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#धर्मसंसद
वैसे तो इस प्रश्न का उत्तर बहुत आसान है क्योंकि अब महाभारत की कथाएं गोपनीय नहीं रहीं। बीआर चोपड़ा की महाभारत सबने देखा ही होगा। उत्तर तो वैसे एक पंक्ति का है कि यदुवंशियों के कुल पुरोहित गर्गाचार्य ने नामकरण संस्कार नंद बाबा की गोशाला में किया था। परंतु
यहीं यह प्रश्न भी उठता है कि ऐसा क्यों किया गया। अब तक कंस को महामाया द्वारा पता चल चुका था कि देवकी का आठवां पुत्र जीवित हैं
पर इसकी पुष्टि कैसे हो यह जानने के कंस ने महावन में जगह जगह गुप्तचर नियुक्त किया था जिनका काम यह पता लगाना था कि नंद के घर में पल रहा बालक
क्या सचमुच नंद यशोदा का पुत्र है। ऐसा इसलिए कि कृष्ण जन्म के समय नंद यशोदा वृद्ध हो चले थे। संतान की आशा कम ही थी। वैसे वसुदेव देवकी और नंद सजातीय नहीं थे। वसुदेव वार्ष्णेय थे जैसा कि गीता में भगवान श्रीकृष्ण के लिए बार बार कहा गया है जिसका अर्थ है वसुदेव वृष्णि वंशी थे
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वैसे तो इसका उत्तर आप सबने दे ही दिया है विशेषकर शशिबाला राय ने।नीलम मिश्रा सत्यवती गोविंद वत्स प्रेरक अग्रवाल सबने एक से बढ़कर एक तार्किक उत्तर दिया है पर पिछले दो दिनों से मैंने खुद अपने प्रश्न की समीक्षा नहीं की तो आप सबको यह न लगे कि धर्म चर्चा
केवल औपचारिक तौर पर हो रही है जिसमें प्रश्न तो होता है पर संचालक अपनी ओर से कुछ नहीं कहता। यहां पूतना के पूर्व जन्म की कहानी भी आकर जुड़ती है पर उससे विशेष मतलब नहीं है।सवाल था कि कंस जैसे प्रतापी और भीषण अत्याचारी राजा ने एक महिला को मोहरा बनाकर ऐसा कुकर्म क्यों किया
वह चाहता तो अपनी सेना भी भेज सकता था पर उसने ऐसा क्यों नहीं किया इसका रहस्य कम ही लोगों को पता है। वास्तव में कंस एक क्रूर शासक था जिसकी प्रजा उससे प्रेम नहीं करती थी बल्कि केवल भयभीत रहती थी। ऐसा इसलिए क्योंकि कंस की सहायता और उसकी व्यक्तिगत सुरक्षा के उसके ससुर
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यों तो हर पौराणिक घटना में किसी न किसी रूप में नारद मुनि का योगदान पाया जाता है तो प्रायः
जन कल्याण के लिए होता है। इस प्रश्न की विस्तृत विवेचना शशिबाला राय प्रेरक अग्रवाल और सत्यवती ने किया है।आप लोग अवगत हो गये होंगे। कुछ छोटी-छोटी बातों को जानिए
वामपंथियों का जवाब दे सकें जो हमारे वेदों पुराणों को मिथक मानते हैं हर घटना पर कुतर्क करते हैं।कंस जब अपनी बहन देवकी को रथ पर बिठा कर विदा करने जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई कि जिस बहन को इतनी खुशी से विदा कर रहे हो उसी का आठवां पुत्र तुम्हारा वध करेगा। इस एक घटना
से यह तो स्पष्ट हो गया कि तब का विज्ञान आज के विज्ञान सेकम नहीं बल्कि अच्छा रहा होगा। आज के लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व आकाशवाणी का होना क्या आप सबको आश्चर्यचकित नहीं करता। अवश्य ऐसा कोई यंत्र रहा होगा जो किसी भावी घटना का पूर्वानुमान लगा लेता और तदनुसार बचने का
