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Most recents (24)

1.ई. पू. प्रथम शताब्दी में' पश्चिमोत्तर भारत' पर कुछ समय के लिए 'पार्थियन' (पहलव) शासकों ने भी शासन किया।
2.'पहलव' शक्ति का 'वास्तविक संस्थापक' यूक्रेटाइडीज का समकालीन 'मिथ्रेडेट्स' था।
3.'पार्थियन या पहलव' पार्थिया के मूल निवासी थे। 'सिस्तान, कंधार व काबुल' से
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प्राप्त इनके सिक्के 'बैक्ट्रिया' के साथ-साथ इन भागों पर भी 'इनके अधिकार' को दर्शाते हैं।
4.भारत का प्रथम पार्थियन शासक 'माउस' (90-70 ई. पू.) था जिसे 'स्वात घाटी व गांधार प्रदेश' से प्राप्त 'खरोष्ठी' लिपि के सिक्कों में 'मोय' कहा गया है।
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5.पार्थियन (पहलव) शासकों में सर्वाधिक ख्यातिलब्ध शासक 'गोन्दोफर्नीज' (20-41 ई.) था।
6.'गोन्दोफर्नीज' को पेशावर के 'युसुफजई प्रदेश' से प्राप्त 'खरोष्ठी लिपि' के अभिलेख 'तख्तेबही' में 'गुन्दहर' कहा गया है।
7.'गोन्दोफर्नीज' का 'फारसी भाषा' में नाम

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मध्य एशिया के घास के मैदान में घोड़ों की सवारी के लिए सूर्या एक लंबा अंगरखा और जूते पहनते हैं। सूर्य देवता मध्य और पश्चिमी एशिया के लोगों के बीच सर्वोपरि थे, जो इस तरह के जोरोस्ट्रियनिज्म जैसे धर्मों का पालन करते थे, एक पूर्व-इस्लामिक विश्वास जो प्रकाश और अंधेरे के बीच एक ImageImageImage
पवित्र द्वैत पर जोर देता था। जब 100 ईसा पूर्व से भारत में सूर्य देव की छवि बनाई जाने लगी, तो उन्हें उन लोगों की पोशाक में दिखाया गया, जिन्होंने उन्हें सबसे अधिक श्रद्धेय बनाया।
सूर्य की पूजा पूरे भारतीय उपमहाद्वीप और कश्मीर और नेपाल के हिमालयी क्षेत्रों में हिंदू देवताओं के साथ की जाती है।

#Prem_Prakash
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बौद्ध साहित्य मे * मार * का अर्थ *

सिद्धार्थ गौतम , गया (बिहार) , में पीपल वृक्ष ने निचे पद्मासन लगाकर " बोधि " प्राप्त करने का दृढ संकल्प करते हुए निश्चय किया - चाहे मेरी त्वचा , नसें और हड्डियां ही बाकी रहें , चाहे मेरा सारा मांस एवं रक्त शरीर में ही सूख जाए ,
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किंतु बिना बोधी प्राप्त किए मै इस स्थान का परित्याग नहीं करुंगा ! जब वह ध्यान हेतू दृढ आसन लगाकर बैठे तो * बुरे - विचारों और बुरी - चेतनाओं के झुण्ड ने उनपर आक्रमण किया ! इसी आदमी के मन में होने वाले बुरे विचारों को भारतीय पौराणिक भाषा में मार या मार - पुत्र कहां गया है * !
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फोटो में यह मन के बुरे विकार केवल प्रतिकात्मक रुप से प्राणीओं में दर्शाएं गये है !

सिद्धार्थ गौतम को डर लगा की कहीं ये * मार * उनपर काबू न पा जायें और उनकी साधना को विफल न कर दे क्योंकी इस मार युद्ध में बहुत से ऋषी पराजीत हो चुके थे ! इसलिए गौतम ने अपना सारा साहस
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बुद्ध की मृत्यु का समाचार सुनकर
लगभग सभी जनपदों के राजे
उनके शरीर के अंतिम दर्शन को आए

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ये शरीर नश्वर है.. जो पैदा सो नपैद ImageImageImage
चिता ठंडी होने के उपरांत बुद्ध की अस्थियों को लेकर काफ़ी खींचतान चली.. अनेक लोग उन्हें पाने के लिए आपस में विवाद करने लगे.. कोई रिश्तेदार था तो कोई राजा तो कोई प्रिय... आखिरी में अस्थियों को आठ भागों में बाँटा गया जिनपर अलग अलग जनपदों और मुख्य स्थानों पर बुद्ध स्तूप बनाए गए ImageImage
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*महापरिनिर्वाण के बाद बुद्ध का अस्तित्व *

