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"झोलाधर-इन-चीफ"

एक होती है गुफा, एक होता है मानव ..गुफा में मानव होता है तो उसे गुफा मानव कहते है। अंग्रेज उसे केवमैन कहते है। इंडियन उसे बाबाजी समझते है।

केव मैन कहिये, या बाबाजी .. गुफा में प्राकृतिक जीवन का आनंद प्राप्त करते है। फालोवर्स उनके सुख में सुखी होते है।
इस तरह मिलजुलकर, सौजन्य से एक शुद्ध और बेहतर समाज का विकास होता है।
मगर विकास की प्री कंडीशन होती है अन्वेषण।

विकास का अविष्कार होता हैखोज होती है। मनुष्य का विकास से पहला एनकाउंटर तब हुआ,जब गुफा मानव ने आग खोज निकाली। फिर उसने वीड एनर्जी खोजी,और दम लगाकर आग लगाने निकल पड़ा।
यह बात अधिक पुरानी नही है। आपको पता है 2014 तक हम गुफा से बाहर नही आ पाए थे।

तो साहबान, वो गुफा मानव जो था, पत्थरों के बीच रहता था। अपने दिल की बाते पत्थरो पर लिखता, चित्र बनाता, जो जी मे आता, लिख लेता, रंग देता, गोद देता।

पत्थरो की संगत, गुफा मानव के लिए मुफीद थी।
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#स्वतंत्र
एक थे भैया भजपैया !!
यही नाम था, थोड़ा अजीब.. पर था तो क्या करें। तो भैया को एक बार गुफा में ध्यान करने की हुनक हुई। तो चल पड़े गुफा खोजने.. मिल भी गयी।
गुफा, जाहिर है जंगल मे होगी, और जंगल तो पहाड़ पर होगा। तो पहाड़ी जंगल मे भैया भजपैया ने गुफा
खोजकर ध्यान लगाया। समझ मे आया कि पीछे, कोई पहले ही ध्यान लगाया हुआ है।
भालू था..
तो भालू साहब को अपनी गुफा में किसी और का ध्यान लगाना.. शायद पसंद नही आया, तभी तो रेस शुरू हुई। भैया भजपैया जीत रहे थे, काहे की भालू पीछे था, भैया आगे थे।
पर दो की रेस जीतने में कतई मजा न था। तो एक शेर भी रेस में कूद पड़ा। लेकिन रॉकेट हमारे भैया .. भैया भैया भैया, तो अभी भी लीड कर रहे थे।
गौरवर्णी, रक्ताभु, कोमल, रसीले और यम्मी थे, तो एक भेड़िया भी पीछे लग गया।
जंगल मे तूफान मचा था, आगे आगे भैया, पीछे पीछे भालू, शेर और भेड़िया..
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एक बड़े सिद्ध पुरूष थे।

परमात्मा का साक्षात्कार कर चुके थे। भूत भविष्य वर्तमान सबका ज्ञान था। सिर्फ जरूरत भर बोलते थे। ख्याति दूर दूर तक फैली हुई थी। मन की शंका का समाधान करने लोग दूर दूर से आते थे।
और एक दिन वे भी पहुचे। चरणों मे बैठ गए, हाथ जोड़ा और कहा- प्रभु, मैं कौन हूँ? मेरे अंदर कौन है, मेरे बाहर कौन है? मेरी वास्तविक पहचान क्या है, इस चराचर जगत के बीच मैं आखिर कौन हूँ गुरुदेव?

गुरु ने कहा- वास्तविक पहचान वही है वत्स, जो तुम्हे पता है। जो तुम खुद को महसूस करते हो।
जो तुम्हारा हृदय स्वीकारता है.. जिसे सुनकर तुम प्रतिक्रिया देते हो, पलटकर देखते हो।

- मैं समझा नही गुरुदेव..!!

अब गुरु ने उत्तर न दिया, आंखे मूंद मौन हो गए। उन्होंने फिर से सवाल किया। गुरु का उत्तर नही आया। कुछ देर रुक फिर पूछा , लेकिन उत्तर न आया।
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एक थे भैया भजपैया !!

