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यह है वह #मेज़ #कुर्सी,जिसपर दशकों पहले बैठे एक #इंसान से आज भी उनके #विरोधी #ख़ौफ़ खाते हैं । वह आज भी डरते हैं कि कहीं इनका विचार,उनके झूठ के आडंबर पर खड़े ताश की पत्तों के महल को उड़ा न दें । वह इस कुर्सी,इस कमरे,इसमें रखी किताबों, इस घर से ख़ौफ़ खाते हैं
और चाहते हैं कि हर वह चीज़ बदल दी जाए,जिससे उनका नाम जुड़ा है मगर क्या यह सम्भव है ।

जब भी देश के पहले #आईआईएम का नाम आएगा,तो उनका ज़िक्र आएगा । #आईआईटी का ज़िक्र आएगा,तो उनका नाम आएगा,#यूनिवर्सिटी,#स्कूल,#कॉलेज की बात होगी,तो उनका नाम आएगा,
#विज्ञान,#स्पेस,#रिसर्च का नाम आएगा,तो लोग उनका नाम लेंगे । ललित कलाओं, संगीत विद्यालयों,फ़िल्म इंस्टिट्यूट का नाम लेंगे तो उन्हें ही याद करेंगे । #डैम,#बांध,#पुल, #सड़क,#बिजली,#पानी,टीवी,#रेडियो, #टेलीफोन जिसका भी #नाम लेंगे,तो देखेंगे वह पहला आदमी,
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#सुरक्षा_कवच सिर्फ एक व्यक्ति के पास था जिसका नाम था #कर्ण

ये बातें #द्वापर की है फिर भी युद्ध के दौरान कर्ण मारा गया और जब मारा गया उससे पहले कवच को शरीर से उतार कर दान कर दिया था।

खैर इ बात #महाभारत युग का है जहाँ राजनीति का विश्व विजेता कृष्ण हुआ करते थे।
इस #कलयुग में सुरक्षा कवच फिर आया और जिन्होंने लेकर आया उनका नाम तो सबको पता ही होगा ।

सुरक्षा कवच आने के बावजूद भी #ट्रेन_हादसा हुई जिसमें #300लोगों की #मरने की खबरें है और लगभग #1000लोग #घायल अवस्था में है।
इससे पहले #विदेशों से कुछ #चीता आये थे इनको लाने वाला कौन था और छोड़ने वाला कौन था ये भी सबको पता है।

जब छोड़ा गया उस समय चारों तरफ चीता ही चीता बोले तो पुरा टीवी चैनल्स चीतामय में लोटपोट हो चुका था।

फिर कुछ महिने बाद इन चीतो का बुरा दौर चालू हुआ
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#गृहस्थ और #सन्यासी

जिसने संसार को घर मान लिया वह गृहस्थी है, संसारी है और जो व्यक्ति संसार को सिर्फ एक पड़ाव मानता है वह संन्यासी है। संसार मुकाम है, बीच का पड़ाव; अंतिम मंजिल नहीं है। ऐसा जिसे दिखाई पड़ना शुरू हो गया वह संन्यासी है।
तब वह संसार से गुजरता है, लेकिन वैसे ही जैसे तुम किसी रास्ते से गुजरते हो। गृहस्थ का अर्थ है संसार को जिसने घर समझा। संन्यास से अर्थ है कि, संसार को जिसने घर नहीं समझा, सिर्फ मार्ग समझा, राह समझी बीच की, जिसे गुजार देनी है, जिससे गुजर जाना है।
जैसे ही यह ख्याल में आ गया कि संसार एक रास्ता है, पहुंचना है कहीं और, वैसे ही आसक्ति आपको नही पकड़ेगी। तुम रास्ते पर होते हो, फिर भी रास्ते से सदा मुक्त होते हो। रास्ते का तुम उपयोग करते हो, लेकिन रास्ता तुम्हारा उपयोग नहीं कर पाता। तुम उस पर पैर रखते हो इसीलिए कि, पैर उठा लोगे।
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#ऋषियों_ने_इसलिए_दिया_था '#हिन्दुस्थान' #नाम

भारत जिसे हम हिंदुस्तान, इंडिया, सोने की चिड़िया, भारतवर्ष ऐसे ही अनेकानेक नामों से जानते हैं। आदिकाल में विदेशी लोग भारत को उसके उत्तर-पश्चिम में बहने वाले महानदी सिंधु के नाम से जानते थे, जिसे ईरानियो ने हिंदू और यूनानियो ने शब्दों
का लोप करके 'इण्डस' कहा। भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने 'हिन्दुस्थान' नाम दिया था जिसका अपभ्रंश 'हिन्दुस्तान' है।

'#बृहस्पति_आगम' के अनुसार...

हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥

यानि हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर
(हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।
भारत में रहने वाले जिसे आज लोग हिंदू नाम से ही जानते आए हैं।

भारतीय समाज, संस्कृति, जाति और राष्ट्र की पहचान के लिये हिंदू शब्द लाखों वर्षों से संसार में प्रयोग किया जा रहा है विदेशियों नेअपनी उच्चारण सुविधा के लिये
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आज जितने भी जातिवादी लेखक है, वैसे सभी लेखकवृन्द सम्राट अशोक द्वारा लिखित बृहद चतुर्थ अभिलेख को कोट करते हुए लिखते है कि सम्राट अशोक ने अपने लेख मे #ब्राह्मण और #श्रमण का उल्लेख किया है| इसलिए, उस समय ब्राह्मण नाम की जाति वर्ण स्थापित था|
अब यहां आपलोग उस अभिलेख की छायाप्रति देखे
जो पोस्ट मे संलग्न है, अंडरलाइन किया हुआ शब्द #बम्हणसमणानं है|
अब इस बम्हणसमणानं शब्द को वर्तमान लेखकगण दो भागो मे तोडकर बताते है कि यहां बम्हण और समणानं दो संज्ञा नाम लिखा है, जबकि ऐसा नही है|
इसी अभिलेख को पुनः देखे, लाल रंग से अंडरलाइन किया हुआ शब्द के नीचे हरा रंग वाले
अंडरलाइन को देखे, उसमे #पुत_च_पोता_च_पपोता लिखा हुआ है|
एक अभिलेख, एक भाषा, एक लेखक, फिर दो प्रकार का अर्थ और लेखन कैसे सम्भव है? एक अर्थ का उपयोग करे👈 एक जगह दो शब्दो के बीच मे अंतराल बनाने हेतु #च का प्रयोग किया गया है तो फिर बम्हणसमणानं के बीच मे भी च का प्रयोग होना चाहिए था|
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