तथागत बुद्ध के समय वंदनीय खेमा भिक्खुणी संघ मे सबसे प्रज्ञावान भिक्खुणी कहलाई गई ! तथागत बुद्ध जेतवन , श्रावस्ती में निवास कर रहे थे ! तब भिक्खुणी खेमा कौशल देश में प्रवास कर रही थी । वह साकेत और श्रावस्ती नगर के बिच
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तोरणवत्थु गांव में वर्षावास के लिए रुकी हुई थी । राजा पसेनदि, साकेतसे श्रावस्ती की और जा रहे थे , बिच में तोरणवत्थु मे विश्रामके लिए ठहर गये । उनके मन में धम्म उपदेश ग्रहन की इच्छा जागृत हुई, उस समय खेमा के अलावा कोई दूसरा उपलब्ध नहीं था । तो राजा भिक्खुनी खेमा के पास
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गये, नमस्कार करके एक ओर बैठ गये, और पुछा की -

राजा - मरणोत्तर तथागत होते हैं की नहीं?
खेमा - महाराज, तथागत ने यह बताया नहीं ।
राजा - क्या कारण हो सकता है?
खेमा - महाराज, क्या आपके दरबार में एैसा कोई हैं, जो गंगा की रेत के कणों की गिनती कर सके? समुद्र के जल को माप सके?
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*_श्राद्ध कर्मकांडों पर डाली गई रौशनी_*
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धर्म के धंधे का सबसे हास्यास्पद और विकृत रूप देखना है तो पितृ पक्ष श्राद्ध और इसके कर्मकांडों को देखिये. इससे बढ़िया केस स्टडी दुनिया के किसी कोने में आपको नही मिलेगी. ऐसी भयानक रूप से मूर्खतापूर्ण और विरोधाभासी
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चीज सिर्फ विश्वगुरु के पास ही मिल सकती है.

एक तरफ तो ये माना जाता है कि पुनर्जन्म होता है, मतलब कि घर के बुजुर्ग मरने के बाद अगले जन्म में कहीं पैदा हो गए होंगे.

दूसरी तरफ ये भी मानेंगे कि वे अंतरिक्ष में लटक रहे हैं और खीर पूड़ी के लिए तडप रहे हैं......
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अब सोचिये पुनर्जन्म अगर होता है तो अंतरिक्ष में लटकने के लिए वे उपलब्ध ही नहीं हैं. किसी स्कूल में नर्सरी में पढ़ रहे होंगे.

अगर अन्तरिक्ष में लटकना सत्य है तो पुनर्जन्म गलत हुआ.

लेकिन हमारे पोंगा पंडित दोनों हाथ में लड्डू चाहते हैं इसलिए मरने के पहले अगले जन्म
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गुजरात में, बौद्ध धर्म प्रचार और मंदिरों की उपस्थिति पहाड़ियों पर भी मिल सकती है। तरंग पहाड़ियों की चोटी पर, एक सुंदर धरणमाता मंदिर को देखा जा सकता है जो देवी तरनमाता को समर्पित है। तरन्नमाता और धरणमाता की मूर्तियाँ बौद्ध देवी तारा की हैं, जो "सभी बुद्धों की माँ" हैं, जो
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आमतौर पर बुद्धों के प्रबुद्ध ज्ञान को संदर्भित करती हैं। मंदिर के अंदर, देवी तारा की संगमरमर की मूर्ति के सिर को देख सकते हैं, एक कमल जिस पर अमिताभ बुद्ध विराजमान हैं। ऐतिहासिक तथ्य यह भी बताते हैं कि 9 वीं शताब्दी तक तरंग पहाड़ी तांत्रिक बौद्ध केंद्र थी।
भारतीय राज्य
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गुजरात में तारंग हिल्स में खुदाई पर काम कर रहे पुरातत्वविदों की एक टीम ने क्षेत्र के बौद्ध इतिहास से जुड़े एक नए पुरातात्विक स्थल की पहचान की है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के उत्खनन शाखा वी के पुरातत्वविद तरन धरन माता मंदिर के पीछे की पहाड़ियों के किनारे गुर्जरसन
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।। सनातन धर्म।।
-राजेश चन्द्रा-