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इतना सरल प्रश्न था कि किसी ने उत्तर देने की जरूरत नहीं समझा। केवल दो उत्तर आए एक बहन सत्यवती का और दूसरी प्रेरक अग्रवाल का। दोनों ही ने शूरसेन की विस्तृत व्याख्या की है। शूरसेन जनपद एक समय भारत के श्रेष्ठ सोलह महानपदों में से एक था। शूरसेन नामक दो राजा
हुए थे। एक त्रेतायुग में शत्रुघ्न के पुत्र महाराज शूरसेन और दूसरे द्वापरयुग में यदुकुल में उत्पन्न शूरसेन। जैसा कि आप जानते हैं कि किसी भी वंश में अपने नाम पर वंश चलाने का अधिकार सबको नहीं होता।वंश के कुछ ही राजा इतने प्रभावशाली होते हैं जिनके नाम पर वंश चलता है।
यादव कुल में यदु के बाद एकमात्र राजा शूरसेन ही हैं जिनके नाम पर वंश का नाम शूरसेन वंश हुआ। भिन्न-भिन्न पुराणों में भिन्न भिन्न वर्णन मिलता है जो विरोधाभासी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मुगल काल में पुराणों में जानबूझकर छेड़छाड़ की गई है जिससे हिंदू जनमानस दिग्भ्रमित
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वैसे तो आज के प्रश्न का बड़ा विस्तार से उत्तर नीलम मिश्रा शशिबाला राय राधिका प्रेरक ने दे ही दिया है इसलिए उत्तर देने की जरूरत नहीं है। फिर भी आप लोग पता नहीं क्यों मेरे उत्तर की प्रतीक्षा करते हैं जबकि मैं बता चुका हूं कि अपने लेखकों की अपेक्षा मैं कम
ज्ञानी हूं। आज तो नीलम ने यदुकुल की पूरी श्रृंखला ही लिख दिया। शशिबाला राय का तो कहना ही क्या। भावपूर्ण वर्णन करने में सिद्धहस्त हैं। सरस्वती की मानस पुत्री हैं। शोधकर्ता की तरह लेख लिखना कोई प्रेरक अग्रवाल से सीखे। मैं भी इतना विस्तार से और लय ताल से नहीं लिख सकता
जैसा कि राधिका ने कहा है यदुकुल की व्याख्या दो तरह की की जाती है। एक तो महाभारत के अनुसार जिसमें राजा ययाति के ज्येष्ठ पुत्र यदु के दूसरे ऋग्वेद में वर्णित दाशराज्ञ युद्ध के पंचजन यदु पुरु तुर्वसु अनु और द्रुह्यु के रूप में। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार महाभारत
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आज के प्रश्न का उत्तर तो आप सबने पढ़ा ही होगा। हमारे विद्वान लेखकों ने बहुत शोध करके विस्तार से जानकारी दिया है।राजा शांतनु का विवाह अब तक की सबसे बड़ी दुर्घटना रही जिसका दुष्परिणाम युगों युगों तक पीढ़ी दर पीढ़ी भोगना पड़ रहा है। इस एक विवाह ने महाभारत
युद्ध की पटकथा लिख दिया। भारत में दो ही राजवंश पौराणिक काल से अर्थात सतयुग से द्वापरयुग तक प्रसिद्ध रहे हैं सूर्य वंश और चंद्र वंश। दोनों में नैतिकता के पैमाने पर भिन्न मापदंड माना जाता है। जहां एक ओर सूर्य वंशी राजा विवाह करते समय कुल की मर्यादा का ध्यान रखते थे
विवाह सजातीय होते थे। वहीं दूसरी ओर चंद्र वंशी राजा इस मामले में उदार हुआ करते थे। बहुधा अंतर्जातीय विवाह कर लेते थे जिससे वर्णंसंकर संताने पैदा हो जाती थी। चंद्र वंश शादी विवाह के मामले में वर्जनाहीन होता था। इस वंश का संस्थापक ही कहें तो वर्णंसंकर था जो क्षत्रिय
