अचिन्त्य मिश्रा Profile picture
काशी,मथुरा बाकी है।। Rt वैचारिक सहमति नहीं

Sep 5, 2021, 10 tweets

प्राचीन भारत की प्रमुख व्यूह रचनाएं
“महाभारत” एक ऐसा महाग्रंथ है जिसमे निहित ज्ञान आज भी प्रासंगिक है| इसमें बताये गए युद्ध के १८ दिनों में तरह तरह की रणनीतिया और व्यूह रचे गए थे | जैसे अर्धचंद्र, वज्र, और सबसे अधिक प्रसिद्ध चक्रव्यूह |

आखिर कैसे दिखते थे ये व्यूह? 👇

वज्र व्यूह

महाभारत युद्ध के प्रथम दिन अर्जुन ने अपनी सेना को इस व्यूह के आकार में सजाया था| इसका आकार देखने में इन्द्रदेव के वज्र जैसा होता था अतः इस प्रकार के व्यूह को "वज्र व्यूह" कहते हैं।
@RekhaSharma1511
@DeshBhaktReva

क्रौंच व्यूह

क्रौंच एक पक्षी होता है, जिसे आधुनिक अंग्रेजी भाषा में Demoiselle Crane कहते हैं| ये सारस की एक प्रजाति है| इस व्यूह का आकार इसी पक्षी की तरह होता है| युद्ध के दूसरे दिन युधिष्ठिर ने पांचाल पुत्र को इसी क्रौंच व्यूह से पांडव सेना सजाने का सुझाव दिया था| 1/3

राजा द्रुपद इस पक्षी के सिर की तरफ थे, तथा कुन्तीभोज इसकी आँखों के स्थान पर थे| आर्य सात्यकि की सेना इसकी गर्दन के स्थान पर थी| भीम तथा पांचाल पुत्र इसके पंखो (Wings) के स्थान पर थे| द्रोपदी के पांचो पुत्र तथा आर्य सात्यकि इसके पंखो की सुरक्षा में तैनात थे।
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इस तरह से हम देख सकते है की, ये व्यूह बहुत ताकतवर एवं असरदार था| पितामह भीष्म ने स्वयं इस व्यूह से अपनी कौरव सेना सजाई थी| भूरिश्रवा तथा शल्य इसके पंखो की सुरक्षा कर रहे थे| सोमदत्त, अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा इस पक्षी के विभिन्न अंगों का दायित्व संभाल रहे थे|

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अर्धचन्द्र व्यूह

इसकी रचना अर्जुन ने कौरवों के गरुड़ व्यूह के प्रत्युत्तर में की थी ।पांचाल पुत्र ने इस व्यूह को बनाने में अर्जुन की सहायता की थी।इसके दाहिने तरफ भीम थे।

मंडल व्यूह

भीष्म पितामह ने युद्ध के सांतवे दिन कौरव सेना को इसी मंडल व्यूह द्वारा सजाया था। इसका गठन परिपत्र रूप में होता था।ये बेहद कठिन व्यूहों में से एक था, पर फिर भी पांडवों ने इसे वज्र व्यूह द्वारा भेद दिया था।इसके प्रत्युत्तर में भीष्म ने "औरमी व्यूह" की रचना की थी

इसका तात्पर्य होता है समुद्र| ये समुद्र की लहरों के समान प्रतीत होता था| फिर इसके प्रत्युत्तर में अर्जुन ने "श्रीन्गातका व्यूह" की रचना की थी| ये व्यूह एक भवन के समान दिखता था|

चक्रव्यूह

इसके बारे में सभी ने सुना है..इसकी रचना गुरु द्रोणाचार्य ने युद्ध के तेरहवें दिन की थी।दुर्योधन इस चक्रव्यूह के बिलकुल मध्य में था।बाकि सात महारथी इस व्यूह की विभिन्न परतों में थे।इस व्यूह के द्वार पर जयद्रथ था।सिर्फ अभिमन्यु ही इस व्यूह को भेदने में सफल हो पाया।

चक्रशकट व्यूह

अभिमन्यु की ह त्या के पश्चात जब अर्जुन, जयद्रथ के प्राण लेने को उद्धत हुए, तब गुरु द्रोणाचार्य ने जयद्रथ की रक्षा के लिए युद्ध के चौदहवें दिन इस व्यूह की रचना की थी !!

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