चार शब्द हैं- पुरातन, अधुनातन, अनागतन और सनातन। पुरातन अर्थात प्राचीन अथवा अतीत काल। अधुनातन अर्थात वर्तमान काल। अनागतन अर्थात आने वाला यानी भविष्य काल।
कुछ बातें अतीत में मान्य थीं, अतीत में सत्य थीं, लेकिन अब सत्य नहीं हैं,
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न मानी जाती हैं। जैसे अतीत में, ईसाइयत में, मानते थे कि धरती चपटी तथा सूरज धरती की परिक्रमा करता है। वैज्ञानिक खोजों ने बात उलट दी है। ये एक उदाहरण है, सैंकड़ों उदाहरण दिये जा सकते हैं- सामाजिक, धार्मिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक इत्यादि।
कुछ बातें आधुनिक काल में मान्यता
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प्राप्त हैं जो भविष्य में नकारी जा सकती हैं। कुछ भविष्य में मान्य हो सकती हैं जो अभी मान्य नहीं हैं।
जो तीनों कालों में अपरिवर्तनशील है उसे सनातन कहते हैं। सनातन अर्थात जो अतीत में सत्य था, आज भी सत्य है और भविष्य में भी सत्य रहेगा।
भगवान बुद्ध का धम्म "अकालिको" कहा गया है।
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हिटलर के ध्वज में
स्वस्तिक कैसे ओर क्यो ........?????#

पश्चिमी इतिहासकार का मानना है कि , आर्य संस्कृति का मूल , ज़र्मनी, है । हिटलर भी ऐसा ही मानता था ।
हिटलर चाहत था ,कि, आर्यन संस्कृति का बोलबाला पूरे विश्व में हो । और जर्मन साम्राज्य का विस्तार हो ।
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इसी को नजर में रखते हुए , नाज़ी जर्मनी ध्वज में सवास्तिक चिन्ह दिखाई देता हैं। जबकी अत्यंत प्राचीन काल से सवास्तिक हिंदू मंगल कार्य हेतु संकृति। का प्रतीक माना जाता हैं। स्वास्तिक का शब्दार्थ ""वसुदेव कुटुंकम्म"""पूरे विश्व का कल्याण हो , कि
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भावनाओं से ओतप्रोत है, स्वास्तिक चिह्न का महत्व सभी धर्म , समुदाय में बताया गया है। इस चिन्ह को विभिन्न क्षेत्रों के देशों में अलग अलग नाम से जाना जाता है ।
मध्यएशिया में स्वास्तिक चिन्ह को मांगलिक ओर सौभाग्य शाली माना जाता हैं।
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ये मूर्ति शुरू में पहचान पाना मुश्किल था कि किसकी मूर्ति है लेकिन बारीकी से इसका मुआयना करने पर पाया कि ये जमर्न कला में बुद्ध की ही मूर्ति है जो कि हजारों साल पहले धरती पर गिरे एक उल्का पिंड को तराशकर बनाई गई थी.......... लेकिन मुझे लगता है ये एक बौधिसत्व है और इसकी
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ड्रेस कुषाणों जैसी है.. इसकी ड्रेस पर जो सतिया बना है वह बौद्धिज्म में चक्र का ही शुरूआती रूप है जिसे नाजी भी प्रयोग करते हैँ इसीलिए उनको ये मूर्ति पसंद आई.... The undated photo provided by University of Stuttgart shows an ancient Buddhist statue that a Nazi
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expedition brought back from Tibet shortly before World War II. The statue was carved from a meteorite which crashed on Earth thousands of years ago. What sounds like an Indiana Jones movie plot appears to have actually taken place, according to European researchers
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स्रोत पर विचार करें: हरक्यूलिस बुद्ध का पहला संरक्षक क्यों था?