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बी आर चोपड़ा जी को बहुत बहुत धन्यवाद जिनके सीरियल द्वारा महाभारत की कथा जन-जन तक पहुंच गई। आज महाभारत न पढ़ने न जानने वाले भी इसके मुख्य मुख्य पात्रों के विषय में जानते हैं। महर्षि वेदव्यास जी चारो वेदों के विभाजनकर्ता समस्त पुराणों के रचयिता श्रीमद्भागवत
और महाभारत के लेखक के रूप में विश्व विश्रुत हैं।काफी दिनों तक पश्चिमी विद्वानों को लगता था कि महाभारत युद्ध एक मिथक है।कवि की कल्पना की उड़ान है ऐसा कोई युद्ध कभी हुआ ही नहीं।ऐसी ही ग्रीक साहित्य में महाकवि होमर द्वारा लिखित काव्य इलियड के विषय में भी था क्योंकि
दोनों ही महाकाव्यों की कथावस्तु काफी कुछ मिलती-जुलती है। दोनों ही युद्ध नारी के सम्मान की रक्षा हेतु लड़े गए थे। पश्चिमी विद्वानों का भ्रम तब टूट गया जब जर्मन पुरातत्ववेत्ता हेनरिक श्लीमान तुर्की के समुद्र तट पर हिर्सालिक क्षेत्र में प्राचीन ट्राय नगर का उत्खनन
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आज का प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसी से महाभारत की शुरुआत हुई थी। राजा जह्नु के विषय में दो कथाएं प्रचलित हैं जिसमें एक अविश्वसनीय लगती है। इसके अनुसार ऋषि जह्नु तप कर रहे थे तभी राजा भगीरथ के पीछे-पीछे वेग से चलती हुई गंगा जी आ रही थी। उनके तेज Image
प्रवाह से ऋषि की पूजा सामग्री बह गई। क्रोधित होकर ऋषि जह्नु गंगा जी को पी गये। भगीरथ की प्रार्थना पर कान से गंगा जी को बाहर निकाल दिया। आज के वैज्ञानिक युग के अनुसार देखें तो यह असंभव लगता है कि कोई गंगा जी की विशाल जलराशि को पी सके। उत्तर ऐसा होना चाहिए कि
वामपंथी या विधर्मी हमारे पौराणिक आख्यानों का मजाक न उड़ा सकें। धर्म ग्रंथों पुराणों आदि में कुछ तथ्य लाक्षणिक अर्थ से कहे गए हैं जिन्हें समझना सबके लिए आसान नहीं है। अतः दूसरी कथा ही समीचीन लगती है जिसे बहन शशिबाला राय ने इंगित किया है। इतना तो सत्य है कि हम
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यह प्रश्न इसलिए पूछा गया है कि अक्सर लोग भ्रमित हो जाते हैं कि जब धृतराष्ट्र के सौ पुत्र और पांडु के पांच पुत्र सभी कुरुवंशी थे तो केवल धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों को ही कौरव क्यों कहते हैं।इस प्रश्न का बहुत छोटा सा उत्तर है कि किसी वंश के सभी राजाओं के
नाम पर वंश का नाम नहीं होता।कई कई पीढ़ियों के बाद कोई एक सम्राट इतना प्रतापी निकलता है कि उसके वंश का नाम उसके नाम पर लिया जाय। भारत में ऐसे दो ही बड़े राजवंश हुए थे सूर्य वंश और चंद्र वंश। सूर्य वंश में लगभग कुल 70
राजाओं ने राज किया था। एक राजा के कार्य काल को
५० वर्ष औसतन माना जाता है। इस प्रकार इस वंश ने 3500 सौ वर्ष तक लगभग राज किया। परंतु हम देखते हैं कि केवल तीन ही के नाम पर वंश का नाम लिया जाता है।
सूर्य वंश,इक्ष्वाकु वंश और रघुवंश। ध्यान दें कि वंश में दिवोदास सुदास मांधाता सगर भगीरथ दोनों दिलीप और यहां तक कि
