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'मुझे मेरे गोत्र "गौतम" से सम्बोधित मत करो I मै अब अरहन्त हूँ, सम्यक सम्बुद्ध हूं I'
- तथागत बुद्ध

सम्बोधि प्राप्ती के पश्चात जब तथागत बुद्ध ने पीडित मानवता के कष्टों का विचार किया, उनका दिल करुणा से ओत प्रोत हो गया I उन्हों ने निश्चय किया कि जिन अनादी सत्तों
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का उन्हों ने आविष्कार किया है, वे सभी मानवों तक उन सत्यों को पहुचायंगे I.
इस निश्चय को लेकर तथागत ने वाराणसी की ओर प्रस्थान करने का संकल्प किया I वाराणसी सदियोंसे धार्मिक चिंतन और धार्मिक जीवन बिताने वालों का मिलन-स्थान माना जाता रहा है I रास्ते में उनकी मुलाखत उन के
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पुर्व परिचित एक नग्न जैन मुनि 'उपक' से हुई I तथागत की तेजस्विता और शान्त मुद्रा से प्रभावित होकर उपक ने प्रश्न किया- 'वह तुम्हारा कौन सा गुरु है, जिसके कारण तुम ने गृह त्याग किया है?'
तथागत का उत्तर था- 'मेरा कोई गुरु नहीं है I मेरे समान कोई नहीं है I मै सम्यक
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🌻धम्म प्रभात🌻
मन मैला और तन उजला करने से निर्मलता नहीं आती है।धम्म से शरीर स्वच्छ व निर्मल होता हैं, मन निर्मल होता है।
एक बार भगवान बुद्ध श्रावस्ती में विहार करते थे। उस समय संगारव ब्राह्मण भी वहीं रहता था। वह पानी से शुद्धि होती हैं ऐसा मानने वाला था और पानी से
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शुद्धि का अभ्यास करता था । प्रायः रात-दिन स्नान करना ही उसकी आदत बन गई थी।

एक बार आनंद थेर प्रातःकाल श्रावस्ती में पिंडपात के लिए निकले । श्रावस्ती में भिक्खा ग्रहण करके भोजन कर चूकने के बाद लौटकर, आनंद तथागत के पास पहुंचे, अभिवादन किया और एक ओर बैठ गए और कहा -
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भगवान ! यहां श्रावस्ती में संगारव ब्राह्मण रात-दिन पानी से स्नान करके अपने को शुद्ध करने में विश्वास रखता हैं । भगवान ! अच्छा हो यदि आप संगारव पर अनुकंपा करके सही मार्ग दिखाए ।

दूसरे दिन प्रातःकाल तथागत संगारव ब्राह्मण के घर जा पहुंचे।संगारव ने तथागत का अभिवादन किया और
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" अशोक चक्र " के लिए बाबासाहब ने बहुत Struggle किया है। .. " अशोक चक्र " का जब issue उठा तब पूरी Parliament में हंगामा शुरू था। .. पूरी Parliament दनदना गयी थी।..

पहले राष्ट्रध्वज का कलर बनाने के लिए बाबासाहब ने " पेंगाली वेंकैय्या " को चुना था। ...
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पेंगाली वेंकैय्या को कलर के बारे में जनाकारी थी। ... उनका संवैधानिक चयन बाबासाहब ने किया था। ,.. पेंगाली वेंकैय्या ने ध्वज का कलर तो बनाया लेकिन वो कलर ऊपर निचे थे ... मतलब सफ़ेद रंग सबके ऊपर , फिर ऑरेंज और फिर हरा। ...

