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#श्रृंखला

हमारा शरीर पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि और वायु) से बना होता है,जबकि देवताओं का शरीर पांच तत्वों से नहीं बना होता, उनमे पृथ्वी और जल तत्व नहीं होते। मध्यम स्तर के देवताओं का शरीर तीन तत्वों (आकाश, अग्नि और वायु) से तथा.... Image
उत्तम स्तर के देवता का शरीर दो तत्व तेज (अग्नि)और आकाश से बना हुआ होता है इसलिए देव शरीर तेजोमय और आनंदमय होते हैं।चूंकि हमारा शरीर पांच तत्वों से बना होता है इसलिए अन्न,जल,वायु,प्रकाश(अग्नि)और आकाश तत्व की हमें जरुरत होती है,जो हम अन्न और जल आदि के द्वारा प्राप्त करते हैं।
लेकिन देवता वायु के रूप में गंध, तेज के रूप में प्रकाश और आकाश के रूप में शब्द को ग्रहण करते हैं।
यानी देवता गंध, प्रकाश और शब्द के द्वारा भोग ग्रहण करते हैं। जिसका विधान पूजा पद्धति में होता है। जैसे जो हम अन्न का भोग लगाते हैं, देवता उस अन्न की सुगंध को ग्रहण करते हैं, Image
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#श्रृंखला #Thread
हमारी वैदिक रीतियां..हमारी पहचान..!!

आइए जानें इन रीतियों के वैज्ञानिक कारण:
• चप्पल मंदिर के बाहर उतारना
• दीपक के ऊपर हाथ घुमाना
• मंदिर में घंटा बजाना
• भगवान की मूर्ति को गर्भगृह के बीच रखना
• मंदिर की परिक्रमा करना

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चप्पल बाहर क्यों उतारते हैं:

इसके पीछे वैज्ञानिक कारण यह है कि मंदिर की फर्शों का निर्माण इस प्रकार किया जाता है कि ये इलेक्ट्रिक और मैग्नैटिक तरंगों का सबसे बड़ा स्त्रोत होती हैं। जब इन पर नंगे पैर चला जाता है तो अधिकतम ऊर्जा पैरों के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाती है।
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दीपक के ऊपर हाथ घुमाने का वैज्ञानिक कारण:

आरती के बाद सभी लोग दिए पर या कपूर के ऊपर हाथ रखते हैं और उसके बाद सिर से लगाते हैं और आंखों पर स्पर्श करते हैं। ऐसा करने से हल्के गर्म हाथों से दृष्टि इंद्री सक्रिय हो जाती है और बेहतर महसूस होता है।
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#श्रृंखला

हमारा शरीर 5 तत्वों (पृथ्वी, जल, आकाश, अग्नि और वायु)से बना होता है,जबकि देवताओं का शरीर पांच तत्वों से नहीं बना होता, उनमे पृथ्वी और जल तत्व नहीं होते। मध्यम स्तर के देवताओं का शरीर ३ तत्वों (आकाश, अग्नि और वायु) से तथा उत्तम स्तर के देवता का शरीर दो तत्व तेज (अग्नि)
और आकाश से बना हुआ होता है इसलिए देव शरीर तेजोमय और आनंदमय होते हैं।
चूंकि हमारा शरीर पांच तत्वों से बना होता है इसलिए अन्न, जल, वायु, प्रकाश (अग्नि) और आकाश तत्व की हमें जरुरत होती है, जो हम अन्न और जल आदि के द्वारा प्राप्त करते हैं।

लेकिन देवता वायु के रूप में गंध, तेज के रूप
में प्रकाश और आकाश के रूप में शब्द को ग्रहण करते हैं।
यानी देवता गंध, प्रकाश और शब्द के द्वारा भोग ग्रहण करते हैं। जिसका विधान पूजा पद्धति में होता है। जैसे जो हम अन्न का भोग लगाते हैं, देवता उस अन्न की सुगंध को ग्रहण करते हैं

उसी से तृप्ति हो जाती है, जो पुष्प और धूप लगाते है,
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#श्रृंखला
पुराणों में विचित्र विद्याओं का वर्णन भाग 2

पिछली श्रृंखला में हमने कुछ विचित्र विद्याओं का वर्णन जो पुराणों में है उस पर एक विवेचना लिखी और आपने इसे सराहा. इसी श्रंखला में आगे कुछ और ऐसी ही विद्या,मंत्र,सिद्धि अथवा प्रयोग का वर्णन
-परोक्षसत्तादर्शन- ह्रदय में स्तिथित देव को देखने की हृदय संयम शक्ति। परम भक्तों को उपलब्ध इसे देवदर्शन सिद्धि भी इसे कहा जाता है.
-अभिचार सिद्धि- प्रतिद्वंदी को शास्त्रार्थ में पराजित करने की शक्ति. याज्ञवल्क्य, मंडनमिश्र,शंकराचार्य, गार्गी विद्वानों को प्राप्त,मेघनाथ-यज्ञ
-अभिनिष्क्रमण सिद्धि- ह्रदय के संयम से आत्मा का दर्शन.
-प्रतिकृति सिद्धि- मृत पुरुषों के भी प्रतिकृति छाया रूप का दर्शन और वार्तालाप की क्षमता
-दिव्यदृष्टि सिद्धि- अकल्पनीय दर्शन की शक्ति।संजय का धृतराष्ट्र को महाभारत का वर्णन व्यक्तियों का पुण्यतमा होना आवश्यक है
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