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Most recents (15)

थ्रेड: #राम_नाम_की_लूट

पिछले 3-4 सालों से एक चीज लगातार देखने को मिल रही है और वो ये कि सरकार की पैसे की डिमांड बहुत बढ़ गई है। साम-दाम-दंड-भेद सरकार ने राजस्व बटोरने का कोई रास्ता नहीं छोड़ा है।

#CorporatePuppetGOVT
1. सर्विस टैक्स को GST में शामिल करके 18% की स्लैब में डाल दिया।
2. कार्बन टैक्स बोल के पेट्रोलियम पदार्थों पर बेतहाशा टैक्स लगा दिया।
3. केरोसिन, LPG वगैरह पर से सब्सिडी बिलकुल ख़त्म कर दी।
4. शराब और सिगरेट पर भी लगातार टैक्स बढ़ाये हैं।
#CorporatePuppetGOVT
5. PSUs से लगातार डिविडेंड वसूला है।
6. सरकारी उपक्रमों की बिक्री पूरे जोश में चालू है।
7. RBI से भी पौने दो लाख करोड़ वसूला है।
8. इन्फ्लेशन की रेट 4% है मगर आयकर की स्लैब में उस हिसाब से बदलाव नहीं आये हैं।
#CorporatePuppetGOVT
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दादा जी एक किसान थे, किसी तरह अपने बेटों को 10th पढ़ाया। पापा जी किसी तरह 12th किसी तरह पढ़ाई की। चुकीं ज्वाइंट फैमिली में रहते थे तो सिर्फ खेती पे सब कुछ कर पाना मुश्किल था, तो पापा दूसरे शहर चले गए, वहां जा कर खलासी कि नौकरी की, किसी तरह फिर ट्रक चलाना सीखा। #मोदी_रोजगार_दो
और उस नौकरी के पैसे गांव का कच्चा मकान के कुछ हिस्से को पक्का बनवाया। हम भी तीन भाई गांव पे ही रहते थे दिन में स्कूल और बाकी बचे समय में खेतों में काम करते थे, पापा जब भी आते थे तो खुश बहुत होते थे क्यूंकि आते थे तो मिठाई ले कर आते थे और जब तक रहते थे। #मोदी_रोजगार_दो
हमारे लिए रोज़ कुछ ना कुछ लाते थे। फिर जब हमारे गांव के ट्यूशन के टीचर ने बताया कि मंझले भैया पढ़ने में बहुत अच्छे हैं तो उन्हें शहर के स्कूल में पापा ने दाखिला करा दिया, रोज़ भैया को स्कूल कि कार लेने आती थी और छोड़ने आती थी। तब मेरे मन में बात आयी की पापा सिर्फ #मोदी_रोजगार_दो
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थ्रेड : #कॉर्पोरेट_गवर्नेंस

1990 के दशक के शुरुआत में लंदन में कुछ कंपनियों में बड़े घपले हुए। इनके नेपथ्य में था 1979 में मार्गरेट थेचर के नेतृत्व में शुरू हुआ निजीकरण का दौर (ब्रिटेन के निजीकरण के बारे में किसी और दिन बात करेंगे)।
दरअसल 1980 के दशक में निजी कंपनियों में दूसरी कंपनियों के अधिग्रहण की जबरदस्त होड़ मची। पैरेंट कंपनियां खूब उधार लेकर दूसरी कंपनियों को खरीद रही थी। इससे कंपनियों के ऊपर बहुत कर्ज बढ़ गया था। ऐसी ही एक कंपनी थी मैक्सवेल कम्युनिकेशन्स।
इस कंपनी ने अपने कर्मचारियों के पेंशन फंड्स में सेंध लगा कर अधिग्रहण के लिए फंड्स जुटाए थे। कुछ ही सालों में कंपनी पर कर्ज इतना बढ़ गया कि 1992 में कंपनी ने बैंकरप्सी फाइल कर दी। उसी साल इंग्लैंड की ही Bank of Credit and Commerce International (BCCI) भी डूब गई।
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थ्रेड: #एफ्फिसिएंट_सरकार

