप्त हुए
या इस साल विलुप्त होने वाले हैं।
बधाई उन बुजुर्गों को
जो वृद्धाश्रमों की शोभा हैं
और जिनके बच्चे पांच सितारा कंपनियों के स्टार

बधाई उस नव प्रसूता मां को
जो अपनी बच्ची को बेबी बैग में लादे
खाने की डिलीवरी करती है।

बधाई उस कलूटी स्त्री को जो भट्टे के लिए
ईंटे थापती है
सुखाती है
फिर चिमनी में लगाती है।
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दो रुपए
ठिठुरन भरी सुबह में ट्यूशन पढ़कर लौट रहे बच्चे एक हाथ अपनी जेब में डाले और दूसरे हाथ से साइकिल का हैंडल सम्हाले झुंड में जोर जोर से बातें करते और ठठ्ठा लगाते जा रहे थे। सड़क किनारे थोड़ी थोड़ी दूर पर घर बने हुए थे। कुछ भैंसें और गायें सड़क के दोनो ओर बंधी हुई थीं।
अलसाए लोग मवेशियों को चारा पानी देते गोबर उठाते इधर से उधर आते जाते दिख रहे थे। औरतें सड़क किनारे बर्तन मांज रही थीं। कुछ छोटे बच्चे साइकिल का टायर छोटे डंडे से मारकर चला रहे थे। शकुन भी उनमें से एक था।
राम सरन पत्नी और मां की हजारों गालियां खाकर अब बिस्तर से उठा था।
मुंह फैलाते हुए तीन चार अंगड़ाइयां लेने के बाद उसने अलगनी पर टंगी अपनी पैंट की जेब को खंगाला और खाली हाथ बाहर निकल कर पत्नी से पूछा -
"मेरी पैंट की जेब में दो रुपए रक्खे थे तुमने निकाला क्या?"
"मैं तुम्हारे पैसे निकालकर क्या करूंगी?
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वो बारह दिन
***********
बात 2002 की है। बीएससी सेकण्ड ईयर में था। कोचिंग में एक घंटे और एक होम ट्यूशन कुल मिलाकर महीने का खर्चा आराम से निकल जाता था। नाम तो दो धंटे का था पर दोनों जगह निपटाने में कमसे कम तीन घंटे लग ही जाते थे लेकिन पढ़ाई ठीक ठाक चल रही थी तो उन
परिस्थितियों से कोई गिला शिकवा नही है।

कोचिंग का पैसा कभी -कभी लेट भी हो जाता था लेकिन होम ट्यूशन जो कि जिस मैडम के यहां था वो ऐसी थीं कि हमेशा एक तारीख को ही बिना नागा पैसे दे देती थीं।

अक्टूबर महीने का आखिरी दिन था और ठंड अभी धीरे धीरे अपना पाँव पसार ही रही थी।
एक फेरी वाला गरम कपड़े बेचने आ गया। मैं जहाँ किराये पर कमरा लेकर रहता था वहाँ आसपास में भी कुछ हमउम्र लड़के थे जो पढ़ते तो नही थे पर दोस्त थे। उन्होंने जैकेट पसंद की ... खुद लिया, तो मुझे भी लेने के लिए बोलने लगे उस समय मैं कोचिंग के लिए निकल ही रहा था।
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बड़ी पुरानी कहानी है --

एक बार पंडित जी, बाऊ साहब, लाला जी और रैदास जी कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्हें गन्ने का खेत दिखा तो चारों ने एक -एक तोड़ लिया चूसते हुए चलने लगे। कुछ दूर आगे जाने के बाद उन्हें खेत का मालिक मिल गया। उसने इन्हे गन्ना चूसते हुए देखा तो अंदर ही अंदर बहुत
गुस्सा हुआ। लेकिन ये चार थे वो अकेला था। मजबूरी में कुछ बोल न पाया और इनके साथ साथ बातचीत करते हुए चलने लगा।

थोड़ा चलने के बाद ही बातों बातों में उसने इन चारों की जाति पता कर लिया। फिर क्या था उसने अपनी चाल चलनी शुरू कर दी आखिर वो भी नाई का बेटा था, एक कहावत भी है
मनई में नौवा और पंछी में कौवा।

