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थ्रेड:#सर्कस_का_शेर

#StopPrivatizationOfPSBs

सरकारी नीतियों (पॉलिसी) का उद्देश्य अर्थव्यस्था और समाज में सुधार लाना होता है। सरकार नीति बनाती है और फिर उसे लागू करती है। नीतियां लागू करने के कई तरीके हैं। इनमें से दो तरीकों के बारे में आज बात करेंगे।
पहला है कैफेटेरिया एप्रोच और दूसरा है टारगेट बेस्ड एप्रोच। जैसा कि नाम से ही समझ आता है, कैफेटेरिया एप्रोच में पब्लिक को विकल्प दिए जाते हैं और उनमें से एक विकल्प को अपनाना होता है। इस तरीके में ये माना जाता है कि जनता समझदार होती है और अपना भला बुरा समझ सकती है।
दूसरा तरीका जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, थोड़ा स्ट्रैट फॉरवर्ड है। यानी अधिकारियों को पॉलिसी इम्प्लीमेंटेशन के लिए टारगेट दे दिए जाते हैं और साथ में दे दी जाती है पावर। उन्हें किसी भी हालत में तय समय में रिजल्ट देना होता है।
#StopPrivatizationOfPSBs
#StopPrivatizationOfPSBs
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भारतीय संस्कृति में अंधभक्ति वर्जित है। हमारे सभी धर्मशास्त्र, उपनिषद, वेद पुराण, स्मृतियों में ज्यादातर व्याख्या प्रश्नोत्तर रूप में ही की गयी है। लक्ष्मीजी ने विष्णुजी से, पार्वती ने शिव से, अर्जुन ने कृष्ण से हजारों सवाल पूछे। नचिकेता ने तो यमराज तक से सवाल पूछे थे।
उपनिषद का मतलब ही होता है कि गुरु के पास बैठना। अब पास बैठोगे तो सवाल भी पूछोगे ही। परन्तु आजकल जो वर्क कल्चर चल रहा है उसमें सवाल पूछना वर्जित है। आपको आँख बंद करके ऊपर वालों का हर आदेश मानना है। यही हाल यूनियन के साथ भी है।
हर महीने फीस काट ली जाती है मगर ये कभी नहीं पता चलता कि वो पैसा गया कहाँ? हमें ये भी नहीं पता कि यूनियन वाले करते क्या हैं। वेज सेटलमेंट हो गया लेकिन अभी तक किसी ने ये नहीं बताया कि हमारी प्रमुख मांगें क्यों नहीं मानी गयी।
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थ्रेड : राजा की कहानियां (भाग :3)

भाग 1


भाग 2
अर्थशास्त्र में चाणक्य ने लिखा है कि "यथा राजा तथा प्रजा"। सही बात है। भारत के केस में और भी सही है। क्यूंकि यहां तो वैसे भी प्रतिनिधित्व लोकतंत्र है। मतलब प्रजा ही राजा चुनती है। प्रजा को अपने हिसाब से राजा चाहिए।
पिछले राजा से प्रजा तंग आ गयी थी क्यूंकि उसके मंत्री ही उसकी नहीं सुनते थे। इसलिए उन्होंने नया राजा चुना। जैसे नवधनाढ्य को मौकापरस्त मित्र घेर लेते हैं उसी प्रकार इस नए राजा को उसके चापलूसों ने खूब चढ़ा दिया है।
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आत्मसम्मान, पद सम्मान, संस्थागत सम्मान सब धूमिल हो जाता है जब इसपर प्रहार होने के बाद हम, हमारा ज़मीर और बैंक शांत बैठ जाते हैं, घटना घटित होती है कर्मी घायल होता है बैंक और शासन
फिर भी असंवेदनशील बना रहता है, हाँ बेशक ये बलात्कार नहीं है लेकिन प्रतिष्ठा का बलात्कार जरूर है,
कोई मीडिया इसे दिखाए ना दिखाए लेकिन घटना घटी है आज दूसरे के साथ तो कल आपके साथ भी घटेगी और ये सिलसिला चलता रहेगा जब तक हम सब साथ नहीं आयेगे, आज कैबिन में घुस के मारा है कल घर में घुस कर मारा जाएगा और हम आज भी हाथ पर हाथ रखे बैठे हैं कल भी बैठे रहेंगे, दोस्तों ज्यादा संयम भी
कायरता कहलाता है, हमे दिखाना होगा कि हम कायर नहीं है हमे बताना होगा कि हमारी लाठी में कितनी अवाज है, हमे दिखाना होगा हममे कितना साहस है, हम साथ लड़ेंगे साथ जीतेंगे,सरकार साथ देगी तो सरकार का साथ देंगे नहीं देगी तो विपक्ष के साथ लड़ेंगे लेकिन शांत नहीं बैठेंगे।
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अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए एक और लेख हमारे बैंकर भाई @R3_QuadrilaterL की कलम से #चतुर्भुज_का_चश्मा👓