एक बात तो माननी पड़ेगी। ये सरकार एफिशिएंट तो बहुत है। और ये बात मैं साबित कर सकता हूँ। पिछली सरकारें बेवकूफ थीं। कभी गरीबी मिटाओ, कभी घर बनाओ, कभी रोजगार दिलाओ, कभी भुखमरी हटाओ, ये सब छोटी छोटी योजनाओं पे काम करती थी।
और फिर हर पांच साल बाद अपना काम लेकर पब्लिक के पास जाती थी "भाई हमारा काम देखो और हमें वोट दो"। बीच बीच में जाति और धर्म का तड़का भी लगता था मगर वो भी छोटे लेवल पर। नयी सरकार को समझ आ गया कि ये तरीका एफ्फिसिएंट नहीं है।
पहले तो योजनाएं बनाओं, फिर लागू करवाओ। अब इतना काम करो, फिर उसे लेकर पब्लिक के पास जाओ। और उसके बाद भी कोई गारंटी नहीं है कि आपको वोट मिल ही जाएगा। और वैसे भी योजनाएं छोटी हैं तो करप्शन भी छोटा ही होगा। इतनी मेहनत करो और न सत्ता मिले और पैसा भी कोई ज्यादा नहीं।
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थ्रेड: #हमारे_सरकारी_बैंक

पार्ट 2: सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया

आज एक ऐसे बैंक के बारे में बात करते हैं जो शायद शीघ्र ही इतिहास के हवाले कर दिया जाएगा।

कहा जाता है गुलाम भारत ब्रिटिश साम्राज्य के ताज का हीरा था।
इस हीरे को पकडे रखने के लिए अंग्रेजों के लिए ये ज़रूरी था कि भारत को अविकसित ही रखा जाए। इसके लिए उन्होंने हर संभव कोशिश की कि भारत में उद्योगों पर पूरी तरह से अंग्रेजों का ही कब्ज़ा रहे। इसके लिए भारतीय उद्योगों के प्रति भेदभावपूर्ण नीति अपनाई गई, और उसी का भाग था बैंकिंग।
प्रथम विश्वयुद्ध से पहले सारे बैंक अंग्रेजों के ही अधिकार में थे। ये सिर्फ सरकार के इशारे पे ही चलते थे। भारतीय इस बात को बखूबी समझते थे कि बिना सम्पूर्ण भारतीय बैंक के स्वदेशी और स्वराज्य का सपना पूरा नहीं हो सकता। मगर भारतीयों को आधुनिक बैंकिंग का अधिक अनुभव नहीं था।
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थ्रेड: #नाच_मेरी_बुलबुल

बैंक नीलाम हो रहे हैं। साथ में नीलाम हो रहा है बैंक कर्मचारियों का भविष्य और ग्राहकों का विश्वास। जनता तो अभी रिंकू और दिशा में व्यस्त है। उनको ज्यादा पता नहीं। जिस मीडिया पर जनता को सच्चाई बताने का जिम्मा है वो तो खुद पासबुक लेके प्रिंट कराने घूम रहा है।
बैंकरों को लग रहा है कि सरकार ने तानाशाही रवैया अपनाते हुए ये एकतरफा फैसला लिया है। मैं इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं हूँ। रवैया तो तानाशाही है मगर फैसला एक तरफ़ा नहीं है। इस फैसले में सब मिले हुए हैं।
लोकतंत्र में संतुलन बनाये रखने वाला विपक्ष भी और स्वयं को बैंकरों का मसीहा मानने वाले बैंक यूनियन भी। विपक्ष इसलिए क्यूंकि चुनाव लड़ने के लिए इनको भी तो पैसा चाहिए। और चार राज्यों में चुनाव आ ही रहे हैं। और अभी पुदुच्चेरी में भी इनकी सरकार डांवाडोल है।
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थ्रेड: #सबका_नंबर_आएगा

पहले सरकार बैंकरों के पीछे पड़ी। नोटबंदी करवाई, बिना कोलैटरल की लोन स्कीम्स लांच करवाई, बैंकों पर आधार और बीमे का बोझ डाला, स्टाफ में कटौती की। नोटबंदी के बाद साहब ने कहा कि बैंक वालों ने जितना काम नोटबंदी में किया उतना पूरी जिंदगी में कभी नहीं किया।
जो समझदार थे वो इस बेइज़्ज़ती को समझ गए। साहब ने एक झटके में बैंकरों सर्कस का निकम्मा जानवर और खुद को कुशल रिंगमास्टर घोषित कर दिया। कोरोना में बैंक खुलवाए जबरदस्ती के लोन बंटवाए लेकिन कोरोना वारियर्स मानने से मना कर दिया।
फिर बैंकों के निजीकरण का प्रस्ताव लेकर आयी। लोग खुश हो गए। अब मजा आएगा इन सरकारी बैंक वालों को। साले निकम्मे कहीं के। आटे दाल का भाव पता चलेगा जब प्राइवेट बैंक में आधी सैलरी पर काम करना पड़ेगा। लोन देने में नखरे करते थे, पासबुक प्रिंट करने में नखरे करते थे, दस नियम समझाते थे।
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थ्रेड: #ठेके_वाले_बाबू

