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वतन की फ़िक्र कर नादाँ, मुसीबत आने वाली है
तिरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में..!
~ अल्लामा इक़बाल

#कश्मीरी जर्नलिस्ट #Mir_Suhail ने ख़ुद से बनाए इस चित्र को 8 मई 2021 को #फेसबुक पर साझा किया था .. यह वह समय था जब हम लोग #लॉकडाउन के बाद '#अनलॉक - 1' से गुज़र रहे थे ..
#कोरोना महामारी का कहर जारी था.. अभी भी रोजाना हज़ारों लोग #ऑक्सीजन, #वेंटीलेटर जैसी ज़रूरी चीज़ों की गैर मौजूदगी में अपनी जानें गंवा रहे थे..

जबकि लॉकडाउन के दौरान ही #देश की #इकोनॉमी को बनाए रखने और कोविड से निपटने के लिए #सोनियागांधी समेत और
कई #विपक्षी_नेताओं ने #प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर सलाह दी थी कि #संसद भवन निर्माण से लेकर देश में और जो भी '#विकास कार्य' हो रहे हैं, उसे फ़िलहाल रोककर उस मद का पैसा लोगों की ज़िंदगियों पर ख़र्च किया जाए ..

लेकिन #तानाशाह लोगों की फ़िक्र कब करता है..
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1.
#अथ_श्री_महान_भारत_कथा ...
#मोदीजी द्वारा, पीछे हटने का #रहस्य , समझना है तो , #श्रीकृष्ण - बलराम के इस संवाद को समझो 👇👇
🔱 #रथों के पहियों और घोड़ो की टापों से उड़ती धूल के बीच, आंखों से ओझल होते नगर को उन्होंने आखरी बार देखा और हाथ जोड़ अपना अंतिम #प्रणाम किया...🙏
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2.
"शायद मन ही मन #जन्मभूमि से क्षमा भी मांगी"..!
🔱 तभी कंधे पर हाथ रख #दाऊ ने पूछ लिया...
क्या निर्णय सही है तुम्हारा.?
क्या जिस #क्षत्रियधर्म का तुम दूसरों को ज्ञान देते हो, उसकी #मर्यादा का ये उलंघन नहीं.?
🔱 दाऊ, क्षत्रिय धर्म से ऊपर होता है #राजधर्म ..
और राजधर्म...
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3.
का अर्थ है, #प्रजा का सुख, उसका #विकास, उसकी #समृद्धि ..
और इसके मार्ग में आने वाले प्रत्येक अवरोध को दूर करना राजा के तौर पर मेरा सर्वप्रथम #कर्तव्य है😑
🔱 हाँ, आज #क्षत्रित्व शायद हारा हो, पर #धर्म पालन हुआ है!
मेरे क्षत्रित्व का भार, प्रजा के कंधों पर नहीं हो सकता!
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#स्थलांतर
#आत्महत्या
#विकास
#मराठवाडा_खान्देश_विदर्भ
#नक्षलवाद
शाळेत असताना आपल्याला 'कोलंबसाचे गर्वगीत' हि कुसुमाग्रजांची कविता कधीतरी अभ्यासाला होती. त्या कवितेतील खवळलेल्या महासागराला आव्हान देणाऱ्या शेवटच्या दोन ओळी माझ्या अंतर्मनाला नेहमीच स्पर्श करतात;👇
अनंत आमुची ध्येयासक्ती,अनंत अन आशा, किनारा तुला पामराला! निसर्गावर मात करण्याची जिद्द मनात चेतवणाऱ्या या ओळी दुष्काळासमोर हाय खाणाऱ्या मराठवाड्यातील पोरांच्या डोळ्यातले अश्रू बघितले कि या कोलंबसाच्या गर्वगीताकडून ८०-९० सालच्या दुःखद गीतांकडे मोर्चा न्यावासा वाटतो.👇
आणि मग "पराधीन आहे जगती पुत्र मानवाचा" हे अवतरण अधिकच पटायला लागते. मराठवाडा,खान्देश,विदर्भ या भागातील दुष्काळी प्रदेशातील हजारो मुलं-मुली पुण्या-मुंबईसारख्या शहरात जीवाचं रान करताना दिसतात.पण आम्ही पुण्या-मुंबईची पोरं कधी हा विचार करतो का कि;👇
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