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थ्रेड: #हमारे_सरकारी_बैंक

पार्ट 2: सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया

आज एक ऐसे बैंक के बारे में बात करते हैं जो शायद शीघ्र ही इतिहास के हवाले कर दिया जाएगा।

कहा जाता है गुलाम भारत ब्रिटिश साम्राज्य के ताज का हीरा था।
इस हीरे को पकडे रखने के लिए अंग्रेजों के लिए ये ज़रूरी था कि भारत को अविकसित ही रखा जाए। इसके लिए उन्होंने हर संभव कोशिश की कि भारत में उद्योगों पर पूरी तरह से अंग्रेजों का ही कब्ज़ा रहे। इसके लिए भारतीय उद्योगों के प्रति भेदभावपूर्ण नीति अपनाई गई, और उसी का भाग था बैंकिंग।
प्रथम विश्वयुद्ध से पहले सारे बैंक अंग्रेजों के ही अधिकार में थे। ये सिर्फ सरकार के इशारे पे ही चलते थे। भारतीय इस बात को बखूबी समझते थे कि बिना सम्पूर्ण भारतीय बैंक के स्वदेशी और स्वराज्य का सपना पूरा नहीं हो सकता। मगर भारतीयों को आधुनिक बैंकिंग का अधिक अनुभव नहीं था।
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थ्रेड: हमारे सरकारी बैंक

@poorav100 के सुझाव और मदद से एक नयी सीरीज शुरू करने जा रहे हैं। पिछले बारह सालों में सरकारी बैंकों की संख्या 27 से बारह रह गयी है। इनको घटा कर चार करने पर विचार चल रहा है।
यहां बहुत से बैंकर ऐसे हैं जिन्होंने ज्वाइन किसी और बैंक में किया था और आज किसी और बैंक में हैं। बहुत से ऐसे कस्टमर हैं जिनका खाता उनसे बिना पूछे किसी दूसरे बैंक में भेज दिया गया। कई सरकारी बैंक इतिहास के गर्त में समा चुके हैं।
प्राइवेट बैंक इसलिए बंद होते हैं क्यूंकि वे चल नहीं पाते, मालिकों का लालच कह लीजिये या नाकामी। सरकारी बैंक सरकार की नाकामी की वजह से बंद होते हैं। इससे पहले कि बचे खुचे सरकारी बैंक भी गुमनानी के अँधेरे में खो जाएँ, आइये जानते हैं सरकारी बैंकों के बारे में।
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