लोगों को सरकार और राजनीती के बारे में काफी भ्रम हैं। लोगों को लगता है कि नेता नीति बनाते हैं। गलत। नेता केवल नीति बताते हैं। बनाने और लागू करने का काम नौकरशाह ही करते हैं। नौकरशाह को जनता नहीं चुनती। ना ही हटा सकती है।
ये परीक्षा देकर आते हैं और रिटायर होकर जाते हैं। वहीँ नेता को जनता चुनती है और जनता ही हटाती है। नौकरशाहों को नेता भी नहीं हटा सकते, केवल परेशान कर सकते हैं। संविधान का आर्टिकल 311 उनकी रक्षा करता है। मतलब नौकरशाह परमानेंट हैं और नेता टेम्पररी।
सरकार कोई भी आये नीति वही रहती है, क्यूंकि नौकरशाह भी तो वही है। हाँ उसको जनता के सामने लाने का तरीका बदल जाता है, क्योंकि नेता बदल जाता है। मंडल कमीशन बनाया इंदिरा ने और लागू किया राजीव गाँधी के धुर विरोधी वी पी सिंह ने।
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थ्रेड: हमारे सरकारी बैंक

@poorav100 के सुझाव और मदद से एक नयी सीरीज शुरू करने जा रहे हैं। पिछले बारह सालों में सरकारी बैंकों की संख्या 27 से बारह रह गयी है। इनको घटा कर चार करने पर विचार चल रहा है।
यहां बहुत से बैंकर ऐसे हैं जिन्होंने ज्वाइन किसी और बैंक में किया था और आज किसी और बैंक में हैं। बहुत से ऐसे कस्टमर हैं जिनका खाता उनसे बिना पूछे किसी दूसरे बैंक में भेज दिया गया। कई सरकारी बैंक इतिहास के गर्त में समा चुके हैं।
प्राइवेट बैंक इसलिए बंद होते हैं क्यूंकि वे चल नहीं पाते, मालिकों का लालच कह लीजिये या नाकामी। सरकारी बैंक सरकार की नाकामी की वजह से बंद होते हैं। इससे पहले कि बचे खुचे सरकारी बैंक भी गुमनानी के अँधेरे में खो जाएँ, आइये जानते हैं सरकारी बैंकों के बारे में।
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थ्रेड: सरकारी फिल्में
#CorporatePuppetGOVT
लोगों को ये शिकायत अक्सर रहती है कि सरकारी संस्थानों और उपक्रमों में क्वालिटी की कमी रहती है। मेरा मानना है कि ये सिर्फ पूंजीवादी मुनाफाखोर कॉर्पोरेट द्वारा फैलाई हुई अफवाह है।
IIT-IIM तो हैं ही, आज आपको NFDC (नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन) के बारे में बताता हूँ। ये 1975 में बनाया हुआ एक सरकारी संस्थान है जिसका उद्देश्य अच्छी फिल्मों को प्रोत्साहन देना है। इस संस्थान ने लगभग 300 फिल्में प्रोडूस की हैं।

#CorporatePuppetGOVT
उदाहरण, लंचबॉक्स (2013), मांझी दी माउंटेन मैन (2015) से लेकर आक्रोश (1980), जाने भी दो यारों (1983), मिर्च मसाला (1986), सलाम बॉम्बे (1988) जैसी फिल्में NFDC ने दी हैं। गाँधी (1982), जिसको आठ ऑस्कर मिले थे, उसके प्रोडक्शन में भी NFDC का हाथ था।

#CorporatePuppetGOVT
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#CorporatePuppetGOVT

Thread:

सरकार देश के संसाधनों का निजीकरण करने पर तुली हुई है। और देश की जनता बिगबॉस देखने में बिजी है। आइये आपको निजीकरण के फायदे समझाते हैं।
हवा: आपको खुली हवा में सांस लेने की आजादी नहीं है, क्यूंकि हवा किसी कंपनी ने सरकार से बोली लगाकर खरीद ली है। अब उस कंपनी को
अपने हिसाब से हवा में प्रदूषण फ़ैलाने का हक़ है।

