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#हरे_कृष्ण प्रभुजी 😎🤞🙏
#भागवत_गीता के अनुसार ...

"सब कुछ मुझ पर टिका है, जैसे मोती एक धागे में पिरोए जाते हैं, मैं पृथ्वी की मूल सुगंध हूं। मैं पानी में स्वाद हूं। मैं आग में गर्मी और अंतरिक्ष में ध्वनि हूं। मैं सूर्य और चंद्रमा का प्रकाश और सभी जीवित प्राणियों का जीवन हूं।" Image
एक बार जब संसार सजीव हो गया अनगिनत जीवो से भर गया , विष्णु ने खुद को एक तीसरे रूप में विस्तारित किया और प्रत्येक व्यक्ति के साथ बैठने के लिए सभी प्राणियों के दिलों में प्रवेश किया।

परमात्मा के रूप में आत्मा , व्यक्तिगत आत्मा, जिसे आत्मा कहा जाता है, जीवन का आधार है।

स्वयं के
रूप में इसकी उपस्थिति से यह शरीर को ऊर्जा देता है।

संसार इस प्रकार पदार्थ और आत्मा, असंख्य जीवन रूपों और उनके भीतर आत्मा का एक संयोजन है। जब आत्मा एक शरीर को छोड़ती है, तो वह शरीर मर जाता है। आत्मा फिर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है, जैसे कोई अभिनेता कपड़े बदलता है।
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भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते है कि तुम्हे यह गीतारूप रहस्यमय उपदेश किसी भी कालमें न तो तपरहित मनुष्यसे कहना चाहिये , न भक्तिरहितसे और न बिना सुननेकी इच्छावालेसे कहना चाहिये तथा जो मुझमें दोषदृष्टि रखता है , उससे भी कभी नहीं कहना चाहिये ।
जो पुरुष मुझमें परम प्रेम करके इस परम रहस्ययुक्त गीताशास्त्रको मेरे भक्तोंमें कहेगा , वह मुझको ही प्राप्त होगा - इसमें कोई सन्देह नहीं है । मेरा उससे बढ़कर प्रिय कार्य करनेवाला मनुष्योंमें कोई भी नहीं है तथा मेरा पृथ्वीभरमें उससे बढ़कर प्रिय दूसरा कोई भविष्यमें होगा भी नहीं ।
तथा जो पुरुष इस धर्ममय हम दोनोंके संवादरूप गीताशास्त्रको पढ़ेगा , उसके द्वारा मैं ज्ञानयज्ञसे पूजित होऊँगा -ऐसा मेरा मत है जो पुरुष श्रद्धायुक्त और दोषदृष्टिसे रहित होकर इस गीताशास्त्रका श्रवण भी करेगा वह भी पापोंसे मुक्त होकर उत्तम कर्म करनेवालोंके श्रेष्ठ लोकोंको प्राप्त होगा।
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एक बार की बात है कि श्री कृष्ण और अर्जुन कहीं जा रहे थे । रास्ते में अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि प्रभु- एक जिज्ञासा है मेरे मन में , अगर आज्ञा हो तो ? श्री कृष्ण ने कहा- अर्जुन , तुम मुझसे बिना किसी हिचक , कुछ भी पूछ सकते हो।
तब अर्जुन ने कहा कि मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई है कि दान तो मै भी बहुत करता हूँ परंतु सभी लोग कर्ण को ही सबसे बड़ा दानी क्यों कहते हैं ? यह प्रश्न सुन श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले कि आज मैं तुम्हारी यह जिज्ञासा अवश्य शांत करूंगा।
श्री कृष्ण ने पास में ही स्थित दो पहाड़ियों को सोने का बना दिया । इसके बाद वह अर्जुन से बोले कि हे अर्जुन इन दोनों सोने की पहाड़ियों को तुम आस पास के गाँव वालों में बांट दो।
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#Thread

🌷 संचित कर्म

जैसे कोई कहानी या ज्ञान किसी पुस्तक में संचित होता है, वैसे ही हमारे अतीत (जीवन) का कर्म ब्रह्मांड में जमा होता है

यह हमारा संचित कर्म है।

संचित का अर्थ है संचित। जमा करना आसान है और करनी के साथ दूर जाना असंभव है
संचित कर्म हमारे जन्मों के दौरान विभिन्न प्राणियों के रूप में संचित रहता है। चूँकि कर्म को टाला नहीं जा सकता है और कर्मों का फल मिलना ही मिलना है चाहे अच्छा हो या बुरा
लेकिन समय लगता है, यह जमा होता रहता है।
मानव जीवन ही एक ऐसा रूप है जहाँ किसी को भगवान जी से निकटता प्राप्त करने का मौका मिलता है
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