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अंदाज़-ए-ज़माना कहता है फिर मौज-ए-हवा रुख़ बदलेगी, अँगारों से गुलशन फूटेगा शबनम से शरारे निकलेंगे! #Just_random_Indian...

Aug 29, 2021, 27 tweets

अब जब नरेंद्र मोदी के निर्देश पर भारत सरकार ने भारत के प्रथम प्रधानमत्री की जगह विनायक सावरकर को महत्त्व देने का निर्णय लिया है तो हमारा या कर्तव्य बनता है है की हम देश को विनायक सावरकर की याद फिर से दिलाएं #सावरकर_से_कायरकर_तक 1/n

1926 में एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी, Life of Barrister Savarkar जिसके लेखक थे चित्रगुप्त, इस पुस्तक ने सबसे पहले विनायक सावरकर का महिमामंडन करते हुए उन्हें वीर कहा था.
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सावरकर की मौत के 20 वर्ष उपरांत इस पुस्तक का दूसरा पब्लिकेशन आया सावरक प्रकाशन के द्वारा, जिसमे रविन्द्र रामदास ने स्पष्ट किया की चित्रगुप्त और कोई नहीं स्वयं विनायक सावरकर था. अर्थात सावरकर ने स्वयं अपना महिमामंडन कर स्वयं को वीर की उपाधि दी थी.
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अब बात करते है विनायक सावरकर के गिरफ्तार होने के पहले और गिरफ़्तारी के कारणों की: 1906 में सावरकर इंग्लैंड गए कानून की पढ़ाई के लिए, और वहां उन्होंने लन्दन में स्थित भारतीय छात्रों के साथ “फ्री इंडिया सोसाइटी” की स्थाम्पना की.
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एक जुलाई 1901 को मदनलाल धींगरा ने अंग्रेज अफसर सर विलियम कर्जन वायली की ह्त्या कर दी, जिसके लिए धींगरा गिरफ्तार हुए और उन्हें फांसी की सजा हुई. #सावरकर_से_कायरकर_तक 5/n

Savarkar & His Times, as Veer Savarkar में सावरकर के माध्यम से ये कहा जाता है की सावरकर ने धींगरा को प्रशिक्षित किया, उसे रिवाल्वर दी, जिससे कर्जन वायली की ह्त्या किग गयी. अंग्रेजों की जांच में सावरकर का नाम कहीं नहीं था. 6/n

ये पब्लिकेशन सावरकर की मौत के 16 वर्षों के उपरान्त आया, आखिर सावरकर के जीवनकाल में ये पब्लिकेशन क्यों नहीं आया? दशकों से देश भाजपा, संघ, हिन्दू महासभा से स्वतंत्रता आन्दोलन में उनकी भूमिका पर सवाल उठाता है, क्या ये उसके जवाब में सोची समझी कहानी है? #सावरकर_से_कायरकर_तक 7/n

इंग्लैंड जाने से पहले, सावरकर एक “मित्र मेला” नामक संस्था के सदस्य थे, जिसे बाद में “अभिनव भारत” नाम दिया गया। इसका लक्ष्य हिंसक तरीकों से अंग्रेजों को उखाड़ फेंकना था।
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सावरकर के बड़े भाई गणेश सावरकर “बाबुराव” भी इस संस्था के सदस्य थे. जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार किया, उनके पास बम का पूरा भण्डार मिला जिसकी वजह से उन्हें जून 8, 1909 को आजीवन कारावास की सजा मिली. #सावरकर_से_कायरकर_तक 9/n

अभिनव भारत ने इसका बदला लेने की ठानी और अनंत कान्हेरे ने AMT Jackson नामक मजिस्ट्रेट की मराठी नाकात शारदा देक्श्ते समय गोली मार की ह्त्या कर दी. #सावरकर_से_कायरकर_तक 10/n

कान्हेरे की गिरफ़्तारी के बाद उसके पास से सावरकर के पत्र मिले, और ये साबित हुआ की सावरकर ने इंग्लैंड ने १० रिवाल्वर इस संस्था को भेजी थी, जिस रिवाल्वर से Jackson की ह्त्या हुई उनमे से ही एक थी. #सावरकर_से_कायरकर_तक 11/n

तत्पश्चात के टेलीग्राफिक वारंट लन्दन भेजा गया, जहाँ सावरकर की गिरफ़्तारी हुई और उन्हें भारत लाया गया. #सावरकर_से_कायरकर_तक 12/n

सावकार को 50-50 के दो कारावास की सजा हुई और उन्हें 4 जून 1911 को अंडमान भेजा गया, सावरकर को तेल के कोल्हू में जोत दीया गया, वैसे ऐसी यातनाएं केवल उन्हें ही नहीं दी गयी थी, पर सावरकर का क्रन्तिकारी उत्साह ख़त्म हो गया. #सावरकर_से_कायरकर_तक 13/n

1911 में ही, सावरकर ने क्षमादान के लिए अंग्रेज सरकार से याचिका की। इस याचिका का पाठ कहीं उपलब्ध नहीं है. #सावरकर_से_कायरकर_तक 14/n