शुरुआती पश्चिमी और पूर्वी सभ्यताओं के बीच का संबंध अधिकांश लोगों की तुलना में अधिक अंतरंग है। दरअसल, पाकिस्तान में प्राचीन गांधार के आसपास के इलाके से बुद्ध के शुरुआती चित्रण, उन्हें एक ग्रीक देवता
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की मूर्ति की तरह चित्रित करते हैं। सिकंदर महान द्वारा इस क्षेत्र पर विजय प्राप्त करने के लंबे समय बाद तक अफगानिस्तान और उत्तरी भारत के क्षेत्रों में यूनानी संस्कृति और प्रभाव बना रहा; बड़ी ग्रीक आबादी ने स्थानीय आबादी में शादी करते हुए प्राचीन ग्रीस की कला और दर्शन को
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बनाए रखा। गंधारन कला का एक सुंदर प्रारंभिक उदाहरण बुद्ध को एक हिरकल्स, ग्रीक नायक जो रोम के हरक्यूलिस द्वारा देखा जाता है, द्वारा संरक्षित है।

अपनी पुस्तक द शेप ऑफ एन्शियस थॉट में, दिवंगत विद्वान थॉमस मैकविले ने प्राचीन यूनानी और भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता के बीच
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।।सिर्फ सफेद वस्त्र क्यों।।
-राजेश चन्द्रा-

भगवान बुद्ध के वचन हैं- विनयानाम्बुद्धसासनस्स आयु- विनय ही बुद्ध शासन की आयु है अर्थात जब तक विनय रहेगा तब तक बुद्ध शासन रहेगा।

विनय का सरल-सा अर्थ है अनुशासन यानी कोड आफ कंडक्ट।

विनय पिटक को बौद्धों का संविधान कहा जा
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सकता है। भारत से बुद्ध धम्म विदा क्यों हुआ? क्योंकि विनय विदा हो गया अथवा बौद्ध विरोधियों द्वारा विनय को विकृत या कि अपभ्रंशित कर दिया गया।

भगवान ने भिक्खुओं-भिक्खुनियों के लिए कासाय रंग का चीवर निर्धारित किया और और गृहस्थ उपासक-उपासिकाओं के लिए सफेद परिधान निर्धारित किये।
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सकल त्रिपिटक में बौद्ध उपासक-उपासिकाओं के लिए बार-बार श्वेतवस्त्रधारी संघ का सम्बोधन पढ़ने को मिलता है।

वास्तव में एक-सी वेशभूषा का मन को शान्त करने में मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है। उदाहरण के लिए, किसी विद्यालय में प्रार्थना के समय सारे छात्र-छात्राएँ एक-सी वेशभूषा, यानी
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।।गणपति।।
-राजेश चन्द्रा-

यह कई साल पहले की बात है।

एक बार दीपावली के अवसर पर मुझे एक बुद्ध विहार में आमंत्रित किया गया, इस विषय पर बोलने के लिए कि बौद्धों को दीपावली कैसे मनानी चाहिए? मैंने जो कुछ वहाँ बोला उसका सारांश यह है:

"गण" मायने होता है संघ अथवा समूह या
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संगठन। पुराने समय में भारत में, विशेषतः बौद्ध काल में, अधिकांशतः शासन व्यवस्था गणतंत्रात्मक थी। भगवान बुद्ध के समय सोलह प्रसिद्ध गणराज्य थे जिनका कि त्रिपिटक में कई बार वर्णन है। गणाध्यक्ष को गणपति कहा जाता था। जैसे सभा के अध्यक्ष को सभापति कहा जाता है वैसे ही
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इसलिए संघ प्रमुख, संगठन अध्यक्ष, समूह नायक का एक पर्यायवाची गणपति भी है, गणेश भी है, गण नायक भी है। भगवान बुद्ध पावन संघ के अध्यक्ष थे, संघ नायक थे, इसलिए भगवान बुद्ध के लिए गणपति, गणेश, गणनायक सम्बोधन भी प्रयोग किये गये हैं। पालि ग्रंथों में भगवान बुद्ध के अनेक
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लोग अक्सर ब्राह्मणवाद शब्द का इस्तेमाल करते हैं। आइये इस शब्द का अर्थ जानते हैं।
सबसे पहले ब्राह्मणवाद का अर्थ क्या है? आप जानते हैं भारत में जाति के आधार पर इन्सानों से भेदभाव किया जाता है। भारत में जाति व्यवस्था की बात यहां के धर्म में लिखी गयी है।
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भारत में जो धर्म जाति व्यवस्था की बात करता है, उसके ग्रन्थ ब्राह्मणों द्वारा लिखे गये थे। इसलिए जातिवाद के विचार को ब्राह्मणवाद कहा जाता है।
जो भी इन्सान इस जातिवाद में विश्वास करता है वह ब्राह्मणवादी है। लेकिन ब्राह्मणवादी किसी भी जाति का या धर्म का
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व्यक्ति हो सकता है। अगर कोई जाटव बाल्मीकी से नफ़रत करता है या यादव जाटव से नफ़रत करता है तो वह भी ब्राह्मणवादी है। ब्राह्मणवादी होने के लिये ब्राह्मण जाति का होना ज़रूरी नहीं है। कई ब्राह्मण जाति के लोग इस जातिवाद का विरोध करते हैं, यानी वे ब्राह्मणवाद का
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आरएसएस BJP के द्वारा (कुशवाहा मौर्य शाक्य सैनी) समाज के इतिहास पर हमला कर मिटाने का काम किया जा रहा है
जनपद महोबा में सम्राट अशोक द्वारा एक प्राचीन बौद्ध मठ व बोधि स्तूप आज भी स्थित है पिछले वर्ष कुशवाहा समाज महोबा के द्वारा बौद्ध मठ के रख-रखाव के लिए
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चारों तरफ ऊंचे ऊंचे तार लगाए गए थे वह अंदर फर्श भी बनाया गया था जिसमें समाज के लोगों का दो ₹300000 खर्च भी हुआ था मठ की जमीन काफी कीमती होने के कारण कुछ लोग जबरदस्ती मठ को मंदिर बनाने में लगे हुए हैं जबकि खसरा खतौनी में आज भी मठ के नाम से जमीन दर्ज है और पुरातत्व
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विभाग झांसी द्वारा इसकी जांच भी की गई थी जांच में इसे बहुत प्राचीन बौद्ध मठ पाया गया था परंतु कुछ लोग जबरदस्ती ऐसे मंदिर बनाने में लगे हुए हैं जबकि यह हमारी संस्कृति के बिल्कुल ही खिलाफ है
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ठकुराइन कंगना रनौत नेपटोइज्म का मुद्दा उठाकर, हिन्दी फिल्मों में सवर्ण वर्चस्व को बखूबी छिपाने का काम कर रही है !

नेपटोइज्म का अर्थ है भाई-भतीजावाद. लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नही है कि फिल्मों में नए लोगों को चांस नही मिलता. सबसे बड़ा उदाहरण शाहरुख खान हैं. भारतीय फिल्म
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इंडस्ट्री में हमेशा सवर्ण वर्चस्व हावी रहा है !

जैसे सुप्रीम कोर्ट में ब्राह्मण जाति का वर्चस्व है, उसी तरह हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में खत्री जाति का वर्चस्व है. कपूर.. चोपड़ा.. जोहर.. खन्ना.. मल्होत्रा.. खोसला.. चड्डा.. अरोरा.. भाटिया.. आहूजा.. सब खत्री जाति के हैं !
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कंगना रनौत में हिम्मत है तो हिंदी फिल्मों में विविधता का मुद्दा उठाए. मूल समस्या नेपटोइज्म नही कुछ जातियों का वर्चस्व है, इन्ही जातियों के वर्चस्व के कारण हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में नेपटोइज्म है !

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को भी हॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री की तरह विविधता
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आप सभी भारत रत्न की महत्ता को समझिए। भारत रत्न पीपल (बोधि वृक्ष) के पत्ते पर बना है और उस पर अशोक स्तंभ है, 32 आरो वाला बुद्ध चक्र है।

अशोक स्तंभ के चार शेर बुद्ध की शिक्षाओं को चारों दिशाओं में फैलाने की प्रतीक हैं, 32 आरो वाला बुद्ध चक्र 32 महापुरुष लक्षणों का प्रतीक
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है और पीपल का पत्ता भगवान बुद्ध के सम्बोधि‌ (ज्ञान प्राप्ति) का प्रतीक है। बस ऐसे ही नहीं नाम पड़ा है #भारतरत्न

☝️ इन समावेशों से बना है भारत रत्न। इसलिए भारत रत्न ऐरो गैरों को देने के लिए नहीं है। जो असली हकदार है उन्हें देने के लिए है।
लेकिन राजसत्ता के बल पर
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भारत रत्न ऐरो गैरों को ज्यादा दिया जाता है और असली हकदारों को कम।

इसलिए शोषितों को राजसत्ता प्राप्त करना अत्यंत जरूरी है और यह तभी संभव हो सकता है, जब शोषित समाज राजनीति में अधिक सक्रिय होंगे।
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#Prem_Prakash
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तप सरदार प्राचीन बौद्ध स्थल, निकटवर्ती, गजनी, अफगानिस्तान।