यही नाम था, थोड़ा अजीब.. पर था तो क्या करें। तो भैया को एक बार गुफा में ध्यान करने की हुनक हुई। तो चल पड़े गुफा खोजने.. मिल भी गयी।

गुफा, जाहिर है जंगल मे होगी, और जंगल तो पहाड़ पर होगा। तो पहाड़ी जंगल मे भैया भजपैया ने गुफा खोजकर ध्यान लगाया।
समझ मे आया कि पीछे, कोई पहले ही ध्यान लगाया हुआ है।

भालू था..
तो भालू साहब को अपनी गुफा में किसी और का ध्यान लगाना.. शायद पसंद नही आया, तभी तो रेस शुरू हुई। भैया भजपैया जीत रहे थे, काहे की भालू पीछे था, भैया आगे थे।
पर दो की रेस जीतने में कतई मजा न था। तो एक शेर भी रेस में कूद पड़ा। लेकिन रॉकेट हमारे भैया ..भैया भैया भैया, तो अभी भी लीड कर रहे थे।
गौरवर्णी, रक्ताभु, कोमल, रसीले और यम्मी थे, तो एक भेड़िया भी पीछे लग गया। जंगल मे तूफान मचा था, आगे आगे भैया, पीछे पीछे भालू, शेर और भेड़िया..
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एक थे भैया भजपैया !!

यही नाम था,थोड़ा अजीब..पर था तो क्या करें। तो भैया को एक बार गुफा में ध्यान करने की हुनक हुई।तो चल पड़े गुफा खोजने..मिल भी गयी।

गुफा,जाहिर है जंगल मे होगी,और जंगल तो पहाड़ पर होगा।तो पहाड़ी जंगल मे भैया भजपैया ने गुफा खोजकर ध्यान लगाया।समझ मे आया कि पीछे,
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कोई पहले ही ध्यान लगाया हुआ है।

भालू था..
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तो भालू साहब को अपनी गुफा में किसी और का ध्यान लगाना.. शायद पसंद नही आया, तभी तो रेस शुरू हुई। भैया भजपैया जीत रहे थे, काहे की भालू पीछे था, भैया आगे थे।

पर दो की रेस जीतने में कतई मजा न था।तो एक शेर भी रेस में कूद पड़ा। लेकिन
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रॉकेट हमारे भैया .. भैया भैया भैया, तो अभी भी लीड कर रहे थे।

गौरवर्णी, रक्ताभु, कोमल, रसीले और यम्मी थे, तो एक भेड़िया भी पीछे लग गया। जंगल मे तूफान मचा था, आगे आगे भैया, पीछे पीछे भालू, शेर और भेड़िया...

की तभी रेस खत्म हो गयी !!!
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एक्चुअली, रेस ट्रेक खत्म हो गया था।
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एक बड़े सिद्ध पुरूष थे।

परमात्मा का साक्षात्कार कर चुके थे। भूत भविष्य वर्तमान सबका ज्ञान था। सिर्फ जरूरत भर बोलते थे। ख्याति दूर दूर तक फैली हुई थी। मन की शंका का समाधान करने लोग दूर दूर से आते थे।
और एक दिन वे भी पहुचे। चरणों मे बैठ गए, हाथ जोड़ा और कहा- प्रभु, मैं कौन हूँ?
मेरे अंदर कौन है, मेरे बाहर कौन है? मेरी वास्तविक पहचान क्या है, इस चराचर जगत के बीच मैं आखिर कौन हूँ गुरुदेव?गुरु ने कहा- वास्तविक पहचान वही है वत्स,जो तुम्हे पता है।जो तुम खुद को महसूस करते हो। जो तुम्हारा हृदय स्वीकारता है..जिसे सुनकर तुम प्रतिक्रिया देते हो, पलटकर देखते हो।
- मैं समझा नही गुरुदेव..!!