उसने बोलना शुरू किया -- "का रे अधम आदमी..." उसने रैदास को संबोधित किया था।

"ये तो पंडित जी हैं जन्म से लेकर मरण तक हमारा काम इनके बिना नहीं चलता, दूसरे ये बाऊ साहब हैं कहीं कोई जरूरत पड़े तो लाठी लेकर आ जायेंगे, तीसरे ये लाला जी कभी पैसा रुपया कम
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चार्वाक दर्शन (जनश्रुति)
गुरु बृहस्पति विचारमग्न बैठे थे। देवताओं के लाख सद्प्रयासों के बावजूद दानवों की प्रगति दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी।वे देवों पर युद्ध क्षेत्र से लेकर धर्म कर्म तक हर मामले में बीस ही साबित हो रहे थे।अचानक एक विचार उनके दिमाग में बिजली की तरह कौंधा।
क्यों न पुण्य और पाप के बीच के फर्क को मिटाकर एक ऐसे दर्शन का प्रतिपादन किया जाय जिसको दानवों के बीच फैलाकर उनकी बुद्धि को भ्रष्ट किया जा सके। व्यक्ति का भाग्य जो उसके कर्म पर आधारित होता है इसलिए अगर उसके कर्म को ही अधोगामी कर दिया जाय तो व्यक्ति अपने आप ही पतनोन्मुख हो जाएगा।
विचारों की नई चेतना ने उन्हें प्रफुल्लित कर दिया। वो अतिशीघ्र इसपर काम शुरू कर देना चाहते थे।

उनकी मोरपंखी से बनी कलम भोज पत्रों पर सरपट भागने लगी। 'जब तक जिओ सुख से जिओ, चाहे कर्जा लेकर घी पीओ' कोई आत्मा नहीं है कोई परमात्मा नहीं है और न ही कोई मोक्ष है।
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मैने खेत चरने आई नीलगायों को
अपने बैनामे का कागज दिखाते हुए डांटा
तो उन्होंने उछलकर अपना पेट दिखा दिया

उनका खाली पेट देख
हुक्का हुआं करते हुए सियारों
और दूध दुहकर छोड़ दी गई गायों ने कहा --
"जीने का अधिकार दुनिया के सभी अधिकारों से बड़ा होता है।"
उनकी बातें सुनकर पेड़ हंसने लगे
और नदियां रोने लगीं।

उछल रहे बंदर के बच्चे ने मेरी ओर इशारा करते हुए अपनी बंदरिया मां से पूछा --

"मां मां देखो इनके भी पूर्वज कभी बंदर थे लेकिन ये तो सभ्य होकर आदमी हो गए। आखिर हम कब तक सभ्य होंगे?"
बंदरिया ने बच्चे को डांटते हुए कहा --
"अगर सभ्य होने की परिभाषा आदमी हो जाना है फिर हम बंदर ही ठीक हैं।"

#चित्रगुप्त
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बादशाह_वजीर_और_सियार (जनश्रुति)
सुना है ... शाम ढलते ही जब सियारों ने हुक्का हुवाँ शुरू किया तो बादशाह ने वजीर से पूछा -
" सियार क्यों चिल्ला रहे हैं।"
वजीर भी स्वतंत्र भारत के नौकरशाह टाइप ही था उसने तपाक से उत्तर दिया।
"हुजूर इन्हें ठंड लग रही है इसलिए चिल्ला रहे हैं।"
बादशाह को ये सुनकर बड़ा दुःख हुआ। सत्ता अक्सर जनता के दुखों में दुखी हो ही जाती है। फिर जनहित की योजनाएं बनती हैं। धनों का आवंटन होता है। यहाँ भी वही हुआ।रातों रात धन का आवंटन हुआ। सियारों को कंबल बांटने के लिए संविदाएं मंगाई गई। ठेका उठा...ड्रामा लंबा चौड़ा हुआ पर ठेका अंततः
बादशाह के छोटे भाई और दामाद को ही मिला। मंत्री जी को प्रतिवाद के लिए उनका हिस्सा पहले ही दे दिया गया। रानी के लिए हार और राजा के लिए मुकुट की भी ब्यवस्था की गई। बचा खुचा धन ठेकेदारों ने हड़प लिया।

सियारों ने तो फिर चिल्लाना ही था वे फिर चिल्लाये।
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(1)
मैं चाहता हूं।
कि दुनिया का सब खाली स्थानों में लिख दिया जाय 'प्रेम'
और कह दिया जाय सब परीक्षकों से
कि प्रेम पढ़ने वाले
जिंदगी की परीक्षा में कभी फेल नहीं होते...।