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महाभारत युद्ध की कथा किसने किसे सुनाया था यह सुनते ही एक नाम तुरंत याद आ जाता है शुकदेव मुनि का और बिना सोचे-समझे लोग कह बैठते हैं कि इसमें क्या है। मुनि शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को सुनाया था ‌। लेकिन यह सच नहीं है और प्रश्न का उद्देश्य भी यही बताने
का है।राजा परीक्षित को मुनि शुकदेव जी ने जो सुनाया था वह महाभारत नहीं बल्कि श्रीमद्भागवत कथा थी।ऋष्यश्रृंग ने राजा परीक्षित को श्राप दिया था कि आज के सात दिन बाद तुम्हें तक्षक नाग काट लेगा जिससे तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।तो
राजा परीक्षित के पास अपने उद्धार और प्रेत योनि से मुक्ति पाने के लिए केवल सात दिन ही शेष बचा था।ऐसे में पिता व्यास जी द्वारा रचित श्रीमद्भागवत पुराण मुनि शुकदेव जी ने परीक्षित को सुनाया था। आप लोगों ने देखा ही होगा कि श्रीमद्भागवत पुराण का पाठ सात दिन का ही होता है
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आज का प्रश्न ही द्वापरयुग की शुरुआत है जो क्रमशः महाभारत युद्ध के समापन की ओर ले जाएगी।ऊबिएगा मत क्योंकि हो सकता है कि आपको कोई प्रश्न दोहराव लगे और कहने लगें कि मिश्रा जी यह प्रश्न तो हो चुका है।नये लोगों को भी धर्म के विषय में जानने दीजिए। नहुष के विषय
में काफी कुछ जानकारी मैं समझता हूं कि सबको होगी ‌। इसीलिए आज बहुत से नये उत्तरदाता आये। सभी नये प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए हर्ष हो रहा है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ही सामान्य जन को धर्म संस्कृति संबंधी जानकारी देना है। इसमें सफलता असफलता का मूल्यांकन करने
का अधिकार आप सभी मित्रों को है।आज का आख्यान महाभारत के वन पर्व पर आधारित है। ममता पाइ काहि मद नाहीं का सुंदर उदाहरण है चंद्रवंशी राजा नहुष का चरित्र।काम लोभ मद किसी व्यक्ति को कितना नीचे गिरा देता है इस कहानी से सीख लेनी चाहिए। आगे और भी प्रश्न होंगे। बहनों शशिबाला राय
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#धर्मसंसद
यह तो बहुत आसान सा सवाल था। महाभारत के विषय में कुछ भी जानने वाले इन पुरुरवा को जानते होंगे। विशेषकर पुरुरवा और देवलोक की अप्सरा उर्वशी के प्रेम प्रसंग के विषय में। जिसने भी उत्तर दिया है ठीक दिया है। पुरुरवा के बहाने द्वापरयुग के कुछ प्रमुख पात्रों के
विषय में बताना उद्देश्य है।समझ लें कि आज से महाभारत पर प्रश्नों की श्रृंखला की शुरुआत हो गई है। पुरुरवा का चंद्र वंश में वही स्थान है जो सूर्य वंश में महाराज इक्वाकु का है। अत्रि ऋषि के पुत्र चंद्रमा के पौत्र बुध और इला के पुत्र महाराज पुरुरवा चंद्रवंशियों के
आदि पुरुष माने जाते हैं। सूर्य वंशी राजाओं की तरह ही चंद्र वंशी राजा भी देवासुर संग्रामों में देवताओं की सहायता के लिए जाया करते थे। ऐसे अनेक उदाहरण पुराणों में वर्णित हैं। धन्यवाद जय
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आज का प्रश्न दिलीप मंडलों हंसराज मीनाओं को जबाव देने के लिए किया गया था जो कहते हैं कि दलितों को उच्च जातियों विशेषकर ब्राह्मणों ने पढ़ने नहीं दिया। कथा छांदोग्य उपनिषद में आई है और त्रेतायुग की है।उन दिनों महर्षि गौतम का गुरुकुल बहुत प्रसिद्ध था। उनके