बाबासाहब ने सोचा , अगर अशोक चक्र हम
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रखे तो वो नीले रंग में होना चाहिए , और झंडे के बिच में होना चाहिए ... ऑरेंज रंग पे " अशोक चक्र " इतना खुल के नहीं दिखेगा। ... बाबासाहब ने सोचा , अगर सफ़ेद रंग को बिच में रखा जाए जो की शांति का प्रतिक है , उसपर अशोक चक्र खुल के भी दिखेगा। .. और शांति के प्रतिक
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अविद्या :

तथागत बुद्ध ने भिक्खूओं को संबोधित करते हुए कहा -

भिक्खूओं ! अविद्या अकुशल धम्म की पूर्वगामी है। वह निर्लज्जता तथा पाप करने में डरता नहीं है, उसके ठीक पीछे-पीछे जाता है ।

भिक्खूओं !
जो अविद्या ग्रसित मनुष्य होता है,उसकी मिथ्या दृष्टि होती है ।

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जो मिथ्या दृष्टिवाला है, वह मिथ्या संकल्पवाला होता है। जो मिथ्या संकल्पवाला होता है, वह मिथ्या वाणीवाला हो जाता है। जो मिथ्या वाणीवाला होता है, वह मिथ्या कर्मान्तवाला होता है। जो मिथ्या कर्मान्तवाला होता है, वह मिथ्या आजीविकावाला होता है । जो मिथ्या

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आजीविकावाला होता है , वह मिथ्या व्यायामवाला होता है, जो मिथ्या व्यायामवाला है, वह मिथ्या स्मृतिवाला होता है। जो मिथ्या स्मृतिवाला होता है, वह मिथ्या समाधिवाला होता है। जो मिथ्या समाधिवाला होता वह मिथ्या ज्ञानवाला होता है, जो मिथ्या ज्ञानवाला होता है,

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🌷धम्म प्रभात🌷

ये च बुद्धा अतीता च ये च बुद्धा अनागता, पच्चुपन्ना च ये बुद्धा अहं वन्दामि सब्बदा।

भूतकाल में जितने बुद्ध हुए हैं,
वर्तमान काल में जितने बुद्ध हैं, और भविष्य में जितने बुद्ध होंगे, मैं उन सब की सदा वंदना करता हूँ।
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मैं उन २८ बुद्धों की वंदना करता हूँ।

तण्हकर बुद्ध को वंदन है।
मेघंकर बुद्ध को वंदन है।
सरणंकर बुद्ध को वंदन है।
दीपंकर बुद्ध को वंदन है।
कोण्डञ्ञ बुद्ध को वंदन है।
मंगल बुद्ध को वंदन है।
सुमन बुद्ध को वंदन है।
रेवत बुद्ध को वंदन है।
सोभित बुद्ध को वंदन है।
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अनोमदस्सी बुद्ध को वंदन है।
पदुम बुद्ध को वंदन है।
नारद बुद्ध को वंदन है।
पदुमुत्तर बुद्ध को वंदन है।
सुमेध बुद्ध को वंदन है।
सुजात बुद्ध को वंदन है।
पियदस्सी बुद्ध को वंदन है।
अत्थदस्सी बुद्ध को वंदन है।
धम्मदस्सी बुद्ध को वंदन है।
सिद्धत्थ बुद्ध को वंदन है।
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तथागत आठ गुणों के कारण लोकविश्रूत कहलाते है I
1. तथागत लोगों पर अनुकंपा करते हुए बहुजनों के हित-सुख
और भले में लगे रहते है I
2. तथागत जो धम्म सिखाते है, वह अच्छी तरह आख्यात होता
है याने उसकी कोई लालबुझक्कडी पहेलियां नही होती I
वह सांदृष्टिक सत्य
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पर आधारित होता है I उसमें मिथ्थां कल्प-
नाओं का स्थान नहीं होता I वह अकालिक होता है, धारण
करने पर अभी यहीं फलदायी होता है I वह सबका होता है,
सबके लिये होता है I
3. तथागत जो शिक्षा देते है उस से स्पष्ट होता है कि क्या भला है
क्या बूरा है,
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क्या अकुशल, क्या कुशल, क्या करणीय है,क्या
अकरणीय,क्या निंदनीय है और क्या अनिंदनीय है I
4. तथागत अपने शिष्यों को निर्वाण तक पहुंचने का मार्ग बहूत
स्पष्ट रूपसे सिखाते है I
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