अच्छे से याद है , बारिश बहुत कम हुई थी उस साल में , दिन 22 जुलाई 2012.

जिला रायगढ़ के पास 50 किमी दूर सारंगढ़ तहसील ।
नई नई जोइनिंग थी ,जोश लबालब भरा था ।
फिर क्या बस पकड़ी और निकल लिए ।
अपना मन भी साहब बना हुआ था, भाई सरकारी नौकरी ग्रामीण बैंक में , ऑफिसर वाली , कहाँ मिलती है इतनी आसानी से ?
पर पता नहीं था जोश ठंडा होने वाला है , जैसे ही यात्रा समाप्त हुई , बस स्टैंड पे उतरे अगल बगल का माहौल देखा ,कीचड़ वाली रोड और एक
धूल भरी हवा का तेज़ चमाट पड़ा मानो जैसे तेज़ नींद से उठा दिया हो ।

हिम्मत करके हमने भी पता पूंछा, मन ही मन सोचा अरे कोई नहीं शहर का क्या? शाखा मस्त होनी चाहिए ।
दिल को मानते हुए चल दी पैदल पास ही पूंछताछ करने के बाद गंतव्य स्थान पहुँचे ।
शाखा में एंट्री, मानो जैसे खुद को
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Thread: सावन का अँधा

'सावन का अँधा' बड़ी खतरनाक प्रजाति है। विशेष रूप से भारत जैसे सूखाप्रधान देश में। सावन का अँधा गधा हरी घास के धोखे में कुछ उल्टा सीधा खा ले तो लेने के देने पड़ सकते हैं।
सावन का अँधा अपने खुद के लिए तो खतरनाक होता ही है, पर जब नेता बन जाए तो पूरे देश और समाज का बेड़ागर्क कर देता है। वो सूखी गर्मी में भी लोगों को रैनकोट बँटवायेगा। नेहरूजी १९२७ में रूस गए और वहाँ समाजवाद की क्रांति (वहाँ का सावन) के अंधे हो के आये।
राजीव गाँधी अमरीका में अंधे हुए थे इसलिए इतना लोन लिया की 1991 में देश दिवालिया होते होते बचा। मोदी जी वैसे तो बाहर ही रहते हैं (करोनाकाल की बात छोड़ दें), पर अंधे हुए अपने भक्तों की भक्ति से। उनपे प्राइवेटाइजेशन कि धुन सवार है। ये पता नहीं कहाँ जा कर रुकेंगे।
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#चतुर्भुज_का_चश्मा 【 CKC-1005】

संदर्भ :- मौलिक अधिकार बैंकर की दृष्टिकोण से ।

हमारे वर्तमान संविधान में छः मौलिक अधिकार हैं ।
आइये हम इन्हें एक बैंकर की वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से देखते हैं।

1. समानता का अधिकार - एक सा नियम, और एक ढंग से लागू , पर वेतन में CPC कहाँ है?
कर्मचारियों को उनके मेहनत के हिसाब से अन्य विभागों से बहुत ही कम वेतन मिलता है ।
काम के बोझ को अगर वेतन से जोड़ा जाए तो असमानता अतिशयोक्ति नहीं होगी ।
#WeDemandCPC

