हम दुमका के एक बेहद रिमोट आदिवासी गांव गए. वहां एक सरकारी स्कूल है. कुल चार टीचर. एक प्रिंसिपल और तीन शिक्षक. प्रिंसिपल ने बड़ी अच्छी पहल की. जब पिछले साल कोविड के चलते लॉकडाउन में स्कूल बंद हुए, तो उनको लगा कि इतने ग्रामीण परिवेश के बच्चों का अगर एक बार स्कूल छूटा
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तो शायद हमेशा के लिए वो पढ़ाई से कट जाएं. बाल मजदूरी, काम-काज में लग जाएं. सो उन्होंने गांव के घर की दीवारों को स्कूल बना दिया. किसी पर गिनती, वर्णमाला, पहाड़े, शरीर के अंगों के नाम, ए फॉर ऐपल से ज़ेड फॉर ज़ेबरा तक... ऐसे ही सब गांव के मिट्टी वाले घरों पर उकेर दिया.
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फिर उन्हीं दीवारों पर नीचे की ओर कुछ-कुछ दूरी छोड़ते हुए काले रंग से पुतवा कर स्लेट बनाए. उन्हीं के पास बच्चे बैठकर पढ़ते-लिखते हैं. प्रिंसिपल रोज़ आकर मुआयना करते हैं. जिस बच्चे को जो समझ नहीं आता, अपनी दीवार वाली स्लेट पर लिखकर रखता है.
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वो दूर से ही मुश्किलें हल करते, पढ़ाते हैं. उनके फैलाए जागरूकता अभियान के चलते गांव में एक समिति बनी, जो बाल विवाह नहीं होने देती यहां. कोरोना पर भी जागरूकता फैलाई गई. ग्रामीण बचाव से रहते, बाहर नहीं जाते गांव के. इस तरह गांव कोरोना से बचा रहा.
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प्रशासन वाले जांच को आए, लेकिन यहां एक भी केस नहीं मिला. बड़ा प्यारा प्रयोग था. प्रिंसिपल सब बताते हुए भावुक हुए और उनकी आंखों में आंसू भी आ गए.
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सभी तस्वीरें: @amie_001
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