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#ब्रह्म और #ब्राह्मण संस्कृत भाषा का शब्द है, और #संस्कृत भाषा का लेखनी नागरी लिपि की #वर्णमाला द्वारा ही सम्भव है| और #नागरी लिपि की वर्णमाला का क्रमिक विकास नौवीं सताब्दी बाद बाह्मी लिपि की वग्गमाला से हुआ है| देखे #चित्र 👉1 और #वैदिक संस्कृत या #क्लासिकल संस्कृत भाषा का मिलना
नौवीं सताब्दी बाद हुआ है और आज की #ब्राह्मणी_ग्रंथो का मिलना #बारहवीं सताब्दी बाद से होता है| दूसरी बात नौवीं सताब्दी के बाद संस्कृत भाषा से बने #ब्रह्म और #ब्राह्मण का अर्थ भी #व्यक्तिवाचक और #जातिवाचक होता है| लेकिन वही पालि भाषा वाला सद्द #बम्ह और #बाम्हण का अर्थ #गुणवाचक
होता है| जैसे- बंदर एक जातिवाचक नाम है और एक बंदर नाम की प्रवृति या गुण मनुष्य मे पाया जाता है| यानी एक बंदर नाम की जाति और दूसरा बंदर नाम का गुण स्वभाव मनुष्य मे| इसलिए बम्ह और ब्रह्म, बाम्हण और ब्राह्मण के लेखनी का अंतर और अर्थ मे अंतर समझने के लिए, अभिलेखो की दुनिया मे चलना
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शाण्डिल्य उवाच
श्रृणुतं दत्तचित्तौ में सहस्यं व्रजभूमिजम्।
व्रजनं व्याप्तिर्त्यिुक्त्या व्यापनाद् व्रज उच्यते॥
परीक्षित और वज्रनाभ व्रजभूमि का रहस्य
बतलाता हूँ दत्तचित्त हो सुनो। व्रज शब्द का अर्थ है व्याप्ति।
इस व्रद्धवचन के अनुसार व्यापक होने के कारण ही इस भूमि का
नाम व्रज है
गुणातीतं परं ब्रह्म व्यापकं व्रज उच्यते ।
सदानन्दं परं ज्योतिर्मुक्तानां पदमव्ययम्॥

सत्व रज और तम इन तीनों से अतीत जो परब्रह्म है वही व्यापक है।
इसलिये उसे व्रज कहते हैं। वह सदानन्दस्वरूप परम ज्योतिर्मय और
अविनाशी है। जीवन्मुक्त पुरुष उसी में स्थित रहते हैं।
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#मगध_और_समकालीन_भारतीय_इतिहास

#मगध 1⃣

मगध के राजवंश

1. महाराजा मगध :-

राजा मगध ने मगध साम्राज्य की स्थापना की।

2. महाराजा सुधन्वा :- कुरु द्वितीय का पुत्र सुधन्वा अपने मामा महाराजा मगध के बाद मगध का राजा बना।
सुधन्वा राजा मगध का भतीजा था।

3. महाराजा सुधनु

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4. महाराजा प्रारब्ध
5. महाराजा सुहोत्र
6. महाराजा च्यवन
7. महाराजा चवाना
8. महाराजा कृत्री
9. महाराजा कृति
10. महाराजा क्रत
11. महाराजा कृतग्य
12. महाराजा कृतवीर्य
13. महाराजा कृतसेन
14. महाराजा कृतक
15. महाराजा प्रतिपदा
16. महाराजा उपरिचर वसु :- बृहद्रथ के पिता

(2/600)
और राजवंश के अंतिम राजा थे।

बृहद्रथ राजवंश:-

वृहद्रथ वंश➡वृहद्रथ का पुत्र जरासंध एक शक्तिशाली राजा था।

➡जरासंध की पुत्रियों अस्ति और प्राप्ति का विवाह कंस के साथ हुआ था।जरासंध के मरणोपरांत मगध का शासन -- जरासंध के पुत्र सहदेव को भगवान श्रीकृष्ण ने कार्यभार सौंपा।

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#वेदकोषामृत #संस्कृत #महाभारत
#VedakoshAmrita #Sanskrit #Mahabharata

Dialogue between Maharishi Vedvyasa and Drupada revealing the secret of previous lives of Pandavas and Devi Draupadi.
व्यास उवाच
पुरा वे नैमिषारण्ये देवाः सत्रमुपासते।
तत्र वैवस्वतो राजञ्शामित्रमकरोत् तदा॥

