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#Preface #PChina

चीनी मूल के पहले व्यक्ति जिनसे मेरी मुलाक़ात हुई होगी, वह दरभंगा के एक दंत चिकित्सक डॉ. चैंग थे। मुझे मालूम नहीं कि उनके कौन से पूर्वज कब भारत आए, किंतु बिहार-बंगाल में ऐसे कई चीनी मूल के दंत चिकित्सक मिल जाएँगे। मुमकिन है कि उन्होंने भारत से डिग्री हासिल की हो,
लेकिन उनका चिकित्सकीय ढर्रा और उनके यंत्र खानदानी नज़र आते थे। वे अपने बोर्ड पर चाइनीज डेंटिल क्लिनिक लिख कर इस बात को वजन भी देते थे।

वहीं, उनकी क्लिनिक से कुछ किलोमीटर दूर शहर के दूसरी छोर पर हवाई पट्टी थी जो 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद भारतीय वायु सेना के अंतर्गत आ गयी।
हम कहानियाँ सुनते कि अगर भारत और चीन में युद्ध होता है तो बिहार के बिहटा और दरभंगा की वायुसेना यूनिट महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। हालाँकि ऐसी स्थिति बनी नहीं। अब उसका एक हिस्सा नागरिक हवाई अड्डा बन गया है।

बाद में मेरे कुछ जानकार डाक्टरी पढ़ने चीन गए,
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#Episode3 #PChina

“दुनिया में कई राजा, कई राजकुमार हुए जिन्हें हम भूल गये। मगर इस आम आदमी को हम आज भी याद करते हैं, और आने वाली कई पीढ़ियाँ याद करेंगी। उन्होंने हम पर भले राज नहीं किया, लेकिन उन महान संत ने हमें राह दिखायी।”
- कंफ्यू़शियस के पहले जीवनीकार सिमा चियान (145-91 ईसा पूर्व)

अगर कोई एक व्यक्ति और उसकी शिक्षा ढाई हज़ार वर्षों से अधिक तक चीनी जनमानस में कायम है, तो यह साधारण बात नहीं। कई राजवंश आए-गए, गणतंत्र आया, साम्यवाद आया, मगर आज भी चीन के स्कूली पाठ्यक्रम में कंफ्यूशियस मौजूद हैं।
टीवी पर नित्य कार्यक्रम आते हैं, कई गाँवों में सुबह-सुबह ‘डिजी गुई’ बजायी जाती है जो कंफ्यूशियस की शिक्षा का सरल रूप है। बीजिंग के निकट एक गुरुकुल है, जहाँ बच्चे कंफ्यूशियस के संकलनों का रट्टा मारते हैं।

कंफ्यूशियस का संपूर्ण कुलवृक्ष संजो कर रखा गया है,
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#Episode4 #Season3 #PChina

1630 ईसवी की एक शाम। निन्गो बंदरगाह, चीन।

‘तट की तरफ़ जाने वाली संकरी गलियाँ खचा-खच भरी हैं। यात्री, व्यापारी, फेरीवाले, भिखारी, चोर, आवारा लोग इस भीड़ का हिस्सा हैं। कई ठेलों पर चूल्हे जला कर भोजन बनाया जा रहा है। कुछ बाँस के बने पट्टों पर किताबें
लटकी हैं। रोचक गल्प भी हैं, प्रेरक पुस्तकें भी।

कुछ बौद्ध भिक्षु राहगीरों को बिठा कर कथाएँ सुना रहे हैं। कुछ वैद्य अजीबोग़रीब जड़ों से औषधि बना रहे हैं। साँप, मेढक और हिरण के मांस ज़मीन पर सुखाए जा रहे हैं। नाई उस्तरा लेकर, और मुंशी काग़ज़ और दवात लेकर बैठे हैं।
मुंशी तांबे के सिक्के लेकर अनपढ़ों के लिए चिट्ठी लिख रहे हैं।

एक भविष्यवक्ता बेंत की गठरी लेकर बैठा है, जिसमें हर बेंत पर एक अंक लिखा है। लोग आकर एक बेंत चुनते हैं, और वह अपने ग्रंथ का वह पन्ना खोलता है जिसमें उनका भविष्य लिखा है। उसके ठीक पीछे एक पट्टिका पर लिखा है-
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