(2)
जनवरी के महीने में बैठा मैं
जून के उस दिन के बारे में सोच रहा हूं
जिस दिन के दोपहर में हवा बिल्कुल बंद थी
और बिजली न होने की समस्या से निपटने के लिए
मैं पेड़ के नीचे बैठा हाथ पंखा झल रहा था।

और आने वाले जून की उसी तारीख में
मैं आज के दिन को भी पक्का तौर पर इतनी ही सिद्दत से
याद करूंगा, जितनी सिद्दत से आज मुझे जून की वो तारीख याद आ रही है।
(3)
हर वो रास्ता जो मेरे घर से निकलता है
वो आगे जाकर तुम्हारे घर की ओर मुड़ क्यों नहीं जाता?

(4)
बया घोसला बना रही है
बारिश भी आने वाली है
सामने डाल पर बंदर भी बैठा है।
पर मैने बया से कह दिया है
कि इस बार बंदर को उपदेश मत देना।

(5)
सागर से अच्छा नल है
जिसके पास पीने का जल है।

(6)
कबाड़ के ढेर पर रखी हुई किताबें
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कुंडी डाली
ताला मारा
सीढ़ी लगा उतरने
खाली पेट चला रमधनिया ईंटा गारा करने

संध्या भोजन में छोड़ा था सूखी रोटी एक
बड़ी देर से इधर उधर बस उसे रहा था देख
टाइम देखा घड़ी बजाने वाली थी जब सात
थी मजदूरों के मंडी में हलचल की शुरुआत
देर हुई तो फिर मजदूरों को पूछेगा कौन
सुरती धरी हथेली पर फिर निकल पड़ा वह मौन
गमछा बांधा
तहमद डाली
बूसट लगा पहनने
खाली पेट चला रामधनिया ईंटा गारा करने

घर से आया फोन पूछती रमरतिया कुछ खाया?
कह देता है झूठ उसे था तहरी आज बनाया।
साथी सभी गए छुट्टी वह आज अकेला सोया
सुबह हो गई मगर रह गया वह सोया का सोया
जाते ही जब काम मिल गया, गया सभी कुछ भूल
पानी पीकर रहा मिटाता अपने हिय का शूल
बालू छाना
गिट्टी डाली
ईंटें लगा पकड़ने
खाली पेट चला रमधनिया ईटा गारा करने

ज्यादा पानी पीने से फिर लगी खूब लघुशंका
जिसे देखकर धू धू जलने लगी सभी की लंका
मालिक बोला कामचोर है, संगी हंसे ठठाए
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किसी ने सुनाया था

दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय
मुई खाल की स्वांस सो, सार भसम होइ जाय

किसी दफ़्तर में एक चपरासी काम करता था। उसकी मैनेजर के साथ किसी बात को लेकर अनबन हो गई। मैनेजर तो मैनेजर ठहरा उसने चपरासी के वेतन एवं भत्ते सब रोक दिये।
छोटा आदमी क्या कर सकता है उसने चुपचाप सब सहन कर लिया और चुपचाप अपनी ड्यूटी करता रहा। कई महीने बीत गये लेकिन उसने किसी को कुछ न कहा और न ही किसी बात की शिकायत की। मैनेजर को यह सब देखकर बड़ी ग्लानि हुई।
एक दिन उसने चपरासी को अपने पास बुलाकर कहा कि मैं तुम्हारे कर्तब्यपरायणता का कायल हो गया हूँ इसलिए कल से तुम्हारे सारे वेतन भत्ते फिर से शुरू किए जाते हैं।
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चार कौवे थे।

पहला कौआ विशुद्ध भारतीय था। बिना हाथ गोड़ धोये पूजा पाठ किये एक बूंद पानी भी नहीं पीता था। उसे कुछ मंत्र भी याद थे जिनका स्मरण वो सुबह शाम किया करता था। उन मंत्रों के बारे में उसे बस इतना ही पता था कि वे उसके पिता जी भी पढ़ते थे और उसके पिता जी के पिता
जी भी... कड़ियाँ इसी तरह आगे तक भी जुड़ी थीं। जो शायद बहुत लंबे तक जाती थीं।