पाञ्चाल नरेश पूर्व काल की बात है नैमिषारण्य क्षेत्र में देवता लोग एक
यज्ञ कर रहे थे उस समय वहाँ सूर्यपूत्र यम शामित्र यज्ञ कार्य करते थे।
ततो यमो दीक्षितस्तत्र राजन् नामारयत् कंचिदपि प्रजानाम्।
ततः प्रजास्ता बहुला बभूवुः कालातिपातान्मरणप्रहीणाः॥

राजन् उस यज्ञ की दीक्षा लेने के कारण यमराज ने मानवप्रजाकी मृत्यु का कार्य
स्थगित कर दिया था
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॥वैशम्पायन उवाच॥
उपासीनेषु विप्रेषु पाण्डवेषु महात्मसु।
द्रौपदी सत्यभामा च विविशाते तदा समम्॥
जाहस्यमाने सुप्रीते सुखं तत्र निषीदतुः।
चिरस्य दृष्टा राजेन्द्र ते अन्योन्यस्य प्रियंवदे॥
जब महात्मा पाण्डव तथा ब्राह्मण जन बैठकर धर्मचर्चा कर रहे थे।
उसी समय द्रौपदी और सत्यभामा भी एक ओर जाकर एक ही साथ
सुखपूर्वक बैठी और अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक चर्चा करने लगीं।
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राजोवाच
कर्मयोग वदत नः पुरुषो येन संस्कृतः।
विधूयेहाशु कर्माणि नैष्कर्म्यं विन्दते परम॥ २-११-३-४१
राजा निमि ने कहा - योगीश्वरो अब आप कर्मयोग का वर्णन कीजिये जिसके द्वारा मनुष्य
शीघ्रातिशीघ्र परम नैष्कर्म्य अर्थात कर्म,कर्तत्व और कर्मफल की निवृत्ति करनेवाला ज्ञानप्राप्त करता है।
आविर्होत्र उवाच
कर्माकर्मविकर्मेति वेदवादो न लौकिकः।
वेदस्य चेश्वरात्मत्वात् तत्र मुह्यन्ति सूरयः॥२-११-३-४३
राजन कर्म(शास्त्रविहित),अकर्म(शास्त्रद्वारा निषिद्ध) और विकर्म(शास्त्र विहित का उल्लङ्घन) यह तीनों वेद के द्वारा जाने जाते हैं।
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गयासुद्दीन के वंशज #नेहरू ने इन संस्थाओं का #ध्येय_वाक्य #संस्कृत में बनाकर हिंदुओं को बेवकूफ बनाने का प्रयास किया था इसलिए साहेब ने अधिकांश को बेच दिया और जो नहीं बिके उनकी शक्ति कम कर दी।

●भारत सरकार👉 सत्यमेव जयते
●लोक सभा👉 धर्मचक्र प्रवर्तनाय
●उच्चतम न्यायालय👉
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यतो धर्मस्ततो जयः
●आल इंडिया रेडियो👉 सर्वजन हिताय सर्वजनसुखाय

●दूरदर्शन👉 सत्यं शिवं सुन्दरम्
●गोवा राज्य👉 सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।
●भारतीय जीवन बीमा निगम👉 योगक्षेमं वहाम्यहम्
●डाक तार विभाग👉 अहर्निशं सेवामहे
●श्रम मंत्रालय👉 श्रम एव जयते
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●भारतीय सांख्यिकी संस्थान👉 भिन्नेष्वेकस्य दर्शनम्
●थल सेना👉 सेवा अस्माकं धर्मः
●वायु सेना👉 नभःस्पृशं दीप्तम्
●जल सेना👉 शं नो वरुणः
●मुंबई पुलिस👉 सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय
●हिंदी अकादमी👉 अहं राष्ट्री संगमनी वसूनाम्
●राष्ट्रवादी लेखक संघ👉 राष्ट्राय स्वाहा, इदं न मम
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उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद्भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः।।२-३-१।।

