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कुतुबुद्दीन घोड़े से गिर कर मरा,

यह तो सब जानते हैं, लेकिन कैसे??? यह आज हम आपको बताएंगे!!! दरअसल वीर महाराणा प्रताप जी का 'चेतक' सबको याद है लेकिन 'शुभ्रक' नहीं! तो मितरों, पेश है कट्टर देशभक्त हिन्दू घोड़े-

शुभ्रक की कथा ।
तो हुआ ये, कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना में जम कर कहर बरपाया। उस दौर में कोई भी मुंह उठाये आता था, और कहर बरपा कर चला जाता था।

तो कहर बरपाने के बाद वह उदयपुर के 'राजकुंवर कर्णसिंह' को बंदी बनाकर लाहौर ले गया।कुंवर का 'शुभ्रक' नामक एक स्वामिभक्त घोड़ा था,
जो कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया। और वो उसे भी साथ ले गया।

नही ले जाना था।

दरअसल पराई नार और पराये घोड़े पर नजर न डालने वाला गीत कुतुबुद्दीन ने सुना नही था। यही उसकी मौत का परवाना बनने वाला था।
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भारत की प्राचीनतम स्थली अजमेर को आधुनिक युग में मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के प्रतीक के रूप में देखा जाता रहा है। अजमेर का नाम आते ही भारतीयों के मन में मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह प्रतीकात्मक रूप से बस चुकी है।
राजनीतिक और सामाजिक रूप से इस दरगाह को हिंदू-मुस्लिम सामाजिक सौहार्द के रूप में परिभाषित कर दिया गया।

वे हिंदुत्ववादी नेता जो हिंदू जनमानस पर अपनी छाप छोड़ते हैं वह भी आए दिन इस दरगाह पर चादर लिए माथा टेकते दिखाई पड़ते हैं।
आए दिन किसी भी सेलिब्रिटी, नेता की खबर अजमेर में आपको इस दरगाह पर चढ़ाते हुए मिल जाएगी।

अजमेर दरगाह को हिंदू-मुस्लिम सौहार्द के रूप में ही स्थापित किया गया। इसलिए आपको तथाकथित हिंदुवादी प्रधानमंत्री,गृहमंत्री की तस्वीरें और खबरें भी इस दरगाह पर जाने की मिल जाएंगी।
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एक बार विचार अवश्य करें
#ब्राहमणो_ने_समाज_को_तोडा_नही_अपितु_जोडा_है

ब्राहमण ने विवाह के समय समाज के सबसे निचले पायदान पर खडे हरिजन को जोड़ते हुये अनिवार्य किया कि हरिजन स्त्री द्वारा बनाये गये चुल्हेपर ही सभी शुभाशुभ कार्य होगे।

इस तरह सबसे पहले उन्हें जोड़ा गया जिन्हें आज 👇
दलित कहा जाता है को ..

धोबन के द्वारा दिये गये जल से से ही कन्या सुहागन रहेगी इस तरह धोबी को जोड़ा..
कुम्हार द्वारा दिये गये मिट्टी के कलश पर ही देवताओ के पुजन होगें यह कहते हुये कुम्हार को जोड़ा..

मुसहर जाति जो वृक्ष के पत्तो से पत्तल दोनिया बनाते है यह कहते हुये जोडा कि इन्ही
के बनाए गये पत्तल दोनीयो से देवताओ के पुजन सम्पन्न होगे

कहार जो जल भरते थे यह कहते हुए थोड़ा कि इन्ही के द्वारा दिये गये जल से देवताओ के पुजन होगें

बिश्वकर्मा जो लकडी के कार्य करते थे यह कहते हुये जोडा कि इनके द्वारा बनाये गये आसन चौकी पर ही बैठ कर बर बधू देवताओ का पुजन करेंगे
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#मुगल शासकों एवं #अफगानी लुटेरों के समय एक साथ पूरे देश मे कभी कोई संगठित विद्रोह न हुआ। इसी वजह से वे इतने साल टिके रहे।

जब #महाराणा प्रताप लड़ रहे थे तो बाकी मौन थे।

जब वीर गौकुला सिंह जाट लड़ रहे थे तो तब बाकी चुप थे।

जब #शिवाजी महाराज लड़ रहे थे तो बाकी शांत रहे।

जब खाप👇
सेना #कुतुबुद्दीन और #तैमूर से लड़ रही थी तो तब अन्य दूर रहे।

जब पंजाब वाले जाट अब्दाली से लड़ रहे थे तो बाकी अलग रहे

जब महाराज #सूरजमल #अब्दाली से लड़ रहे थे तो बाकी मौन रहे।

जब मराठे लड़ रहे थे तो बाकी मौन थे।

जब महाराज सूरजमल और जवाहर सिंह ने दिल्ली पर आक्रमण किया तो बाकी
चुप थे।
जब मराठो ने दिल्ली पर आक्रमण किया तो बाकी निष्क्रिय थे।
जब #सिख #जाटो ने #दिल्ली पर आक्रमण किया तब अन्य न थे।

अगर 1857 में जो अंग्रेजों के खिलाफ हुआ था ऐसा मुगलों के खिलाफ होता तो अवश्य ही भारत स्वतंत्र हो जाता।👇
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