गुरुकुल में एक भील बालक पढ़ने के लिए आया। ऋषि गौतम सर्व वर्ग समभाव में विश्वास करते थे।बालक के मुख पर अंकित तेज को देखकर बड़े प्रभावित हुए और बोले बेटा मैं तुममें एक विलक्षण प्रतिभा देख रहा हूं। मैं तुम्हें अवश्य पढ़ाऊंगा पर मेरे गुरुकुल का नियम है कि किसी छात्र
का नाम लिखने के पिता का नाम जानना आवश्यक है तो तुम्हारे पिता का नाम क्या है।बालक ने कहा कि मेरे पिता नहीं हैं पर मैं मां को साथ लेकर आऊंगा। मां ही बताएगी कि मेरे पिता कौन हैं। ऋषि ने कहा कि जाओ अपनी मां से पूछकर आओ कि तुम्हारे पिता कौन हैं।
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@Sabhapa30724463 @ShashibalaRai12 @aryavratvijayat @SathyavathiGuj1 @satyabhanushas3 @sanjay16sanjay @NandiniDurgesh5 @DPRASADDWIVEDI1 @Radhika_chhoti @Govindmisr @SahayRk483098 @MukulWatsayan @AnnpurnaU #जाबालि कहकर भी सम्बोधित किया जाता है।

#रामायण में #श्रीराम के साथ इनका प्रसंग आता है।

ऋषि जाबालि का #जबलपुर से बहुत गहरा नाता रहा है।

#कुलगुरु_वशिष्ठ जी की अनुशंसा पर #महाराजा_दशरथ द्वारा जबलपुर के ऋषि जाबालि को अयोध्या में #मुख्य_याजक ( #यज्ञ_प्रमुख ) नियुक्त किया गया था। Image
@Sabhapa30724463 @ShashibalaRai12 @aryavratvijayat @SathyavathiGuj1 @satyabhanushas3 @sanjay16sanjay @NandiniDurgesh5 @DPRASADDWIVEDI1 @Radhika_chhoti @Govindmisr @SahayRk483098 @MukulWatsayan @AnnpurnaU देववाणी संस्कृत में रचित #वाल्मीकि_रामायण और लोकभाषा अवधि में रचित तुलसीदास जी की #रामचरितमानस में आये उल्लेखों के अनुसार भरत जी के साथ जिस प्रतिनिधिमंडल ने ब्रह्मर्षि वशिष्ठ के नेतृत्व में चित्रकूट की तरफ प्रस्थान किया था, उसमें जबलपुर और जालौर के साधक ऋषि जाबालि भी शामिल थे। Image
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सूर्पनखा- रावण की बहन और रामायण की असली खलनायिका। वैसे कुछ लोग मुख्य खलनायिका कैकेई को मानते हैं पर मैं ऐसा नहीं मानता। इसके विषय में काफी कुछ जानकारी तो सबको पता होगी। कुछ अन्य बातें जानिए।इसका नाम सूर्पनखा नहीं था।यह तो मजाक में रखा गया था जो कालांतर में
प्रसिद्ध हो गया।इसका वास्तविक नाम बज्रमणि था।इसकी आंखें बड़ी सुंदर थीं और इसीलिए इसकी इसकी नानी सुकेशी ने बचपन में इसका नाम मीनाक्षी रखा था। यह अपने समय की फैशनेबल महिला थी। बड़े-बड़े नाखून रखना और उसे प्राकृतिक रंगों से रंगना इस महिला का शौक था। इसीलिए मजाक मजाक में
लोग इसे सूर्पनखा कहने लगे। रावण बड़ा अहंकारी था यह इससे सिद्ध होता हैं कि उसने अपनी दोनों बहनों के विवाह के विषय में सोचा ही नहीं। मंदोदरी आदि द्वारा समझाए जाने पर कहता था कि मेरे बराबर वीर कोई असुर दैत्य दानव यक्ष किन्नर नाग वंश में है नहीं और मनुष्यों और देवताओं को
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#धर्मसंसद