नव योजन साहस्त्रो विस्तारो अस्य महामुने।
कर्मभूमिरियं स्वर्गपवर्गं च गच्छताम्।।२-३-२।।
हे मैत्रेय जो समुद्र के उत्तर तथा हिमालय के दक्षिण में स्थित है वह भारतवर्ष कहलाता है।उसमें भरत की सन्तान बसी हुई हैं।
इसका विस्तार नौ हजार योजन है । यह स्वर्ग और अपवर्ग प्राप्त करनेवालों की कर्मभूमि है।
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तस्यामात्या गुणैरासन्निक्षवाकोः सुमहात्मनः।
मन्त्रज्ञाश्चेङ्गितज्ञाश्च नित्यं प्रियहिते रताः॥१॥
अष्टौ बभूवुर्वीरस्य तस्यामात्या यशस्विनः।
शुचयश्चानुरक्ताश्च राजकृत्येषु नित्यशः॥२॥
धृष्टिर्जयन्तो विजयः सुराष्ट्रो राष्ट्रवर्धनः।
अकोपो धर्मपालश्च सुमन्त्रश्चाष्टमोऽर्थवित्॥३॥
इक्ष्वाकुवंशी वीर महामना महाराज दशरथ के मन्त्रिजनोचित गुणों से सम्पन्न आठ मन्त्रि थे जो मन्त्र के तत्व को जाननेवाले और बाहरी चेष्टा को देखकर मन के भाव को समझने वाले थे ।वे सदा ही राजा के प्रिय और हितमें लगे रहते थे।इस कारण उनका यश बहुत फैला हुआ था।
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स कच्चिद् ब्राह्मणो विद्वान् धर्मनित्यो महाद्युतिः।
इक्ष्वाकूणामुपाध्यायो यथावत् तात पूज्यते॥९॥
तात क्या तुम इक्ष्वाकुकुलके पुरोहित ब्रह्मवेत्ता,विद्वान सदैव धर्म में तत्पर रहनेवाले महातेजस्वी ब्रह्मऋषि वशिष्ठ जी का यथावत पूजन तो करते हो ना।
तात कच्चिद् कौसल्या सुमित्रा च प्रजावती ।
सुखिनी कच्चिदार्या च देवी नन्दति कैकयी॥१०॥
भरत क्या माता कौसल्या और सुमित्रा सुख से हैं,और क्या माता आर्या कैकयी आनन्दित हैं ।
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स तत्र ब्रह्मणः स्थानमग्नेः स्थान तथैव च॥३-१२-१७
विष्णोः स्थानं महेन्द्रस्य स्थान चैव विवस्वतः।
सोमस्थानं भगस्थानं स्थानं कौबेरमेव च॥३-१२-१८
धातुर्विधातुः स्थाने च वायोः स्थानं तथैव च।
नागराजस्य च स्थानमनन्तस्य महात्मनः॥३-१२-१९
स्थानम तथैव गायत्र्या वसूनां स्थानमेव च।
स्थानं च पाशहस्तस्य वरुणस्य महात्मनः॥३-१२-२०
कार्तिकेयस्य च स्थानं धर्मस्थानं च पश्यति।३-१२-२१
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Importance of Rudraksha.

शिवप्रियतमो ज्ञेयो रुद्राक्षः परपावन‌ः।
दर्शनात् स्पर्शनाज्जाप्यात् सर्वपापहरः स्मृतः।।२-५-२।।
रुद्राक्ष शिव को अत्यंत प्रिय है। इसे परम पावन समझना चाहिये। रुद्राक्ष का स्पर्श,दर्शन और जप समस्त पापों का हरण करनेवाला कहा गया है।
वर्णैस्तु तत्फलं धार्यं भुक्तिमुक्तिफलेुसुभिः।
शिवभक्तैर्विशेषेण शिवयोः प्रीतये सदा॥२-५-१३॥
भोग और मोक्ष की इच्छा वाले चारों वर्णों के लोगों और विशेषत शिवभक्तों शिव पार्वती की प्रसन्नताके लिये रुद्राक्ष फलोंको अवश्य धारण करना चाहिये॥
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Description of different types of Brahmins.
विभिन्न प्रकार के ब्राह्मणों का वर्णन।

सदाचारयुतो विद्वान् ब्राह्मणो नाम नामत।
वेदाचारयुतो विप्रो ह्येतैरेकैकवान्द्विजः॥ १-१२-२॥
सदाचार का पालन करनेवाला विद्वान ब्राह्मण ही 'ब्राह्मण' नाम धारण करने का अधिकारी है।
वेदोक्त आचार और विद्या से युक्त ब्राह्मण 'विप्र' कहलाता है। सदाचार, वेदाचार और विद्या से युक्त ब्राह्मण 'द्विज' कहलाता है।
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ॐ श्रीपरमात्मने नमः | अथ द्वितीयोऽध्यायः

सञ्जय उवाच
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् ।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ।१।

सञ्जय बोले – उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान् मधुसूदन ने यह वचन कहा। ॥१॥
श्रीभगवान उवाच
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ।२।

श्रीभगवान् बोले – अर्जुन! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है। ॥२॥
#श्रीमद्भगवद्गीता
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते ।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप । ३ ।

» इसलिये हे अर्जुन! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझ में यह उचित नहीं जान पड़ती। हे परन्तप! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिये खड़ा हो जा। ॥ ४ ॥
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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।

