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Most recents (6)

खुशियों का डिब्बा ( A short story )
Thread !!!
ऑफिस में इतना काम है,
त्यौहार आकर दस्तक देता है,
तब जाकर पता चलता है,
कल ये त्यौहार है ।
जब छोटे थे एक हफ्ते पहले से
तैयारियां शुरू हो जाती थी ।

माँ , कागज़ पे बाकायदा लिखकर
देती थी चीज़ें जैसे कि, सूजी, मैदा,मेवा, ड्राई फ्रूट, शक्कर इत्यादि

और बचे हुए दो रुपयों से वो
खट्टी-मीठी नारंगी गोलियां
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घुंघराले बाल ( एक छोटी सी रचना ) Thread !!

( do read and let me know your feedback ) & share if you liked it
तुम्हें पता है न
मुझे तुम्हारे
ये घुंघराले बाल कितने पसंद है
जब जब तुम किसी हेयर स्ट्रेटनर
से किसी ख़ास मौके पर
फॉर अ चेंज बाल स्ट्रेट करती हो
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सोलो ट्रिप और घर वालों की परमिशन😅
( Thread ) After long time tried writing from girl’s perspective — Inspired by conversation between @GoldenMathur & @Nirdayiii in space :))
हम सब कहीं न कहीं
यह जवानी है दीवानी की नैना है
जो एक चिठ्ठी लिखकर
चले जाना चाहते हैं
किसी ट्रैकिंग ट्रिप पर
क्यूंकि हम बनी की तरह
घर पर नहीं कह सकते
मैं उड़ना चाहती हूँ
दौड़ना चाहती हूँ
गिरना भी चाहती हूँ
बस रुकना नहीं चाहती

लेकिन क्या फायदा
इसपर भी घरवाले कहेंगे
जो कुछ करना हो
शादी के बाद पति के साथ करना 😂
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इस बार दिवाली में घर नहीं जा रहा
( Poetry in thread )

एक मित्र से यूँही दिवाली की बात निकली ,
तो उसने कहा कि, उसकी नयी जॉब है, 
इसलिए इस बार घर नहीं जा रहा।  

बस उसी पे सोच के यह ख्याल उनके लिए
या उनकी तरफ से लिखा ,
जो नौकरी या अन्य मजबूरी से दिवाली में
घर नहीं जा सकते ।
इस बार दिवाली में घर नहीं जा रहा 
हाँ याद आएगी 
माँ की रंगोली, उनके हाथ की गुजिया 
हमारे घर की नटखट गुड़िया 
और पापा की पान की पुड़िया
वो महौले में रौशनी 
दिलों में अन्धकार 

इस धनतरेस कोई बाइक ले
रहा होगा तो कोई कार 
( और हाँ आइस-क्रीम भी , वो क्या है
आइस-क्रीम के साथ डब्बे फ्री मिलते हैं )
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कैसे कहानी लिखी जाती है ( A Thread )

सिर्फ दिन में 1 या 2 घंटे बैठ के किसी बुक / लैपटॉप या डायरी में नहीं लिखी जाती कहानी

सबसे पहले ज़हन में होती है, और अंत तक ज़हन में रहती है जब तक आखरी पन्ने पे लिखी आखरी लाइन का वो आखरी शब्द न लिखा जाय....
जब लिख नहीं रहे होते तब भी किरदार या कहानी या तो हमारे मन में ज़हन में सवाल कर रहे होते है या किसी अधूरे छोड़े संवाद को पूरा कर रहे होते हैं.
और इन सबका कोई एक फिक्स समय नहीं होता

यह टॉयलेट सीट पे भी ख्याल आता है,
सुबह वॉक पे निकलो तब भी...
कहानी और किरदार मन में चल रहे होते के जहाँ लिखना छोड़ा उसके आगे कैसे लेके जाना है.

या फिर शाम की चाय पीते पीते, खाना खाते खाते. यहाँ तक आधी रात को नींद खुलने पर भी

तब जाके कहीं ज़हन में सोची हुई कहानी
उसके किरदार उस तरह से पन्नो पर नज़र आते
जैसे सोचे जाते हैं. उसके बाद भी…
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( Thread Post - Read Full )
Maa Aaj Khaane Mein
Kya Bana Rahe Ho ?

Ye line hum sab kehte rehte hai...puchhte rehte hai

Chahe bacha ho ya bada
Aap ho ya mein

School/college se aate hee
Ya office se phone karke
Yehi puchhte hai
Maa aaj khaane mein kya bana rahi ho...
aur Maa to Maa hai
Vo samj jaati hai...ki aaj humein kuch aur khaana hai
To vo kehti hai Jo tum kaho
Aur hum jatt se apni manpasand cheez kehte hai...
Aisa nahi hai ki maa ko hamari pasand malum nahi hoti hai
Bas us waqt humein kya khaane ki ichha hai vahi puchhti hai Maa..
Aur fir kya..
Maa lag jaati hai
Taiyariyo main
Chahe beta ho ya beti
Chhota ho ya bada
Sabki farmaisho ko pura karne mein

Maa ke liye dharam sankat kya hota hai pata hai...???
Ye nahi ki aapki fav dish banane me time lagega ya mehnat hai bahut...
na bilkul na
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