प्रश्न इतने सुपरिचित पात्र पर था कि जबाव देने की बहुतों ने आवश्यकता नहीं समझी। फिर भी नियमित लेखकों प्रेरक अग्रवाल सत्यवती शशिबाला राय नीलम मिश्रा ने विस्तृत रूप से उत्तर दिया है। जैसा कि आप लोगों ने रामायण सीरियल में देखा होगा या रामचरितमानस में पढ़ा
होगा कि सुलोचना रावण की पुत्रवधू और मेघनाद की पत्नी थीं। यह नागराज वासुकी की कन्या थी। अब यह मत सोचिए कि एक सरीसृप प्रजाति के प्राणी वासुकी नाग की कन्या एक सुंदर स्त्री कैसे हो सकती है? जान लीजिए और और जरूरत पड़ने पर वामपंथियों को जबाव देने लायक ज्ञान पाइए कि नाग
कौन थे। यह एक मानव जाति थी जो प्रकृति पूजक थी।नाग इनके कुलदेवता होते थे।नाग पालना उसके विष से अनेकों प्रकार के अस्त्र शस्त्र बनाना और विष से औषधि बनाना इस जाति का मुख्य उद्यम था।आज के भर खरवार केवट मल्लाह इन्हीं नागों के वंशज हैं। इतिहास उठाकर देखेंगे तो पाएंगे कि
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#धर्मसंसद
माधवी- विश्व की सबसे पहली सरोगेट मदर जिसका अक्षतयौवना का वरदान ही उसके लिए अभिशाप बन गया। विस्तृत वर्णन बाबूलाल टेलर ने भीष्म साहनी के इसी नाम पर लिखे गए उपन्यास से और पौराणिक आख्यानों के अनुसार प्रेरक अग्रवाल, सत्यवती और आधा अधूरा शशिबाला राय ने किया है
इस विषय पर पिछले दो सालों में दो बार मैं एक कथा लिख चुका हूं। बार-बार उसी को दोहराने में आनंद नहीं आता। शब्द विन्यास बदल जाते हैं।माधवी चंद्र वंश के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट ययाति और अप्सरा चित्त वृहिती की अनुपम सुन्दरी कन्या थी। दुर्वासा ऋषि ने उसके भक्ति भाव और
सेवा से प्रसन्न होकर अक्षतयौवना रहने का वरदान दिया था। साथ-साथ माधवी की कुंडली देखकर बता दिया था कि कन्या चार महान सम्राटों को जन्म देगी। संयोग कहें कि दुर्योग असम के एक गरीब ब्राह्मण का पुत्र गालव ऋषि विश्वामित्र के गुरुकुल से पढ़कर निकला और गुरु से हठ करने लगा
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#धर्मसंसद
जैसा कि मैंने प्रश्न करते हुए ही बता दिया था कि यह पात्र बहुत प्रचलित है।इस प्रश्न की विस्तृत व्याख्या बहन शशिबाला राय, प्रेरक अग्रवाल नीलम सत्यवती आदि ने किया है।
इसके पहले कि मैं कुछ और कहूं एक बात कहना चाहता हूं कि मेरी व्यक्तिगत व्याख्या तर्कसंगत
और वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में होती है।ऐसा इसलिए क्योंकि पुराणों में अधिकांश बातें लाक्षणिक अर्थ लिए होती हैं। यह पाठक की बुद्धि पर निर्भर करता है कि वह क्या समझता। इसलिए यह मत सोचिए कि मैंने तो कथावाचक जी से यह सुना है, वह पढ़ा है,फलाना ढिकाना आदि। कहीं से भी
किसी को शंका हो तो निस्संकोच पूछिएगा। यथासंभव समाधान की कोशिश करूंगा। पिछले कुछ दिनों तक सर्दी ज़ुकाम से परेशान रहा और उत्तर नहीं दे पाया।कल कुंती वाले उत्तर पर आप लोगों को प्रतिक्रिया उत्साहजनक रही। आज का जहां तक सवाल है द्रौपदी के विषय में कुछ कहना सूर्य को
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#धर्मसंसद