उन्होंने14 नवंबर, 1913 को अपनी दूसरी याचिका में दया की मांग करते हुए भारत में एक जेल में स्थानांतरण का अनुरोध करते हुए लिखा: केवल पराक्रमी दयालु होने का जोखिम उठा सकते हैं और एक पुत्र सरकार रुपी माता-पिता के दरवाजे के अलावा कहां लौट सकते हैं? #सावरकर_से_कायरकर_तक 15/n

बदले में, सावरकर ने "किसी भी क्षमता में सरकार" की सेवा करने की पेशकश की, जैसा कि वह उचित समझे। उन्होंने घोषणा की कि वह अब हिंसा में विश्वास नहीं करते हैं, ब्रिटिश सरकार द्वारा पेश किए गए सुधारों के कारण संवैधानिकता में अपने रूपांतरण को सही ठहराते हैं। #सावरकर_से_कायरकर_तक 16/n

उन्होंने याचिका में ये भी लिया की: दिग्भ्रमित क्रन्तिकारी उन्हें अपना रोल मॉडल मानते है, एक ही झटके में उन्होंने पूरे क्रन्तिकारी आन्दोलन से स्वयं को अलग कर लिया.
हालाँकि इससे अंग्रेज प्रभावित नहीं हुए, पर उनको कोल्हू से हटा कर फोरमैन बना दिया गया. #सावरकर_से_कायरकर_तक 17/n

उस समय अंडमान में बंदी एक और क्रन्तिकारी त्रैलोक्य नाथ चक्रवर्ती के अनुसार, सावरकर ने सबको भूख हड़ताल के लिए राजी कर लिया मगर स्वयं और उनके भाई भूख हड़ताल पर नहीं बैठे. #सावरकर_से_कायरकर_तक 18/n

जिसका कारण सावरकर ने बताया की यदि वो भाग लेते तो उन्हें “एकांतवास” में डाल दिया जाता. स्पष्ट है सावरकर का क्रन्तिकारी आन्दोलन तब तक ही सीमित था जब तक उनपर आंच ना आये. #सावरकर_से_कायरकर_तक 18/n

अनेकों दया याचिकाओं के बाद, मई 1921 में सावरकर को अंडमान से पुणे की येरवडा जेल भेजा गया, और तीन वर्ष बाद अनेकों शर्तों के साथ उन्हें रिहा किया गया, #सावरकर_से_कायरकर_तक 19/n

कुछ प्रमुख शर्ते थी, सावरकर सरकार की अनुमति के बगैर रत्नागिरी जिले से बाहर नहीं जायेंगे, किसी भी राजनितिक गतिविधियों में डायरेक्ट या इनडायरेक्ट रूप से शामिल ना होंगे, सावरकर ने माना की उन्हें “फेयर ट्रायल” दिया गया, और वो कानून और संविधान को मानेंगे. #सावरकर_से_कायरकर_तक 20/n

तत्पश्चात सावरकर कभी किसी आन्दोलन का हिस्सा नहीं बने, कुछ दावों के अनुसार सावरकर को अंग्रेजों से 60 रुपये हर महीने की पेंशन भी मिलती थी, जो की उस जमाने में बहुत बड़ी रकम थी. #सावरकर_से_कायरकर_तक 22/n

सावरकार को महात्मा गाँधी की ह्त्या के साजिश के आरोप में गिरफ्तार किया तब उनने बॉम्बे कमिश्नर को याचाना पत्र लिखा, उन्होंने लिखा की यदि उन्हें रिहा किया जाता है तो मैं किसी सांप्रदायिक या राजनैतिक गितिविधियों में भाग नहीं लूंगा और आजीवन इसका पालन भी किया #सावरकर_से_कायरकर_तक 23/n

सावरकर को महात्मा गाँधी के ह्त्या के आरोप में गिरफ्तार कर सबूतों के अभाव मुक्त किया गया #सावरकर_से_कायरकर_तक 24/n

मगर 18 अक्टूबर 1964 में जेल से छूटने के बाद गोपाल गोडसे के कथन और संसद में मांग के बाद सरकार ने 1965 में कपूरी आयोग का गठन किया, 1966 में जब इस आयोग ने सावरकर के खिलाफ साक्ष्य एकत्रित कर लिए तो सावरकर ने अन्न त्याग कर मृत्यु का वरण किया. #सावरकर_से_कायरकर_तक 25/n

स्पष्ट है, सावरकर को जो क्रन्तिकारी का चोला पहनाया जा रहा है उस चोले के पीछे एक कायर है, जिनसे सदैव स्वयं का बचाव किया और दूसरों का इस्तमाल किया, जब भी बात खुद पर आई तब तब उसने माफ़ी का सहारा लिया #सावरकर_से_कायरकर_तक 26/n

इस पूरे थ्रेड को अगर संक्षेप में कहा जाए तो, स्वघोषित “वीर” विनायक सावरकर क्रन्तिकारी नहीं कायर था, इसकी तस्वीर भारत के वीर सपूतों के साथ रख कर नरेंद्र मोदी ने इन सपूतों का अपमान किया है जिसके लिए नरेंद्र मोदी को देश से क्षमा मांगनी चाहिए.
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