अब गुरु ने उत्तर न दिया, आंखे मूंद मौन हो गए। उन्होंने फिर से सवाल किया। गुरु का उत्तर नही आया। कुछ देर रुक फिर पूछा , लेकिन उत्तर न आया।
काफी देर तक उत्तर न आने पर वो निराश हुए। अंततः उठ गए और वापस जाने लगे। दरवाजे
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विधायक चोरी हो गए थे।

अब जो होना था, हो गया। चोरी हो गयी थी। आजकल बहुत हो रही थी, क्या राष्ट्र -क्या महाराष्ट्र, क्या मध्य प्रदेश- क्या साइड प्रदेश। हर जगह, कोई तो है, जो विधायक चुरा लेता था।
विधायक कोई आदमी नही था, वो जनता का पांच साल के लिए मत था। देश मे कम से कम,
कहने भर का लोकतंत्र तो था, इसलिए विधायक चोरी होना सबसे बड़ा क्राइम था। जनता थाने पहुची, रपट लिखाने..

लिखाया- मैं तो मन्दिर को जा रही थी। मैं तो थाली बजा रही थी, मैं नोट बदलवा रही थी, मैं तो 15 लाख पा रही थी, अब विधायक चुरे तो मैं क्या करूँ?
कलम रोककर थानेदार मुस्कुराया- ये तो तुम्हारी गलती है। तुमने सही पार्टी नही चुनी।

अखबार बोला- "तूने खिड़की खुली छोड़ी होगी"
एंकर बोला- "तूने ताला न लगाया होगा"
दलाल चीखा-" तूने विधायक बांधकर कर क्यो न रखे"
ट्रोल बोले- "तूने चोर को ही क्यो न चुना"
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एक आदमी,बाथरूम में रेनकोट पहन कर नहा रहा था।
दूसरा आदमी उसे छुप छुपकर देख रहा था।

पहले ने उसे काफी देर तक इग्नोर किया,फिर खीझ कर बोला- यहां ताक झांक क्यो कर रहे हो??

झांकने वाले ने जवाब दिया-

"तुम्हारे जैसा बनना चाहता हूँ दिखना चाहता हूँ, होना चाहता हूँ। मोस्ट इम्पॉर्टेंटली,
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ऐसे रेनकोट पहन कर नहाना चाहता हूँ, इसलिए तुम्हारी स्टडी कर रहा हूँ"
***
पहले ने मग्गा नीचे रखा, औऱ कमर पर हाथ रखकर बोला

- अगर मेरे जैसा बनना है, स्टडी करनी है, तो उधर दूसरी तरफ मेरी लाइब्रेरी है। वहाँ जाओ, मेरी किताबे देखो, जो चाहो पढ़ लो। फिर तुम मेरे जैसा बन सकते हो।
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"उधर से होता हुआ आया हूँ"- झांकने वाले ने जवाब दिया, " सोचो जरा...अगर लिख- पढ़ ही पाता तो लोगो के बाथरूम में क्यो झांकता"

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#रिबोर्न_की_बोधकथाऐं

@RebornManish
✍️
(चित्र- ऐवें ही )
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बड़ी पुरानी बात है।

एक थे पिग्गु जी। तलैया के एक तरफ लोटिया रहे थे कीचड़ में.. छप छप छई, छपा के छई । बढिया मस्ती में थे, उस तरफ शेर आया। प्यास लगी थी, पानी पीने लगा। इधर पिग्गु जी की मस्ती हाइपर हो गयी। जोर से चिल्लाए..

"ओए शेरss , आजा दम है तो, कर ले दो- दो हाथ"
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शेर ने,पिग्गु को नजर भर देखा।कीचड़ में लपटाए,कई किस्म की दुर्गन्धोंसे युक्त,एकदम घिनघिनाये हुए.!!!शेर को गुस्सा तो आया,मगर जप्त किया।फिर ये जंगल पिग्गुओ का भी तो है,जी ले अपनी जिंदगी।तो शेर जी ने पानी पिया,चुपचाप चले गए।

पिग्गु जी ने घर आकर अपना बहादुरी कारनामा डैडी को सुनाया।
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डैडी ने हालात समझे और बेटे को बताया- बेटा वो तेरा डर नही, तेरी दुर्गंध थी। अब तू बच के रह। कभी साफ सुथरा दिखा तो पिग्गु से पोर्क बनते देर न लगेगी।

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पिग्गु ने बात गांठ बांध ली। सदैव कीचड़ से सना रहता। आगे वह भी बड़ा हुआ, उसका परिवार बढ़ा। कीच और बदबू पारिवारिक गुण बन गया।
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