पंच कन्याओं में चौथी कुंती को कौन नहीं जानता। जिसने न भी जाना होगा वह बी आर चोपड़ा के कालजयी सीरियल महाभारत के कारण जान गया होगा। महाराज पांडु की पत्नी सूर्य पुत्र कर्ण युधिष्ठिर भीम और अर्जुन की माता महाभारत की एक प्रमुख पात्र रही हैं।सभी पंच कन्याओं में
एक बात कामन रही है कि यह सभी चिरयौवना होने के साथ-साथ एक दुर्भाग्य भी रखती थी। तारा मंदोदरी कुंती कुंती को विधवा होना पड़ा। अहिल्या विधवा तो नहीं हुई पर उससे भी भयंकर यातना सहती रहीं। द्रौपदी को भरी जवानी में पति के साथ वन विभाग घूमना पड़ा। फिर भी यह सनातन धर्म की
विशेषता कही जाएगी कि यह सभी
प्रात: स्मरणीय हैं। पांडवों की माता कुंती के विषय में सब कुछ जानते होंगे पर एक बात जो शायद सबको न ज्ञात हो उसे मैं बता रहा हूं।इनका कुंती नाम जो बहुत प्रचलित है वह इनका असली नाम नहीं है।इनका असली नाम पृथा था। श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन के लिए
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#धर्मसंसद
कुछ अपरिहार्य कारणों से पिछले दिनों प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सका ‌। वैसे भी बहुत कुछ कहने के लिए था नहीं क्योंकि उन सभी पात्रों के विषय में आप सबको अच्छी जानकारी थी। अहिल्या की चर्चा एक बार पहले भी हो चुकी थी पर पंच कन्याओं की श्रृंखला में पहला स्थान
होने के कारण आरंभ उन्हीं से करना उचित था। यह पांचों कन्याएं अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती और द्रौपदी प्रात:स्मरणीया हैं।इनकी विशेषता है कि यह पांचों सदा युवा रहती थीं। एक से अधिक विवाह अथवा जाने अंजाने कई पुरुषों से संबंध होने के बाद भी यह सभी पवित्र मानी जाती थी
जैसे कि अहिल्या का बलात्कार इंद्र ने किया था जिससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची थी पर देर सबेर इन्हें सामाजिक मान्यता भगवान श्रीराम के द्वारा प्राप्त हुई थी। जहां तक तारा कौन थीं का प्रश्न है तारा नाम की दो स्त्री पात्र रही हैं। एक बृहस्पति की पत्नी तारा
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#धर्मसंसद
कल और आज के प्रश्न एक दूसरे के पूरक हैं। बिना कद्रू के विनता की और बिना विनता के कद्रू की कहानी अधूरी है।इन दोनों के विषय में कल से शुरू हो कर आज तक बहुत कुछ बताया जा चुका है। विशेषकर प्रेरक अग्रवाल जो अपनी वैज्ञानिक व्याख्या के लिए जाने जाते हैं ने बहुत
विस्तार से जानकारी दिया है।नीलम मिश्रा सत्यवती का उत्तर भी सराहनीय रहा है। कहानी तो पता ही है कि सूर्य के घोड़े की पूंछ काली है कि सफेद इसी पर छुआ खेला गया था और इसमें छल से बड़ी बहन कद्रू जीत गई थी जिसके कारण विनता को आजीवन कद्रू की दासी बनना पड़ गया था।इसी
दासत्व से मां विनता को मुक्त कराने के लिए गरुड़ जी को इंद्र से युद्ध करके अमृत कलश लाकर नागों को देना पड़ा था। यह और बात है कि नारद मुनि के सुझाव के अनुसार गरुड़ जी नागों को अमृत पीने नहीं दिया और वचन के अनुसार मां विनता को कद्रू के दासत्व से मुक्त करा लिया था।
