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तस्यामात्या गुणैरासन्निक्षवाकोः सुमहात्मनः।
मन्त्रज्ञाश्चेङ्गितज्ञाश्च नित्यं प्रियहिते रताः॥१॥
अष्टौ बभूवुर्वीरस्य तस्यामात्या यशस्विनः।
शुचयश्चानुरक्ताश्च राजकृत्येषु नित्यशः॥२॥
धृष्टिर्जयन्तो विजयः सुराष्ट्रो राष्ट्रवर्धनः।
अकोपो धर्मपालश्च सुमन्त्रश्चाष्टमोऽर्थवित्॥३॥
इक्ष्वाकुवंशी वीर महामना महाराज दशरथ के मन्त्रिजनोचित गुणों से सम्पन्न आठ मन्त्रि थे जो मन्त्र के तत्व को जाननेवाले और बाहरी चेष्टा को देखकर मन के भाव को समझने वाले थे ।वे सदा ही राजा के प्रिय और हितमें लगे रहते थे।इस कारण उनका यश बहुत फैला हुआ था।
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स कच्चिद् ब्राह्मणो विद्वान् धर्मनित्यो महाद्युतिः।
इक्ष्वाकूणामुपाध्यायो यथावत् तात पूज्यते॥९॥
तात क्या तुम इक्ष्वाकुकुलके पुरोहित ब्रह्मवेत्ता,विद्वान सदैव धर्म में तत्पर रहनेवाले महातेजस्वी ब्रह्मऋषि वशिष्ठ जी का यथावत पूजन तो करते हो ना।
तात कच्चिद् कौसल्या सुमित्रा च प्रजावती ।
सुखिनी कच्चिदार्या च देवी नन्दति कैकयी॥१०॥
भरत क्या माता कौसल्या और सुमित्रा सुख से हैं,और क्या माता आर्या कैकयी आनन्दित हैं ।
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स तत्र ब्रह्मणः स्थानमग्नेः स्थान तथैव च॥३-१२-१७
विष्णोः स्थानं महेन्द्रस्य स्थान चैव विवस्वतः।
सोमस्थानं भगस्थानं स्थानं कौबेरमेव च॥३-१२-१८
धातुर्विधातुः स्थाने च वायोः स्थानं तथैव च।
नागराजस्य च स्थानमनन्तस्य महात्मनः॥३-१२-१९
स्थानम तथैव गायत्र्या वसूनां स्थानमेव च।
स्थानं च पाशहस्तस्य वरुणस्य महात्मनः॥३-१२-२०
कार्तिकेयस्य च स्थानं धर्मस्थानं च पश्यति।३-१२-२१
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