दूसरा कौवा अरबी था। जो अरब देशों में पानी न होने के कारण पैदा हुई अपनी आदतों को सागर तट पर भी नहीं छोड़ना चाहता था। रहन सहन और खान पान से तो वो आधुनिक ही था।
पर विचारों के मामले में उसके परदादा के परदादा ने जो हजारों साल पहले कह दिया था उसी को वो पक्का मानता था।

तीसरा कौआ इजिप्टियन था। जिसका एक भी काम वैसे तो गांधी जी से नहीं मिलता था फिर भी उसकी शक्ल देखते ही न जाने क्यों पोरबंदर की याद आने लग जाती थी।
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भाग्य और कर्म
दो आदमी थे, दोनों ही बड़े धार्मिक थे।एक बार भगवान उनसे आकर मिले तो उन्होंने अपने भविष्य के बारे में पूछा।भगवान ने पहले को बताया कि "तुम्हारे घर सौ मन अनाज होगा और दूसरे को कहा कि अगले साल तुम्हारी मौत किसी के भाला मारने से हो जाएगी।" उसके बाद वो अंतर्ध्यान हो गए।
जिसको सौ मन अनाज होने वाला था उसने उस दिन के बाद उसका जोड़ घटाव करना शुरू कर दिया। सुबह शाम सोते जागते उसके दिमाग में सौ मन अनाज ही घूमता रहता। उसकी लालच धीरे - धीरे बढ़ती रही और उसने दूसरे के खेत से चोरी करना भी शुरू कर दिया। साल बीता उसने अपना खेत कटवाया पूरा जोड़ा घटाया
लेकिन उसमें सौ मन तो क्या पचास मन भी नहीं निकला। उसने चोरी किया हुआ अनाज भी उसमें जोड़ा लेकिन मामला निन्यानबे मन तक ही आकर अटक गया।
उधर दूसरा जिसे भाला लगने वाला था उसके दिमाग में चौबीसों घंटे मरने का खयाल घूमने लगा। उसने अपनी सारी संपदा दान पुण्य में लुटा दी।
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#चित्रगुप्त

यह कहानी ब्रह्मा द्वारा स्थापित पुष्करवर्त में आधारित है। इस स्थान की रक्षा के लिए, भैरव ने कंकाल भैरव को अपना क्षत्रप नियुक्त किया।
इस ब्रह्मकुंड के दक्षिण में चितरादित्य (चित्रगुप्त) निवास करते है, जिसे गरीबी का नाश करने वाला कहा जाता है।

प्राचीन काल में मित्र नामक एक पवित्र कायस्थ यहाँ रहता था। उनका मित्र चित्रा नाम का एक बेटा और बेटी थी। दुर्भाग्य से मित्र मर गया।
ऋषि द्वारा उन दोनों भाई-बहनों को ले लिया गया, जिन्होंने उनमें एक गहरी धार्मिक भावना पैदा की।

एक बार वे प्रभास के क्षेत्र में गए और वहां सूर्यदेव की स्थापना की।
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कार्तिक मास, कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को,
वराह पुत्र नरकासुर ने अपने वध से पहले
#श्रीकृष्ण के समक्ष इच्छा प्रकट की,
कि, उसकी दुष्‍ट प्रवृत्तियां को #नरक_चतुर्दशी के रूप में, हर व्यक्ति,
‘अपनी बुराइयों के अन्त के उत्सव’ के रूप में मनाए।
समस्त भारतीयों को #दीपावली की शुभकामनाएँ🙏🏻
#नरक_चतुर्दशी को ही भगवान श्रीविष्णु ने राजा बलि को वामन अवतार में प्रकट होकर,हर वर्ष दर्शन देने का आशीर्वाद दिया🙏🏻

कार्तिक कृष्णपक्ष चतुर्दशी की अर्धरात्रि को अंजनी पुत्र श्रीहनुमान जी का जन्म भी हुआ🙏🏻

विष्णु-लक्ष्मी, हनुमान, यमराज जी की पूजा भारतीयों केलिए शुभ हो #दीपावली
कार्तिक मास,कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी पर समुद्र मंथन से श्रीधनवंतरी प्रकट हुए
दो दिन पश्चात् महालक्ष्मी प्रकट हुयीं,तभी से अमावस पर उनके स्वागत के लिए दीपक जलाए जाते हैं
द्वापर युग में नरकासुर वध करके लौटने पर श्रीकृष्ण के स्वागत में अमावस्या पर द्वारका में दीपक जलाने की परंपरा चली
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