तप सरदार का पवित्र क्षेत्र कुषाण काल ​​(कनिष्क I या कनिष्क द्वितीय ) के दौरान स्थापित किया गया था। यहाँ पहले फोटो में मूर्ति का सर दिखाई दे रहा है जिसके माथे के बीच में आँख बनी हुई है.. इसका मतलब है
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इस तरह की मूर्तियां बुद्ध के लिए कुषाण काल में बननी शुरू हुई लेकिन उसके बाद यही मूर्तियां शिव या अन्य हिन्दू देवी देवताओं के लिए भी बनाई जाने लगी और बुद्ध की मूर्तियों में माथे के बीच केवल एक गोला सा बना दिया जाने लगा जो कि
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शुरू की मूर्तियों में पहले से ही बनाया जाता रहा है..

#Prem_Prakash ImageImage
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#सिंन्धु-घाटी की सभ्यता में जो पशुपतिनाथ के पशुओ का चित्रांकन है वही सिद्धार्थ गौतम का मार-बंधन है। सिंन्धु-घाटी से मौर्यकाल तक चित्रों की भाषा विकसित हुई। पालि साहित्य को लिपि-बद्ध भी किया गया।
सिंन्धु-घाटी से प्राप्त एक शील पर तीन मुख वाले एक व्यक्ति की ध्यान
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अवस्था में मूर्ति प्राप्त है। जिसके चारों तरफ हाथी, गैंडा,चिता एवं भैसा अंकित है। जिसे विद्वानों ने चित्रों की भाषा को पढ़कर उस व्यक्ति को "पशुपतिनाथ-शिव" नाम दिया।
#पालि-प्राकृत साहित्य कोश में "पसुपतिनाथ-सिव" शब्द मौजूद है। पशुपतिनाथ-शिव कौन ?
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पशुपति (काम,क्रोध,मोह,लोभ) पर ध्यान-विप्पस्सना द्वारा इन पशुचित्तवृत्तिय रूपी शत्रुओ पर जिसने विजय पाई "नाथ=स्वामी" कहलाया। इस प्रकार इस अवस्था पर पंहुचा व्यक्ति "पशुपतिनाथ"। वाही पालि साहित्य का पर्याय अरहत हो गया,बुद्ध हो गया। जिसने अपना कल्याण साध लिया
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सरकार ने कहा जज लोया अपनी मौत मरे , न्यायालय ने मोहर लगा दी ।

सरकार ने कहा राफ़ेल में कोई गड़बड़ नहीं हुई , न्यायालय ने मोहर लगा दी ।

सरकार ने कहा राम मंदिर वहीं बनेगा , न्यायालय ने मोहर लगा दी ।

सरकार ने कहा कि PM care फ़ंड ईमानदारी से काम कर रहा है ,
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न्यायालय ने मोहर लगा दी ।

सरकार ने कहा सुशांत सिंह की आत्महत्या की CBI जाँच होनी चाहिए , न्यायालय ने मोहर लगा दी ।

सरकार ने कहा EVM ठीक है , उससे छेड़छाड़ नहीं हो सकती , न्यायालय ने मोहर लगा दी ।

सरकार ने कहा मध्य प्रदेश का स्पीकर सत्र को निलम्बित नहीं कर सकता ,
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न्यायालय ने मोहर लगा दी ।

सरकार ने कहा कि प्रशांत भूषण अराजकता फेलाना चाहते हैं , न्यायालय ने मोहर लगा दी ।

70 साल में आपने इससे पहले कोई सरकार देखी है जिसकी हर बात पर न्यायालय ने मोहर लगायी हो ?? आप फिर भी सरकार के विरोध में खड़े हो ??

.....Awes iqbal..

