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#दम_है_तो_सावरकर_की_क़िताब_से_बहादुर_शाह_ज़फ़र_का_नाम_मिटा_कर_दिखाइए..!
०...है हिम्मत..?🤔

विनायक दामोदर सावरकर ने बीसवीं सदी के पहले दशक में एक क़िताब लिखी थी। मराठी में लिखी गई यह क़िताब सन 1857 की क्रांति की महागाथा है।
शीर्षक है 'सत्तावनचे स्वातंत्र्य समर'।
सन 1909 में इसका पहला गुप्त संस्करण छपा। अंग्रेज सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। ये क़िताब इंग्लैंड में रहने के दौरान लिखी गई थी। बड़ी मुश्किलों के बाद छपी थी।

बाद में इसका हिंदी अनुवाद '1857 का स्वातंत्र्य समर' शीर्षक से प्रकाशित हुआ।
सावरकर की इस क़िताब में मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र का खूब उल्लेख है।
वैसे भी आज़ादी की पहली लड़ाई 1857 की क्रांति का इतिहास बहादुर शाह के बिना पूरा हो भी नहीं सकता। क्रांतिकारियों ने बूढ़े मुग़ल बादशाह को अपना नेता माना था और मई 1857 में दिल्ली के तख्त पर दुबारा बैठा दिया था।
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