अर्थ –व्यक्ति का सबसे बड़ा दुश्मन आलस्य होता है, व्यक्ति का परिश्रम ही उसका सच्चा मित्र होता है। क्योंकि जब भी मनुष्य परिश्रम करता है तो वह दुखी नहीं होता है और हमेशा खुश ही रहता है।
#संस्कृत Image
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।।

अर्थ–व्यक्ति के मेहनत करने से ही उसके काम पूरे होते हैं, सिर्फ इच्छा करने से उसके काम पूरे नहीं होते। जैसे सोये हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं नहीं आता, उसके लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता है। Image
ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति।
भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्।।

अर्थ – लेना, देना, खाना, खिलाना, रहस्य बताना और उन्हें सुनना ये सभी 6 प्रेम के लक्षण है।

#संस्कृत_श्लोक 🌹🌹💞💞 Image
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Ingenious Trickery – Draft National Education Policy 2019 velivada.com/2019/08/21/ing…
Excuse me for the Self Retweet...
The reverse counting has begun to pass this dangerous law. #Nep2019
नई शिक्षा नीति 2019 लागू की जाती है तो यह सरे आम होगा...

डॉ कस्तुरीरंगन समिति की स्पष्ट सिफारिश है कि शिक्षण संस्थानों को पूर्ण स्वायत्तता दी जाए.
और शिक्षा को फिलान्थ्रोफी के माध्यम से निजी संस्थानों को सौंप दिया जाए.
#Nep2019
#SaveMeritSaveNation
#SaveNation_EndMonopoly
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Final day of 3-day intl conf on #Sanskrit #SciTech #RFS & #Sahitya @ssusonline
Session 1: Agri & Culinary science
Chair & key paper: Dr B. Padmodaya Sarma
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facebook.com/dMurali/videos… ImageImageImage
Session 1: Agri & Culinary science
Chair & key paper: Dr B.Padmodaya Sarma, Prof, Dept of Plant Pathology, SV Agri College, Tirupati
Gopika G, Research Scholar #Sanskrit #Sahitya @ssusonline -Agri Mgt in Krși Parāśara
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#संस्कृत Image
Session 1: Agri & Culinary science
Chair: Dr B.Padmodaya Sarma (Soil Borne Disease Mgt in Organic Farming)
Nimmy KM, Research Scholar #Sanskrit #Sahitya @ssusonline -Scientific Agricultural Practices in Kāśyapiyakrsisūkti
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#RFS Image
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Day 2 of 3-day intl conf on #Sanskrit #SciTech
#RFS & #Sahitya @ssusonline #Kalady
Session 1: Environmental Science
Chair & key paper Dr Anil Pratap Giri - Vedāntasāra

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cc: @moesgoi @PondiUniVC @AgriGoI ImageImage
Session 1: Environmental Science
Chair Dr Anil Pratap Giri, Asst Prof, #Sanskrit Dept, Pondicherry Univ

Dr Jinitha KS, Asst Prof, Sanskrit Vyakarana @ssusonline RC Payyanur - सस्यसम्पत्तिः बृहत्संहितायाम्

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#संस्कृत #शोध #RFS Image
Session 1: Environmental Science
Chair Dr Anil Pratap Giri
Dr Rohini K, Dept of #Sanskrit, Sree Krishna College, Guruvayur - परिस्थितिसंरक्षणंभारतीयसंस्कृतौ ।

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श्री शंकराचार्य #संस्कृत सर्वकलाशाला
@MinOfCultureGoI @HRDministry Image
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3-day intl conf on #Sanskrit Science & Tech #SciTech
#SilverJubilee Celebrations, #RFS & #Sahitya Dept @ssusonline #Kalady
Song-Amrutha
श्री शंकराचार्य #संस्कृत सर्वकलाशाला
@MinOfCultureGoI @HRDministry
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Opening remarks by Dr V. R. Muralidharan, Prof & HoD, #Sanskrit #Sahitya
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श्री शंकराचार्य #संस्कृत सर्वकलाशाला #SciTech Research Forum #RFS @ssusonline #Kalady #संस्कृतसाहित्यं
cc: @TVVen @sanskritkannan @Gopalee67 @sanskrit1906 Image
Speech by session chair, Dr C.Rajendran, Dean, Faculty of #Sanskrit Literature @ssusonline #Kalady #संस्कृतसाहित्यं
श्री शंकराचार्य #संस्कृत सर्वकलाशाला #SciTech Research Forum #RFS #शोध

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cc: @DDNewsSanskrit @PMOIndia @NCAA_PMU Image
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