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#शिवमहिम्नःस्तोत्रम्
अकाण्ड-ब्रह्माण्ड-क्षयचकित-देवासुरकृपा-
विधेयस्याऽऽसीद् यस्त्रिनयन विषं संहृतवतः।।
स कल्माषः कण्ठे तव न कुरुते न श्रियमहो।
विकारोऽपि श्लाघ्यो भुवन-भय-भंग-व्यसनिनः।। १४।।
#भावार्थ:
जब समुद्रमंथन हुआ तब अन्य मूल्यवान रत्नों के साथ महाभयानक विष निकला, जिससे समग्र सृष्टि का विनाश हो सकता था। आपने बड़ी कृपा करके उस विष का पान किया। विषपान करने से आपके कंठ में नीला चिन्ह हो गया और आप नीलकंठ कहलाये।
परंतु हे प्रभु, क्या ये आपको कुरुप बनाता है ? कदापि नहीं, ये तो आपकी शोभा को और बढाता है। जो व्यक्ति औरों के दुःख दूर करता है उसमें अगर कोई विकार भी हो तो वो पूजा पात्र बन जाता है।
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#शिवमहिम्नःस्तोत्रम्
महोक्षः खट्वांगं परशुरजिनं भस्म फणिनः।
कपालं चेतीयत्तव वरद तन्त्रोपकरणम्।।
सुरास्तां तामृद्धिं दधति तु भवद्भूप्रणिहितां।
न हि स्वात्मारामं विष यमृगतृष्णा भ्रमयति।। ८।।
#भावार्थ:
आपके भृकुटी के इशारे मात्र से सभी देवगण एश्वर्य एवं संपदाओं का भोग करते हैं। पर आपके स्वयं के लिए सिर्फ कुल्हाडी, बैल, व्याघ्रचर्म, शरीर पर भस्म तथा हाथ में खप्पर (खोपड़ी)! इससे ये फलित होता है कि जो आत्मानंद में लीन रहता है वो संसार के भोगपदार्थो में नहीं फँसता।
श्री सोमनाथ महादेव मंदिर,
प्रथम ज्योतिर्लिंग - गुजरात (सौराष्ट्र)
दिनांकः 10 सितंबर 2020, भाद्रपद कृष्ण अष्टमी - गुरूवार
प्रातः शृंगार
Dhruv_PS-09202419
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