2. स्वतंत्रता का अधिकार : बैंकर्स के स्वतंत्र तथा उन्मुक्त विचारो का सदैव हनन ही हुआ है , उनकी बुलंद आवाज़ को
रोकने के भरसक प्रयास, सरकार की निजीकरण की नीतियों में निहित है ।
मुख्यतः गोदी मीडिया द्वारा बैंकर्स की आवाज़ को तोड़ मरोड़ के प्रस्तुत किया जाता है । #StopPrivatizationOfBanks
#ShameOnMedia
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#चतुर्भुज_का_चश्मा

संदर्भ :- बैंक कर्मचारियों की सुरक्षा ।

बैंक कर्मचारियों की सुरक्षा अभी भी हासिये पर ही है, बार बार होने वाली अप्रिय तथा हिंसक घटनायें इसका उदाहरण है , जो की लगातार और भी बढ़ती जा रही है ।
हाल ही में यू.पी. ग्रामीण बैंक में अधिकारियों के साथ हुआ अभद्र व्यवहार
इसका जीता जागता उदाहरण है , जो सफेद टोपी वाले नेता जी द्वारा किया गया ।
नेता जी का इतना ज्यादा दवाब होता है जैसे की बैंक उनकी है, कर्मचारी उनके है उसका उदाहरण आज की घटना

जहां नेता जी जमाने भर का ज्ञान दे रहे है, पर उस कर्मचारी को अपना काम नहीं करने दे रहे
@DFS_India @nsitharaman
द्वारा समय समय पर कई पत्र तथा circular निकाले गए कर्मचारियों की सुरक्षा को लेके पर उनका अस्तित्व केवल कागज़ों पर ही है कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई।
तो क्या ये सब दिखावा है , क्या खिलवाड़ है ?
समझ नहीं आता, एक तरफ सुरक्षा का आश्वासन और दूसरी तरफ सूरत जैसी
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बैंक में चूंकि हम पब्लिक सर्विस करते हैं तो हमें कई तरह के कस्टमर देखने को मिलते है। यहां ये ज्ञात रहे की बात ब्रांच की हो रही है नहीं बैक ऑफिस की। CBS में लॉगिन करते टाइम गांधीजी सलाह देते हुए नजर आते हैं की कस्टमर भगवान् होता है।
#bankersProtectionAct
बाकी ये तो गांधीजी ही जानें की उन्होंने कब और कितने कस्टमर फेस कर लिए और इस मैटर के एक्सपर्ट बन गए। शायद गांधीजी आज होते तो अपना ये स्टेटमेंट जरूर बदल लेते। कस्टमर्स को कुछ प्रकारों में बांटा जा सकता है :
1. गाँव के सीधे कस्टमर: जो कहो मान जाते हैं, बैंक वालों पे भरोसा करते हैं, साहब कह के बुलाते हैं, कभी कभी बैंक वालों के लिए खेत से मूंगफली भी ले आते हैं। मगर पूंजीवाद के इस युग में ऐसे कस्टमर घटते जा रहे है। #bankersProtectionAct
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@RBI

आपके संज्ञान में यह लाना बहुत जरूरी हो चला है कि बैंको की स्वायत्तता खतरे में हैं ।।

आत्मनिर्भर भारत के लिए केंद्र सरकार लोन स्कीम लांच करती है, किन्तु टारगेट के लिए PSB CMDs पर DFS द्वारा अत्यधिक प्रेशर दिया जाता है ताकि जनता को आंकड़े दिखाकर प्रलोभित किया जाए
सूरत में एक महिला बैंक कर्मी पर दुर्दांत तरीके से एक पुलिस वाला गुंडा हमला कर देता है, और पूरी पुलिस फ़ोर्स उस गुंडे को बचाने में लगी रहती है , चंद घंटों के लिए गिरफ्तार कर तुरंत जमानत पर छुड़वा लेती है

#BankerSafety
फिर दक्षिण के शिमोगा से एक पत्रकार अपने (अ)ज्ञान को दर्शाते हुए एक हिंदी भाषी बैंक मैनेजर के खिलाफ मनगढंत आरोप लगाते हुए खबर छाप देता है, जिस पर बिना सत्य परखे समाज सेवी अपनी प्रतिक्रिया देते हुए बैंकर को दोषी ठहरा देते हैं @suchetadalal

और अंततः सत्य हमे ही सामने लाना पड़ता है
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