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।।जय भद्राज।।
विश्व प्रसिद्व पहाड़ों की रानी मंसूरी सें लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी की चोटी में भद्राज देवता का पौराणिक मंदिर है।। पुराणों के अनुसार भद्राज भगवान कृष्ण के बडे भाई बलराम को कहा जाता है जिनकी पूजा अर्चना इस मंदिर में सैकडों सालों से होती आ रही है।
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लोकमान्यताओं के अनुसार सतयुग में भगवान बलराम यहां साधू के भेष में आये थे। उस समय यहां लोगों के पशुओं को गंम्भीर बीमारी के कारण काफी नुकसान हो गया था तब यहां के लोग साधु बाबा के पास गये जिसके बाद सारे पशु ठीक हो गये। कुछ समय बाद जब साधु बाबा यहां से केदार खण्ड में जाने लगें तो
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यहां के लोगों ने उनसे यहां से न जाने की विनती की, फिर बाबा मान गये और इसी स्थान पर रहने का निर्णय लिया। तब साधु बाबा ने उसी समय कह दिया था कि कलयुग में मेरी पूजा भद्राज के नाम से मूर्ति के रूप से होगी।

लोककथाओं के अनुसार कलयुग के शुरवात में नंन्दू मेहर नाम का एक व्यक्ति तडू
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अकेलेपन से परेशानी,,,,

(क्यों माता पार्वती ने चार ब्रह्मा पुत्रों को ही महादेव शिव को दान में दे दिया था ? पढ़े शिवपुराण की एक कथा की,,,,माता पार्वती ने एसा क्यों किया l)

जब कैलाश पर्वत में कार्तिकेय का जन्म हुआ तो माता पर्वती एवं भगवान शिव ने अपने इस पुत्र के छः रूपों
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के पालन पोषण के लिए उन्हें कृतिकाओं (सप्त ऋषि की पत्नियों ) को सोप दिया।
महादेव शिव का कार्तिकेय को कृतिकाओं को सौंपने का एक और कारण यह भी था की कृतिकाओं की देख रख में कार्तिकेय उन ज्ञान को ग्रहण कर लेंगे जो उन्हें देवताओ के सेनापति बनने के समय मदद करेगी तथा वह दुष्ट तारकासुर
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का वध कर देवताओ को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाएंगे।
तारकासुर एक शक्तिशाली दैत्य जिसे ब्र्ह्मा जी का वरदान प्राप्त था तथा वह केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथो ही मारा जा सकता था.जब कार्तिकेय बड़े हुए तो उन्होंने तारकासुर का वध किया तथा इसके बाद उन्हें दूसरे राज्य उसके सुरक्षा
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भगवान का निवास स्थान कहाँ है ?
भगवान के रहने के स्थान के विषय में एक दृष्टान्त है,
एक बार भगवान दुविधा में पड़ गए! कोई भी मनुष्य जब मुसीबत में पड़ता, तो भगवान के पास भागा-भागा आता और उन्हें अपनी परेशानियां बताता,उनसे कुछ न कुछ मांगने लगता!
अंतत: उन्होंने इस समस्या के निराकरण
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के लिए देवताओं की बैठक बुलाई और बोले देवताओं,मैं मनुष्य की रचना करके कष्ट में पड़ गया हूं।कोई न कोई मनुष्य हर समय शिकायत ही करता रहता हैं,जबकी मै उन्हे उसके कर्मानुसार सब कुछ दे रहा हुँ।फिर भी थोड़े से कष्ट मे ही मेरे पास आ जाता हैं।जिससे न तो मैं कहीं शांति पूर्वक रह सकता हूं
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न ही तपस्या कर सकता हूं।आप लोग मुझे कृपया ऐसा स्थान बताएं,जहां मनुष्य नाम का प्राणी कदापि न पहुंच सके।
प्रभू के विचारों का आदर करते हुए देवताओं ने अपने-अपने विचार प्रकट किए।गणेश जी बोले- आप हिमालय पर्वत की चोटी पर चले जाएं। भगवान ने कहा-यह स्थान तो मनुष्य की पहुंच में हैं।
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