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#धर्मसंसद
आज कई दिनों बाद उत्तर देने की स्थिति बनी है। पिछले दो दिनों से कुछ अपरिहार्य कारणों से उत्तर नहीं दे सका तो कुछ खाली खाली सा लगा था।आप लोगों के उत्तर पढ़ता रहा पर स्वास्थ्यगत कारण से समीक्षा नहीं कर पा रहा था। आज भी आप लोगों विशेषकर प्रेरक अग्रवाल शशिबाला राय
नीलम मिश्रा सत्यवती ने इतना व्यापक विवरण दिया है कि कुछ और कहने की जरूरत नहीं है।बस औपचारिकता पूरी करते हुए केवल इतना ही कहना है कि दनु प्रजापति दक्ष की तीसरी पुत्री और ऋषि कश्यप की तीसरी पत्नी भी थीं। एक बात और प्रेरक अग्रवाल ने स्पष्ट कर दिया है कि असुर दैत्य
राक्षस ये तीनों अलग-अलग प्रजातियां थीं न कि एक है जैसी कि भ्रामक धारणा पाई जाती है। तीनों युगों सतयुग त्रेतायुग द्वापरयुग तक इनकी अलग-अलग शाखाएं चलती रहीं।इन सबका समापन महाभारत युद्ध के साथ ही हो गया था और सब मिलकर सनातन धर्म में समाहित हो गए। कदाचित महाभारत युद्ध का एक
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#धर्मसंसद
आज एक ट्वीट बहस में ऐसा फंसा कि देर हो गई। आप सभी नियमित लेखकों ने ने अच्छा उत्तर दिया है। सदैव ही की नीलम मिश्रा ने परिश्रम के साथ लिखा है।बहन शशिबाला राय सत्यवती गोविंद मिश्र प्रेरक अग्रवाल ने बहुत सुन्दर वर्णन किया है। विशेषकर प्रसंशा करना चाहूंगा
बहनों शशिबाला राय सत्यवती और प्रेरक अग्रवाल की क्योंकि यह लोग केवल गूगल सर्च पर आधारित नहीं रहते बल्कि उत्तर में वेदों पुराणों धर्म शास्त्रों का उद्धरण देते हुए सप्रमाण उत्तर देते हैं। थोड़ा सा प्रयास और लोग भी करें तो अच्छा होगा।जैसा विद्वान उत्तर दाताओं ने
बताया है कि विदुषी अपाला ऋषि अत्रि की पुत्री थी जो अंत तक माता-पिता के साथ रहीं। जानते ही होंगे कि महासती अनुसुइया की परीक्षा लेने ब्रह्मा विष्णु महेश आए थे।वरदान में माता अनुसूया ने कहा था कि आप तीनों मेरी कोख से जन्म लें। इस तरह ऋषि अत्रि अनुसुइया के तीन पुत्र
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#धर्मसंसद
आज का प्रश्न थोड़ा दीर्घ उत्तरीय था जिसका सम्यक वर्णन भाई बाबूलाल जी प्रेरक अग्रवाल नीलम मिश्रा बहन सत्यवती अशोक द्विवेदी ने विस्तार से किया है। शायद आप लोग भूल गए होंगे दो साल पहले मैंने देवयानी की अधूरी प्रेम कहानी पर एक विस्तृत लेख लिखा था।कथा तो
पढ़ ही चुके होंगे कि शर्मिष्ठा असुर राज बृषवर्वा की पुत्री और देवयानी उनके गुरु शुक्राचार्य की पुत्री थीं। मृग वंशी ऋषियों को मृत संजीवनी विद्या का ज्ञान था पर ऋषि भृगु ने इसे देते समय अपने पुत्रों को निषेध किया था कि इस विद्या का दुरुपयोग न करके केवल मानव कल्याण में
उपयोग किया जाए। भृगु के पुत्रों च्यवन और ऋचीक और ऋचीक के पुत्र जमदग्नि ने इस मर्यादा का ख्याल रखा पर दुर्भाग्य से असुर राज हिरण्यकश्यप की पुत्री दिव्या से उत्पन्न पुत्र शुक्राचार्य ने इस विद्या का भरपूर दुरुपयोग किया। इस विद्या से वे युद्ध में मृत असुरों को जीवित
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