#Prem_Prakash
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Devnimori, या Devni Mori, उत्तरी गुजरात, भारत के उत्तरी गुजरात के अरावली जिले के शामलाजी शहर से लगभग 2 किलोमीटर (1.2 मील) की दूरी पर उत्तरी गुजरात में एक बौद्ध पुरातात्विक स्थल है। साइट को विभिन्न रूप से तीसरी शताब्दी या चौथी शताब्दी सीई, या लगभग 400 सीई में दिनांकित
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किया गया है। इसका स्थान गुजरात के क्षेत्र में व्यापार मार्गों और कारवां से जुड़ा था। साइट की खुदाई में 8 वीं शताब्दी से पहले की बौद्ध कलाकृतियों का पता लगाया गया है, जो कि गुर्जर-प्रतिहार काल से बौद्ध कलाकृति है। इस साइट की खुदाई 1960 और 1963 के बीच की गई थी। यह स्थल
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एक जल भंडार से भर गया, 1959 में एक परियोजना शुरू हुई और पास की मेश्वो नदी पर 1971-1972 में पूरी हुई।
देवनी मोरी की साइट में कई टेराकोटा बौद्ध मूर्तियां (लेकिन कोई पत्थर की मूर्तियां) शामिल नहीं थीं, जिन्हें तीसरी-चौथी शताब्दी सीई के लिए भी दिनांकित किया गया था, और जो
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६२ बर्ष पहले लुम्बिनीका मन्दिर ऐसा था जैसा कि लास्ट फोटो में है ।लुम्बिनी मे पहली बार सम्राट अशोक ने ईसा पुर्व २४९ मे पके हुवे ईंटों से चिन्ह लगाकर बुद्ध का जन्मस्थल के रुप मे चिन्हित किया था। इसके अलावा, बुद्ध के जन्मस्थल के रुप मे पहचान कराते हुवे अशोक स्तम्भ गाडा था/
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स्थापित किया था। इसकी खोज बि. स. १९५३ के मंसिर (महिने) मे पाल्पा के बडे हाकिम/शासक खड्ग शम्सेर के साथ खोजी अभियान मे लगे हुवे जर्मन पुरातात्विक एन्टोम फ्युयरर ने पता लगाया था। वह अगर लुम्बिनी क्षेत्र नहीं पता लगाते तो अब तक यहाँ का कुछ पुरातात्विक महत्व की

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वस्तुएं बिलुप्त हो सकती थी। अशोक स्तम्भ के पुर्व मे स्थित ढिस्को (मिट्टीका पठार/मानव निर्मित पहाड) के उपर के छाप्रो (घांस-फुसका घर) मे एक सर विहीन मुर्ति बरामद हुवा था। बाद मे डा. ह्वे द्वारा उक्त मुर्ति मायादेवीके रुपमे पहचान कर लेने के बाद उसे संरक्षण किया जाने लगा।

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दो पोस्ट एक साथ :- बिन्दुसार के निधन के बाद उसका बेटा अशोक राजगद्दी पर बैठा। अशोक के शासन काल में मेरठ का महत्व कई गुना बढ़ गया। अशोक ने अपने राज्यारोहण के 26वें वर्ष में मेरठ में अपना स्तम्भ लेख स्थापित करवाया। सन 1364 ईस्वी में फिरोजशाह तुगलक शिकार खेलता

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हुआ मेरठ आया और वह मेरठ में स्थापित शिलालेख को दिल्ली ले आया जिसे आज भी बड़ा हिन्दू राय के पास देखा जा सकता है। इस स्तम्भ को अशोक के द्वितीय स्तम्भ लेख के रूप में जाना जाता है। इस स्तम्भ लेख पर ब्राह्मी लिपि में अशोक के आदेशों को लिखा गया है। ब्राह्मी लिपि को

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जेम्स प्रिन्सेप की वजह से पढ़ा जाना संभव हो पाया है। इस स्तम्भ पर लिखे आदेश निम्नवत हैं-
“देवताओं के प्रिय प्रियदर्शी राजा का कहना है कि धर्म करना अच्छा है। पर धर्म क्या है? धर्म यही है कि पाप से दूर रहें, बहुत से अच्छे काम करें। दया, दान, सत्य और शौच (पवित्रता) का

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सिरपुर छत्तीसगढ़ में बुद्ध विहार में हैं पुरानी बुद्ध की मूर्तियां व उनसे जुड़ी अन्य स्मृतियाँ.. आप भी देखिये बुद्ध और बुद्ध स्तूप को ही शिव और शिव लिंग / पशुपतिनाथ नाम दिया गया है.. मगर सच छुपता नहीं.. ImageImageImage
सबको पता है बुद्ध से पहले किसी भी वैदिक देवी देवता की मूर्ति नहीं मिलती सब बाद में बनाई गई हैं

#Prem_Prakash ImageImageImage
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