#CorporatePuppetGOVT
आप चाह कर भी सांस नहीं ले सकते। हवा गन्दी ही इतनी हो गयी है। हाँ अगर सांस लेनी है तो प्राइवेट कंपनी का बनाया हुआ पॉलूशन फ़िल्टर मास्क या फिर ऑक्सीजन सिलिंडर खरीदना पड़ेगा।

#CorporatePuppetGOVT

edition.cnn.com/2015/12/15/asi….
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Lets understand why PSBs are in loss. Why arent they making profit?
Are the employees really KAAMCHOR?

Govnt started a Scheme known as Swanidhi scheme. A Loan SCHEME which was for street vendors of 10k.

As usual govnt pressurised all PSBs to sanction it..
1/n
All over the country govnt bankers were called on weekdays even to sanction these loans.

We PSB bankers did everything to make govnt scheme successful.
Although we knew that this scheme is not that benificial and the NPA will rise but we had no choice.

#CorporatePuppetGOVT

2/n
All the govnt banks didnt have any option.The biggest problem with street vendors is that you cant locate them if they have motive to run away with money.

Hence it will convert banks in loss making organisation.

#CorporatePuppetGOVT
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What is #CorporatePuppetGOVT and why bankers are trending against it??

Lets try to understand..

PSBs are asked to do govnt schemes. As we all know govnt schemes are for society benifits. So profit making chances are very less..

1/n
These loans and schemes which are for public welfare arent sanctioned by private banks.

Those who have account in any private bank please inquire there.
Do they offer MUDRA loan and Swanidhi loan. Yes?? Then how many they did.

Adding very small comparison of an area.

2/n
Now when budget is going to announce there is news around privatisation of PSBs.
Reason.. they are loss making organisations.

Now my simple ques are..

👉Are PSBs meant to earn profit or public service.
👉If they are to be judged by profit why govnt schemes are forced to them.
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अपनी गलतियों का ठीकरा दूसरों के सर फोड़ने का तरीका कोई कृष्णमूर्ति सुब्रह्मनीयन साहब से सीखे। ये न केवल नालायक हैं बल्कि झूठे और मक्कार भी हैं। पॉइंट बाई पॉइंट थ्रेड :

moneycontrol.com/news/business/…
1. इन्होने ने बैंकों की हालत के लिए रघुराम राजन के कार्यकाल को जिम्मेदार ठहराया है। चलो मान लिया कि उनकी गलती थी। आपने क्या किया उसके बाद? जिस रिस्ट्रक्चरिंग को गालियाँ दे रहे हैं वो बंद हो गयी क्या?
2. एक तरफ आप बैंक और कॉर्पोरेट के कोलैबोरेशन को गरिया रहे हैं। दूसरी तरफ आप कॉर्पोरेट को बैंकिंग में एंट्री देने की वकालत कर रहे हैं।

3. आप कह रहे हैं कि कॉर्पोरेट वाले बैंकों पर दबाव बनाते हैं लोन रिस्ट्रक्चरिंग के लिए।
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थ्रेड: क्रोनोलॉजी

आइये आज आपको निजीकरण की क्रोनोलॉजी समझाते हैं। कॉर्पोरेट बहुत तगड़ी प्लानिंग के साथ काम करते हैं। ये बरसों तक तैयारी करते हैं। सबसे पहले विदेशी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर्स को प्रोजेक्ट फंडिंग दी जायेगी।
साथ ही उनको कंपनी एडवाइजरी बोर्ड में पार्ट टाइम आनरेरी पोजीशन के साथ मोटी सैलरी भी दी जायेगी। फिर अवार्ड्स की फंडिंग करके, और नामी अख़बारों और पत्रिकाओं में लेख छपवाकर उन प्रोफेसर्स को नामचीन बनाया जाएगा।
फिर कॉर्पोरेट के एहसानों के बोझ तले दबे इन शिक्षाविदों को सरकारें सलाहकार नियुक्त करेंगी। अगर सरकार नहीं मानी तो दुनिया भर में पैसे देकर खड़ी की गयी रेटिंग एजेंसियों, NGOs, अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के जरिये कभी असहिष्णुता तो कभी व्यापार,
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